Apsara Sadhna || अप्सरा साधना

Apsara Sadhna || अप्सरा साधना

अप्सरा के बारेमे कुछ कथाएं(apsara sadhana katha)




    मैं कालीदास पर पी एच डी कर रहा था, शोध करते-करते मुझे प्रामाणिक रूप से यह जानकारी मिली, कि कालीदास ने नाभिदर्शना अप्सरा को सिद्ध किया था, और इसी साधना की बदौलत उन्हें वचन सिद्धि प्राप्त हुई थी । इसी अप्सरा के सान्निध्य में रहने के की वजह से वे जीवन भर मस्ती में, उमंग में , जोश में, और आनन्द में काव्य लिखते रहे, उनके सारे काव्य का लक्ष्य "नाभि दर्शना अप्सरा' ही थी।



    अप्सरा साधना का लाभ




    प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे एक नारी होती है। इसमें कोई संदेह भी नहीं। ऊर्जा का स्रोत तो नारी को ही माना गया है। इस बात को तो भारतीय दर्शन ने न केवल स्वीकार ही किया है अपितु उसे उपासना योग्य तक बना दिया है। किंतु जहां किसी कलाकार अथवा कवि की बात आती है, तो यही बात कुछ और भी अधिक विशिष्टता से सामने आती है। आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक जितने भी कलाकार हुए हैं उनके मानस में किसी न किसी नारी का 'बिम्ब रहा ही है। सृजन का मूल, उत्स व प्रेरणा कोई नारी ही रही है। उनमें व सामान्य मनुष्य में अंतर केवल इतना ही होता है कि जहाँ सामान्य मनुष्य के लिए नारी का अर्थ दैहिक भर ही होता है वहीं कवि हृदय व्यक्ति के लिए वह उपासना जैसा स्थान रखता है। एक प्रकार से कहा जाए तो कोई भी कलाकार किसी भी नारी के माध्यम से वस्तुत: अपने ही हृदय के सौन्दर्य को प्रकट करता है। बाह्म स्वरूप अथवा अंतिम बिंदु पर वह निरपेक्ष हो जाता है अर्थात वह ऐसी उपासना 'करते-करते उस बिंदु पर पहुँच जाता है जहाँ फिर उसे सम्पूर्ण विश्व ही सौन्दर्यमय दिखने लग जाता है। इस विषय को सामान्य दृष्टि से नहीं वरन किसी कवि के हदय से समझना होगा। तभी समझ में आ सकेगा कि कैसे महाकवि कालीदास ने प्रकृति के एक-एक कण में : सौन्दर्य देखा और उसे इस रूप में अंकित किया कि आज तक उनकी समकक्षता कोई कर ही न सका | वे स्वयं में एक उपमा बन गए। आज तक किसी भी रचना को उनके द्वारा रचित कृतियों की कसौटी पर कस कर कहा जाता है कि वे स्वर्ण हैं अथवा सामान्य लौह खंड । इससे अधिक किसी कवि की सार्थकता क्या हो सकती है? मूलत: राजकवि होते हुए भी वे स्वयं में अपने ऐश्वर्य, विलास, उमंग, ओज, प्रभाव, वर्चस्व, कला आदि में किसी भी राजपुरुष से कम नहीं थे। महाराज भोज भी 'उनकी इन उपलब्धियों से अनभिज्ञ नहीं थे और परस्पर मित्र-भाव होने के कारण अन्ततोगत्वा एक दिन कालीदास ने महाराज भोज के समक्ष इस रहस्य का उद्घाटन भी कर दिया कि ऐसा सब कुछ उनके जीवन में कैसे संभव 'हो पा रहा है। 



