Bhutni Sadhna || भूतनी साधना

प्रेतादि साधना करने की प्रबल आकांक्षा के पीछे प्रबल कारण ही की ऐसे लोग अपने जीवन के कभी प्रेत पिशाच रहे हे।या उनकी साधना कर चुके हे अन्यथा ऐसी आकांक्षा होती ही नहीं।  किंगबदंती में प्रेतो की अनेक चमत्कार कथाय प्रचलित हे। इसमें भी कोई संशय नहीं की इनमे शक्ति का एक विशिष्ट स्तर प्रकट हो जाता हे, पंच तत्वों में स्थल तत्वों(पृथ्वी और जल) के बिलुप्त हो जाने से बाधकता नही रहती परिणामत दूरी और काल इनके लिए अवरोध नही रहते बाबजूद भी ये भविष्य को नही देख सकते। बेक्तिगत रूप से इस विषय के प्रति कोई रुचि न रहते हुई भी एक दो प्रयोग लिख रहा हु क्योंकि यह जनरुचि है और तंत्र में इस प्रकार के प्रयोग दी गई हे।इसके बाबजूद यह परामर्श अवश्य रहेगा की साहस और धीर बेक्ति को इन प्रयोगों में उतरना चाहिए।इस विद्या के जानकार बेक्ति के पास विद्या रह सके ये लुप्त न हो जाए।  शाबर पद्धति के प्रयोग से जिस भूत प्रतादि का साधन किया जाता हे उनसे अधिक शक्ति सम्पन्न एवं कम क्षतिकर ये रूप हे।ये साधना साधक को अहित नही करता हे। हा इनके प्रकट होने के समय इनके मायाजाल में भ्रमित बा भयभीत नहीं होना चाहिए।एक तरह से ये यक्षिणी के निकट जाने बाली अथवा उनके समान शक्ति बाली हे।  तंत्र शास्त्र के अनुसार विद्या  भूतिनि,कुंडल धारिनी,सिंदुरिनी, हारिनि ,नटी , अतिनटी, चोटिका, का,कुमारिका,ये नौ प्रकार भूतिनिया हे।इनमे नाम अनुसार गुण हे।इनके प्रभाव से बेक्ति को दरिद्रता,अभाव,और सामान्य कष्ट नही होते हे।इसके साथ ही ये रूतिसुख का अपूर्व आसबाद कराती है।  मंत्र: ॐ हों क्रुं क्रुं क्रुं कटु कटु ॐ अमुकं क्रुं क्रुं क्रुं ओं अ:।।  नियम इस मंत्र को द्वादशी से अरम्भ करके चतुरदशी तक अथवा किसी भी शनिवार से आरम्भ करके सात दिन में आठ हजार बार जप चम्पा के पेड़ के नीचे बैठ कर करने से जल्दी सिद्ध हो जाते हे।इस प्रयोग को केबल रात्रि काल में रुद्राक्ष के माला से जप करना चाहिए।जप करने के पहले अगले दिन भुतिनी का पूजन करना चाहिए।पूजा में शोले श्रृंगार का सामान,फूल की माला,प्रसाद,दीपक तथा गुगल की धूप देकर रात में फिर मंत्र का जप करना चाहिए।इस प्रकार पर भूतिनी प्रसन्न होकर प्रकट होते है।इसके प्रकोट होने पर गंधोदक अर्घ दे। अर्घ उस पानी को कहते हे जो हात धोने के लिए दिया जाते हे।यह जल सुगंधित द्रव्य तथा कुमकुम, गोरचना,कस्तूरी मिला पानी होना चाहिए। अर्घ नईबेद्द्य आदि अर्पित करने के बाद इसे माता,पत्नी, या बहन के रूप में मान लिया जाना चाहिए। मां रूपिणी होने पड़ यह वस्त्र,अलंकार,और भोजन की कमी नहीं रहने देती।बहन के रूप में बरन करने से यह बहुत खूबसूरत रूपवती स्त्री को लेकर देती है तथा अनेक प्रकार की रस रसायन प्रदान करती हे।जिससे बेक्ति भोगक्षम एवं युवा रहता हे।पत्नी के रूप में स्वीकार करने पड़ यह अपनी पीठ पर चढ़ाकर स्वर्गदी लोकों को घुमाती है।बहुत सुस्बादु भोजन ,स्वर्ण मुद्रा और रस रसायन प्रदान करती हे।  भूतिनि साधन करने के समय अमूकांग जगा पर जिस भूतिनी का आह्वान करनी हे उस भूतिनी का नाम लेना चाहिए।  कुंडलबती की साधना करने पर अमूक जगा पर कुंडलबती का नाम लेकर मंत्र जप करना चाहिए।ऊपर में लिखा गई विधि से साधना करने से जल्दी प्रसन्न हो जाती है। स्रिफ अर्घ में अपने कनिस्का अंगुली का रक्त देना चाहिए।  सिंदुरिणी नामक भूतिनी को साधना करने पर मूल मंत्र में अमुक जगा पर सुंदुरिनी बोलना चाहिए।पूजा की विधि विधान अन्य भूतिनी साधना जैसे किया जाएगा एक अंतर है ये भूतिनी के साधन शून्य देवालय में किया जाएगा।जप संख्या भी आठ हजार ही रहेगी किंतु यह जप गेरह दिन सम्पन्न करके बारहदीन विशेष समारम्भ पूर्वक पूजन करके अर्घदी अर्पित किया जाएगा। भूतिनी की यह स्वरूप पत्नी के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए।  हारिनी हारिनी नाम की भूतनी का सिद्धि शिब मंदिर में किया जाते हे।पहले दिया हुए विधि से ये सिद्ध हो जाते हे।हरिणी भूतनी सिद्ध होने पर साधक स्त्री या प्रेमिका रूप में पा सकते हे।ये सिद्ध होने पर साधक को अन्न वस्त्र,धन धान्य की पूर्ति करती हे और स्त्री सुख देती है।  नटी नटी नमक भूतनी की साधना बज्र पानी के मंदिर (इंद्र) में जाकर करनी चाहिए। उस मंदिर में नटी प्रतिमा भोजपत्र अथवा कागज पर सिंदूर से ,चमेली की कलम बनाकर लाल कनेर के फूल से करनी चाहिए।आठ हजार जप करने से ये सिद्ध हो जाते हे।नटी भूतनी प्रकट होने पर साधक वचन लेकर आपने दास बना सकते हे।साधक को अतीत वर्तमान और भविष्य के बारेमे पूछने से बता देती है।ये साधक को प्रतिदिन धन वस्त्र,भोजन लाकर देता हे।इसके दिए हुए अर्थ को खर्च कर देना ही अच्छा है।  महानटी साधना भूतनी की साधना अपेक्ष्या कृत कठिन है।नदी के संगम स्थल पर जाकर आठ हजार बार मंत्र जप करके रात्रि में पूजन करना चाहिए।इसके साधना अर्ध रात्रि में  करना उत्तम हे।महानटी प्रकट होने पर साधक उसे पत्नी रूप में स्वीकार करे और उससे बचन ले।एक बार सिद्ध हो जाने पर हर दिन रात्रि काल में साधक के पास उपस्थित हो जाते हे।  