साबर मंत्र साधना सिद्धि बिधि और उपाय || Sabar Mantra Sadhana Siddhi Or Upay Bidhi

 

साबर मंत्र साधना सिद्धि बिधि और उपाय


शाबर अनुष्ठान और उनके तांत्रिक प्रयोग




    शाबर मंत्र साधना, तंत्र की एक विशेष प्रक्रिया के रूप में रही है। शाबर मंत्र

    साधनाएं सामान्यजन, कम पढ़े-लिखे एवं अनपढ़ लोगों को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं। इसलिये इन शाबर मंत्र आधारित अनुष्ठानों को सम्पन्न करने के लिये तंत्र की अन्य प्रक्रियाओं अथवा वैदिक साधनाओं की तरह किसी जटिल विधि-विधान की आवश्यकता नहीं पड़ती और न ही इनका कोई विपरीत प्रभाव होता है । इन अनुष्ठानों को पूर्णता के साथ सम्पन्न करने के लिये एकमात्र पूर्ण श्रद्धा, मंत्रों पर गहन आस्था, प्रक्रिया के प्रति समर्पण भाव एवं गुरु पर पूर्ण विश्वास रखने की ही आवश्यकता रहती है ।




    साबर मंत्र साधना और मंत्र प्रभाब 




    शाबर साधना के अटपटे से मंत्र इन्हीं के माध्यम से चमत्कार कर दिखाते हैं। अनेक आचार्यों का विश्वास है कि शाबर साधनाएं कभी निष्फल नहीं होती हैं । शाबर साधना के मंत्र ही सहज एवं साधारण नहीं होते, अपितु इन साधनाओं को सम्पन्न करने लिये जिन तांत्रोक्त वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है, वह सब भी सहज ही

    आस-  -पड़ौस में उपलब्ध हो जाती हैं। इन अनुष्ठानों को सम्पन्न करने के लिये किसी लम्बे-चौड़े विधि-विधान को समझने की भी आवश्यकता नहीं होती । हाँ, इस प्रकार की शाबर मंत्र साधनाओं के लिये गुरु का सानिध्य मिलना आवश्यक होता है, क्योंकि इन शाबर मंत्रों की रचना में व्याकरण का तो महत्व होता नहीं है और न ही इन मंत्रों का कोई विशेष अर्थ ही निकलता है तथा उच्चारण किये जाने पर भी यह मंत्र ऊटपटांग, गांव- देहात की बोलचाल के शब्द भर ही प्रतीक होते हैं लेकिन इन मंत्रों में एक विशिष्टिता

    रहती है। इन शब्दों में गुरु के साथ-साथ अभीष्ट देव की शक्ति समाहित रहती है।

    इसलिये इन मंत्रों को किसी पुस्तक से पढ़कर प्रयोग में लाने से तो अधिक प्रभाव दिखाई नहीं देता, किन्तु अगर इन मंत्रों को किसी विद्वान साधक व्यक्ति या गुरु के मुख से ग्रहण

    करके साधना की जाये तो तत्क्षण उनका प्रभाव दिखाई पड़ता है। अनेक बार तो यह मंत्र वैदिक मंत्रों या तांत्रिक साधनाओं की अपेक्षा अत्यन्त प्रभावी एवं तत्क्षण फल प्रदान करने वाले सिद्ध होते हैं। गुरु मुख से मंत्र ग्रहण करके अगर यह अनुष्ठान सम्पन्न किये जायें तो निश्चित ही वह सफलतायें प्रदान करते हैं। इसीलिये प्राय: प्रत्येक शाबर मंत्र के साथ मेरी भक्ति

    गुरु की शक्ति स्फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा जैसा पद जोड़ा जाता है।





    साबर मंत्र साधना ग्रन्थ 




    तांत्रिक साधनाओं, तंत्र शास्त्र, वैदिक मंत्रों एवं उनकी साधनाओं पर सैंकड़ों की संख्या में विभिन्न तरह के ग्रंथ लिखे गये हैं। योग की प्रक्रियाओं, ध्यान, धारणा और समाधि पर भी अनेक ग्रंथ रचे गये, वैदिक उपासनाओं को लेकर भी वेद, पुराण, उपनिषदों से लेकर अन्य ग्रंथ लिपिबद्ध किये गये, किन्तु शाबर मंत्रों एवं उनकी साधनाओं पर अब तक भी कोई प्रमाणिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं हो पाया है। यह साधना पद्धति अब तक मौखिक रूप में गुरु-शिष्य परम्परा के माध्यम से ही निरन्तर आगे बढ़ती रही है। इन

