Gara hui khajana nikal neka tarika || गढ़ा हुई खजाना निकल नेका तरीका

Gara hui khajana nikal neka tarika || गढ़ा हुई खजाना निकल नेका तरीका

गुप्त धन निकल नेका विधि और उपाय।(gupta dhan nikal neka bidhi or upay)





    पृथ्वी का एक नाम “वसुन्धरा' भी है । वसु का अर्थ है 'धन' और घरा का भर्थ है 'घारण करने वाली' । अतः पृथ्वी में बहुत स्थानों पर धन गड़ा हुआ है । पूर्वाचार्यों ने ऐसे गड़े हुए धन को प्राप्त करने के लिये भगवान शंकर से प्रार्थना को थी और उनकी कृपा से ही इस विषय का प्रकाश भगवान शंकर ने दिया ।



    गुप्त धन की संकेत मिलना





    हम देखते हैं कि कई लोगों को स्वप्न में यह सुचना मिल जाती है कि “अमुक स्नान पर धन है' और वे उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न आरम्भ कर देते हैं; किन्तु उसके निकालने की विधि का पूराज्ञान न होने से वे संकट में पड़ जाते हैं। धन तो दूर रहा, अपना स्वयं का बहुत-सा नुकसान कर बैठते हैं और कभी-कभी तो प्राणों से भी हाथ धोने पड़ते हैं । इसलिए जिन सज्जनों को ऐसा आभास हो वे इस विधि से लाभ उठाएं । धन की जरूरत हर किसीको होती हे।ये गुप्त धन या खजाना निकल ने के लिए लोग बहुत भटक ता हे लिकिन निकल नेही पाते हे ।गुप्त धन निकल नेका उपाय या कहापर छुपा हुए हे देखने के विधि या विद्या अभी प्राय लुप्त हो गई।ये विद्या सिर्फ कुछ सीमित गुरूके पास में हे।ऐसा गुरु भी मिलना आजकल मुश्किल हो गई,जो साधारण लोगों तक इस विद्या का उपयोग हो सके। ईस खजाना का रहस्य बहुत ही गुप्त हे,प्राचीन काल में गुरु शिष्य के परम्परा में इस विद्या को गुरु ने अपने शिष्य को दे रहा था।जमीन से खजाना उठाने के चक्कर में बहुत लोग अपने जान भी खो चुका हे ऐसा भी बहुत इतिहास हे।खजाना स्बयंग लक्षी होती हे और ईस लक्षी को प्राप्त करना इतना आसान नहीं हे।जो कही अच्छे विचार धारा के लोग होते हे ,अच्छे कर्म में ईस पैसा का उपयोग करेंगे या दान धर्म आदि में इसका उपयोग करेंगे जादा तर ऐसा बेक्ती को ही खजाना दिखाई देता हे या मिलता हे। गढ़ा हुई धन एक माया जाल में बंध होता हे जो साधारण लोग इसको हर समोय देख नही पाते हे।ये सबको माया दिखाते हे और चुपके रहता हे।साधारण लोग जिसका नसीब में होता हे पूर्व जन्म की फल तो उसको बहुत आसानी से मिल जाते हे,नहीतो ये किसिका नजर में आसानी से नेही आते हे।




    कीमीयागीरी (सोना बनाना) और गड़े धन का मोह बहुत भयंकर होता है। जिन लोगों के यह लग जाता है उनका आराम हराम हो जाता है। यह लोभ न जाने कितना घुमाता है, कितना धन खबचं कराता है। अनेक लोग शान्त घर में इस प्रकार का लोभलोष्ठ फेंक कर अशान्ति उत्पन्न कर देते हैं। तुम्हारे घर में माया दब रही है--यह एक वाक्य हमारे मन में छूपे लोभ--पिशाच को जगा देता है और फिर प्रारंभ होता है--यातना का दौर जिसे भोगकर भी हम समझ नहीं पाते, उबते नहीं, पछताते भी नहीं ।