चेटी साधना चेटी नामक भूतनी सिद्ध होने पर गृहदाशी का काम करती हे।अपने घरकी द्वार पर बैठ कर इसके मंत्र का आठ हजार बार जप तीन दिन में पूरा करे।ऐसा लगा तार साथ दिन पूजा करने से भूतनी सिद्ध हो जाते हे।और ये दासी के रूप में रहने के वचन लिया जाते हे।ये सिद्ध होने पर घर परिवार या अपने खेत का सारा काम कर देती हे।ऐसा शास्त्र में कहा गया हे।  कामेशरि भूतिनी साधना कामेशरि भूतिनी साधना देवी मंदिर में की जाती हे। अच्छे होगा ये अगर किसी काली मंदिर में किया जाय।मछली और मांस से इसका पूजा करे रोज रात्रि में एक हजार बार मंत्र जप करना हे।आठ हजार बार जप करने से ये प्रकट हो जाती है अगर ये प्रकट नही होता हे तब तक इसका पूजा चालू रखना हे और नियमित मंत्र का जप करते रहना हे।प्रकट होने पर स्त्री के रूप में रहने के लिए वचन लिया जाते हे।पत्नी के रूप में मिलने पर धन मकान सुख सम्मान आदि प्रदान करती हे।  ध्यान रहे भूतिनी सिद्ध हो जाने पर ये बात और किसी से न कहे अन्यथा इसका परिणाम में चला जा सकते हे।  डाकिनी सिद्धी  प्रकिती भेद इनके नाम भेद हो जाते हे। भूतिनी,प्रेतनी,पिशाच , डाकिनी, शाकिनी, लाकिनी,हाकिनी ये अधिक उग्र और शक्ति सम्पन्न होते है।इनमे चार की योगिनी पूजन में भी गणना होती हे।यह तमोगुणी स्तर हे,राजसी स्तर में यक्षिणी,किन्नरी,अप्सरा,नायिका,नटी,योगिनी, नागिनी,की गणना होती हे।ये सब भूतनी से उग्र साधना होती हे।ये जैसा की नाम है बेक्ति का रक्षा कवोच बना रहता हे,शत्रु का विनाश करने में यह अमोघ मानी जाती है।  मंत्र:मन्त्र- डं डां डिं डीं  द्रों धुं धुं चालिनि मालिमी डाकिनि सवे- सिद्धि प्रयच्छ हुं फट स्वाहा ।।  इस मंत्र का न्यास विनियोग दी नही हे।सेमल पेड़ पर चड़कर हाथ उठाए हुई जप करे।शास्त्र में इन्हे सिद्ध होने में लंबा समय लगता है बताया हे पर अनेक बार निर्दिस्ट समय से पहले ही सिद्ध हो जाता हे।  भूत प्रेत सिद्धि मंत्र:मंत्र-ऑ हों क्रों क्रों क्रुं फट फट क्रट क्रट ह्रिं ह्रिं भूत-प्रेत भूतिनी प्रेतिनी आगच्छ आगच्छ ह्रिं ह्रिं ठ: ठ: ।।  विधि इसकी साधना करने बाला बेक्ति को साधना काल में गंध कुमकुम मिला ,चमीली के पूल या इत्र से सुवासित जल पास में रखना चाहिए जिससे कभी यह प्रकट हो जाय तो उसे अर्घ देकर प्रसन्न कर दिया जाय। बड़ के पैर के नीचे रात के समय इस मंत्र को आठ हजार बार जप करना हे साथ ही गुगल की धूप देना हे ।ये बहुत जल्दी सिद्ध हो जाते हे । एक बार सिद्ध होने के बाद साधक वचन लेकर अपने काम करा सकते है।   जोगिनी साधना  yogini sadhana   जोगिनी साधना एक गुप्त साधना हे। स्बयंग महादेव ने इस विद्या के बारे में बताया हे इस योगिनी महाविद्या गुप्त और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हे।इस जोगिनी पूजा साधना करके कुबेर देव धनादि पति हुई हे।इस जोगिनियो में अन्यतम सुरसुंदरी ।इस सुरसुंदरी पूजा करने से लोग प्रजा से राजा भी बन सकते हे।    सुरसुंदरी की पूजा विधि   सुरसुंदरी की पूजा के लिए एक विशेष रीति है -- जथा नित्य स्नान आदि के बाद पूजा में बैठ कर   "हों "मंत्र आचमन और सहस्त्र बार "हूं फट" मंत्र द्वारा दिग बंधन करके,मूल मंत्र में प्राणायाम ॐ ह्रां अंगुस्ठाभ्याय नम:मंत्र से करन्यास करना पड़ेगा बाद में अष्ट दल पद्म अंकन करके उसी पद्म में देवी की जीवन्यास करने के बाद सुरसुंदरी की ध्यान आरम्भ करना हे।  ईस देवी की चेहरा पूर्ण चंद्र की तरा हे।शरीर गौर वर्ण का हे,देवी उच्च मान की विचित्र आभूषण पहना हुई हे ।देवी सबको अभय प्रदान करती रहती हे।देवी की इस रूप को ध्यान करते करते देवी की पूजा करना चाहिए।देवी की मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ सूर सुन्दरी स्वाहा।।  इस मंत्र बोलते हुई पद्म फूल,धूप, दीप, नैवेद्य,गंध,चंदन और मीठा पान निवेदन करना हे।  हर दिन शमको किसीभी एक समय रातको ११ बजे की बाद ४१ दिनो तक साधना करना हे।साधना करते वक्त पूरी तरा से ब्रह्मचर्ज का पालन करना हे और निरामिष भोजन करना हे।  मंत्र को हर दिन ११ माला पद्म फूल बीज माला से जप करना हे।हर दिन ऐसा पूजा जप करने से कुछ दिनो में देवी साधक के सामने उपस्थित हो जायेगा।जिस साधक निष्ठा बान और बिस्बाशी हे देवी के ऊपर देवी उसीको ही दर्शन देती है।देवी जब दर्शन देगी तब साधक माता को फूल की माला,चंदन और सुगंधी फूल दान करके देवी बर मांग लेना हे।देवी को माता ,बहन,नही तो भतीजा किसीभी रूप में पा सकते हे।देवी को माता रूप से उपासना करने से मां तरा स्नेह ,ममता खाना खिला देना आदर , मान सम्मान, राजत्ब,अर्थ जो मांग ता है सब कुछ लेकर देती है।जिसने भी योगिनी सिद्धि किया हे उसको अतीत वर्तमान और भविष्य में होने बाली सारे घटनाएं बता देती है।देवी को सिद्ध करने के बाद किसीभी काम में कही बाधा उत्पन्न होने नही देता हे चाहे वो शत्रु बाधा हो या कही तंत्र मंत्र बाधा हो देवी हर समय निगरानी में रखती हे अपने पुत्र को ।  