    शाबर मंत्रों एवं उनकी साधनाओं, अनुष्ठानों आदि पर जो कुछ भी जानकारियां उपलब्ध होती रही हैं उनके एकमात्र स्रोत शाबर मंत्रों के साधक ही रहे हैं । 




    साबर मंत्र के  रचयिता 





    इन शाबर मंत्रों का सृजन भगवान शिव के मुख से हुआ माना जाता है, किन्तु इन्हें अपनी साधना का माध्यम नाथ सम्प्रदाय के योगियों एवं सिद्धों ने ही बनाया है। इसलिये कुछेक शाबर मंत्रों का सम्पादन और कुछेक विशिष्ट उपासनाओं का सूत्र नाथ सम्प्रदाय के योगियों द्वारा रहा है।

    नाथ सम्प्रदाय से सम्बन्धित कुछ उच्च कोटि के साधकों के पास एवं उनके द्वारा स्थापित किये गये कुछेक प्राचीन साधना स्थलों पर शाबर मंत्रों पर लिखे गये कुछ हस्तलिखित ग्रंथ अब भी देखने को मिल जाते हैं, लेकिन इन तक पहुंचना सामान्य जिज्ञासुओं के लिये संभव नहीं है।





    साबर मंत्र का प्रयोग 





    शाबर मंत्रों से सम्बन्धित काफी साहित्य गांव-देहात में प्रचलित ओझाओं, गुनियों, तांत्रिकों और झाड़-फूंक करने वालों के पास भी उपलब्ध है किन्तु इनके पास शाबर मंत्रों का जो ज्ञान है, उन्हें एक तरह से साधारण साधनाएं कहा जा सकता है । शाबर साधनाओं का उच्च ज्ञान नाथ योगियों के पास ही उपलब्ध है।

    ओझा, गुनिया और झाड़-फूंक करने वाले लोग साधारण शाबर मंत्रों को उपयोग में लाते हैं। वह अपनी क्षमताओं का उपयोग लोगों के रोग उपचार, नजर उतारने, साधारण प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं अर्थात् अभिचार कर्म से बचाव करने, भूत-प्रेत आदि से मुक्ति दिलाने, जीवन में उत्पन्न होने वाली अनेक प्रकार की परेशानियों से मुक्ति दिलाने आदि के

    लिये करते हैं। यद्यपि बहुत से ऐसे लोग अपनी शक्ति का उपयोग मारण, मोहन, वशीकरण,

    उच्चाटन जैसे षट्कर्मों का प्रभाव दिखाने के लिये भी करते हैं लेकिन ऐसे ओझा, गुनियों आदि के पास पराभौतिक जगत से सम्बन्धित अनुभूतियां प्रदान करने की कोई जानकारी

    नहीं रहती और न ही उन्हें ऐसी किसी शाबर साधना की जानकारी होती है। शाबर साधनाओं का परम लक्ष्य पराभौतिक जगत से सम्बन्धित दिव्य अनुभूतियों को जानना, अपना आत्म साक्षात्कार करना, सूक्ष्म शरीर द्वारा यात्रा करना, छाया पुरुषों को सिद्ध करना,

    शून्य से इच्छित वस्तु प्राप्त करने की सामर्थ्य प्राप्त करना अथवा अप्सरा आदि के साथ सम्पर्क स्थापित करने के साथ रहता है। शाबर साधनाओं का एक बड़ा भाग अलौकिक

    शक्तियां प्राप्त करने के साथ संबंधित रहता है। इन्हीं के माध्यम से एक साधक हारजात सिद्ध करके किसी भी प्राणी के भूत, भविष्य और वर्तमान काल में झांक कर सकता है, उसके जीवन की प्रत्येक घटना को प्रत्यक्ष देख सकता है। उसके अव्यक्त विचारों को पढ़ने, उनमें इच्छानुसार बदलाव करने तक की क्षमता भी प्राप्त कर सकता है। ऐसी साधनाओं की जानकारी उच्च शाबर सिद्धों के पास ही सिमट कर रह गयी है।

