Tantra or rog mukti totka || तंत्र और रोग मुक्ति टोटका


Tantra or rog mukti totka || तंत्र और रोग मुक्ति टोटका

तंत्र और रोग मुक्ति टोटका(tantra or rog mukti totka)





    तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या ।तंत्र ग्रंथो भगवान शिव के मुख से अबिरभूत हुई हे उनको पवित्र और प्रामाणिक माना गया है। भारतीय साहित्य में 'तंत्र' की एक विशिष्ट स्थिति है, पर कुछ साधक इस शक्ति का दुरुपयोग करने लग गए, जिसके कारण यह विद्या बदनाम हो 'गई। कामी, क्रोधी, लालची, इनसे भक्ति न होय । भक्ति करे कोई सूरमा, जाति वरन कुल खोय ॥ जो तंत्र से भय खाता हैं, वह मनुष्य ही नहीं हैं, वह साधक तो बन ही नहीं सकता! गुरु गोरखनाथ के समय में तंत्र अपने आप में एक सर्वोत्कृष्ट विद्या थी और समाज का प्रत्येक वर्ग उसे अपना रहा था! जीवन की जटिल समस्याओं को सुलझाने में केवल तंत्र ही सहायक हो सकता हैं! परन्तु गोरखनाथ के बाद में भयानन्द आदि जो लोग हुए उन्होंने तंत्र को एक विकृत रूप दे दिया! उन्होंने तंत्र का तात्पर्य भोग, विलास, मद्‌य, मांस, पंचमकार को ही मान लिया ! “मद्‌यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मैथुनमेव च, मकार पंचवर्गस्यात सह तंत्र: सह तान्त्रिकांस जो व्यक्ति इन पांच मकारो में लिप्त रहता हैं वही तांत्रिक हैं, भयानन्द ने ऐसा कहा! उसने कहा की उसे मांस, मछली और मदिरा तो खानी ही चाहिए, और वह नित्य स्त्री के साथ समागम करता हुआ साधना करे! ये ऐसी गलत धरना समाज में फैली की जो ठोंगी थे, जो पाखंडी थे, उन्होंने इस श्लोक को महत्वपूर्ण मान लिया और शराब पीने लगे, धनोपार्जन करने लगे, और मूल तंत्र से अलग हट गए, धूर्तता और छल मात्र रह गया! और समाज ऐसे लोगों से भय खाने लगे! और दूर हटने लगे! लोग सोचने लगे कि ऐसा कैसा तंत्र हैं, इससे समाज का क्या हित हो सकता हैं? लोगों ने इन तांत्रिकों का नाम लेना बंद कर दिया, उनका सम्मान करना बंद कर दिया, अपना दुःख तो भोगते रहे परन्तु अपनी समस्याओं को उन तांत्रिकों से कहने में कतराने लगे, क्योंकि उनके पास जाना ही कई प्रकार की समस्याओं को मोल लेना था! और ऐसा लगने लगा कि तंत्र समाज के लिए उपयोगी नहीं हैं! 




    तंत्र के नाम बदनाम किये हुए हे 





    परन्तु दोष तंत्र का नहीं, उन पथकश्रष्ट लोगों का रहा, जिनकी वजह से तंत्र भी बदनाम हो गया! सही अर्थों में देखा जायें तो तंत्र का तात्पर्य तो जीवन को सभी इृष्टियों से पूर्णता देना हैं! 

    जब हम मंत्र के माध्यम से देवता को अनुकूल बना सकते हैं, तो फिर तंत्र की हमारे जीवन में कहाँ अनुकूलता रह जाती हैं? मंत्र का तात्पर्य हैं, देवता की प्रार्थना करना, हाथ जोड़ना, निवेदन करना, भोग लगाना, आरती करना, धुप अगरबत्ती करना, पर यह आवश्यक नहीं कि लक्ष्मी प्रसनना हो ही और हमारा घर अक्षय धन से भर दे! तब दुसरे तरीके से यदि आपमें हिम्मत हैं, साहस हैं, हौसला हैं, तो क्षमता के साथ लक्ष्मी की आँख में आँख डालकर आप खड़े हो जाते हैं

    और कहते हैं कि मैं यह तंत्र साधना कर रहा हूँ, मैं तुम्हें तंत्र में आबद्ध कर रहा हूँ और तुम्हें हर हालत में संपन्नता देनी हैं, और देनी ही पड़ेगी! 

