Graha badha pratikar || ग्रह बाधा प्रतिकार

Graha badha pratikar || ग्रह बाधा प्रतिकार

ग्रह बाधा प्रतिकार 




    भगवान की बनाई दुनिया में कोई व्यक्ति अकेले नहीं रह सकता है. इसलिए भगवान ने रिश्तों का निर्माण किया और बहुत ही खूबसूरती के साथ व्यक्तियों को रिश्तों में पिरो दिया. रिश्ते हर तरह के होते हैं. ये आपकी जिंदगी में खुशियां भी लाते हैं और दु:ख भी पहुंचाते हैं. ज्योतिष के अनुसार, हर रिश्ता किसी न किसी ग्रह से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि अगर ग्रह कमजोर होंगे तो रिश्ते कमजोर होंगे और रिश्ते कमजोर होंगे तो ग्रह खराब होंगे. तो आखिर रिश्तों का ग्रहों के साथ क्या संबंध है और किस प्रकार रिश्तों को अच्छा कर आप ग्रहों को अच्छा कर सकते हैं : 



    सुर्जा ग्रह का अशुभ फल  



    1)सूर्य से व्यक्ति को अच्छा स्वास्थ्य, नाम-यश और राज्य सुख मिलता है. कुंडली में सूर्य कमजोर होने से हड्डियों और दिल से जुड़ी समस्या होती हैं. व्यक्ति को जीवन में बिना किसी कारण के अपयश की प्राप्ति होती है. अगर आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर है तो आपकी सेहत कभी अच्छी नहीं रहेगी. ज्योतिष के अनुसार, पिती को सूर्य का स्त्रोत माना जाता है. सूर्य से लाभ लेने लिए अपने पिता का सम्मान करें।


    चन्द्र ग्रह का  अशुभ फल  


    2)ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है. चंद्रमा से व्यक्ति को लोकप्रियता, अच्छा मन, पारिवारिक सुख प्राप्त होता है. इसके कमजोर होने पर मानसिक समस्या होती है, तनाव बना रहता है. इसी के साथ स्त्री पक्ष से कष्ट होता है. चंद्रमा से लाभ लेने के लिए माता का सम्मान जरूर करें.



    मंगल ग्रह का अशुभ फल 



    3)ज्योतिष में मंगल ग्रह से व्यक्ति को पराक्रम, संपत्ति का सुख प्राप्त होता है. मंगल, छोटे भाई-बहनों से अच्छा संबंध देता है. कुडंली में मंगल कमजोर होने पर मुकदमेबाजी और कर्ज की समस्या होती है. मंगल कमजोर होने पर गंभीर चोट भी लग सकती है. मंगल से लाभ लेने के लिए अपने भाई-बहनों से संबंध अच्छा रखें. अपनी पैतृक संपत्ति की कद्र करें.


    बुध ग्रह का अशुभ फल


    4)ज्योतिष में बुध ग्रह से व्यक्ति को तीव्र बुद्धि, अच्छी वाणी और अच्छी त्वचा का वरदान मिलता है. बुध के कमजोर होने से बुद्धि कमजोर हो जाती है. वाणी दोष होता है और आर्थिक स्थिति का सामना करना पड़ता है. बुध से लाभ लेने के लिए पौधे लगाएं और उनकी देखभाल करें. अपने ननिहाल पक्ष से संबंध अच्छे रखें.



    बृहस्पति ग्रह का का अशुभ फल



    5)ज्योतिष में बृहस्पति को देव गुरू बृहस्पति कहा जाता है. बृहस्पति से व्यक्ति को विद्या, ज्ञान, अध्यात्म और ईश्वर की कृपा मिलती है. बृहस्पति के कमजोर होने पर व्यक्ति को लिवर, आंत, पेट से जुड़ी समस्या और कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं. व्यक्ति जीवन में अकेला रह जाता है. बृहस्पति से लाभ लेने के लिए विद्वान और बुजुर्ग लोगों की सम्मान करें.



