अप्सरा साधना भाग २

अप्सरा साधना भाग २


अप्सरा साधना का बिशेस यन्त्र 





    शास्त्रों में और तांत्रिक ग्रन्थों में उर्वशी अप्सरा को वश में करने, उसे प्रिया रूप में प्राप्त करने और उसके माध्यम से धन, सम्पत्ति, सुख-सौभाग्य प्राप्त करने के लिए साबर मंत्रों में भी कुछ विधियां दी गयी हैं, जिनके माध्यम से इस प्रकार के कार्य सम्पन्न हो सकते हैं।




    अप्सरा साधना का बिशेस लाभ 






    मंत्रों के माध्यम से अथवा साधनाओं के माध्यम से धन प्राप्त करना अथवा जीवन की समस्याओं को मिटाना और जीवन में निरन्तर उन्नति करना गलत नहीं है। साधु संन्यासी भी इसका उपयोग करते रहे हैं, और फिर साबर मंत्र तो स्वयं भगवान शिव के अक्षर रूप हैं, और उनके द्वारा स्पष्ट किए हुए इन मंत्रों के माध्यम से ही मनोवांछित कार्य सम्पन्न होते हैं ।

    उर्वशी अपने आप में अत्यन्त सौन्दर्य युक्त अप्सरा है, जो कि एक तरफ रूप और यौवन से परिपूर्ण है, तो दूसरी ओर धन और सुख-सौभाग्य देने में भी सफल है, इसीलिए उर्वशी साधना को जीवन का सौभाग्य माना गया है।

    इस प्रकार की साधना को तांत्रिक ग्रन्थों में ' भैरवी चक्र साधना ' कहा गया है, भैरवी का तात्पर्य - एक ऐसी देवी जो मन्त्रों के द्वारा साधक के लिए सिद्ध हो कर उसका मनोवांछित कार्य सम्पन्न करती है, और इसीलिए उर्वशी जैसी अद्वितीय अप्सरा को सिद्ध करने और प्रिया रूप में उसे अपने अनुकूल बनाने में सिद्ध ऐसे प्रयोग को भी ' भैरवी चक़ प्रयोग ' कहा गया है।





    अप्सरा साधना संपन्न करे कैसे








    यह साधना वास्तव में ही शीघ्र सिद्धिदायक, पूर्ण प्रभावयुक्त और अचूक फल देने वाली है। यह मात्र दो दिनों की साधना है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि से यह प्रयोग प्रारम्भ होता है और शनिवार की रात्रि को समाप्त हों जाता है। इस साधना को पुरुष या स्त्री कोई भी सम्पन्न कर सकता है।

    साधना काल में पुरुष अच्छे और सुन्दर वस्त्र धारण कर के बैठे, साधक चाहे तो धोती, कुर्ता या पैंट-शर्ट आदि किसी भी प्रकार के उत्तम सुसज्जित वस्त्र धारण कर के उत्तर दिशा की ओर मुंह कर सामने बैठ जाए।

    फिर सामने एक थाली में ' उर्वश्यै नम: ' अक्षर लिखें, और उसके आगे गुलाब या अन्य पुष्पों को बिछा कर उस पर भैरवी चक्र को स्थापित कर दें । इसे तांत्रिक ग्रन्थों में उर्वशी यन्त्र, अप्सरा यन्त्र या भैरवी यन्त्र भी कहा है । यह यन्त्र महत्वपूर्ण और जीवन भर उपयोगी रहता है।

    फिर इस यन्त्र की संक्षिप्त पूजा करें, और प्रार्थना करें कि - ' मैं अमुक जाति, अमुक नाम का पुरुष पूर्ण प्रेम एवं आत्मीयता के साथ साबर मंत्र के द्वारा उर्वशी सिद्ध करने जा रहा हूं, जिससे कि उर्वशी प्रिया रूप में मेरे अधीन रहे, और जीवन भर, जैसी और जो भी आज्ञा दूं उसे पूरा करे '' ।

    इसके बाद इस यन्त्र के सामने शुद्ध घृत का दीपक लगाएं और पहले से ही मंगाया हुआ पान या जिसे संस्कृत में ताम्बूल कहते हैं, वह मुंह में रख कर चबा लें। पान में कत्था, चूना, सुपारी, इलायची आदि डाल कर ग्रहण करें । यह पान बाजार में कही पर भी पान वाले की दुकान पर मिल जाता है।

    इसके बाद स्फटिक माला से निम्न मन्त्र का 21 बार उच्चारण करें, इसमें पूरी माला मंत्र जप का विधान नहीं है।