    गुप्त धन की आकांखा 




    इसमें कोई सन्देह नहीं कि पदार्थ उतना ही है और इसी धरती माता के पास है। हमारे पूर्व पुरुषों ने जितना संचित किया वह यहीं छोड़ गए। राजा महाराजे, सेठ-सामन्त अपना धन इसी धरती माता को सौंप गए वह कहाँ है--यह जान लेना कठिन है। जहाँ अधिक मात्रा में धन रखा गया, उसका सांकेतिक भाषा में तास्रपत्र पर विवरण लिखाकर सुरक्षित रख दिया गया इनको बीजक कहते हैं। इस अपार द्रव्य को रखने का उनका तरीका भी विचित्र था। एक बीजक में लिखा गया था--अमुक किले की उत्तर दिशा वाली बुजें की छाँह अक्षय तृतीया के दिन मध्याह्व में जहाँ पड़ती है वहाँ इतना द्रव्य रखा गया है तो दूसरे बीजक में लिखा गया--'काया काची मस्तक साँचा' जिसका अर्थ होता था--अमुक स्थान पर प्रात:काल सूर्योदय के समय (मकर संक्रान्ति के दिन) खड़े होने पर मस्तक-छाँह जिस दीवार पर पड़ती है उसके आगे मनुष्य की दूरी पर खोदने से धनागार का द्वार है।




    गुप्त धन की जगा





    ऐसे नगर भी, बस्तियाँ भी मिल जायेंगी जो किसी जमाने में सम्पन्न एवं विकसित नगर थे। पुराने जमाने के मोटी तह के मिट्टी के बतंन लम्बे चौड़े क्षेत्र में बिखरे पड़े हैं, जिस वक्‍त ने उन पर धूल का टीला चढ़ा दिया था वही वक्‍त उस धूल के कण-कण करके उड़ाता जा रहा है। वहीं आज भी अनेक लोगों को चाँदी या सोने के सिक्के मिल जाते हैं। कई जगह बनजारों का रखा पिपुल धन बहुत सुरक्षित रूप में कुओं या बावड़ी में रखा हुआ बताते हैं। पेड़ों की जड़ में किसी देवता की मूर्ति स्थापित किये गए पुराने चंबूतरे में या ऐसे ही किसी अन्य स्थान में रखी हमारे पूर्वजों की सम्पदा हमारी प्रतीक्षा कर रही है।


    इस माया का भी विचित्र स्वभाव है। एक बार एक व्यक्ति अपने मकान के सामने गड़े धन को खोद रहा था । घड़े के ऊपर करी रखी हुई थी । करी में रखे हुए रुपये तो उसने जेब में रख लिए किन्तु जैसे ही घड़े को निकालने लगा कि किसी के आने की आहट सुनकर रुक गया । दूर से आते आदमी को देख उसने मिट्टी से बूर दिया । अगले दिन जब खोदने लगा तो घड़ा आगे खिसकने लगा । वह खोदता गया और घड़ा खिसकता गया । आज पता नहीं वह किस तरफ कितना खिसक चुका है। द दूसरा किस्सा है तीरथराम का । गर्मी की दोपहर में वह तालाब में हाथ-पाँव धो रहा था कि उसे रुपये हाथ में आ गए। दो तीन बार हाथ में आयें उनको जेब में रख लिया किन्तु जब आते ही गए तो उसने उनको निकालकर ढेर लगाना शुरू कर दिया । वह उन्हें निकालने में मशगुल था कि इतनी ही देर में एक अन्य व्यक्ति वहाँ आ गया । उसने पूछा क्या कर रहा है इन ढीकरियों का क्या करेगा ? और उसने रुपयों का जो ढेर इकट्ठा किया था वह ठीकरी बन चुका था । उसने ठीकरियों को वापस तालाब के हवाले कर दिया। वे रुपये जो उसकी जेब में थे, इस घटना की स्मृति के रूप में आज भी उसके पास हैं ।


    एक कस्बे में एक पुरानी हवेली है। उसके बीजक में लिखा है : “कुएँ के ढाणे में पचास हजार मुहरें हैं ।' वहाँ कुएं के ढाणें को कइयों ने खोदा, पर कुछ नहीं मिला । एक दिन हवेली की छत पर बैठा एक आदमी पिछवाड़े में देख रहा था । वहाँ एक नकली छोटा-सा ढाणा बना हुआ था। वह सोचने लगा यही वह ढाणा है। इतनी ही देर में उसकी निगाह सीढ़ियों की तरफ गई। देखा एक विशाल भुजंग सीढ़ियों में चढ़ता हुआ ऊपर आ रहा है। उसे देख वह भयभीत हो गया । उससे हाथ जोड़ माफी माँगते हुए कहा--महाराज ! इसमें से एक भी मुहर नहीं चाहिए। मुझे माफ कर दीजिए, आयन्दा इधर देखूँगा भी नहीं । कई बार इस प्रकार प्रार्थना करने पर वहू वापस नीचे उतरा ।