    शुक्र ग्रह ग्रह का  का अशुभ फल 



    6)ज्योतिष के अनुसार, जीवन में हर सुख का कारण शुक्र ग्रह से संबंधित होता है. शुक्र से भौतिक सुख, ऐश्वर्य, धन-संपदा और दांप्तय सुख मिलता है. कुंडली में शुक्र कमजोर होने पर जीवन से सुख चला जाता है. व्यक्ति के पास सब कुछ होकर भी आनंद नहीं उठा पाते. शुक्र से लाभ लेने के लिए स्त्रियों का सम्मान करें. अपने आचरण को शुद्ध रखें.



    शनि ग्रह ग्रह का  का अशुभ फल 



    7)ज्योतिष में हर तरह के रोजगार का कारक शनि देव को माना जाता है. शनि से नौकरी-रोजगार में सफलता मिलती है, वाहन का सुख मिलता है. कुंडली में शनि के कमजोर होने पर आजीविका नहीं मिलती है. जीवन में संघर्ष का सामना करना पड़ता है. शनि से लाभ लेने के लिए अपने से छोटों का सम्मान करना होगा.



    राहु ग्रह ग्रह का  का अशुभ फल



    8)ज्योतिष में राहु ग्रह से व्यक्ति के जीवन में राजनीतिक और फिल्मी दुनिया की सफलता देखी जाती है. व्यक्ति के जीवन में रातों-रात यश की प्राप्ति होना राहु से संबंधित होता है. राहु का दुष्प्रभाव हो तो व्यक्ति अर्श से फर्श पर आ जाता है. राहु से लाभ लेने के लिए व्यक्ति को मांस-मदिरा, नशा और तामसिक भोजन से बचाव रखना चाहिए. सदगुरू की शरण में रहें.



    केतु  ग्रह  का अशुभ फल



    9)ज्योतिष में केतु का अपना अलग महत्व है. केतु से जीवन में वैराग्य, ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है. माना जाता है कि अष्ट सिद्धि और नौ निधि का सुख केतु से ही प्राप्त होता है. केतु से जीवन में रहस्यमयी शक्तियां प्राप्त होती हैं. केतु का प्रभाव खराब होने से व्यक्ति को विचित्र बीमारियां होती हैं. केतु से लाभ लेने के लिए व्यक्ति को भगवान शिव की पूजा करें. इसके अलावा, भगवान गणेश की पूजा भी कर सकते हैं. रोजाना सुबह खाली पेट दो तुलसी के पत्ते खाएं.



    कुछ ग्रह का दुस्प्रवाब



    जीवन में चल रही समस्याओं का कारण विष योग तो नहीं जाने अपने जन्म कुण्डली से .....

    पांचवें भाव में यह दुर्योग होने पर संतान सुख नहीं मिलता और व्यक्ति की विवेकशीलता धीरे धीरे समाप्त होती है।

    छठे भाव में विष योग छठे भाव में विष योग बना हुआ है तो व्यक्ति के अनेक प्रकार के शत्रु होते हैं और जीवन भर कर्ज में डूबा रहता है। सप्तम भाव में विष योग बनने से जातक का पारिवारिक व दांपत्य जीवन हमेशा कलह रहता है।

    लग्न स्थान में विष योग बना रहा हो तो ऐसा व्यक्ति शारीरिक तौर पर बेहद अक्षम रहता है। उसे पूरा जीवन भर तंगहाली में गुजारना पड़ता है। 

    लग्न स्थान में शनि-चंद्र होने पर उसका प्रभाव सीधे तौर पर सप्तम भाव पर भी होता है। इससे दांपत्य जीवन दुखद पूर्ण  हो जाता है।

    दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति जीवनभर धन के अभाव से गुजरना पडता  है।

    तीसरे भाव में बना विष योग व्यक्ति का पराक्रम कमजोर कर देता है और वह अपने भाई-बहनों से मानसिक कष्ट मिलता  है।