    शाबर मंत्रों के संबंध में कई अन्य बातें भी ध्यान देने की है, जैसे कि शाबर मंत्रों में प्रायः हनुमन्त वीर, भैरव, काली, दुर्गा, गणेश आदि का उल्लेख आवश्यक रूप से होता है।

    यह एक अलग बात है कि इन सभी देवों की आज के समय (कलियुग) में सर्वाधिक मान्यता है । यह सभी शीघ्रता से प्रसन्न होने वाले और साधक की मनोकामना को तत्काल

    पूर्ण करने वाले देव हैं। इसके साथ ही अधिकतर शाबर मंत्रों के उपदेष्टा नाथ सम्प्रदाय से सम्बन्धित गुरु गोरखनाथ, गुरु मच्छेन्द्रनाथ (मस्त्येंद्रनाथ) और उनकी परम्परा के अन्य

    योगी चौरंगी नाथ, गुरु जलंधर, भरथरी और सुलेमान आदि हैं। अतः ऐसे शाबर मंत्रों में इष्ट की शक्ति तो समाहित रहती ही है, इनके अतिरिक्त उन मंत्रों में गुरु गोरखनाथ, गुरु

    मच्छेन्द्रनाथ आदि की शक्ति भी समाहित रहती है। इसीलिये शाबर मंत्र तत्क्षण अपना  प्रभाव दिखाने वाले सिद्ध होते हैं।

    बहुत से शाबर मंत्रों में उपदेष्टा की जगह केवल गुरु शब्द का ही उल्लेख होता है । इन शाबर मंत्रों का संबंध परम्परा से चले आ रहे मंत्रों के साथ रहता है । यह मंत्र अद्भुत प्रभावशाली सिद्ध होते हैं, क्योंकि इनमें अनेक साधकों की साधना का फल समाहित रहता है, किन्तु इन मंत्रों की सार्थकता इन्हें गुरु के माध्यम से ही ग्रहण करने पर सुरक्षित रहती

    है। शाबर मंत्रों के साथ जो गुरु शब्द सलंग्न रहता है, उससे साधारण व्यक्ति विशेष का अर्थ नहीं निकालना चाहिये, बल्कि इस गुरु शब्द से बोध उस साधक के साथ रहता है, जिसने स्वयं परम्परा से इस मंत्र को ग्रहण किया होता है और जो स्वयं भी उस मंत्र की शक्ति को आत्मसात कर चुका होता है। उस साधना के अनुभव से गुजर चुका होता है।

    गुरु का अभिप्राय न तो व्यक्ति विशेष के साथ रहता है और न ही केवल शब्द मात्र से रहता है। गुरु का अभिप्रायः उस जीवन्त व्यक्तित्व के साथ रहता है, जो अपनी सहज उपस्थिति से ही अन्य साधकों की साधनाओं में सफलता प्रदान करवाने में सक्षम होता है।

    अतः शाबर साधनाओं में पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिये अभीष्ट देव पर पूर्ण आस्था रखने के साथ-साथ अपने गुरु पर भी पूर्ण विश्वास रखना आवश्यक होता है । शाबर मंत्रों के अन्त में शब्द सांचा पिण्ड कांचा, फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा नामक एक पल्लव क्रम जोड़ा जाता है । यद्यपि पढ़ने, सुनने में यह साधारण वाक्य मात्र प्रतीत होता है, पर यह साधारण बिलकुल नहीं है। यह वास्तव में मंत्र, साधक और ईश्वर के मध्य

    गहन संबंधों का बोध कराता है। इस शब्द से, वेदान्त में भी उसी शक्ति का बोध होता है कि 'शब्द' (नाद) ही ब्रह्म (ईश्वर) है, शब्द शाश्वत है। शब्द कभी नष्ट नहीं होता, किन्तु साधक का जो शरीर (पिण्ड) है, वह मिट्टी के पात्र की भांति कच्चा और क्षणभंगुर है,