    एक रात सजना राम घर से अपने खेत में जा रहा था रास्ते में एक घड़ा पड़ा हुआ था। उसने सोचा कोई चोर चुराकर लाया है और आने की आहट सुनकर भाग गया है। हो सकता है, इधर-उधर छुपा हो और मैं उठाकर ले जाऊँ तो अकेला देखकर मुझ पर हमला कर दे। चुपचाप वह घर आता है और अपने भाई को सारी बात बताकर साथ ले जाता है। वापस उस जगह आता है तो न घड़ा मिलता है, न किसी आदमी के पैरों के चिह्न मिलते हैं ।


    गोवा से एक व्यक्ति आता है, वह कहता है एक अत्यन्त प्रति- छिठित व्यक्ति के घर में द्रव्य का पूरा मकान गड़ा हुआ है। उसे बरामद करने के लिए एक तांत्रिक को लाया गया। उसने अपना पूजा-पाठ प्रारम्भ कर दिया । तीसरे दिन वह अपने स्थान से दस फीट ऊपर उठा और नीचे गिरा, गिरते ही उसके शरीर के चिथड़े उड़ गए। इसके बाद दूसरे व्यवित को लाया गया । उसने कहा--“मैं दिखा सकता हूं दिला - नहीं सकता ।'' उसने अभिमन्त्रित उड़द फ़ेंके । थोड़ी देर में एक सफेद सर्प आया, उसे लकड़ी से उठाकर उस जगह को बजाया । वह स्थान ऐसे बजा जैसे वह कोई बड़ा कमरा हो।


    धनस्थान-विचार
    धनस्थान जानने की इच्छा वाले व्यक्ति को चाहिए. कि वह पहले अपने उत्तम शक्‌न, उत्तम तिथि, नक्षत्र, वार, योग आदि देखकर यह. कार्य आरम्भ करे। पृथ्वी, जल और आकाश इन तीनों स्थानों में धन के भण्डार हैं । वृक्ष, लता, गौ, मूग, कीड़े एवं अन्य जन्तुओं के द्वारा धनस्थान का ज्ञान होता है । जहाँ धन का भण्डार होता है वहाँ कुछ देवी तत्त्व विद्यमान रहते हैं जिनमें सर्प, भूत, प्रेत
    आदि भी होते हैं । पुष्प, काँटे अथवा विशेष:प्रकार की झाड़ियों से भी धनस्थान का ज्ञान होता है । इस ज्ञान के लिए कुछ अंजन-प्रयोग, धन खोदने और निकालने की विधि तथा. आनेवाले बिघ्नो को दूर करने के उपाय समझकर ही यह कार्य करना चाहिए ।
    सहायक
    इस कार्य, में सहायता करने वाले व्यक्ति प्रामाणिक, और धार्मिक सात, पाँच अथवा तीन होने चाहिएं । सहायक तथा मन्त्रज्ञ की सहायता के बिना यह कार्य न करें । जो व्यक्ति सहायक हों वे दयालु, अहिंसिक निरभिमान, बलवान्‌, ईर्ष्या न करने वाले, पवित्र, सत्यवादी, आस्तिक तथा उत्तम स्वभाव वाले हों ।




    गुप्त धन उठाने का शुभ तिथि 





    इस कार्य को आरम्भ करने के लिए जाते समय मार्ग में बछड़े सहित गो, मदिरा, माँस, गो रोचन, दही, चन्दन, जलतो हुई धूए से रहित अग्नि, सौभाग्यंवती स्त्री, स्वेत वस्त्र, स्वेत पृष्प, दूध, घूत, कुंआरा बालक, गोमय, हाथी, 'घोड़ा, ध्वज, बंसी-नगाड़े के शब्द, मोर की आवाज तथा पानी का घड़ा भरकर लाती हुई स्त्री उत्तम शकुन माने गए हैं ।



    गुप्त धन उठाने का अशुभ  तिथि





    सिरमुंड्या हुआ संन्यांसी, नंगा मनुष्य, हीन जाति का व्यक्ति, खरगोश, कौआ, सर्प, रोगी, दुखो आदि यदि रास्ते में सामने आए, तो उसे अपशकुन माना है ।