अगर कही साधक देवी को अपने पत्नी रूप में पाना चाहते हे तो वो भी लाभ कर सकते हे लिकिन ध्यान रहे एक बार स्त्री रूप में मिलने के बाद किसी दूसरे स्त्री के और झुका तो सबसे घातक सिद्ध होते हे जो साधक को विनाश भी कर सकती हे।इसी लिए हर काम करने से पहले सोच समझ कर जोग्य गुरुके के सान्निध्य में साधना करे ।बिना गुरु से कभी भी साधना मत करे ।    मनोहारी साधना मंत्र : ॐ ह्रिं आगछ आगच्छ स्वाहा ।। मनोहारी जोगिनी साधना के लिए उचित स्थान नदी संगलग्न निर्जण स्थान होना चाहिए ,देवी का पूजा चंदन ,अगुरुरु पद्म पुस्प या गोलब के पुस्प से करना चाहिए लगा तर एक महीना तक देवी का आराधना करने से देवी प्रकट हो जायेगा और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।    कनका बती साधना मंत्र: ॐ ह्रिं कनका बती मैथुन प्रिये आगच्छ आगच्छ स्वाहा।।  बट वृक्ष के नीचे देवी का साधना करना हे।१५ दिन लगा तार साधना करना हे १ लक्ष बार जप करने से साधक को देवी प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता हे । साधक इच्छित बर मांगे पर देवी प्रदान करते हे।देवी पूजा के लिए हर दिन नैवेद्य ,फूल,चंदन, गोलव की इत्र देवी को अर्पण करना चाहिए।    कामेश्वरि साधना  मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा।।  देवी का पूजा घर के एकात्न स्थान करना चाहिए।भोजपत्र पर गोरचन और कुम कुम से देवी का मूर्ति अंकन करके सोडश प्रचार में पूजा करने के बाद देवी को भोग अर्पण करे साथ ही घी के दिया में मधु डालके दीपक प्रज्वलित करे ऐसा ८ दिन प्रत्येक रात्रि ११ बजे के बाद देवी का १० माला मंत्र जप करे ।निशित रूप में देवी प्रसन्न होकर प्रकट होगी ।देवी को जिस रूप में पाना चाते हो उसी रूप में पास में रहेगी।अगर स्त्री रूप में देवी को मिला होगा तो अन्य स्त्री को कभी देखना भी मत नेहिती इसका परिणाम बहुत खराब होगा।  रति प्रिया साधना ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ रति प्रिये स्वाहा।।  धूप ,दीप ,गुगल, लोबांग ,भोग ,मीठा पान ,कमल की माला ,भोज पत्र में केसर देकर देवी का चित्र अंकन करके ।घर के किसी निर्जन कमरा में बैठ कर अर्ध रात्रि या १२ बजे के बाद हर दिन १० माला कमल फूल के बीज का जप करने से देवी ७ बा दिन प्रकट हो जायेगी और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।साधक जैसे चाहेगा बेइसा रूप में देवी को पा सकते हे।    पद्मिनी साधना ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।।  इस देवी का पूजा रात्रि काल में किया जाते हे।घर में किसी एकान्त स्थान देवालय में सम्पन्न कर सकते हे।देवी के लिए सुगंधी पुस्प ,इत्र, गोलाब जल,मधु मिश्रित घी का दीपक,खाने के भोग मीठा , बेसर की लड्डू,मीठा पान ये सब देकर देवी का पूजा करे ।रुद्राक्ष के माला नेहीतो मुक्ता के माले से देवी का मंत्र जप करे ।हर रोज ११माला करके जप करना हे ७ दिन लगातार जप करना हे।७ दिन के अंदर ही देवी प्रकट होकर साधक को दर्शन दे देती है और साधक को इच्छा अनुसार बर प्रदान करते हे।फिर साधक चाहे देवी को किसी रूप में अपने पास में रख सकते हे।  नटिनी साधना मंत्र: ॐ हूं फट फट नटी हुं हूं   गंगा या कही नदी के पास में एक हप्ता तक धूप चंदन भोग अर्पण करके देवी का पूजा और जप करना चाहिए।  निष्ठा के साथ एक हफ्ते तक देवी का पूजन करने से देवी प्रत्यक्ष उपस्थित होके साधक को इच्छित बर प्रदान करते हे और साधक जिस रूप में चाहेगा उसी रूप में देवी को पा सकते हे।  यक्षिणि साधना   मंत्र ॐ ऐं क्लिं श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा।  अशबत वृक्ष के पेड़ पर बेठबकर इस मंत्र को दश हजार बार जप करने से यक्षीणी सिद्ध हो जाते हे।  इसके बाद साधक का इच्छा अनुसार फल प्रदान करते हे।    पुत्र लाभ हेतु यक्षणी साधन मंत्र: ॐ ह्रिं ह्रिं ह्रां ह्रां पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।  आम की पेड़ पर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप करने से साधक को पुत्र प्राप्ति होने का सिद्धि मिलता हे।  लक्षि लाभ हेतु ॐ ऐं ह्रिं महालक्षे नम:  इस मंत्र को बट वृक्ष के ऊपर चडकर एक मन में दश हजार जप करने से महा लक्ष्मी देवी प्रसन्न होके साधक को बर प्रदान करते हे।  जय लाभ के लिए ॐ जयंग कुरु कुरु स्वाहा।  आकंद की पेड़ के नीचे बैठ कर मंत्र दश हजार बार जप करने से यक्षिण प्रसन्न होकर विजय लाभ हेतु बर प्रदान करते हे।  संकट निवारण हेतु ॐ हों नम: इस मंत्र को आकोर पेड़ की ऊपर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप ने से जितना बड़ा संकट हो न क्यूं संकट टल जाते हे। यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को राज अधिकार तुल्य सम्मान ,प्रतिपत्ति और अर्थ प्रदान करते हे।  शत्रु नाश हेतु ॐ हों क्रुं क्रुं कटु कटु ॐ क्रुं क्रुं ॐ अ:।।   इस मंत्र को आठ हजार बार जप करने से यक्षणी,भूतिनी , नागिनी, देवता भी साधक का वशीभूत हो जाते हे।इसके सिद्धि के बाद साधक का कही शत्रु नेही रहेगा सब शत्रु धंस हो जायेगा।
bhutani sadhana