    अतः यह पिण्ड अनित्य है। मंत्र ईश्वरीय वाणी है। वह ईश्वर के वचन से ही प्रभावित होता है और उसमें ईश्वरीय शक्ति निहित रहती है । अतः यह शाबर मंत्र भी सिद्ध साधकों द्वारा

    प्रकाश में लाये गये ईश्वरीय शब्द हैं, जो गुरु मुख से प्रकट होने पर और भी प्रभावी बन जाते हैं। शाबर मंत्रों का आदि देव भगवान शंकर को ही माना गया है।




    शाबर मंत्रों को सिद्ध कैसे करें 




    शाबर मंत्र तभी अपना प्रभाव दे पाते हैं जब उन्हें सिद्ध कर लिया जाये। जिस

    प्रकार से शाबर मंत्र आम लोगों के लिये सामान्य बोलचाल एवं सामान्य विधि-विधान से सम्पन्न किये जाते हैं, उसी प्रकार से इन मंत्रों को सिद्ध करने की प्रक्रिया भी बहुत आसान एवं सरल है। इस बारे में विद्वान आचार्यों का मत है कि शाबर मंत्रों की साधना से पूर्व

    उन्हें सिद्ध अवश्य कर लेना चाहिये। इसके लिये सर्वार्थ साधना मंत्र को इक्कीस बार जप लेना पर्याप्त होता है। इसके बाद उस मंत्र की साधना करें, जिसे आप प्रयोग करना चाहते हैं। सर्वार्थ साधना मंत्र का जप करते समय ध्यान रखें कि इसका कोई भी शब्द, वर्ण या उच्चारण न तो अशुद्ध हो और न ही अपनी तरफ से किसी प्रकार का शब्द जोड़ा जाये ।

    यह जैसा है वैसा ही ज्यों का त्यों पढ़ना चाहिये-

    गुरु सठ गुरु सठ गुरु हैं वीर

    गुरु साहब सुमरौं बड़ी भाँत

    सिंगी टोरों बन कहौं

    मन नाऊँ करतार

    सकल गुरु की हर भजे

    घट्टा पाकर उठ जाग

    चेत सम्हार श्री परमहंस

    इसके बाद गणेशजी का ध्यान करके नीचे लिखे मंत्र की एक माला जपें-

    ध्यान- वक्रतुण्ड महाकाय, कोटि सूर्य सम्प्रभम् ।

    निर्विघ्नं कुरु मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

    मंत्र- वक्रतुण्डाय हुं ।



    तत्पश्चात् निम्न मंत्र से दिग्बंधन करें-



    वज्र क्रोधाय महादन्ताय दश दिशो बंध बंध।

    हूँ फट् स्वाहा ।

    इस मंत्र को जपने से दसों दिशायें बंध जाती हैं, इसका तात्पर्य यह है कि इन

    दिशाओं में जितने भी अनिष्ट प्रकार के प्रेत आदि, जो आपके लिये बाधायें उत्पन्न कर सकते हैं, वे आपका किसी प्रकार का अहित नहीं कर पायेंगे।

    साधना प्रारम्भ करने से पूर्व इस बात का ध्यान रखें कि नाभि में दृष्टि जमाने से ध्यान बहुत शीघ्र लगता है। जब ध्यान लग जाता है तो मंत्र सिद्धि में अधिक विलम्ब नहीं होता। इसके पश्चात् मंत्र सिद्ध करने के लिये उसका जप प्रारम्भ करें। मंत्र किस स्थान पर, कितनी संख्या में, कब करना है यह सब अनुष्ठान में प्रयुक्त होने वाले मंत्रों के साथ-साथ लिखा गया है। विशेष साधना सिद्धि के लिये सर्वोत्तम काल- नवरात्रा, दशहरा, दीपावली,

    होली, ग्रहण काल तथा शिवरात्रि माने गये हैं।




    शाबर मंत्रों का प्रभाव 





    रामचरित मानस में संत शिरोमणी तुलसीदास ने एक जगह शाबर मंत्रों के सम्बन्ध में लिखा है-