    पहले प्रकार से स्तुति या प्रार्थना करने से देवता प्रसन्‍ना न भी हो परन्तु तंत्र से तो देवता बाध्य होते ही हैं, उन्हें वरदान देना ही पड़ता हैं! मंत्र और तंत्र दोनों ही पद्धतियों में साधना विधि, पूजा का प्रकार, न्यास सभी कुछ लगभग एक जैसा ही होता हैं, बस अंतर होता हैं, तो दोनों के मंत्र विन्यास में, तांत्रोक्त मंत्र अधिक तीक्षण होता हैं! जीवन की किसी भी विपरीत स्थिति में तंत्र अचूक और अनिवार्य विद्या हैं. 

    आज के युग मैं हमारे पास इतना समय नहीं हैं, कि हम बार-बार हाथ जोड़े, बार-बार घी के दिए जलाएं, बार-बार भोग लगायें, लक्ष्मी की आरती उतारते रहे और बीसों साल दरिट्री बने रहे, इसलिए तंत्र ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, कि लक्ष्मी बाध्य हो ही जायें और कम से कम समय मैं सफलता मिले! बड़े ही व्यवस्थित तरीके से मंत्र और साधना करने की क्रिया तंत्र हैं! किस ढंग से मंत्र का प्रयोग किया जायें, साधना को पूर्णता दी जायें, उस क्रिया का नाम तंत्र हैं! और तंत्र साधना मैं यदि कोई न्यूनता रह जायें, तो यह तो हो सकता हैं, कि सफलता नहीं मिले परन्तु कोई विपरीत परिणाम नहीं मिलता! तंत्र के माध्यम से कोई भी गृहस्थ वह सब कुछ हस्तगत कर सकता हैं, जो उसके जीवन का लक्ष्य हैं! तंत्र तो अपने आप में अत्यंत सौम्य साधना का प्रकार हैं, पंचमकार तो उसमें आवश्यक हैं ही नहीं! बल्कि इससे परे हटकर जो पूर्ण पवित्रमय सात्विक तरीके, हर प्रकार के व्यसनों से दूर रहता हुआ साधना करता हैं तो वह तंत्र साधना हैं! जनसाधारण में इसका व्यापक प्रचार न होने का एक कारण यह भी था कि तंत्रों के कुछ अंश समझने मैं इतने कठिन हैं कि गुरु के बिना समझे नहीं जा सकते । अतः ज्ञान का अभाव ही शंकाओं का कारण बना। तंत्र शास्त्र वेदों के समय से हमारे धर्म का अभिन्‍न अंग रहा है। वैसे तो सभी साधनाओं में मंत्र, तंत्र एक-दूसरे से इतने मिले हुए हैं कि उनको अलग-अलग नहीं किया जा सकता, पर जिन साधनों में तंत्र की प्रधानता होती है, उन्हें हम 'तंत्र साधना' मान लेते हैं। 'यथा पिण्डे तथा ब्रहमाण्डे' की उक्ति के अनुसार हमारे शरीर की रचना भी उसी आधार पर हुई है जिस पर पूर्ण ब्रहमाण्ड की। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धि से साक्षात्कार करना है। इसके लिए अन्तर्मुखी होकर साधनाएँ की जाती हैं। तांत्रिक साधना को साधारणतया तीन मार्ग : वाम मार्ग, दक्षिण मार्ग व मधयम माग॑ कहा गया है। श्मशान में साधना करने वाले का निडर होना आवश्यक है। जो निडर नहीं हैं, वे दुस्साहस न करें। तांत्रिकों का यह अटूट विश्वास है, जब रात के समय सारा संसार सोता है तब केवल योगी जागते हैं। तांत्रिक साधना का मूल उद्देश्य सिद्धी से साक्षात्कार करना है। यह एक अत्यंत ही रहस्यमय शास्त्र है । चूँकि इस शास्त्र की वैधता विवादित है अतः हमारे द्वारा दी जा रही