    अप्सरा साधना साबर मंत्र 






    ॐ नमो आदेश । गुरु को आदेश । गुरुजी के मुंह में ब्रह्मा उनके मध्य में विष्णु और नीचे भगवान महेश्वर स्थापित है, उनके सारे शरीर में सर्व देव निवास करते हैं, उनको नमस्कार । इन्द्र की अप्सरा, गन्धर्व कन्या उर्वशी को नमस्कार । गगन मण्डल में घुघुरुओं की झंकार और पाताल में संगीत की लहर ।लहर में उर्वशी के चरण । चरण में थिरकन । थिरकन में सर्प । सर्प में काम वासना । काम वासना में कामदेव । कामदेव में भगवान शिव । भगवान शिव ने जमीन पर उर्वशी को उतारा । श्मशान में धूनी जमाई । उर्वशी ने नृत्य किया । सात दीप नवखण्ड में फूल खिले, डाली झूमी । पूर्व-पश्चिम, उत्तर- दक्षिण, आकाश-पाताल में सब मस्त भये । मस्ती में एक ताल दो ताल तीन ताल । मन में हिलोर उठी, हिलोर में उमंग, उमंग में ओज, ओज में सुन्दरता, सुन्दरता में चन्द्रमुखी, चन्द्रमुखी में शीतलता, शीतलता में सुगन्ध और सुगन्ध में मस्ती । यह मस्ती उर्वशी की मेरे मन भाई । यह मस्ती मेरे सारे शरीर में अंग-अंग में लहराई, उर्वशी इन्द्र की सभा छोड़ मेरे पास आवे । मेरी प्रिया बने, हरदम मेरे साथ रहे, मेरो कहियो करे, जो कहूं सो पूरो करे, सोचूं तो हाजर रहे, यदि ऐसो न करे तो दस अवतार की दुहाई, ग्यारह रुद्र की सौगन्ध, बारह सूर्य को बज्र, तेंतीस कोटी देवी-देवताओं की आण । मेरो मन चढ़े, अप्सरा को मेरो जीवन उसके श्रृंगार को । मेरी आत्मा, उसके रुप को और मैं उसको, वह मेरे साथ रहे । धन, यौवन सम्पच्चि, सुख दे । कहियो करे, हुकुम माने । रूप यौवन भार से लदी मेरे सामने रहे । जो ऐसो न करे, तो भगवान शिव को त्रिशूल और इन्द्र को बज्र उस पर पड़े ।




    मंत्र का प्रभाब 





    यह मंत्र अपने आप में ही पूर्ण सिद्धिदायक मंत्र है । साबर मंत्र सीधे सरल और स्पष्ट होते हैं, इसीलिए उनके उच्चारण में किसी प्रकार का दोष व्याप्त नहीं होता। जिस सन्यासी ने मुझे यह मंत्र और प्रयोग विधि समझाई थी उन्होंने बताया था कि रात्रि को इस मंत्र का 21 बार उच्चारण करना पर्याप्त है पर यदि साधक चाहे तो 108 बार उच्चारण कर सकता है, पर इससे ज्यादा इस मंत्र का उच्चारण करने की जरूरत नहीं है। दूसरे दिन शनिवार को भी इसी प्रकार से मंत्र जप करे, और मंत्र जप के बाद वह उस भैरवी यंत्र को धागे में या चैन में पिरोकर अपने गले में धारण कर ले। उस समय, जब उबंशी साधक के पास प्रत्यक्ष प्रकट हो तब साधक को चाहिए कि पहले से ही मंगाए हुए फूलों के हार को उसके गले में पहना दे, खाने के लिए पान दे, और हाथ में हाथ लेकर वचन ले ले, कि जैसा साधक कहेगा, उर्वशी जीवन भर उसी प्रकार से कार्य करती रहेगी। इसके बाद जब भी साधक इस मंत्र का एक बार उच्चारण करेगा तों उर्वशी उत्' क्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सामने स्पष्ट होगी और साधक का कहा हुआ कार्य सम्पन्न करेगी ।
    अप्सरा साधना के अचूक उपाय