    गुप्त धन उठाने का शुभ दिन





    आर्द्, पुष्य, पुनवेंसु, उत्तरा फात्गुनी, उत्तरा भाद्रपद, अनुराधा, ज्येष्ठा , श्रवण, पूर्वा भाद्रपद, अश्विनी, रेवती और रोहिणी ये नक्षत्र, मंगल, सूर्य तथा शनि को छोड़कर अन्य वार, व्यतिपात, वैधृत और क्षयतिथि के अतिरिक्त उत्तम तिथियाँ, आषाढ़ से कार्तिक तथा चातुर्मास का त्याग करके शेष महोनों में यह कार्य करना चाहिए ।




    गुप्त धन की रहने  का स्थान





    नदी, तालाब, कुआँ, बावड़ी और समूद्र में धन रहता है । यह जलस्थानगत धन कहलाता है।विष्णु, शिव, देवी अथवा अन्य देवस्थान, गाँव का मध्य भाग, गांव की. सीमा, . ब्राह्मण तथा राजा ठाकुर का घर, धनाढ्य लोगों के मकान में, गाँव के चौराहे पर, मकान के पिछले भाग में, पशु बाँधने के स्थान में, पुराने विशाल वृक्ष के मूल में, शमशान में ,धान की कोठी में, ऊजड़ मकान में तथा किले के कोने में धन रहता है । यह भूस्थान- गत घन कहलाता है । पर्वत के शिखर आदि, गुफा, गाँव के दरवाजे, मन्दिर के शिखर आदि स्थानों में धन रहने पर वह आकाश आदि धन कहलाता है ।
    स्थान-परिचय--चातुर्मास में प्रायः सर्वत्र मटमैला पानी रहता है किन्तु जहाँ जलस्थान में धन रहता है वहाँ का पानी निर्मल रहता है । जहाँ ठण्ड के दिनों में गरम पानी हो और गरमी में ठण्डा पानी हो वहाँ भी धन होता है। तथा जिस तालाब में कमल लगे हों और उनमें हो कमल धुए के समान दिखाई देता हो वहाँ अवश्य धन रहता । पृथ्वी पर जहाँ धूए जैसा दिखाई दे, छोटे-मोटे पौधे होते हुए भी किसी एक भाग में कोई पौधा न हो वहाँ धन स्थित है ऐसा समझना चाहिए । आस-पास की जमीन के भागों की अपेक्षा जिस जमीन का एक भाग तेजस्वी लगता हो, जिस जमीन पर रात्रि में प्रकाश दिखाई देता हो, जिस जमीन पर घूमते हुए मन में आनन्द-उल्लास का अनुभव हो, जहाँ घी के धुएँ जैसी गन्ध आती हो अथवा वसन्त ऋतु जैसे पुष्पों की गन्ध आती हो, जिस स्थान पर बिना ऋतु के भो वृक्षों में पुष्प निकलते हों, अथवा जिस पौधे पर पुष्प नहीं लगते हों फिर भी पुष्प आते हों, कटी ले वृक्षों में काँटे न हों, प्रकृति से विपरीत किसी नवीन तत्त्व से युक्त प्राकृतिक वस्तु के होने वाले स्थान पर धन की सम्भावना होती है। कहीं पत्थर पर परस्पर विरोधी जाति के प्राणियों के चित्र खुदे हुए होने पर उस पत्थर के नीचे धन होने की सम्भावना है। ,


    अन्तरिक्ष धनस्थान के सम्बन्ध में यह ज्ञातव्य है कि जिस शिखर पर अथवा ऊँचे टीले पर किसी देवता की मूर्ति हो, वहाँ धन होगा तथा उस मूर्ति के अंग पर जहाँ चिह्न होगा वहाँ उसके प्रमाण की गहराई




    गुप्त धन निकल नेकाप्रथम प्रयोग







    जिस घर जमीन यू क्षेत्र के मिट्टी फूली फूली से रहते हे बही जगा पर खजाना मिलता हे।




    गुप्त धन निकल नेकादूसरा प्रयोग






    जिस घर मकान,खेत में अधिक मात्रा में साप निकल ता हे उस क्षेत्र में गढ़ा हुए खजाना रहता हे।