सामग्री के आधार पर किसी भी प्रकार के प्रयोग करने से पूर्व किसी योग्य तांत्रिक गुरु की सलाह अवश्य लें। अन्यथा किसी भी प्रकार के लाभ-हानि की जिम्मेदारी आपकी होगी। परस्पर आश्रित या आपस में संक्रिया करने वाली चीजों का समूह, जो मिलकर सम्पूर्ण बनती हैं, निकाय, तंत्र, प्रणाली या सिस्टम कहलातीं हैं। कार है और चलाने का मन्त्र भी आता है, यानी शुद्ध आधुनिक भाषा मे ड्राइव भी आती है, रास्ते मे जाकर कार किसी आन्तरिक खराबी के कारण खराब होकर खडी हो जाती है, अब उसके अन्दर का तन्त्र नहीं आता है, यानी कि किस कारण से वह खराब हुई है और कया खराब हुआ है, तो यन्त्र यानी कार और मन्त्र यानी ड्राइविंग दोनो ही बेकार हो गये, किसी भी वस्तु, व्यक्ति, स्थान, और समय का अन्दरूनी ज्ञान रखने वाले को तान्त्रिक कहा जाता है, तो तनत्र का पूरा अर्थ इन्जीनियर या मैकेनिक से लियां जा सकता है जो कि भौतिक वस्तुओं का और उनके अन्दर की जानकारी रखता है, शरीर और शरीर के अन्दर की जानकारी रखने वाले को डाक्टर कहा जाता है, और जो पराशक्तियों की अन्दर की और बाहर की जानकारी रखता है, वह ज्योतिषी या ब्रहमज्ञानी कहलाता है, जिस प्रकार से बिजली का जानकार लाख कोशिश करने पर भी तार के अन्दर की बिजली को नहीं दिखा सकता, केवल अपने विषेष यन्त्रों की सहायता से उसकी नाप या प्रयोग की विधि दे सकता है, उसी तरह से ब्रहमज्ञान की जानकारी केवल महसूस करवाकर ही दी जा सकती हैं, जो वस्तु जितने कम समय के प्रति अपनी जीवन क्रिया को रखती है वह उतनी ही अच्छी तरह से दिखाई देती है और अपना प्रभाव जरूर कम समय के लिये देती है मगर लोग कहते लगते हैं, कि वे उसे जानते है, जैसे कम वोल्टेज पर वत्व धीमी रोशनी देगा, मगर अधिक समय तक चलेगा, और जो वत्व अधिक रोशनी अधिक वोल्टेज की वजह से देगा तो उसका चलने का समय भी कम होगा, उसी तरह से जो क्रिया दिन और रात के गुजरने के बाद चौबीस घंटे में मिलती है वह साक्षात समझ मे आती है कि कल ठंड थी और आज गर्मी है, मगर मनुष्य की औसत उम्र अगर साठ साल की है तो जो जीवन का दिन और रात होगी वह उसी अनुपात में लम्बी होगी, और उसी क्रिया से समझ मैं आयेगा.जितना लम्बा समय होगा उतना लम्बा ही कारण होगा, अधिकतर जीवन के खेल बहुत लोग समझ नही पाते, मगर जो रोजाना विभिन्‍न कारणों के प्रति अपनी जानकारी रखते है वे तुरत फ़ुरत में अपनी सटीक राय दे देते है.यही तन्त्र और और तान्त्रिक का रूप कहलाता है. तन्त्र परम्परा से जुडे हुए आगम ग्रन्थ हैं। इनके वक्ता साधारणतयः शिवजी होते हैं। तन्त्र का शाब्दिक उद्धव इस प्रकार माना जाता है - “तनोति त्रायति तन्त्र” । जिससे अभिप्राय है - तनना, विस्तार, फैलाव इस प्रकार इससे त्राण होना तन्त्र है। हिन्दू, बौद्ध तथा जैन दर्शनों में तन्त्र परम्परायें मिलती हैं। यहाँ पर तन्त्र साधना से अभिप्राय "गृह्य या गूढ़ साधनाओं" से किया जाता रहा है। 