    अप्सरा की जानकारी  




    राजा भोज के अत्यधिक हठ करने पर एक दिन कालीदास ने राजा भोज के समक्ष नाभिदर्शना को प्रत्यक्ष प्रगट कर दिखा दिया, रूप में, सौन्दर्य में, और यौवन में वह छलकते हुए जाम की तरह थी, उसका सारा शरीर गौर वर्ण और चन्द्रमा की चांदनी में नहाया हुआ सा लग रहा था, पुष्प से भी कोमल और नाजुक नाभिदर्शना को कालीदास के कक्ष में धिरकते देख कर राजा भोज अत्यधिक संयमित होते नहुए भी बेसुध से हो गए, उनकी आंखों के सामने हर क्षण नाभिदर्शना ही दिखाई देती रही । 
    साधना ग्रंथों में नाभिदर्शना के बारे में जो कुछ मिलता है उसके अनुसार नाभिदर्शना, सोला वर्षीय अत्यन्त सुकुमार और सौन्दर्य की सम्राज्ञ है। उसका सारा शरीर कमल से भी ज्यादा नाजुक और गुलाब से भी ज्यादा सुंदर है, उसके सारे शरीर से धीमी धीमी खुशबू प्रवाहित होती रहती है, जो कि उसकी उपस्थिति का भान कराती रहती है, इस अप्सरा की काली और लम्बी आंखें, लहराते हुए झरने की तरह केश और चन्द्रमा की तरह लम्बी बांहें और सुन्दरता से लिपटा हुआ पूरा शरीर एक अजीब सी मादकता बिखेर देता है, और इसे इन्द्र का वरदान प्राप्त है, कि जो भी इसके सम्पर्क में आता है, वह पुरुष, पूर्ण रूप से रोगों से मुक्त होकर चिर यौवनमय बन जाता है, उसके शरीर का काया कल्प हो जाता है, और पौरुष की दृष्टि से वह अत्यन्त प्रभावशाली बन जाता है। और फिर नाभिदर्शना अप्सरा को विविध उपहार देने को शौक है। जो पुरुष इसके सम्पर्क में आता है, उसे यह हीरे, मोती, स्वर्ण मुद्राओं से एवं विविध उपहारों से सिक्त कर देती है, जीवन भर उस पुरुष के अनुकूल रहती हुई बह उसका प्रत्येक मामले में मार्ग दर्शन करती रहती है , मां की तरह सदिष्ट भोजन कराती हे प्रेमिका को तरा सुख आनंद उपभोग कराती रहती हे।