    जिस प्रकार से अप्सरा साधना के विषय में साधकों के मन में विभिन्न भ्रांत धारणाएं बनी हुई हैं, उसी प्रकार से अप्सरा साधना में सिद्धि को लेकर भी श्रांत धारणाएं बनी हुई हैं। इसका सीधा सा कारण है कि जब से समाज ने सौन्दर्य की उपासना करना भुला दिया, उसकी दृष्टि में सौन्दर्य आराधना के योग्य न रह गया, तब से मन के भीतर की वे सभी श्रेष्ठ धारणाएं दब, घुटकर समाप्त हो गईं जो सौन्दर्य को केवल सौन्दर्य के रूप में देखती हैं। अप्सरा दैहिक सौन्दर्य का नाम है भी और नहीं भी है। यह तो निर्भर करता है कि साधक क्या विचार लेकर साधना मे प्रवृत्त हो रहा है। यदि विचार सौन्दर्य को केवल सौन्दर्य के रूप में परखने का, सराहने का, आनन्दित होने का है तो अप्सरा साधना प्रथम क्षण से ही 'सिद्ध' हो जाती है। किंतु यदि उसे ' उन्हीं अर्थों ' में प्राप्त करने की चेष्टा है तो खेद के साथ कहना पड़ता है कि वह स्थिति तो प्रारम्भ में नहीं आ सकती । इस प्रकार से तो कोई सांसारिक स्त्री ही नहीं रीझ उठती फ़िर अप्सरा तो देववर्ग से सम्बन्धित होती है। जितने श्रेष्ठ वर्ग की स्त्री होगी उसे रिझाने के लिए साधक को भी स्वयं में उतना ही श्रेष्ठ बनना पड़ेगा । क्या इस बात को दैनिक जीवन में अनुभव नहीं किया जा सकता ? विवाह के पश्चात अपनी पत्नी से परिचय करने में जब व्यक्ति को छह माह लग जाते हैं, तो अप्सरा साधना के विषय में ऐसी धारणा रखना कि वह पहले ही दिन से अपना तन-मन-धन सब सौंप देगी, कितना तर्क संगत है ? इसको स्वयं सोचा जा सकता है।




    किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि साधक हतोत्साहित हो जाए, वह कोई प्रयास ही न करे, जीवन में अप्सरा को समाहित करने की कोई चेष्टा ही न करे। सत्य तो यह है कि जब से साधक अप्सरा साधना में प्रवृत्त होता है तभी से वह अप्सरा भी (जिसकी साधना साधक सम्पन्न कर रहा होता है) उसे ऐसे उपाय बताने लग जाती है जिससे उसको सिद्ध किया जा सके। आप स्वयं ही सोचिए ऐसा किसी प्रेमिका के अतिरिक्त कोई अन्य जीवन में कर सकता है? प्रेमिका का अर्थ ही होता है जो स्वयं आगे बढ़कर मनुहार सी करे। यह बात और है कि स्त्री की मनुहार को समझने के लिए हृदय की दृष्टि होनी चाहिए, उसकी मनुहार को बस आँखों या अक्ल से ही नहीं समझा जा सकता। इसी मनुहार से वह मधुरता निर्मित होती है जो मधुरता पत्नी से नहीं मिल सकती | ऐसा कहने के पीछे पति-पत्नी के सम्बंधों की अवहेलना करने की चेष्टा नहीं है किंतु जो वास्तविकता है उसे हम-आप व अन्य सभी स्वयं अच्छी तरह से जानते हैं।




    आगे की पंक्तियों में कुछ विशिष्ट अप्सराओं के ऐसे प्रयोग प्रस्तुत किए जा रहे है जो अपने आप मैं छोटे दिखाई हुई भी तंत्रत्मक प्रकिती के हे।तंत्रत्मक प्रकीति होने के कारण इसमें सफलता स्बयंग सिद्ध और शीघ्र फल दाई होते ही हे।




    तिलोन्तमा अप्सरा साधना






    'तिलोत्तमा अप्सरा का स्थान समस्त अप्सराओं में वरिष्ठ क्रम में आता है किंतु वरिष्ठ से यहाँ तात्पर्य आयु से नहीं वरन उस दिव्यता और सौन्दर्य की पराकाष्ठा से है जिसके कारण उसकी साधना विधि को प्राप्त करना अत्यधिक दुष्कर कार्य माना गया है। उर्वशी प्रभूति शशिदेव्या, मृगाक्षी , रम्भा, में तिलोत्तमा का एक विशिष्ट स्थान रहा है तथा मुख्य रूप से यह केवल इन्द्र के दरबार में ही अपने नृत्य का कौशल प्रदर्शित करने वाली अप्सरा के रूप में, साधनात्मक ग्रंथों में वर्णित, कथित है, लेकिन वह साधक ही क्या जो चुनौती न ले सके और तंत्रात्मक प्रकृति की इस साधना को सम्पन्न करने से पूर्व यह आवश्यक है कि साधक के मन में प्रबल चुनौती का भाव हो। चुनौती के आधार पर ही सम्पन्न की गई तंत्र साधनाओं में तीव्रता से सफलता मिलती है।