    तन्त्रों को वेदों के काल के बाद की रचना माना जाता है और साहित्यक रूप में जिस प्रकार पुराण ग्रन्थ मध्ययुग की दार्शनिक-धार्मिक रचनायें माने जाते हैं उसी प्रकार तन्त्रों में प्राचीन-अख्यान, कथानक आदि का समावेश होता है। अपनी विषयवस्तु की दृष्टि से ये धर्म, दर्शन, सृष्टिरचना

    शास्त्र, प्रचीन विज्ञान आदि के इनसाक्लोपीडिया भी कहे जा सकते हैं। 




    सूस्थ रहने के लिये तांत्रिक टोटके 




    1.सदा स्वस्थ बने रहने के लिये रात्रि को पानी किसी लोटे या गिलास में सुबह उठ कर पीने के लिये रख दें। उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन (गिलास आदि) को उल्टा रखने से यकृत सम्बन्धी परेशानियां नहीं होती तथा व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है। 

    2. हृदय विकार, रक्तचाप के लिए एकमुखी या सोलहमुखी रूद्राक्ष श्रेष्ठ होता है। इनके न॑ मिलने पर ग्यारहमुखी, सातमुखी अथवा पांचमुखी रूद्वाक्ष का उपयोग कर सकते हैं। इच्छित रुद्राक्ष को लेकर श्रावण माह में किसी प्रदोष व्रत के दिन, अथवा सोमवार के दिन, गंगाजल से स्नान करा कर शिवजी पर चढाएं, फिर सम्भव हो तो रूद्राभिषेक करें या शिवजीं पर “ॐ नम: शिवाय” बोलते हुए दूध से अभिषेक कराएं। इस प्रकार अभिमंत्रित रुद्राक्ष को काले डोरे मैं डाल कर गले मैं पहनें। 

    3.जिन लोगों को 1-2 बार दिल का दौरा पहले भी पड़ चुका हो वे उपरोक्त प्रयोग संख्या 2 बार करें तथा निम्न प्रयोग भी करें :- एक पाचंमुखी रुद्राक्ष, एक लाल रंग का हकीक, 7 साबुत लाल मिर्च को, आधा गज लाल कपड़े में रख कर व्यक्ति के ऊपर रो 21 बार उतार कर इसे किसी नदी या बहते पानी में प्रवाहित कर दें। 

    4.किसी भी सोमवार से यह प्रयोग करैं। बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लैं। रविवार शाम 5 फूल, आधा कप पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र मैं पानी पीएं, उसे उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य ल्राभ अनुभव करेंगे। 

    5. घर में नित्य घी कां दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय लौं पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर हो या दीपक के मध्य में (फूलदार बाती) बाती लगाना शुभ फल देने वाला है। 

    6. रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से बीमारियां, दुःस्वपन नहीं आते, पितृ दोष का नाश होता है एवं घर मैं शांति बनी रहती है। 

    7. पूर्णिमा के दिन चांदनी में खीर बनाएं। ठंडी होने पर चन्द्रमा और अपने पितरों को भोग लगाएं। कुछ खीर काले कुत्तों को दे दं। वर्ष भर पूर्णिमा पर ऐसा करते रहने से गृह क्लेश, बीमारी तथा व्यापार हानि से मुक्ति मिलती है।

    8: रोग मुक्ति के लिए प्रतिदिन अपने भोजन का चौंथाई हिस्सा गाय को तथा चौंथाई हिस्सा कुत्ते को खिलाएं। 

    9. घर मैं कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं। 

    10. पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं। पीपल के पेड़ की लकड़ी सिरहाने रखें। 

    11.पत्नी बीमार हो तो गोदान करें। जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने से रोग पीड़ाएँ समाप्त होती है। 

    12. मंदिर में गुप्त दान करें। 

     13.रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू मंदिर मैं प्रसाद के रूप मैं बांटे। 

    14. सदैव पूर्व या दक्षिण दिषा की ओर सिर रख कर हीं सोना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर सिर कर के सोने वाले व्यक्ति में चुम्बकीय बल रेखाएं पैर से सिर की ओर जाती हैं, जो अधिक से अधिक रक्त खींच कर सिर की ओर लायेंगी, जिससे व्यक्ति विभिन्‍न रॉंगो से मुक्त रहता है और अच्छी निद्रा प्राप्त करता है। 

