आर्थिक समस्याओं से मुक्ति का प्रयोग
साधनाओं और अनुष्ठानों की अनेक पद्धतियां प्रचलित रही हैं, जिनमें वदोक्त पद्धतियां तांत्रिक पद्धतियां, शैव, शाक्त और शाबर पद्धतियां सबसे प्रमुख हैं। इन समस्त पद्धतियों की अपनी-अपनी विशेषतायें और अपनी-अपनी विशिष्ट प्रक्रियायें हैं। कुछ पद्धतियां तो ऐसी रही हैं जो साधारणजनों के लिये नहीं, बल्कि उच्च साधकों के लिये बनी हैं जिन्हें साधारण लोग सहजतापूर्वक सम्पन्न नहीं कर सकते।
आर्थिक बाधा दूर करने का तांत्रिक प्रयोग
मंत्रोक्त और तंत्रोक्त पद्धतियों से संबंधित अनुष्ठानों को सम्पन्न करना हर किसी के लिये सम्भव नहीं है । अतः सामान्यजनों के लिये शाबर साधनाएं अर्थात् शाबर पद्धति पर आधारित अनुष्ठान अधिक अनुकूल होते हैं।
आर्थिक बाधा दूर करने का शाबर मंत्र प्रयोग
यह शाबर साधनाएं भी तंत्र का ही एक अंग हैं। पूर्व में बताया गया है कि शाबर मंत्र शिव मुख से प्रकट हुए हैं। इन शाबर साधनाओं को समाज में लाने का श्रेय नाथ सम्प्रदाय के अनुयायियों को जाता है। इसी नाथ सम्प्रदाय में 64 सिद्ध और 64 योगिनियां हुई हैं। इस सम्प्रदाय के सबसे पहले सिद्ध मत्स्येन्द्रनाथ (मछंदरनाथ) को माना जाता है।
नाथ सम्प्रदाय का जन्मदाता ओघड़दानी आदिनाथ शिव ही माने गये हैं।नाथ सम्प्रदाय के योगियों ने ब्रह्मा के मुख से उद्घोषित हुये वैदिक मंत्रों एवं शिव के श्रीमुख से उद्घोषित तांत्रोक्त मंत्रों को अपने विवेक एवं साधना के गहन अनुभवों के आधार पर सौम्य रूप प्रदान करके शाबर रूप प्रदान किया। शाबर पद्धति के रूप में तंत्र साधना का महत्व सामान्यजनों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ क्योंकि इस शाबर पद्धति में न तो साधना की अधिक जटिलता थी और न ही भाषा संबंधी कोई कठिनाई आती थी ।
साबर मंत्र किस्से प्राप्त करे
सबसे बढ़कर यह बात भी कि इन मंत्रों के पीछे गुरु के माध्यम से भगवान शिव की शक्ति ही मुख्य रूप से काम करती थी, जिससे यह तंत्र प्रयोग कभी भी निष्फल सिद्ध नहीं होते थे। इसी तरह आज के समय भी गुरु मुख से प्राप्त किये गये शाबर प्रयोग व शाबर मंत्र साधना के लिये सर्वश्रेष्ठ, अचूक, प्रभावयुक्त एवं फल प्रदाता सिद्ध होते हैं। ।
शाबर मंत्रों में प्रयुक्त अक्षर सीधे-सादे, सरल एवं छोटे होते हैं। उनके अर्थ भी अधिक स्पष्ट नहीं होते। अधिकतर शाबर मंत्र आम बोलचाल की ग्रामीण भाषा में होते हैं ।
इसलिये शताब्दियों तक शाबर मंत्रों के विभिन्न रूप गांव-देहात के अनपढ़ कहे जाने वाले ओझाओं, गुनियों में ही अधिक लोकप्रिय रहे हैं।
इन मंत्रों की रचना संस्कृत साहित्य की बजाय सामान्यजनों को ध्यान में रखकर लोकभाषा में की गई है, इसलिये इनके उच्चारण में किसी तरह की गलती होने की आशंका नहीं रहती।
आर्थिक संकट में सबर मंत्र प्रभाब शाली
इनकी साधना व अनुष्ठान की प्रक्रियायें भी सहज ही होती हैं इनके अनुष्ठानों को सम्पन्न करने के लिये किसी अन्य की आवश्यकता नहीं पड़ती, केवल साधना में पूर्ण विश्वास और गुरु का आशीर्वाद ही पर्याप्त होता है । इन शाबर अनुष्ठानों के दौरान साधना संबंधी अन्य तरह के प्रतिबंध भी नहीं लगाने पड़ते। अनुष्ठानों के दौरान साधक अपने दैनिक कार्यों को पूर्ववत् जारी रख सकता है।