प्रेत साधना(pret sadhana)





प्रेतादि साधना करने की प्रबल आकांक्षा के पीछे प्रबल कारण ही की ऐसे लोग अपने जीवन के कभी प्रेत पिशाच रहे हे।या उनकी साधना कर चुके हे अन्यथा ऐसी आकांक्षा होती ही नहीं।




शास्त्र में प्रेतों का कथाये 




किंगबदंती में प्रेतो की अनेक चमत्कार कथाय प्रचलित हे। इसमें भी कोई संशय नहीं की इनमे शक्ति का एक विशिष्ट स्तर प्रकट हो जाता हे, पंच तत्वों में स्थल तत्वों(पृथ्वी और जल) के बिलुप्त हो जाने से बाधकता नही रहती परिणामत दूरी और काल इनके लिए अवरोध नही रहते बाबजूद भी ये भविष्य को नही देख सकते। बेक्तिगत रूप से इस विषय के प्रति कोई रुचि न रहते हुई भी एक दो प्रयोग लिख रहा हु क्योंकि यह जनरुचि है और तंत्र में इस प्रकार के प्रयोग दी गई हे।इसके बाबजूद यह परामर्श अवश्य रहेगा की साहस और धीर बेक्ति को इन प्रयोगों में उतरना चाहिए।इस विद्या के जानकार बेक्ति के पास विद्या रह सके ये लुप्त न हो जाए।

शाबर पद्धति के प्रयोग से जिस भूत प्रतादि का साधन किया जाता हे उनसे अधिक शक्ति सम्पन्न एवं कम क्षतिकर ये रूप हे।ये साधना साधक को अहित नही करता हे। हा इनके प्रकट होने के समय इनके मायाजाल में भ्रमित बा भयभीत नहीं होना चाहिए।एक तरह से ये यक्षिणी के निकट जाने बाली अथवा उनके समान शक्ति बाली हे।




तंत्र शास्त्र के अनुसार विद्या




भूतिनि,कुंडल धारिनी,सिंदुरिनी, हारिनि ,नटी , अतिनटी, चोटिका, का,कुमारिका,ये नौ प्रकार भूतिनिया हे।इनमे नाम अनुसार गुण हे।इनके प्रभाव से बेक्ति को दरिद्रता,अभाव,और सामान्य कष्ट नही होते हे।इसके साथ ही ये रूतिसुख का अपूर्व आसबाद कराती है।

मंत्र: ॐ हों क्रुं क्रुं क्रुं कटु कटु ॐ अमुकं क्रुं क्रुं क्रुं ओं अ:।।



भुतिनी साधना के  नियम




इस मंत्र को द्वादशी से अरम्भ करके चतुरदशी तक अथवा किसी भी शनिवार से आरम्भ करके सात दिन में आठ हजार बार जप चम्पा के पेड़ के नीचे बैठ कर करने से जल्दी सिद्ध हो जाते हे।इस प्रयोग को केबल रात्रि काल में रुद्राक्ष के माला से जप करना चाहिए।जप करने के पहले अगले दिन भुतिनी का पूजन करना चाहिए।पूजा में शोले श्रृंगार का सामान,फूल की माला,प्रसाद,दीपक तथा गुगल की धूप देकर रात में फिर मंत्र का जप करना चाहिए।इस प्रकार पर भूतिनी प्रसन्न होकर प्रकट होते है।इसके प्रकोट होने पर गंधोदक अर्घ दे। अर्घ उस पानी को कहते हे जो हात धोने के लिए दिया जाते हे।यह जल सुगंधित द्रव्य तथा कुमकुम, गोरचना,कस्तूरी मिला पानी होना चाहिए। अर्घ नईबेद्द्य आदि अर्पित करने के बाद इसे माता,पत्नी, या बहन के रूप में मान लिया जाना चाहिए। मां रूपिणी होने पड़ यह वस्त्र,अलंकार,और भोजन की कमी नहीं रहने देती।बहन के रूप में बरन करने से यह बहुत खूबसूरत रूपवती स्त्री को लेकर देती है तथा अनेक प्रकार की रस रसायन प्रदान करती हे।जिससे बेक्ति भोगक्षम एवं युवा रहता हे।पत्नी के रूप में स्वीकार करने पड़ यह अपनी पीठ पर चढ़ाकर स्वर्गदी लोकों को घुमाती है।बहुत सुस्बादु भोजन ,स्वर्ण मुद्रा और रस रसायन प्रदान करती हे।

भूतिनि साधन करने के समय अमूकांग जगा पर जिस भूतिनी का आह्वान करनी हे उस भूतिनी का नाम लेना चाहिए।

कुंडलबती की साधना करने पर अमूक जगा पर कुंडलबती का नाम लेकर मंत्र जप करना चाहिए।ऊपर में लिखा गई विधि से साधना करने से जल्दी प्रसन्न हो जाती है। स्रिफ अर्घ में अपने कनिस्का अंगुली का रक्त देना चाहिए।

सिंदुरिणी नामक भूतिनी को साधना करने पर मूल मंत्र में अमुक जगा पर सुंदुरिनी बोलना चाहिए।पूजा की विधि विधान अन्य भूतिनी साधना जैसे किया जाएगा एक अंतर है ये भूतिनी के साधन शून्य देवालय में किया जाएगा।जप संख्या भी आठ हजार ही रहेगी किंतु यह जप गेरह दिन सम्पन्न करके बारहदीन विशेष समारम्भ पूर्वक पूजन करके अर्घदी अर्पित किया जाएगा। भूतिनी की यह स्वरूप पत्नी के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए।