    15: अगर परिवार मैं कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार औषधि सेवन के पश्चात्‌ भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से आरम्भ करके लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उबार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। अवश्य ही इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर टोटके की अवधि मैं रोगी ठीक हो जाता है, तो भी प्रयोग को पूरा करना है, बीच में रोकना नहीं चाहिए। 

    16: अमावस्या को प्रात: मैंहदी का दीपक पानी मिला कर बनाएं। तेल का चौमुंहा दीपक बना कर 7 उड़द के दाने, कुछ सिन्दूर, 2 बूंद दही डाल कर | नींबू की दो फांकें शिवजी या भौरो जी के चित्र का पूजन कर, जला दें। महामृत्युज॑य मंत्र की एक माला या बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ कर रोग- शोक दूर करने की भगवान से प्रार्थना कर, घर के दक्षिण की ओर दूर सूखे कुएं में नींबू सहित डाल दें। पीछे मुड़कर नहीं देखें। उस दिन एक ब्राहमण -ब्राहमणी को भोजन करा कर वस्त्रादि का दान भी कर दैं। कुछ दिन तक पक्षियों, पशुओं और रोगियों की सेवा तथा दान-पुण्य भी करते रहें। इससे घर की बीमारी, भूत बाधा, मानसिक अशांति निश्चय ही दूर होती है।

    17. किसी पुरानी मूति के ऊपर घास उगी हो तो शनिवार को मूति का पूजन करके, प्रात: उसे घर ले आएं। उसे छाया में सुखा लें। जिस कमरे में रोगी सोता हो, उसमें इस घास में कुछ धूप मिला कर किसी भगवान के चित्र के आगे अग्नि पर सांय, धूप की तरह जलाएं और मन्त्र विधि से “* ॐ माधवाय नम:। ॐ अनंताय नमःॐ अच्युताय नम:।' मन्त्र की एक माला का जाप करें। कुछ दिन में रोगी स्वस्थ हो जायेगा। दान-धर्म और दवा उपयोग अवश्य करें। इससे दवा का प्रभाव बढ़ जायेगा। 

    18. अगर बीमार व्यक्ति ज्यादा गम्भीर हो, तो जौ का 125 पाव (सवा पाव) आटा लैं। उसमें साबुत काले तिल मिला कर रोटी बनाएं। अच्छी तरह सेंके, जिससे वे कच्ची न रहें। फिर उस पर थोड़ा सा तिल का तेल और गुड़ डाल कर पेड़ा बनाएं और एक तरफ लगा दें। फिर उस रोटी को बीमार व्यक्ति के ऊपर से 7 बार वार कर किसी भैंसे को खिला दें। पीछे मुड़ कर न देखें और न कोई आवाज लगाए। भैंसा कहाँ मिलेगा, इसका पता पहले ही मालूम कर के रखें।केवल भैंसे को ही श्रेष्ठ रहती है। शनि और मंगलवार को ही यह कार्य करें। 

    19. पीपल के वृक्ष को प्रात: 2 बजे के पहले, जल्र मैं थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल् का दीपक और अगरबत्ती जलाएं. पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहलें, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बौमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हों जायेगा। 

    20. किसी कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के पश्चात्‌ तेल का दीपक जलाएं। अगरबत्ती जलाएं और बताशे रखें, फिर वापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा। 

    21.किसी तालाब, कूप या समुद्र में जहां मछलियाँ हों, उनको शुक्रवार से शुक्रवार तक आटे की गोलियां, शक्कर मिला कर, चुगावें। प्रतिदिन लगभग 25 ग्राम गोलियां होनी चाहिए। रोगी ठीक होता चला जायेगा। 

    22. शुक्रवार रात को मुट्ठी भर काले साबुत चने भीगोयें। शनिवार की शाम काले कपड़े में उन्हें बांधे तथा एक कील और एक काले कोयले का टुकड़ा रखें। इस पोटली को किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। फैंकने से पहले रोगी के ऊपर से 7 बार वार दें। ऐसा 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा। 