साबर मंत्र का प्रयोग से संकट नाश
जीवन में आने वाली अनेक प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पाने में शाबर अनुष्ठान बहुत ही चमत्कारिक असर दिखाने वाले सिद्ध होते हैं। शाबर साधनाएं मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन जैसे अभिचार कर्मों से तो रक्षा प्रदान करती ही हैं, यह विवाह बाधा, आर्थिक परेशानियों, पारिवारिक कलह, झूठे मुकदमे आदि में फंस जाने और जीवन में सफलता प्राप्त करने में भी बहुत मदद करती हैं। अनेक प्रकार के रोगों पर भी इनका शीघ्र प्रभाव होता है। आगे आर्थिक परेशानियों से उबरने में उपयोगी एक शाबर अनुष्ठान का
उल्लेख किया जा रहा है। अगर व्यापार में बार-बार नुकसान उठाना पड़ रहा है, किसी प्रकार का नया कारोबार शुरू करते ही कोई न कोई बाधा खड़ी हो जाती है, व्यापार के रूप में अपनी योजनाओं को कार्यरूप में लाने में परेशानियां आ रही हैं अथवा व्यापार में पर्याप्त श्रम करने और अधिक पैसा लगाने के बावजूद पर्याप्त सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है, बार- बार नुकसान हो रहा है या फिर व्यापार पर कोई तांत्रिक प्रयोग होने के कारण एकाएक भारी आर्थिक हानि उठानी पड़ी है, बार-बार शत्रुओं के प्रयास से व्यापार में घाटा उठाना पड़ रहा है, व्यापारिक साथी समय पर पूरा सहयोग नहीं दे पा रहे हैं, समय पर आपको अपना पैसा वापिस नहीं मिलता अथवा लोग आपका पैसा लेकर लौटाने का नाम नहीं लेते, तो ऐसी सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति पाने के लिये यह शाबर अनुष्ठान बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है ।
आर्थिक संकट में तांत्रिक अनुष्ठान का नियम
इस शाबर अनुष्ठान को किसी भी बुधवार के दिन से प्रारम्भ किया जा सकता है । यह अनुष्ठान कुल 40 दिन का है । 40 दिन के इस अनुष्ठान को सम्पन्न करते ही आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिल मिलने लग जाती है ।
इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये एक सुलेमानी हकीक, चमेली के तेल का दीपक, ताम्रपात्र, श्वेत चंदन, अनार की कलम, मिट्टी का बर्तन, सरसों के तेल के चार दीपक, शुद्ध लोबान, समुद्रफेन, भूतकेशी, पीली सरसों, काले उड़द, काले तिल आदि की आवश्यकता पड़ती है।
इस अनुष्ठान को शुक्लपक्ष के किसी भी बुधवार को प्रारम्भ किया जा सकता है। इसके लिये प्रातःकाल का समय ठीक रहता है। जिस दिन अनुष्ठान प्रारम्भ करना हो उसके एक दिन पहले उपरोक्त काम में आने वाली सामग्रियों की व्यवस्था कर लें। अगर अनुष्ठान का यह प्रयोग घर पर करना चाहते हैं तो इसके लिये स्थान का चयन करके साफ-सफाई कर लें। प्रातः उठ कर स्नान ध्यान करें। अनुष्ठान स्थल को गोबर से लीप कर