    गुप्त धन निकल नेका तीसरा प्रयोग





    जंगल में कहिपर पेड़ की झंड दिखाई दे और पास में किसी एक वृक्ष में बहुत सारा पक्षी बैठा हुआ हे तो समझ जाना उस पेड़ की नीचे खजाना हे।




    गुप्त धन निकल नेकाचोथा प्रयोग






    सफेद आक की पेड़ अगर २० साल पुरानी हो तो ९०० प्रतिसद समझ जाना उसके नीचे खजाना हे क्यों की बहुत लोगो को सफेद आक की जड़ की नीचे खजाना मिला हे।




    गुप्त धन निकल नेकापांचमां प्रयोग






    सफेद कटोरी पोधा अगर कहा पर दिखाई दे तो समझ जाना उसके नीचे भी खजाना रहता हे।बहुत लोगोंको इस पेड़ की नीचे खजाना मिला हे।इस पेड़ की नीचे खजाना होने से रात को आओजे निकल ता हे।




    गुप्त धन निकल नेकाछटा प्रयोग






    तीन लेयर बाला धुतरा को पोधा अगर दिख जाय तो समझ लेना पेड़ की नीचे खजाना छुपा हुई हे।




    गुप्त धन निकल नेकासाथमा प्रयोग





    अगर आपको रातको सपना में खजाने दिखाई दिया किसी जगा पर,आपको भी लग रहा हे उसी जगा पर खजाने हे तो आप इस उपाय को कीजिए १ किलो कच्चा चावल लेके उसमे सरसो के तेल में भीगा देना हे फिर उसी स्थान पर रात के समय उस चावल को छीरक के घर चला आय और शूभे उसी जगा पर जाके अगर देखेंगे चावल काला पर गेया तो समझ जाना उसी जगा पर खजाना छुपी हे।जो खजाना होती हे उसमे एक प्रकार की ऊर्जा होती हे जो चावल को काला कर देगा।




    गुप्त धन निकल नेकाआठमा प्रयोग






    ख्वाजाना जो होता हे बो एक शक्ति का या ऊर्जा के अंदर होती हे,ये अच्छे शक्ति भी होती हे और खराब शक्ति भी होती हे। आपको अगर लग रहा हे किसी जगा पर खजाना छुपी हुई हे और ये नजर में नही आरही हे तो उस जगा पर आप घोड़े की मूत्र नेहितो सूअर की मूत्र को छिड़क दीजिए खजाना बही पड़ा रहेगा और आपके सामने आजाएगा।




    गुप्त धन निकल नेकानबमा प्रयोग






    जमीन में खजाना देखने का एक मंत्र और विधि हे इसका प्रयोग करके भी आप खजाने देख पाएंगे।इस मंत्र को किसीभी शुभ दिन में १०८ बार पड़कर पीला सरसो के ऊपर अभिमंत्रित करके जिस जगा पर आपको संदेह हो रही हे खजाना हे वोही जगा पर छिड़क देने से खजाना दिखाई देगा।

    मंत्र: ॐ नम: विघ्न बिनाशाय निधि दर्शन कुरु कुरु स्वाहा:

    इस मंत्र बहुत तीव्र हे जो स्बयंग महादेव ने बताया हे गुरु देत्तात्रय को ।




    गुप्तधन निकल नेकादशमा प्रयोग





     अगर किसी जगा पर मिट्टी से कमल पुष्प की महक आती हे हमेशा तो समझ जाना उसी जगा पर गढ़ा हुए खजाना हे।




    गुप्त धन निकल नेकागरोबा प्रयोग






    किसी जमीन में दीमक का झंड दिखाई दे बहुत पुराना सा उस मिट्टी नमी हे तो समझ लेना उस मिट्टी के नीचे खजाना छुपी हुई हे।बहुत सोध कर्ता और विज्ञान भी इस बात को पुष्टि किया हे जिस जगा पर दीमक की झंड होती हे उस मिट्टी के नीचे खजाना होती हे।




    गुप्त धन निकल नेकाबारामां प्रयोग






    किसी स्थान से रटको १२ बजे के बाद हमेशा बच्चे के रोने की शब्द अति हे तो समझ जाना उसी स्थान पर खजाना छुपी हुई हे।





    खजाना को निकल नेका तरीका






    (१) चमेली के फूलों को दही में भिगोकर उस स्थान में ५-६ जगहू अलग-अलग उन्हें रखना । दूसरे दिन प्रात: यदि दही का पीला, काला अथवा लाल रंग हो जाए, तो वहाँ अवश्य द्रव्य है ऐसा जानना । अथवा हल्दी दूध मिलाकर छींटना और दूसरे दिन रंग बदला हुआ मिले, तो वहाँ धन है यह जानना ।