हारिनी भुतिनी साधना के नियम 




हारिनी नाम की भूतनी का सिद्धि शिब मंदिर में किया जाते हे।पहले दिया हुए विधि से ये सिद्ध हो जाते हे।हरिणी भूतनी सिद्ध होने पर साधक स्त्री या प्रेमिका रूप में पा सकते हे।ये सिद्ध होने पर साधक को अन्न वस्त्र,धन धान्य की पूर्ति करती हे और स्त्री सुख देती है।




भुतिनी साधना के नियम  नटी




नटी नमक भूतनी की साधना बज्र पानी के मंदिर (इंद्र) में जाकर करनी चाहिए। उस मंदिर में नटी प्रतिमा भोजपत्र अथवा कागज पर सिंदूर से ,चमेली की कलम बनाकर लाल कनेर के फूल से करनी चाहिए।आठ हजार जप करने से ये सिद्ध हो जाते हे।नटी भूतनी प्रकट होने पर साधक वचन लेकर आपने दास बना सकते हे।साधक को अतीत वर्तमान और भविष्य के बारेमे पूछने से बता देती है।ये साधक को प्रतिदिन धन वस्त्र,भोजन लाकर देता हे।इसके दिए हुए अर्थ को खर्च कर देना ही अच्छा है।


भुतिनी साधना के नियम  महानटी साधना



भूतनी की साधना अपेक्ष्या कृत कठिन है।नदी के संगम स्थल पर जाकर आठ हजार बार मंत्र जप करके रात्रि में पूजन करना चाहिए।इसके साधना अर्ध रात्रि में  करना उत्तम हे।महानटी प्रकट होने पर साधक उसे पत्नी रूप में स्वीकार करे और उससे बचन ले।एक बार सिद्ध हो जाने पर हर दिन रात्रि काल में साधक के पास उपस्थित हो जाते हे।



भुतिनी साधना के नियम  चेटी साधना




चेटी नामक भूतनी सिद्ध होने पर गृहदाशी का काम करती हे।अपने घरकी द्वार पर बैठ कर इसके मंत्र का आठ हजार बार जप तीन दिन में पूरा करे।ऐसा लगा तार साथ दिन पूजा करने से भूतनी सिद्ध हो जाते हे।और ये दासी के रूप में रहने के वचन लिया जाते हे।ये सिद्ध होने पर घर परिवार या अपने खेत का सारा काम कर देती हे।ऐसा शास्त्र में कहा गया हे।



कामेशरि भूतिनी साधना



कामेशरि भूतिनी साधना देवी मंदिर में की जाती हे। अच्छे होगा ये अगर किसी काली मंदिर में किया जाय।मछली और मांस से इसका पूजा करे रोज रात्रि में एक हजार बार मंत्र जप करना हे।आठ हजार बार जप करने से ये प्रकट हो जाती है अगर ये प्रकट नही होता हे तब तक इसका पूजा चालू रखना हे और नियमित मंत्र का जप करते रहना हे।प्रकट होने पर स्त्री के रूप में रहने के लिए वचन लिया जाते हे।पत्नी के रूप में मिलने पर धन मकान सुख सम्मान आदि प्रदान करती हे।

ध्यान रहे भूतिनी सिद्ध हो जाने पर ये बात और किसी से न कहे अन्यथा इसका परिणाम में चला जा सकते हे।



भुतिनी साधना के नियम  डाकिनी सिद्धी 



प्रकिती भेद इनके नाम भेद हो जाते हे। भूतिनी,प्रेतनी,पिशाच , डाकिनी, शाकिनी, लाकिनी,हाकिनी ये अधिक उग्र और शक्ति सम्पन्न होते है।इनमे चार की योगिनी पूजन में भी गणना होती हे।यह तमोगुणी स्तर हे,राजसी स्तर में यक्षिणी,किन्नरी,अप्सरा,नायिका,नटी,योगिनी, नागिनी,की गणना होती हे।ये सब भूतनी से उग्र साधना होती हे।ये जैसा की नाम है बेक्ति का रक्षा कवोच बना रहता हे,शत्रु का विनाश करने में यह अमोघ मानी जाती है।

मंत्र:मन्त्र- डं डां डिं डीं  द्रों धुं धुं चालिनि मालिमी डाकिनि सवे- सिद्धि प्रयच्छ हुं फट स्वाहा ।।

इस मंत्र का न्यास विनियोग दी नही हे।सेमल पेड़ पर चड़कर हाथ उठाए हुई जप करे।शास्त्र में इन्हे सिद्ध होने में लंबा समय लगता है बताया हे पर अनेक बार निर्दिस्ट समय से पहले ही सिद्ध हो जाता हे।



भूत प्रेत सिद्धि करने का उपाय और मंत्र




मंत्र:मंत्र-ऑ हों क्रों क्रों क्रुं फट फट क्रट क्रट ह्रिं ह्रिं भूत-प्रेत भूतिनी प्रेतिनी आगच्छ आगच्छ ह्रिं ह्रिं ठ: ठ: ।।

विधि इसकी साधना करने बाला बेक्ति को साधना काल में गंध कुमकुम मिला ,चमीली के पूल या इत्र से सुवासित जल पास में रखना चाहिए जिससे कभी यह प्रकट हो जाय तो उसे अर्घ देकर प्रसन्न कर दिया जाय। बड़ के पैर के नीचे रात के समय इस मंत्र को आठ हजार बार जप करना हे साथ ही गुगल की धूप देना हे ।ये बहुत जल्दी सिद्ध हो जाते हे । एक बार सिद्ध होने के बाद साधक वचन लेकर अपने काम करा सकते है।