अथवा गंगाजल छिड़क कर स्वच्छ कर लें। बैठने के लिये सफेद रंग के सूती अथवा ऊनी आसन की व्यवस्था कर लें। आसन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठ जायें। पूर्व में मुख नहीं कर सकते तो उत्तर की ओर मुख करके बैठें। अपने सामने एक लकड़ी की चौकी रखें और उस पर एक मीटर लाल नये कपड़े को चार तह करके चौकी पर बिछा दें ।
इसके पश्चात् एक-एक सरसों के तेल का दीपक जलाकर अपनी चारों दिशाओं में रख लें। चौकी के ऊपर ताम्रपत्र को रख दें। ताम्रपत्र पर सबसे पहले श्वेत चन्दन और अनार की कलम से एक लाइन में ॐ गुरुभ्यायः नमः, गुरोक्ष्याय नमः, सुलेमानाय
नमः लिखकर उसके नीचे अपना नाम लिख दें। यंत्र के मध्य में ही सुलेमानी हकीक को रख दें ।
इसके पश्चात् चमेली के दीपक को जलाकर वहीं चौकी पर दायीं तरफ स्थान दे दें। एक मिट्टी का पात्र लेकर उसमें कण्डे की सुलगती आग रख दें तथा उसमें मूल मंत्र की तीन-तीन आवृत्तियों के साथ तीन चम्मच घी, तीन लौंग, तीन कालीमिर्च, तीन इलायची
अर्पित करके एक मूल मंत्र के उच्चारण के साथ लोबान, समुद्रफेन, भूतकेशी, पीली सरसों, काले तिल और सरसों के तेल का मिश्रण डाल दें।
इसके उपरान्त पद्मावती देवी से मन ही मन प्रार्थना करें तथा आर्थिक परेशानी से बाहर निकालने का अनुरोध करके मंत्रजाप प्रारम्भ करें। इस शाबर अनुष्ठान में प्रतिदिन आगे लिखे मंत्र का पांच माला जाप करना होता है। मंत्रजाप के लिये 108 मनके की हकीक माला काम में लायी जाती है। प्रत्येक माला का जाप पूरा होने पर सुलेमानी हकीक को यंत्र से उठाकर अपने मस्तक के साथ तीन बार लगाना होता है और यंत्र के ऊपर ही रख देना होता है। चालीस दिन का अनुष्ठान सम्पूर्ण
होने के पश्चात् इस सुलेमानी हकीक को चांदी की अंगूठी में जड़वाकर अपने दाहिने हाथ की मध्यमा अथवा अनामिका अंगुली में धारण कर लें। वैसे तो अनुष्ठान का प्रभाव 21वें दिन से ही दिखाई पड़ने लग जाता है, किन्तु इस सुलेमानी हकीक को अंगुली में धारण करते ही साधक की ओजस्विता में वृद्धि होने लग जाती है। शाबर अनुष्ठानों के संबंध में एक विशेष बात समझ लेनी चाहिये कि इन साधनाओं, अनुष्ठानों में हकीक, रुद्राक्ष, लोबान, गंधयुक्त कई प्रकार की जड़ी-बूटियों, पीपल, अशोक, आम जैसे वृक्षों एवं पुराने खण्डहर, शमशान भूमि आदि का विशेष महत्त्व होता है।
अनुष्ठान में प्रयुक्त किया जाने वाला शाबर मंत्र निम्न प्रकार है-
ॐ नमो भगवती पद्या श्रीं ह्रीं पूर्व दक्षिण उत्तर पश्चिम धन द्रव्य आवे सर्वजन्य वश्य कुरू कुरू नमः । ॐ गुरु की शक्ति मेरी भक्ति फुरो मंत्र ईश्वर तेरी वाचा ।
इस तरह चालीसवें दिन यह शाबर अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है। अनुष्ठान पूर्ण होने पर समस्त पूजा समाग्री, यंत्र, दीये आदि को किसी कोरे मिट्टी के बर्तन में भरकर उसके मुंह को कपड़े से बांधकर या तो जमीन में दबा दिया जाता है अथवा उन्हें बहते हुये पानी में छोड़ दिया जाता है । हकीक पत्थर व हकीक माला को स्वयं अपने शरीर पर धारण कर लिया जाता है। इस तरह आर्थिक परेशानी का तो समाधान हो ही जाता है, इसके साथ-साथ आय के नये-नये स्रोत भी खुलने लगते हैं।
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