    इस प्रयोग को सम्पन्न करने के इच्छुक साधक के लिए आवश्यक है कि उसके पास ताम्र पत्र पर अंकित अप्सरा यंत्र तथा स्फटिक माला हो । साधक पीले वस्त्र पहन पूर्व की ओर मुख करके इस यंत्र पर केसर से ऊपर ' 'तिलोत्तमा' एवं उसके नीचे अपना नाम लिख कर स्फटिक माला से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप सम्पन्न करे -

    मंत्र

    ॐ ह्रिं ह्रिं तिलोत्तमा अप्सराये अगच्छ आगच्छ नमः ।




    मंत्र जप के पश्चात यथा सम्भव सभी साधना सामग्रियों को शीघ्रातिशीघ्र किसी स्वच्छ सरोवर अथवा नदी में विसर्जित कर दें तथा अपनी अनुभूतियों को केवल गुरुदेव के समक्ष (प्रत्यक्ष रूप से अथवा पत्र के माध्यम से) ही व्यक्त करें । इस साधना की अपने इष्ट मित्रों आदि से चर्चा न करें, इससे प्रभाव में न्यूनता आती है। यदि साधक चाहे तो आगे भी इस मंत्र की नित्य एक माला मंत्र जप सम्पन्न करता रह सकता है। इससे सिद्धि को स्थायित्व प्राप्त होता है। पौरुष प्राप्ति एवं पूर्ण गृहस्थ सुख की यह अनुपम साधना है।





    रत्न माला अप्सरा साधना





    कही भी अप्सरा जहा एक और से सिद्ध होने का पश्चात साधक को अपने यौवन, सौन्दर्य से आह्वादित करती है वहीं उसे पूर्ण पौरुष देने के साथ-साथ धन-द्रव्य-आभूषण आदि से भी तृप्त करती ही है। अप्सरां के इसी धन द्रव्य दायक वरदायक प्रभाव में सर्वोत्कृष्ट नाम है रत्नमाला अप्सरा। जो अपने नाम के ही अनुरूप साधक को विविध प्रकार के द्रव्य, मणि, आभूषण एवं सौन्दर्य-विलास की सामग्रियां स्वेच्छा से उपलब्ध कराती ही रहती है। यदि इस साधना को आकस्मिक धन प्राप्ति की साधना भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। . . . यूं देखा जाए तो रत्नमाला की जीवन में प्रेमिका रूप में प्राप्ति स्वयं किसी क्या कोष-प्राप्ति से कम नहीं, क्योंकि उसके अंग प्रत्यंग से झलक रही होती है जो सैकड़ों मुक्ता मणियों की आभा, वह उससे साधक का तन-मन किसी क्या अपूर्व प्रकाश से भर देने में समर्थ नहीं होती है?

    रत्नमाला अप्सरा साधना को किसी भी शुक्रवार अथवा सोमवार की रात्रि में सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिए साधक के पास एक रतनमुक्ता तथा मणिमाला होनी आवश्यक होती है। साधक स्वयं अपनी इच्छानुसार वस्त्र पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुखं करके बैठे तथा सामने किसी पात्र में रत्नमुक्ता रख, उसका पूजन इत्र, चंदन, अक्षत, पुष्प, एवं सुगंधित अगरबत्ती से करें। (चाहे तो दीपक भी लगा सकते हैं।) इसके पश्चात दत्तचित्त भाव से निम्न मंत्र की ग्यारह माला मंत्र जप मणिमाला से सम्पन्न करे ।

    मंत्र :

    ॐ श्रीं ह्रिं रत्नमाना हैं श्री ॐ




    मंत्र जप के पश्चात रात्रि विश्राम साधना स्थल पर ही सम्पन्न करें। यह मात्र एक दिवसीय साधना है अत: साधक अगले दिन समस्त साधना सामग्रियों को विसर्जित कर दें तथा अपनी नित्य की जप माला से उपरोक्त मंत्र का आगे भी 21 दिन तक (रात्रि में ) मंत्र जप करते रहें तो अतिउत्तम कहा गया है।



    बिशेस बाते अप्सरा साधना 





    जीवन में मनोवांछित भोग, द्रव्य, ऐश्वर्य प्राप्ति के साथ-साथ यह सौन्दर्य प्राप्ति की भी श्रेष्ठ साधना है। इस साधना को साधिकाओं द्वारा सम्पन्न करने के संदर्भ में विषेश महत्व कहा गई हे।

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