    23.सवा सेर (1.25 सेर) गुलगुले बाजार से खरीदें। उनको रोगी पर से 7 बार वार कर चीलों को खिलाएं। अगर चीलें सारे गुलगुले, या आधे से ज्यादा खा लें तो रोगी ठीक हो जायेगा। यह कार्य

    शनि या मंगलवार को ही शाम को 4 और 6 के मध्य में करें। गुलगुले ले जाने वाले व्यक्ति को कोई टोके नहीं और न ही वह पीछे मुड़ कर देखे। 

    24. यदि लगे कि शरीर में कष्ट समाप्त नहीं हो रहा है, तो थोड़ा सा गंगाजल नहाने वाली बाल्टी में डाल कर नहाएं। 

    25. प्रतिदिन या शनिवार को खेजड़ी की पूजा कर उसे सींचने से रोगी को दवा लगनी शुरू हो जाती है और उसे धीरे-धीरे आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा। यदि प्रतिदिन सींचें तो 1 माह तक और केवल शनिवार को सींचें तो 7 शनिवार तक यह कार्य करें। खेजड़ी के नीचे गूगल का धूप और तेल का दीपक जलाएं। 

    26. हर मंगल और शनिवार को रोगी के ऊपर से इमरती को 7 बार वार उतर कर कुत्तों को खिलाने से धीरे-धीरे आराम मिलता है। यह कार्य कम रे कम 7 सप्ताह करना चाहिये। बीच में रूकावट न हो, अन्यथा वापस शुरू करना होगा। 

    27.साबुत मसूर, काले उड़द, मूंग और ज्वार चारों बराबर-बराबर ले कर साफ कर के मिला दैं। कुल वजन 1 किलो हो। इसको रोगी के ऊपर से 7 बार वार कर उनको एक साथ पकाएं। जब चारों अनाज पूरी तरह पक जाएं, तब उसमें तेल-गुड़ मिला कर, किसी मिट्टी के दीये में डाल कर दोपहर को, किसी चौराहे पर रख दें। उसके साथ मिट्टी का दीया तेल से भर कर जलाएं, अगरबत्ती जलाएं। फिर पानी से उसके चारों ओर घेरा बना दैं। पीछे मुड़ कर न देखें। घर आकर पांव धो लें। रोगी ठीक होना शुरू हो जायेगा। 

    28. गाय के गोबर का कण्डा और जली हुई लकड़ी की राख को पानी में गूंद कर एक गोला बनाएं। इसमें एक कील तथा एक सिक्का भी खॉंस दें। इसके ऊपर रोली और काजल से 7 निशान 'लगाएं। इस गोले को एक उपले पर रख कर रोगी के ऊपर से 3 बार उतार कर सुर्यास्त के समय मौन रह कर चौराहे पर रखें। पीछे मुड़ कर न देखें। 

    29. शनिवार के दिन दोपहर को 2.25 (सवा दो) किलो बाजरे का दलिया पकाएं और उसमें थोड़ा सा गुड़ मिला कर एक मिट्टी की हांडी मैं रखें। सूर्यास्त के समय उस हांडी को रोगी के शरीर पर बायें से दांये 7 बार फिराएं और चौराहे पर मौन रह कर रख आएं। आते-जाते समय पीछे मुड़ कर न देखें और न ही किसी से बातें करें। 

    30. धान कूटने वाला मूसल और झाड़ू रोगी के ऊपर से उतार कर उसके सिरहाने रखें।



    ज्वरनाशक तंत्र-




    (१) रविवार के दिन ज्वर के रोगी से पतावर (मूँज के पौधे में ) सूर्योदय से पहले गाँठ (गिरह) लगवा दें । इससे ज्वर दूर होता है । 
    (२) मकड़ी के जाले को रोगी के गले में बाँधकर लटकाने से ज्वर दूर हो जाता है । 
    (३) मुसाकानी की जड़ को रोगी के हाथ में बाँध देने से ज्वर दूर हो जाता है । 