    कलि विलोकि जग हित हर गिरिजा, शाबर मंत्र जाल जिहि सिरजा ।

    अनमिल आखर अरथ न जापू, प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू ॥

    इसे सौरठा के अभिप्रायः से शाबर मंत्रों के संबंध में अनेक तथ्यों का स्वतः

    रहस्योद्घाटन हो जाता है। तुलसीदास जी लिखते हैं कि कलियुग के संताप भोग रहे और विभिन्न प्रकार की पीड़ाओं से विचलित हो रहे जीवों को देखकर गिरिजा कुमारी का हृदय बहुत द्रवित हुआ और इन पीड़ाओं से सहज रूप में मुक्ति पाने का उपाय बताने की प्रार्थना भगवान शिव से की है। उसी समय भगवान शिव के मुख से इन शाबर मंत्रों का सृजन हुआ। यह शाबर मंत्र ठीक वैसे ही प्रभावी हैं जैसा कि भगवान राम का नाम, जिसके जाप करने मात्र से ही निरक्षर अनामिल के सामने राम को प्रकट होना पड़ा। ठीक

    ऐसे ही यह शाबर मंत्र हैं। इनका जाप किसी भी रूप में क्यों न किया जाये, इनका प्रभाव होकर ही रहता है।

    यह शाबर मंत्र सीधे, सरल, अपरिष्कृत और ग्राम्य भाषा के अवश्य प्रतीत होते हैं, लेकिन प्रभाव में यह तांत्रोक्त, वैदिक मंत्रों से बिलकुल भी कम नहीं हैं। इसलिये इन मंत्रों का प्रसार सर्वत्र हुआ तथा प्रायः सभी प्रान्तों की भाषा में यह स्वीकार किये गये । यह शीघ्र प्रभावी होने वाले सरलतम मंत्र हैं। इनकी साधना एवं इनका प्रयोग करना भी सहज है। फिर भी इन शाबर मंत्रों का प्रभाव हर प्रकार की समस्याओं, चाहे उनका संबंध भौतिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक किसी भी स्थिति के साथ क्यों न हो, पर होता

    अवश्य है। इनके आधार पर शीघ्र ही निराकरण भी हो जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के लिये तो यह मंत्र बहुत ही अनुभूत एवं चमत्कारिक सिद्ध होते हैं। इसी प्रकार जिन लोगों को भूतादि की बाधाएं सताती रहती हैं अथवा जो तंत्र आधारित अभिचार कर्मों का शिकार बनते रहते हैं, उनके लिये यह शाबर मंत्र विशेष सुरक्षा कवच का कार्य करते हैं ।

    शाबर मंत्र शीघ्र प्रभावी होते हैं, अतः साधकों को सदैव ऐसा प्रयास करना चाहिये कि इन मंत्रों के माध्यम से किसी का अनिष्ट न होने पाये। इन मंत्रों को केवल स्वकल्याण अथवा जनकल्याण के निमित्त ही प्रयोग में लाना चाहिये । इन शाबर मंत्रों का मारण,मोहन, वीशकरण, उच्चाटन जैसे षट्कर्मों के रूप में कदापि प्रयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसे तंत्र प्रयोगों से साधक की अपने स्वार्थ की पूर्ति हो जाती है, परन्तु इससे साधना का निकृष्ट रूप ही प्रकट होता है। ऐसा कर्म करने से साधक अपने साधना मार्ग से भटक जाता है।

    यद्यपि यह शाबर मंत्र स्वयंसिद्ध हैं, फिर भी अगर इन मंत्रों को उपयोग में लाने से पहले किसी विशेष शुभ मुहूर्त जैसे होली, दीपावली की रात्रि अथवा शिवरात्री, दशहरा की रात्रि अथवा सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण के समय विधिवत् सिद्ध कर लिया जाये, तो यह और अधिक जाग्रत हो जाते हैं। ऐसे चेतना सम्पन्न मंत्र प्रयोग के समय शीघ्र फलदायी होते हैं। इन मंत्रों का प्रयोग रोगों के निवार्णनार्थ अथवा अन्य प्रकार की शारीरिक समस्याओं से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से किया जाता है।