 जोगिनी साधना

जोगिनी साधना एक गुप्त साधना हे। स्बयंग महादेव ने इस विद्या के बारे में बताया हे इस योगिनी महाविद्या गुप्त और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हे।इस जोगिनी पूजा साधना करके कुबेर देव धनादि पति हुई हे।इस जोगिनियो में अन्यतम सुरसुंदरी ।इस सुरसुंदरी पूजा करने से लोग प्रजा से राजा भी बन सकते हे।    सुरसुंदरी की पूजा विधि   सुरसुंदरी की पूजा के लिए एक विशेष रीति है -- जथा नित्य स्नान आदि के बाद पूजा में बैठ कर   "हों "मंत्र आचमन और सहस्त्र बार "हूं फट" मंत्र द्वारा दिग बंधन करके,मूल मंत्र में प्राणायाम ॐ ह्रां अंगुस्ठाभ्याय नम:मंत्र से करन्यास करना पड़ेगा बाद में अष्ट दल पद्म अंकन करके उसी पद्म में देवी की जीवन्यास करने के बाद सुरसुंदरी की ध्यान आरम्भ करना हे।  ईस देवी की चेहरा पूर्ण चंद्र की तरा हे।शरीर गौर वर्ण का हे,देवी उच्च मान की विचित्र आभूषण पहना हुई हे ।देवी सबको अभय प्रदान करती रहती हे।देवी की इस रूप को ध्यान करते करते देवी की पूजा करना चाहिए।देवी की मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ सूर सुन्दरी स्वाहा।।  इस मंत्र बोलते हुई पद्म फूल,धूप, दीप, नैवेद्य,गंध,चंदन और मीठा पान निवेदन करना हे।  हर दिन शमको किसीभी एक समय रातको ११ बजे की बाद ४१ दिनो तक साधना करना हे।साधना करते वक्त पूरी तरा से ब्रह्मचर्ज का पालन करना हे और निरामिष भोजन करना हे।  मंत्र को हर दिन ११ माला पद्म फूल बीज माला से जप करना हे।हर दिन ऐसा पूजा जप करने से कुछ दिनो में देवी साधक के सामने उपस्थित हो जायेगा।जिस साधक निष्ठा बान और बिस्बाशी हे देवी के ऊपर देवी उसीको ही दर्शन देती है।देवी जब दर्शन देगी तब साधक माता को फूल की माला,चंदन और सुगंधी फूल दान करके देवी बर मांग लेना हे।देवी को माता ,बहन,नही तो भतीजा किसीभी रूप में पा सकते हे।देवी को माता रूप से उपासना करने से मां तरा स्नेह ,ममता खाना खिला देना आदर , मान सम्मान, राजत्ब,अर्थ जो मांग ता है सब कुछ लेकर देती है।जिसने भी योगिनी सिद्धि किया हे उसको अतीत वर्तमान और भविष्य में होने बाली सारे घटनाएं बता देती है।देवी को सिद्ध करने के बाद किसीभी काम में कही बाधा उत्पन्न होने नही देता हे चाहे वो शत्रु बाधा हो या कही तंत्र मंत्र बाधा हो देवी हर समय निगरानी में रखती हे अपने पुत्र को ।  अगर कही साधक देवी को अपने पत्नी रूप में पाना चाहते हे तो वो भी लाभ कर सकते हे लिकिन ध्यान रहे एक बार स्त्री रूप में मिलने के बाद किसी दूसरे स्त्री के और झुका तो सबसे घातक सिद्ध होते हे जो साधक को विनाश भी कर सकती हे।इसी लिए हर काम करने से पहले सोच समझ कर जोग्य गुरुके के सान्निध्य में साधना करे ।बिना गुरु से कभी भी साधना मत करे ।    मनोहारी साधना मंत्र : ॐ ह्रिं आगछ आगच्छ स्वाहा ।। मनोहारी जोगिनी साधना के लिए उचित स्थान नदी संगलग्न निर्जण स्थान होना चाहिए ,देवी का पूजा चंदन ,अगुरुरु पद्म पुस्प या गोलब के पुस्प से करना चाहिए लगा तर एक महीना तक देवी का आराधना करने से देवी प्रकट हो जायेगा और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।    कनका बती साधना मंत्र: ॐ ह्रिं कनका बती मैथुन प्रिये आगच्छ आगच्छ स्वाहा।।  बट वृक्ष के नीचे देवी का साधना करना हे।१५ दिन लगा तार साधना करना हे १ लक्ष बार जप करने से साधक को देवी प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता हे । साधक इच्छित बर मांगे पर देवी प्रदान करते हे।देवी पूजा के लिए हर दिन नैवेद्य ,फूल,चंदन, गोलव की इत्र देवी को अर्पण करना चाहिए।    कामेश्वरि साधना  मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा।।  देवी का पूजा घर के एकात्न स्थान करना चाहिए।भोजपत्र पर गोरचन और कुम कुम से देवी का मूर्ति अंकन करके सोडश प्रचार में पूजा करने के बाद देवी को भोग अर्पण करे साथ ही घी के दिया में मधु डालके दीपक प्रज्वलित करे ऐसा ८ दिन प्रत्येक रात्रि ११ बजे के बाद देवी का १० माला मंत्र जप करे ।निशित रूप में देवी प्रसन्न होकर प्रकट होगी ।देवी को जिस रूप में पाना चाते हो उसी रूप में पास में रहेगी।अगर स्त्री रूप में देवी को मिला होगा तो अन्य स्त्री को कभी देखना भी मत नेहिती इसका परिणाम बहुत खराब होगा।  रति प्रिया साधना ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ रति प्रिये स्वाहा।।  धूप ,दीप ,गुगल, लोबांग ,भोग ,मीठा पान ,कमल की माला ,भोज पत्र में केसर देकर देवी का चित्र अंकन करके ।घर के किसी निर्जन कमरा में बैठ कर अर्ध रात्रि या १२ बजे के बाद हर दिन १० माला कमल फूल के बीज का जप करने से देवी ७ बा दिन प्रकट हो जायेगी और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।साधक जैसे चाहेगा बेइसा रूप में देवी को पा सकते हे।    पद्मिनी साधना ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।।  इस देवी का पूजा रात्रि काल में किया जाते हे।घर में किसी एकान्त स्थान देवालय में सम्पन्न कर सकते हे।देवी के लिए सुगंधी पुस्प ,इत्र, गोलाब जल,मधु मिश्रित घी का दीपक,खाने के भोग मीठा , बेसर की लड्डू,मीठा पान ये सब देकर देवी का पूजा करे ।रुद्राक्ष के माला नेहीतो मुक्ता के माले से देवी का मंत्र जप करे ।हर रोज ११माला करके जप करना हे ७ दिन लगातार जप करना हे।७ दिन के अंदर ही देवी प्रकट होकर साधक को दर्शन दे देती है और साधक को इच्छा अनुसार बर प्रदान करते हे।फिर साधक चाहे देवी को किसी रूप में अपने पास में रख सकते हे।  नटिनी साधना मंत्र: ॐ हूं फट फट नटी हुं हूं   गंगा या कही नदी के पास में एक हप्ता तक धूप चंदन भोग अर्पण करके देवी का पूजा और जप करना चाहिए।  निष्ठा के साथ एक हफ्ते तक देवी का पूजन करने से देवी प्रत्यक्ष उपस्थित होके साधक को इच्छित बर प्रदान करते हे और साधक जिस रूप में चाहेगा उसी रूप में देवी को पा सकते हे।  यक्षिणि साधना   मंत्र ॐ ऐं क्लिं श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा।  अशबत वृक्ष के पेड़ पर बेठबकर इस मंत्र को दश हजार बार जप करने से यक्षीणी सिद्ध हो जाते हे।  इसके बाद साधक का इच्छा अनुसार फल प्रदान करते हे।    पुत्र लाभ हेतु यक्षणी साधन मंत्र: ॐ ह्रिं ह्रिं ह्रां ह्रां पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।  आम की पेड़ पर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप करने से साधक को पुत्र प्राप्ति होने का सिद्धि मिलता हे।  लक्षि लाभ हेतु ॐ ऐं ह्रिं महालक्षे नम:  इस मंत्र को बट वृक्ष के ऊपर चडकर एक मन में दश हजार जप करने से महा लक्ष्मी देवी प्रसन्न होके साधक को बर प्रदान करते हे।  जय लाभ के लिए ॐ जयंग कुरु कुरु स्वाहा।  आकंद की पेड़ के नीचे बैठ कर मंत्र दश हजार बार जप करने से यक्षिण प्रसन्न होकर विजय लाभ हेतु बर प्रदान करते हे।  संकट निवारण हेतु ॐ हों नम: इस मंत्र को आकोर पेड़ की ऊपर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप ने से जितना बड़ा संकट हो न क्यूं संकट टल जाते हे। यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को राज अधिकार तुल्य सम्मान ,प्रतिपत्ति और अर्थ प्रदान करते हे।  शत्रु नाश हेतु ॐ हों क्रुं क्रुं कटु कटु ॐ क्रुं क्रुं ॐ अ:।।   इस मंत्र को आठ हजार बार जप करने से यक्षणी,भूतिनी , नागिनी, देवता भी साधक का वशीभूत हो जाते हे।इसके सिद्धि के बाद साधक का कही शत्रु नेही रहेगा सब शत्रु धंस हो जायेगा।
yogini sadhana