    (२) कई स्थानों पर पत्थर लगा हुआ होता है उस पत्थर को दूर हटाने की अपेक्षा उस पर--गरमाला की जड़, अजुन वृक्ष के पत्ते, बरगद की छाल, लोध, मजीठ, कुलथी और तुलसी इन सबको पीस कर चूर्ण बना लें और उसे भेसे के मूत्र में मिलाकर चपड़ दें । ऐसा करने से पत्थर टूट जायेगा और धन का लाभ होगा ।





    गुप्त धन देखने का बिधि प्रयोग






    बहुधा ऐसा होता है कि अपने प्रारव्धवश धन होते हुए भी दिखाई नहीं देता है । ऐसी स्थिति में--पारद, मधु, कपूर, पीलू के फूल तथा सुरजमुखी के बीजों को समभाग में मिलाकर सर्वा जन

    तैयार करें और उसे लगाकर देखें और नीचे लिखे मन्त्र का जप करें--




    सत्यं दर्शय भौमेयं दिव्य सत्येन दर्शय । यदि भूमिगत द्रव्यमात्मानं दर्शय स्वयम॥।




    अंजन लगाने का मन्त्र






    ॐॐ ग क्षं अं लोकिनि निधिनि लोकिनि स्वाहा

    गारा हुई खजाना निकल नेका बहुत तरीका शास्त्र में दी हुई हे,लिकिन आप को अगर इस गढ़ा हुई खजाने के बारे में पता नही हे तो आप उसको उठाने की कौशिश मत कीजिए क्योंकि ये जो गढ़ा हुई धन होता हे इसमें शक्ति का बास होती हे ये शक्ति अच्छी भी और बुरी भी दोनो में एक होती हे।इस खजाने उठाने के चक्कर में बहुत लोग ने अपनी जान भी खो चुका हे।इस खजाने के देख भाल कही भूत,प्रेत,जिन्न, दुष्ट शक्ति या कही यक्ष यक्षिणी या करती हे।अगर किसिका पूर्व जन्म में उसके दादा परदादा किसीने रखके गेया तो उस धन आसानी से पूजा पाठ करने से मिल जाती है।इस खजाना के मालिक अगर आप नेहि हे लेकिन आपको खजाना चाहिए तो इसी मामले में उचित योग्य पंडित या तांत्रिक का साला लेके आप उसको उठाने का प्रयास कीजिए नेहितो ये बहुत खतर नाक होता हे।अपना परिवार समेत इसका प्रकोप में आजाते हे।कही कही जगा पे किसीको रातको सपना दिखाए और शूभे मिट्टी खोदना शुरू कर दिया लिकिन कुछ हासिल हो नही पाया किंतु घरमें दिक्कतें चली अति हे,जैसे किसिका गंभीर बीमार पड़ जाना, किसिका एक्सीडेंट हो जाना घरमें लड़ाई झगड़ा हो जाना ऐसा बहुत समस्या उत्पन्न कर देता है।किसी किसी बार तो ये अपना माया जाल में फांसा देता हे सपना दिखाने के बाद घर की किसी एक सदस्य की बलि मांग देता हे।ये ऐसा चीज हे जो किसीको एक बार सपना में दिखाई दिया और बो तोडा लोभ कर दिया तो उसका पीछा नही छोड़ता है।बहुत तांत्रिक लोगों ने इस खजाना को मंत्र शक्ति के बल पर उठाया भी हे। ईस खजाना उठाने के पहले अपना कुलदेवी का पूजन करना इसके बाद स्थान देवता या ग्राम देवता का पूजन ,शरीर में रक्षा मंत्र का बंधन ,चारी दिशा के बंधन या किलित करने के बाद जिसको पता चलते हे गढ़ा हुई धन के रक्षक कोन करता हे उसके भोग देने के बाद ही काम सम्पन्न होती हे।इस खजाना में एक प्रकार के विषाक्त पदार्थ के आवरण रहते हे जो आप लोग इसको खाली हात में कभी भी न छुए ,इस खजाना को छूने से आपको मत भी हो सकती है,कभी कभी ये बिजली की तरा करेंट भी मारते हे।खजाना हे तो उसी जगा पर (nitric acid or zinc powder) का इस्तेमाल करते हे।