    चौथे भाव सुख स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर सुखों में कमी रह जाते हे और मातृ सुख नहीं मिल पाता है जीवन भर।

    पांचवें भाव में यह दुर्योग होने पर संतान सुख नहीं मिलता और व्यक्ति की विवेकशीलता समाप्त होती है जिंदगी भर मानसिक तनाव से गुजर ना पड़ता है।

    छठे भाव में विष योग बना हुआ है तो व्यक्ति के अनेक शत्रु होते हैं कर्म स्थान बहुत कमजोर होता हे और जीवनभर कर्ज में डूबा रहता हे

     सातवें स्थान में बीस जोग होने पर पति-पत्नी में तलाक होने की नौबत तक चला आता  है।

    आठवें भाव में बना विष योग व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है।व्यक्ति अधिक समय बीमारी में पड़ा रहता है।जीवन में दुर्घटनाएं बहुत होती हैं।

     नौवें भाव में विष योग व्यक्ति को भाग्यहीन बनाता है। पूजा अर्चना में रुचि नही होता हे ।ऐसा व्यक्ति नास्तिक होता है।

    दसवें स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति के पद-प्रतिष्ठा में कमी आती है।पिता से विवाद रहता है। पेत्रिक सम्पत्ति से वंचित रेहेता हे

    ग्यारहवें भाव में विष योग व्यक्ति के बार-बार एक्सीडेंट करवाता है। आय के साधन न्यूनतम होते हैं। जिंदगी भर कर्ज में डूबा रहता है।

    बारहवें भाव में यह योग है तो आय से अधिक खर्च होता है।



    ग्रह का विष योग के उपाय 



    1. जिस व्यक्ति की कुंडली में विष योग बना हो वे शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे नारियल फोड़ें।

    2. शनिवार को सरसों के तेल में काले उड़द और काले तिल डालकर दीपक जलाएं।

    3. पानी से भरा घड़ा शनि या हनुमान मंदिर में दान करें।

    4.रोज हो सकते हे तो हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करे

    5. गाय माता को भोजन खिलाई,शनिवार को काले कुत्ते को खाना खिलाए।

    6.काले चीटिया को आटा की गोली बनाके खिलाए

    7. काउया को हर रोज खाना खिलाए।

    राहु की अशुभ फलों से बचना चाहते हैं तो कभी भी भूलकर भी किसी के लिए झूठी गवाही न दें और न ही झूठी कसमें खाएं.

    राहु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए संधिकाल अर्थात सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए.

    राहु के अशुभ फलों से बचने के लिए सोते समय अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें. इस उपाय को करने पर राहु से जुड़े अशुभ प्रभाव दूर होंगे.

    यदि राहु के अशुभ प्रभाव के कारण आपका बाजार में या फिर किसी व्यक्ति विशेष के पास पैसा अटका हो तो उसे निकालने के लिए प्रतिदिन सुबह-सुबह पक्षियों को दाना डालें.

    राहु ग्रह से अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए किसी ज्योतिषी से सलाह लेकर गोमेद युक्त राहु यंत्र लॉकेट में बनवा कर विधि-विधान से धारण करें.

    राहु से जुड़े अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए चांदी का नाग बनवाकर उसकी विधि-विधान से पूजा करें और उसे किसी मंदिर में दान कर दें.

    राहु के अशुभ फल को दूर करने के लिए यदि संभव हो तो दाहिने हाथ में चांदी का कड़ा और गले में चांदी की चेन पहनना चाहिए.

    यदि आपकी कुंडली में राहु की दशा चल रही हो और उसके अशुभ फल मिल रहे हों तो किसी कुष्ठ रोगी को धन एवं खाने-पीने की चीज आदि का दान करके मदद करना चाहिए.