    महा ज्वरनाशक तंत्र-(१) लोगलीमूल (नारियल वृक्ष की जड़ )को रोगी के गलेमें बाँध देने से महाज्वर दूर हो जाता है। 

    (१) बृहस्पति मूल (कटेरी की जड़) को रोगी के मस्तक पर बाँध-देने से महाज्वर दूर हों जाता है 



    शीतज्वर (जूड़ी ) नाशक तंत्र-




    (१) शनिवार के दिन बाबूल वृक्ष की जड़ को सफेद डोरें में रोगी की भुजा में बाँध देने से शीत ज्वर शान्त हो जाता है ।
    (२) सफेद 'कनेर की जड़ को रोगी की दाहिनी भुजा में बाँधने से शीत ज्वर शान्त हो जाता है. 
    (३) एक मक्खी, थोड़ी सी हींग तथा आधी काली मिर्च इन सबको पीसकर शेगी की आँख में अंज॑न की भाँति आँज देने से शीत ज्वर दूर हो जाता है । 
    (४) रविवार या मंगलवार के दिन लहसुन के सात नग (सतयवा) पीसकर काले कपड़े में रखकर रोगी के पाँव के अँगूठे में बाँध दें और तीन घण्टे के बाद उसे खोलकर किसी चौराहे पर पटक दें इससे शीत ज्वर की उतर जाती है । 

    (५) आठ पाँव वाले मकड़े के जाले को लालरंग के कपड़े में लपेटकर बत्ती बना लें, फिर मिट्टी के दीपक में सरसों का तेल भरकर
    उसमें उक्त बत्ती को डालकर ज़लावें और उससे काजल पारें, उस काजल को रविवार या मंगलवार के दिन रोगी की दोनों आँखों में सात-सात बार लगाने (आँजने से ) पारी ज्वर तथा शीत-ज्वर शान्त हो जाता है । 

    विषम-ज्वर नाशक टोटका-(१) चौराई की जड़ को रोगी के सिर में बाँध देने से विषम ज्वर दूर होता है । 

    (२) रविवार के दिन अपामार्ग (चिरचिटा), (लटजीरा ) की जड़ को उखाड़ लावें और उस जड़ को सूत के डोरें में लपेटकर पुरुष रोगी. की दाहिनी भुजा में और स्त्री रोगी की बाँयीं भुजा में बाँध दें इससे विषम-ज्वर शान्त होता है । 

    (३) सफेद फूल वाले कनेर वृक्ष की जड़ को रविवार के दिन उखाड़कर रोगी के दाहिने कान अथवा भुजा में बाँध देने से विषम-ज्वर दूर होता है । 

    एक दिन के अन्तर से आने वाला ज्वर तथा
    मलेरिया नाशक तंत्र 



    (१) रविवार के दिन आक (मदार). (अकौड़ा ) की जड़ को उखाड़कर लावें और रोगी के कान में बाँध देने से सभी प्रकार के ज्वर शान्त होते हैं । 

    (२) रविवार के दिन प्रात: समय सहदेई तथा निर्गुण्डी की जड़ को लाकर और दोनों को रोगी के कमर में बाँध दे, इससे हर प्रकार के  ज्वर व कम्प-ज्वर भी शान्त हो जाते हैं । 

    (३) रविवार के दिन संध्या समय कोरे मिट्टी के घड़े में पानी भरकर उसमें एक सोने की अँगुठी डाल दें, एक दो घण्टे बाद मलेरिया बाला ज्वर के रोगी को किसी चौराहे पर ले जाकर उस घड़े के जल से स्नान करा देवें, स्नान के बाद घड़े से अँगूठी निकाल लें, इससे भी ज्वर शान्त हो जाता है ।
    (४) रविवार के दिन सफेद फूल वाले धतूरे वृक्ष की जड़ को उखाडकर रोगी को दाहिनी भुजा में धारण करने से पारी ज्वर शान्त्‌ 

    ही ) कुत्ते के मूत्र में मिट्टी सानकर गोली बना लें और धूप में सुखा,लें और उस गोली को रोगी के गले में बाँध दें, इससे पारी ज्वर शान्त होकर फिर नहीं आता है । 