    निधि ग्रहण का विधान





    यद्यपि यह विधान तकनीकी है और मैं अपनी तरफ से इसे सुगम बनाने में कोई कसर छोड़ने की बात भी नहीं रखूंगा तदपि इसमें सावधानी रखना अत्यन्त आवश्यक है। इन प्रकरणों में अनेक प्रकार के संकट आते हैं फिर भी यदि अच्छी मात्रा में सम्पत्ति है तो यह विधि- विधान करके उसे हस्तगत करने में कोई आपत्ति नहीं है ।


    जितनी बड़ी मात्रा में निधि होगी, उसकी सुरक्षा व्यवस्था भी उतनी ही कठोर होगी इसलिए अपने साथ तीन, पाँच, सात व्यक्ति सहायक के रूप में ले जाए, इन सहायकों को तलवार से सज्जित कर देना चाहिए। ऐसे विषयों में सर्प के सिवा कोई देहधारी नहीं होगा प्रेतादि के स्थूलदेह न होने से तलवार का प्रयोग करने की नौबत नहीं आयेगी फिर भी तलवार एक ऐसा शस्त्र है जो प्रेतलोक को भी भयभीत करता है। इस कार्य के लिए आषाढ़, मार्गशीषं और पौष के महीने अनुकूल रहते हैं। शनिवार, मंगलवार और रविवार जैसे क्र वार वर्जित होते हैं। भद्रा और व्यतीपात भी छोड़ देने चाहिएँ । नक्षत्रों में--अश्विनी, रोहिणी, पुनवे सु, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तरा भाद्रपदा, पूर्वा भाद्रपदा, श्रवण धनिष्ठा और रेवती नक्षत्र अनुकूल रहते हैं । कार्य करने वाले व्यक्ति का नाम राशि से चौथा, छठा, आठवां और बारहवाँ चन्द्रमा न रहे । इस प्रकार पंचांग शुद्धि करके चावल से एक चतुष्कोण के भीतर आठ पत्रों वाला एक कमल का मण्डल बनावे । यह मण्डल किसी काठ के पट्टे पर सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर बनावे । इस मण्डल (अष्टदल कमल) के मध्य में एक मिट्टी का या तांबे का घड़ा भरकर रख दे । इसमें शर्क्ति सहित शिव का पुजन करें। ध्यान रखने की बात है कि इस सारे प्रकरण में शिव ही अधिष्ठाता देवता होते हैं। शिव का ध्यान करके “ओम्‌ नमो भगवते ईशानाय श्वाधिपतये आगच्छागच्छ बलि गृहाण नमो विच्चे स्वाहा”--इस मन्त्र से पूजन करे । अन्य उपचार समर्पण करते समय बलि शब्द के स्थान पर उन-उन उपचारों का नाम ले ले। जैसे--पुष्पं, धूप॑, गन्धं, दीप॑ नैवेद्य के स्थान पर बलि अपित की जाएगी फिर शिवा क। पुजन सामान्य विधि से कर लेना चाहिए। इस पूजन के परचात्‌ आठ कमल पत्रों में अपने सामने वाले पत्र से प्रारम्भ करके अपने दाहिने हाथ की तरफ जा रहे पत्रों के क्रम से पूजन क्रमश: करनी चाहिए इनके क्रमश: मन्त्र हैं--पूर्वे पत्र में “ओम . नमो ब्राह्मये ब्राह्मये आगच्छागच्छ बलि गृहाण गृहाण. नमो बिच्चे : स्वाहा” दाहिने हाथ की तरफ बढ़ते हुए आग्नेय दिशा के कोण में “ओं नमो माहेश्वर्ये आगच्छागच्छ बलि गृहण गृहाण नमो विच्चे स्वाहा” अगले दणिक्ष दिशा वाले पत्र में “ओम्‌ नमो कौमार्य आगच्छागच्छे बलि गृहण गृहण नमो विच्चे स्वाहा” नैऋत्य कोण के पुत्र में साधक के सामने रचे मण्डल में यह आग्नेय कोण का पत्र रहेगा। “ओम्‌ नमो वैष्णव्ये आगच्छागच्छ बलि गृहाण गृहाण नमो विच्चे स्वाहा” पश्चिम के पत्र में “ओम्‌ नमो वाराह्मां आगच्छागच्छ बलि गहाण गहाण नसों विच्चे स्वाहा” वायव्य कोण में सामने बनाये मण्डल में यह ईशान कोण वाला पत्र होगा। “ओम्‌ नमो इन्द्राष्ये आगच्छाच्छ बलि गृहाण गहाण नमो विच्चे स्वाहा” उत्तर में “ओम्‌ नमो नरसिंह आगच्छागच्छ बलि गृहाण गृहाण नमो विच्चे स्वाहा” ईशान कोण में (यह सामने बांये हाथ की तरह वाला पत्र होगा) “ओम्‌ नमो चामुण्डाये आगच्छागच्छ बलि गृहाण गृहाण नमो विच्चे स्वाहा” मन्त्र से पूजन करे ।