    एक बार होली, दीपावली की रात्रि को चेतना सम्पन्न किये मंत्रों को प्रयोग करते समय मोरपंख से झाड़ा देते हुये सात बार मंत्र उच्चारण करना ही पर्याप्त रहता है । शाबर मंत्रों को जब होली, दीपावली या दशहरा आदि की रात्रियों को सिद्ध करना होता है तो उसके लिये भी एक विशेष प्रक्रिया प्रयोग में लायी जाती है। इस साधना प्रक्रिया में साधक को सबसे पहले गुरु मुख से मंत्र ग्रहण करके उसे स्मरण करना होता है और फिर गुरु आज्ञा लेकर निम्न तरह से साधना को सम्पन्न करना होता है।

    जिस दीपावली, दशहरा अथवा होली या फिर अन्य किसी रात्रि को किसी शाबर मंत्र को सिद्ध करना हो तो उस दिन सबसे पहले स्नान-ध्यान कर शरीर शुद्धि कर लें। पूजा के लिये घर में ही कोई स्थान निश्चित कर लें। अगर यह स्थान घर के पूजास्थ के

    पास है तो उत्तम है अन्यथा अन्य सुविधाजनक स्थान का चयन कर लें। उस स्थान को गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं शुद्ध कर लें। उस स्थान पर चौकी रख दें। चौकी के सामने ऊनी अथवा सूती कम्बल का आसन रखें और शांतचित्त होकर बैठ जायें । अब चौकी पर

    लाल रंग का वस्त्र बिछा ले। इतना ध्यान रखें कि आपको दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके बैठना है।

    इसके पश्चात् चौकी पर आटे के द्वारा तीन आड़ी और तीन तिरछी रेखाएं खींचते हुये नौ वर्गों की एक आकृति निर्मित कर लें। इस आकृति के ऊपरी तीनों खानों में, जिस मंत्र का जाप करना है उसका एक- एक बार उच्चारण करते हुये तीन गुड़ की ढेलियां रख दें। इसी प्रकार बीच वाले तीनों खानों में एक-एक बार मंत्र का जाप करते हुये एक- एक हल्दी की गांठ रख दें। नीचे के तीनों खानों में तीन-तीन बार मंत्रोच्चारण करते हुये क्रमशः तीन-तीन इलायची, लौंग और सुपारियां रख दें । अन्त में इनके मध्य घी का एक दीपक जलाकर रखना होता है।

    इसके पश्चात् अभीष्ट देव का स्मरण करते हुये गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का अभीष्ट संख्या में जाप पूरा करना होता है। सामान्यतः इस प्रकार की शाबर साधनाओं में ग्यारह माला अथवा पांच माला मंत्रजाप पूरा करने से ही मंत्र चेतना सम्पन्न हो जाता है ।

    इस प्रकार की शाबर साधनाओं में मंत्रजाप के लिये या तो रुद्राक्ष की माला काम में

    लायी जाती है अथवा हकीक या स्फिटिक माला का प्रयोग किया जाता है।

    जब अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप सम्पन्न हो जाता है तो उसके पश्चात् समस्त पूजा

    सामग्री को एकत्रित करके या तो जमीन के अन्दर गाढ़ दें अथवा बहते पानी में प्रवाहित

    करवा दें।

    .

    इस प्रकार शाबर मंत्र सिद्ध हो जाता है, जिसका प्रयोग कभी भी आवश्यकता के

    अनुसार किया जाता है । यद्यपि प्रत्येक वर्ष इसी प्रकार मंत्र को चेतना सम्पन्न करने के

    लिये यही साधनाक्रम दोहराना पड़ता है।

    शाबर मंत्रों और उनसे सम्बन्धित साधनाओं के चमत्कार सैंकड़ों बार देखने को मिले

    हैं। कई बार तो ऐसी विषम परिस्थितियों में भी शाबर अनुष्ठानों को प्रभावशाली होते हुये

    देखा है, जिनमें किसी विशेष कार्य का होना लगभग असंभव ही प्रतीत होता था या फिर

    उन कार्यों को पूरा करने में अन्य सभी उपाय प्रभावहीन सिद्ध हो चुके होते हैं। ऐसी

    स्थिति में शाबर मंत्रों के प्रयोग से वांछित लाभ की प्राप्ति हुई। इन प्रभावी प्रयोगों का

    उल्लेख नीचे किया जा रहा है-

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