    (६) शनिवार के दिन ताड़ के सूखे वृक्ष की जड़ की मिट्टी लाकर रविवार को प्रात: समय उसे घिसकर चन्दन की तरह रोगी के मस्तक में अच्छी तरह से लगा देने से ज्वर शान्त होता है । 

    (७) शनिवार के दिन मोरपंखी वृक्ष को शाम को न्यौत आवें और रविवार को प्रात: उसे उखाड़कर ले आवें और लाल डोरे में 

    लपेटकर रोगी के गले अथवा हाथ में बाँध देने से  ज्वर शान्त हो जाता हे।
    (८) काले सर्प की केचुल को रोगी के कमर में बाँध देने से बारी बारी से आने वाला ज्वर ठीक हो जाता है । 

    (&)भूंगराज वृक्ष (भंगरे की) जड़ को सूत में लपेटकर रोगी के सिर में बाँधने से चौथिया ज्वर शान्त हो जाता है । 

    (१०) उल्लू पक्षी के पंख तथा स्याह गूगल इन दोनों को कपड़े में लपेटकर बत्ती बना लें, फिर मिट्टी के दीपक में शुद्ध घी डालकर उसमें उस बत्ती को जलाकर कज्जल (काजल) पार लें, इस काजल को आँखों में लगाने से सभी प्रकार के ज्वर शान्त होते हैं। 

    (११) मंगलवार के दिन छिपकली (बिछुतिइया) की पूँछ काटकर उसे काले रंग के कपड़े में सिलकर यंत्र की भाँति रोगी को भूजा में धारण करने से मलेरिया व पारी ज्वर दूर होता है । 

    (१२) रविवार के दिन गिरगिट की पूँछ काटकर उसे रोगी की 

    भुजा अथवा चोटी में बाँध देने से चौथिया ज्वर शीघ्र दूर होता है।जीर्ण-ज्वर तथा रात्रिज्वर नाशक टोटके 
    (१) मकोय की जड़ को रविवार के दिन रोगी के कान में बाँधने से रात्रि ज्वर दूर होता है ।
    (२) भृज्धराज (भंगरे की जड़) को डोरे में बाँधकर रोगी के कान में बाँध देने से रात्रिज्वर दूर होता है । 
    (३) जीर्णज्वर के रोगी के शरीर में बकरी का रक्त (खून) प्रवेश करा देने से रोगी स्वस्थ और ठीक हो जाता है ।




     भूतज्वर तथा ज्वर नाशक तंत्र 





    (१३ अपामार्ग (चिरचिंटा-औंगो) की जड़ रबिवार या मंगलवार को दाहिनी भुजा में बाँधने से भूत-ज्वर उतर जाता है । 
    (२) लालें फूल वाले पलाशवृक्ष की जड़ मंगलवार को लाल डोरे , में दाहिनी भुजा या गले में बाँध देने से भूतज्वर तथा प्रेतादिज्वर उतर . जाता है । 
    (३ ) नीम-बकुची तथा तगर के अंजन को रोगी की आँखों में काजल की भाँति लगाने से भूतारि ज्वर उतर जाता है । 

    (४) हुल-हुल वृक्ष की जड़ का अर्क रोगी के कान में डालने से भरूतज्वर शीघ्र ही उतर जाता है । 

    (५) मुर्गे की वीट (सुर्गे की टट्टी ), काले सर्प की केंचुल, बन्दर के बाल, लहसुन, घी, गुगल तथा कबूतर की बीट इन सबको एकव्रित करके रोगी को इनकी धूप देने से भ्रृतज्वर तथा सभी प्रकार के ज्वर नष्ट होते हैं । 

    (६) अश्विनी नक्षत्र में निर्गुण्डी की छाल तथा उसके फूलों को पीसकर गोली बनाकर रोगि की भूजा में बाँधने से सन्निपातज्वरादि ठीक होते हैं ।



    बिशेस बाते ध्यानः 





    जितना भी प्रयोग बिधि बताया गया सब ही शास्त्र सम्मत हे किसी बेक्ति बिशेस या समय तिथि बिशेष उपरोक्त टोटका अधिक फलप्रद होता हे। 




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