    राहु से पीड़ित व्यक्ति को प्रत्येक शनिवार को विधि-विधान से व्रत रखना चाहिए. व्रत के शुभ प्रभाव से राहु का दुष्प्रभाव कम होता है.

    राहु के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए प्रतिदिन किसी शिवालय में जाकर शिवलिंग पर बिल्वपत्र और धतूरा चढ़ाना चाहिए. भगवान शिव की साधना से जुड़े इस उपाय से राहु से जुड़े दोष दूर होते हैं.


    नवग्रह शांति शाबर मंत्र 


    रविदेव हवन बिधि

    नवग्रह शाबर मन्त्र  - हवन सामग्री: गोघृत तथा अर्क की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार | मन्त्र:- “सत नमो आदेश । गुरुजी को आदेश । ॐ गुरुजी । सुन बा योग मूल कहे बारी बार । सतगुरु का सहज विचार ॥। ॐ आदित्य खोजो आवागमन घट में राखो दृढ़ करो मन ।॥। पवन जो खोजो दसवें दूवार । तब गुरु पावे आदित्य देवा ।। आदित्य ग्रह जाति का क्षत्रिय । रक्त रंजित कश्यप पंथ ॥। कलिंग देश स्थापना थाप लो । लो पूजा करो सूर्य नारायण की । सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि- सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशिं, १५ तिथि । सोम-मंगल शुक्र शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। ॐ सूर्य मन्त्र गायत्री जाप | रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाश । नमो नमः स्वाहा ।” 


    सोमदेव हवन बिधि


     हवन सामग्री-- गोघृत तथा पलाश की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्र: “ॐ गुरुजी, सोमदेव मन धरी बा शून्य । निर्मल काया पाप न पुण्य ।। शशी-हर बरसे अम्बर झरे । सोमदेव गुण येता करें । सोमदेव जाति का माली । शुक्ल वर्णी गोत्र अत्रि ।। ॐजमुना तीर स्थापना थाप लो । कन्हरे पुष्प शिव शंकर की पूजा करो ।। सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि- सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १ राशि, १५ तिथि । मंगल रवि शुक्र शनि | बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। 3 सोम मन्त्र गायत्री जाप | रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 


    मंगल देव हवन बिधि


    मंगलदेव हवन - हवन सामग्री-- गौघृत तथा खैर की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्र:- “ॐ गुरुजी, मंगल विषय माया छोड़े । जन्म-मरण संशय हरै । चंद्र- सूर्य दो सम करै । जन्म-मरण का काल । एता गुण पावो मंगल ग्रह ॥। मंगल ग्रह जाति का सोनी । रक्त-रंजित गोत्र भारद्वाजी ।। अवन्तिका क्षेत्र स्थापना थापलो । ले पूजा करो नवदुर्गा भवानी की ।। सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े ।

    हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ४ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि | सोम-रवि शुक्र शनि । बुध-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुम्ख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। 3 भोम मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 



    बुध  देव हवन बिधि



    बुधग्रह हवन - हवन सामग्री:- गोघृत तथा अपामार्ग की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, बुध ग्रह सत्‌ गुरुजी दिनी बुद्धि । विवरो काया पावो सिद्धि ।। शिव धीरज धरे । शक्ति उन्मनी नीर चढ़े ।। एता गुण बुध ग्रह करै । बुध ग्रह जाति का बनिया || हरित हर गोत्र अत्रेय । मगध देश स्थापना थापलो । ले पूजा गणेशजी की करै । सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि- सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल-गुरु-राहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। 3 बुध मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 



    बृहस्पति देव हवन बिधि 



    गुरु (बृहस्पति) हवन - हवन सामग्री:- गौघृत तथा पीपल की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार । मन्त्र:- “ॐगुरुजी, बृहस्पति विषयी मन जो धरो । पाँचों इन्दिय निग्रह करो । त्रिकुटी भई पवना दवार । एता गुण बृहस्पति देव ॥। बृहस्पति जाति का ब्राहमण । पित पीला अंगिरस गोत्र ॥। सिंधु देश स्थापना थापलो । लो पूजा श्रीलक्ष्मीनारायण की करो ॥। सत फुरै सत वाचा पुरे श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि | मंगल-बुध-राहु-केतु सुख करे, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। ॐगुरु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 