जोगिनी साधना एक गुप्त साधना हे। स्बयंग महादेव ने इस विद्या के बारे में बताया हे इस योगिनी महाविद्या गुप्त और देवताओं के लिए भी दुर्लभ हे।इस जोगिनी पूजा साधना करके कुबेर देव धनादि पति हुई हे।इस जोगिनियो में अन्यतम सुरसुंदरी ।इस सुरसुंदरी पूजा करने से लोग प्रजा से राजा भी बन सकते हे।




सुरसुंदरी की पूजा विधि(sursundari ki puja bidhi)




सुरसुंदरी की पूजा के लिए एक विशेष रीति है -- जथा नित्य स्नान आदि के बाद पूजा में बैठ कर 

"हों "मंत्र आचमन और सहस्त्र बार "हूं फट" मंत्र द्वारा दिग बंधन करके,मूल मंत्र में प्राणायाम ॐ ह्रां अंगुस्ठाभ्याय नम:मंत्र से करन्यास करना पड़ेगा बाद में अष्ट दल पद्म अंकन करके उसी पद्म में देवी की जीवन्यास करने के बाद सुरसुंदरी की ध्यान आरम्भ करना हे।

ईस देवी की चेहरा पूर्ण चंद्र की तरा हे।शरीर गौर वर्ण का हे,देवी उच्च मान की विचित्र आभूषण पहना हुई हे ।देवी सबको अभय प्रदान करती रहती हे।देवी की इस रूप को ध्यान करते करते देवी की पूजा करना चाहिए।देवी की मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ सूर सुन्दरी स्वाहा।।

इस मंत्र बोलते हुई पद्म फूल,धूप, दीप, नैवेद्य,गंध,चंदन और मीठा पान निवेदन करना हे।

हर दिन शमको किसीभी एक समय रातको ११ बजे की बाद ४१ दिनो तक साधना करना हे।साधना करते वक्त पूरी तरा से ब्रह्मचर्ज का पालन करना हे और निरामिष भोजन करना हे।

मंत्र को हर दिन ११ माला पद्म फूल बीज माला से जप करना हे।हर दिन ऐसा पूजा जप करने से कुछ दिनो में देवी साधक के सामने उपस्थित हो जायेगा।जिस साधक निष्ठा बान और बिस्बाशी हे देवी के ऊपर देवी उसीको ही दर्शन देती है।देवी जब दर्शन देगी तब साधक माता को फूल की माला,चंदन और सुगंधी फूल दान करके देवी बर मांग लेना हे।देवी को माता ,बहन,नही तो भतीजा किसीभी रूप में पा सकते हे।देवी को माता रूप से उपासना करने से मां तरा स्नेह ,ममता खाना खिला देना आदर , मान सम्मान, राजत्ब,अर्थ जो मांग ता है सब कुछ लेकर देती है।जिसने भी योगिनी सिद्धि किया हे उसको अतीत वर्तमान और भविष्य में होने बाली सारे घटनाएं बता देती है।देवी को सिद्ध करने के बाद किसीभी काम में कही बाधा उत्पन्न होने नही देता हे चाहे वो शत्रु बाधा हो या कही तंत्र मंत्र बाधा हो देवी हर समय निगरानी में रखती हे अपने पुत्र को ।

अगर कही साधक देवी को अपने पत्नी रूप में पाना चाहते हे तो वो भी लाभ कर सकते हे लिकिन ध्यान रहे एक बार स्त्री रूप में मिलने के बाद किसी दूसरे स्त्री के और झुका तो सबसे घातक सिद्ध होते हे जो साधक को विनाश भी कर सकती हे।इसी लिए हर काम करने से पहले सोच समझ कर जोग्य गुरुके के सान्निध्य में साधना करे ।बिना गुरु से कभी भी साधना मत करे ।