    यह पूजन विस्तार से करना चाहे तो इन पत्रों में क्रमशः ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी, नारसिही और चामुण्डा के नाम से पाद्य, अध्यं, स्नान, वस्त्र, गन, पुष्प, धूप, दीप अपित करके नैवेद्य के समय ऊपर लिखा मन्त्र बोल देना चाहिए ।


    इनमें पूजन करके चतुष्कोण में इन्द्रादि दश दिक्पालों की और उनके आयुधों की पूजा करे। पूजन का वही मन्त्र रहेगा केवल नाम बदलते जायेंगे । पूजन का मन्त्र इस प्रकार होगा-- “ओम नमो इन्द्राय आगच्छागच्छ बलि गृहाण गुहाण नमो विच्चे स्वाहा” आगे के मन्त्र में अग्नये, यमाय, निऋतये, वरुणाय, वायवे, कुबे राय, ईशानाय, (ये आठ दिशाओं में नौवाँ सामने वाले और दसवाँ बिल्कुल सामने वाले स्थान पर) ब्रह्मणे, अनन्ताय शब्द बोलने चाहिएँ ।


    इन्हीं स्थानों पर इनके आयुधों का पूजन करे। यहाँ पूजन इस चतुष्कोण के भीतर की तरफ करनी चाहिए। पुर्वे में व ज्ञाय शकतये, दण्डाय, खड़गाय, पाशाय, अंकुशाय, गदायै, त्रिशुलाय, पदमने, चक्राय पद बोलना होगा ।


    यह पूजन चतुष्कोण में भीतर की तरफ करे। बाहर की तरफ 'उसी क्रम से, पूवे दिशा द्वार में नन्दी श्री की, दक्षिण द्वार में कीति- महाकाल की, पद्चिम द्वार में गणेशकुमार की और उत्तर द्वार में दण्डी भू गी का पूजन करे । मन्त्र-“ओम्‌ नसो नन्दी श्रीभ्यां आगच्छा- गच्छ बलि गृहाण गहाण नमो विच्चे स्वाहा” रहेगा । आगे के मन्त्र में कीतिमहा कालाभ्यां, गणेंशकुमा राभ्यां, दण्डीभू गी्यां पद बोले जाएंगे ।


    बलि समर्पण.से पूर्व ऊपर लिखा गया मन्त्र पढ़ें और अरपित करने के वक्‍त “ओं बलि सुर्बाल नृत्यन्तु सिद्धि मां दिशन्तु ओं नमो विच्चे स्वाहा” यह मन्त्र सर्वत्र बोलना है। बलि में दही, सिन्दूर लगे उड़द, पूये और पुडी देनी होगी ।





    गुप्त धन कुछ बिशेस बाते 






    इस प्रकार पूजन करने के बाद उस पूजित घड़े के जल से स्वयं और सहायकों को स्नान कराये। स्नान कराने का मन्त्र है--“ओं नमो अर्भटे पिंगलोद राय पाप॑ नाशाय-नाशय दुराचारं हन हन अभिषिक्तान


    रक्ष रक्ष अभिषेकपदेम्‌ उपधारय उपधारय कुरु कुरु समर समर भीषणे नमो विच्चे वौषट्‌” ।
    ईस गुप्त धन को देखने का या मिलने का कुछ उपाय और संकेत में बता रहा हु जो आप लोग आसानी से इसे प्राप्त कर सकते हे।आप लोगों को भी इस खजाना के बारे में जादा जान कारी चाहिए तो हमसे संपर्क कीजिए हम आपको खजाना को निकल नेका उपाय बता देंगे।

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