    शुक्र देव हवन बिधि




    शुक्रदेव हवन हवन सामग्रीः- गोघृत तथा गूलर की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार | मन्त्रः- “ॐ गुरुजी, शुक्रदेव सोधे सकल शरीर । कहा बरसे अमृत कहा बरसे नीर ।। नवनाड़ी बहात्तर कोटा पचन चढ़े । एता गुण शुक्रदेव करै । शुक्र जाति का सय्यद । शुक्ल वर्ण गोत्र भार्गव || भोजकर देश स्थापना थाप लो । पूजो हजरत पीर मुहम्मद ॥। सत फुरै सत बाचा फूरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा यढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरे, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि मंगल शनि । बुध-गुरु-राहु- केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। 3 शुक्र मन्त्र गायत्री जप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 



    शनिदेब  देव हवन बिधि



    शनिदेव हवन हवन सामग्री:- गौँघृत तथा शमी की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुदा-हंसी, संख्याः- ९ बार या १०८ बार | मन्त्र:- “ॐ गुरुजी, शनिदेव पाँच तत देह का आसन स्थिर । साढ़े सात, बारा

    सोलह गिन गिन धरे धीर । शशि हर के घर आवे भान । तौँ दिन दिन शनिदेव स्नान । शनिदेव जाति का तेली । कृष्ण कालीक कश्यप गोत्री ।। सौराष्ट्र क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा हनुमान वीर की करो ।। सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-मंगल शुक्र रवि । बुध-गुरु-ाहु-केतु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े ।। ॐशनि मन्त्र गायत्री जप | रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।” 



    राहु देव  देव हवन बिधि 



    राहू ग्रह हवन - हवन सामग्री:- गोघृत तथा दूर्व की लकड़ी । दिशाः- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्या:- ९ बार या १०८ बार । मन्त्र:- “ॐ गुरुजी, राहु साधे अरध शरीर । वीर्य का बल बनाये वीर || धुंये की काया निर्मल नीर । येता गुण का राहु वीर । राहु जाति का शूद्र । कृष्ण काला पैठीनस गोत्र ।। राठीनापुर क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा करो काल भैरो ।। सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिंद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल केतु बुध-गुरु सुख करै, दुःख हरै । खाली वाचा कभी ना पड़े || ॐ राहु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नमः स्वाहा ।" 


    केतु  देव  देव हवन बिधि



    केतु ग्रह हवन हवन सामग्री:- गौघृत तथा कुशा की लकड़ी । दिशा:- पूर्व, मुद्रा-हंसी, संख्या:- ९ बार या १०८ बार । मन्त्र:- “ॐ गुरुजी, केतु ग्रह कृष्ण काया । खोजो मन विषय माया । रवि चन्द्रा संग साधे । काल केतु याते पावे । केतु जाति का असरु जेमिनी गोत्र काला नुर | अन्तरवेद क्षेत्र स्थापना थाप लो । लो पूजा करों रौद्र घोर ।। सत फुरै सत वाचा फुरै श्रीनाथजी के सिंहासन ऊपर पान फूल की पूजा चढ़े । हमारे आसन पर ऋद्धि-सिद्धि धरै, भण्डार भरे । ७ वार, २७ नक्षत्र, ९ ग्रह, १२ राशि, १५ तिथि । सोम-रवि शुक्र शनि । मंगल बुध-राहु-गुरु सुख करे, दुःख हरे । खाली वाचा कभी ना पड़े || ॐ केतु मन्त्र गायत्री जाप । रक्षा करे श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ । नमो नम: स्वाहा।।


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