मनोहारी साधना



मंत्र : ॐ ह्रिं आगछ आगच्छ स्वाहा ।। मनोहारी जोगिनी साधना के लिए उचित स्थान नदी संगलग्न निर्जण स्थान होना चाहिए ,देवी का पूजा चंदन ,अगुरुरु पद्म पुस्प या गोलब के पुस्प से करना चाहिए लगा तर एक महीना तक देवी का आराधना करने से देवी प्रकट हो जायेगा और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।



कनका बती साधना


मंत्र: ॐ ह्रिं कनका बती मैथुन प्रिये आगच्छ आगच्छ स्वाहा।।

बट वृक्ष के नीचे देवी का साधना करना हे।१५ दिन लगा तार साधना करना हे १ लक्ष बार जप करने से साधक को देवी प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देता हे । साधक इच्छित बर मांगे पर देवी प्रदान करते हे।देवी पूजा के लिए हर दिन नैवेद्य ,फूल,चंदन, गोलव की इत्र देवी को अर्पण करना चाहिए।



कामेश्वरि साधना



मंत्र : ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ कामेश्वरि स्वाहा।।

देवी का पूजा घर के एकात्न स्थान करना चाहिए।भोजपत्र पर गोरचन और कुम कुम से देवी का मूर्ति अंकन करके सोडश प्रचार में पूजा करने के बाद देवी को भोग अर्पण करे साथ ही घी के दिया में मधु डालके दीपक प्रज्वलित करे ऐसा ८ दिन प्रत्येक रात्रि ११ बजे के बाद देवी का १० माला मंत्र जप करे ।निशित रूप में देवी प्रसन्न होकर प्रकट होगी ।देवी को जिस रूप में पाना चाते हो उसी रूप में पास में रहेगी।अगर स्त्री रूप में देवी को मिला होगा तो अन्य स्त्री को कभी देखना भी मत नेहिती इसका परिणाम बहुत खराब होगा।



रति प्रिया साधना



ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ रति प्रिये स्वाहा।।

धूप ,दीप ,गुगल, लोबांग ,भोग ,मीठा पान ,कमल की माला ,भोज पत्र में केसर देकर देवी का चित्र अंकन करके ।घर के किसी निर्जन कमरा में बैठ कर अर्ध रात्रि या १२ बजे के बाद हर दिन १० माला कमल फूल के बीज का जप करने से देवी ७ बा दिन प्रकट हो जायेगी और साधक को इच्छित बर प्रदान करेगी।साधक जैसे चाहेगा बेइसा रूप में देवी को पा सकते हे।



पद्मिनी साधना



ॐ ह्रिं आगच्छ आगच्छ पद्मिनी स्वाहा।।

इस देवी का पूजा रात्रि काल में किया जाते हे।घर में किसी एकान्त स्थान देवालय में सम्पन्न कर सकते हे।देवी के लिए सुगंधी पुस्प ,इत्र, गोलाब जल,मधु मिश्रित घी का दीपक,खाने के भोग मीठा , बेसर की लड्डू,मीठा पान ये सब देकर देवी का पूजा करे ।रुद्राक्ष के माला नेहीतो मुक्ता के माले से देवी का मंत्र जप करे ।हर रोज ११माला करके जप करना हे ७ दिन लगातार जप करना हे।७ दिन के अंदर ही देवी प्रकट होकर साधक को दर्शन दे देती है और साधक को इच्छा अनुसार बर प्रदान करते हे।फिर साधक चाहे देवी को किसी रूप में अपने पास में रख सकते हे।



नटिनी साधना


मंत्र: ॐ हूं फट फट नटी हुं हूं 

गंगा या कही नदी के पास में एक हप्ता तक धूप चंदन भोग अर्पण करके देवी का पूजा और जप करना चाहिए।

निष्ठा के साथ एक हफ्ते तक देवी का पूजन करने से देवी प्रत्यक्ष उपस्थित होके साधक को इच्छित बर प्रदान करते हे और साधक जिस रूप में चाहेगा उसी रूप में देवी को पा सकते हे।



यक्षिणि साधना



मंत्र ॐ ऐं क्लिं श्रीं धनं कुरु कुरु स्वाहा।

अशबत वृक्ष के पेड़ पर बेठबकर इस मंत्र को दश हजार बार जप करने से यक्षीणी सिद्ध हो जाते हे।

इसके बाद साधक का इच्छा अनुसार फल प्रदान करते हे।


पुत्र लाभ हेतु यक्षणी साधन



मंत्र: ॐ ह्रिं ह्रिं ह्रां ह्रां पुत्रं कुरु कुरु स्वाहा।

आम की पेड़ पर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप करने से साधक को पुत्र प्राप्ति होने का सिद्धि मिलता हे।


लक्षि लाभ हेतु



ॐ ऐं ह्रिं महालक्षे नम:

इस मंत्र को बट वृक्ष के ऊपर चडकर एक मन में दश हजार जप करने से महा लक्ष्मी देवी प्रसन्न होके साधक को बर प्रदान करते हे।


जय लाभ के लिए


ॐ जयंग कुरु कुरु स्वाहा।

आकंद की पेड़ के नीचे बैठ कर मंत्र दश हजार बार जप करने से यक्षिण प्रसन्न होकर विजय लाभ हेतु बर प्रदान करते हे।



संकट निवारण हेतु



ॐ हों नम: इस मंत्र को आकोर पेड़ की ऊपर बैठ कर दश हजार बार मंत्र जप ने से जितना बड़ा संकट हो न क्यूं संकट टल जाते हे। यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को राज अधिकार तुल्य सम्मान ,प्रतिपत्ति और अर्थ प्रदान करते हे।


शत्रु नाश हेतु



ॐ हों क्रुं क्रुं कटु कटु ॐ क्रुं क्रुं ॐ अ:।।

इस मंत्र को आठ हजार बार जप करने से यक्षणी,भूतिनी , नागिनी, देवता भी साधक का वशीभूत हो जाते हे।इसके सिद्धि के बाद साधक का कही शत्रु नेही रहेगा सब शत्रु धंस हो जायेगा।




बिशेस बाते साधना का 




जिस मंत्र का जितना संखक जप बोलै गया हे उतनी जप से साधना में सिद्धि प्राप्ति होता हे। सब साधना में गुरु की महिमा अतुलनीय बिना'गुरु की साधना प्राय निष्फल हो जाते हे अथप गुरुकी मार्ग दर्शन में साधना करे। ॐ नाम: शिवाय 

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