    मृगाक्षी अप्सरा साधना




    अप्सरा सिद्धि प्राप्त करना किसी भी दृष्टि से अमान्य और अनैतिक नहीं है। उच्चकोटि के योगियों, सन्यासियों , ऋषियों और देवताओं तक ने अप्सराओं और किन्नरियों की साधना की है। यों तो ' मंत्र महोदधि ' आदि अन्य तांत्रिक ग्रंथों में 108 विभिन्न अप्सराओं की प्रामाणिक साधनाएं दी हुई हैं, और उनमें से कई अप्सराओं की साधनाएं साधकों ने सिद्ध की हैं, और उसका लाभ उठाया है। पर हमें 'सुरति प्रिया 'वर्ग की अप्सरा साधना का प्रामाणिक विवरण प्राप्त नहीं हो पा रहा था। शिमला के पास चैल नाम का एक स्थान है, जो कि प्रकृति की दृष्टि से अत्यंत रमणीय और प्रसिद्ध स्थान है, जिसे महाराज पटियाला ने बसाया था। जब हम चैल के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द ले रहे थे, तभी हमारी वहां पर एक गृहस्थ सन्यासी से भेंट हो गई, ' गृहस्थ संन्यासी ' शब्द मैं इसलिए प्रयुक्त कर रहा हूं, कि वे सही अर्थों में तो हिमाचल में रहने वाले गृहस्थ ही हैं, जिनके एक पत्नी और तीन संताने हैं, परंतु यदि मूल रूप से देखा जाए तो वे संन्यासी हैं। उनका सारा जीवन तांत्रिक साधनाओं में ही व्यतीत हुआ, और तंत्र के क्षेत्र में वे अद्वितीय सिद्ध योगी हैं, उनका नाम सौन्दर्यानंद जी है। हमारी जिज्ञासा बढ़ी, हमने नाम तो पहले भी सुन रखा था, और हमें यह ज्ञात था, कि अप्सरा साधनाओं में ये सिद्धहस्त आचार्य हैं, तथा इन्होंने लगभग सभी की सभी अप्सराओं की साधनाएं सम्पन्न की हैं। हमारी जिज्ञासा यह थी कि यदि हमें इनके द्वारा सुरति प्रिया अप्सरा साधना की जानकारी और साधना रहस्य ज्ञात हो जाए तो यह काफी महत्वपूर्ण कार्य होगा। वास्तव में देखा जाए तो साधनात्मक ग्रंथों में न केवल अप्सरा साधना के विषय में वरन किसी भी साधना के विषय में जो वर्णन है वह स्थूल है, उनके सूक्ष्म भेदों का वर्णन उनमें प्राय: समाविष्ट नहीं हो पाया है। इसका कारण मात्र इतना ही
    है कि प्राचीनकाल में अनेक विद्याएं केवल गुरु मुख से शिष्य में परावर्तित होती रहीं, उनको लिपिबद्ध करने के विषय में चिंतन ही नहीं किया गया। साथ ही यह भी कारण हो सकता है कि कुछ स्वार्थी प्रवृत्ति के व्यक्तियों ने साधना की पद्धतियों को केवल अपनी पारिवारिक सम्पत्ति ही समझा। कारण कुछ भी रहा हो लेकिन उससे हानि तो सर्व सामान्य की ही हुई । अप्सरा साधनाओं के साथ भी यही हुआ कि उन्हें अश्लीलता, ओछेपन, काम वासना का प्रवर्धन करने वाली साधनाएं समझ लिया गया जबकि वस्तु स्थिति तो इसके सर्वथा विपरीत है। 
    सुरति प्रिया एक अप्सरा का भी नाम है और अप्सराओं के एक वर्ग का भी नाम है। मृगाक्षी , इसी सुरतिं प्रिया वर्ग की शीर्षस्थ नायिका है। सुरति प्रिया का सीधा सा तात्पर्य है जो रति प्रिय हो । रति-प्रिय शब्द का यदि सामान्य अर्थ लगाएं तो वह वासनात्मक ही होगा किंतु इसी रतिप्रिय शब्द में “सु लगा कर यह स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है कि ऐसी क्रीड़ा जो शालीन हो, सुसभ्य हो, आनंदप्रद हो . . . और ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब साधक स्वयं शिष्ट, शालीन, सुसभ्य हो। उसे वह कला आती हो कि कैसे किसी स्त्री से वासनात्मक बिम्बों को प्रकट किए बिना भी मधुर वार्तालाप किया जा सकता है, कैसे वह मधुर नोक-झोंक की जा सकती है जो किसी प्रेमी व प्रेमिका के मध्य सदैव चलती रहने वाली क्रीड़ा होती है। मृगाक्षी तो सम्पूर्ण रूप से प्रेमिका ही होती है, मधुर ही होती है, अपने साधक को रिझाने की कला जानती है, उसे तनावमुक्त करने के उपाय 'सृजित करती रहती है, उसे चिंतामुक्त बनाए रखने के प्रयास करती रहती है। तभी तो संन्यासियों के मध्य मृगाक्षी से अधिक लोकप्रिय कोई भी अप्सरा है ही नहीं । साधकों को यह जिज्ञासा हो सकती है कि कैसे एक ही अप्सरा अनेक-अनेक संन्यासियों के मध्य उपस्थित रह सकती- है? इसके प्रत्युत्तर के लिए ध्यान रखना चाहिए कि अप्सरा मूलतः देव वर्ग में आती है जो वर्ग अपने स्वरूप को कई-कई रूपों में विभक्त कर सकती है। 
    जब चर्चा गुरुदेव के बारे में चली तो उन्हें उनके साथ व्यतीत किए हुए दिन याद हो आए। उन्होंने बताया कि मैं लगभग 'एक वर्ष से भी ज्यादा उनके साथ रोहतांग के पास रहा था, और उनसे काफी कुछ साधनाएं मुझे प्राप्त हुई थीं । 
    पर इसके बाद मेरा रुझान अप्सरा साधना की ओर बढ़ गया, और मैंने अपने जीवन में यह निश्चय किया कि सभी साधनाओं को परख लूं और सभी साधनाएं संपन्न कर लूं, और मुझे इसमें पूरी कामयाबी मिली । लगभग सभी अप्सराओं को मैंने सिद्ध किया है, यद्यपि उन सब की क्रिया, उन सब को सिद्ध करने का तरीका अपने आप में अलग, और गोपनीय है, यदि ' मंत्र महार्णव ' आदि ग्रंथों में प्रकाशित साधनाओं के आधार पर इन्हें सिद्ध किया जाए तो सफलता नहीं मिल पाती है। 
    मैंने परिश्रम कर कई संन्यासियों से और इस क्षेत्र के श्रेष्ठ योगियों से मिल कर इन साधनाओं को सीखा है, सिद्ध किया है, उन्हें प्रत्यक्ष किया है, और अब मैं इससे संबंधित ग्रंथ लिख रहा हूं, यदि साधकों का सौभाग्य होगा तो यह ग्रंथ प्रकाशित भी होगा। अप्सरा साधना सिद्ध करने से व्यक्ति निश्चिन्त और प्रसन्न चित्त बना रहता है, उसे अपने जीवन में मानसिक तनाव व्याप्त नहीं होता। अप्सरा के माध्यम से उसे मनचाहा स्वर्ण, द्रव्य, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक पदार्थ उपलब्ध होते रहते हैं। यही नहीं अपितु सिद्ध करने पर अप्सरा साधक के पूर्णत: वशवर्ती हो जाती है, और साधक जो भी आज्ञा देता है, उस आज्ञा का वह तत्परता के साथ पालन करती है। 
    साधक के चाहने पर वह सशरीर उपस्थित होती है, यों सूक्ष्म रूप से साधक की आंखों के सामने वह हमेशा बनी रहती है। इस प्रकार सिद्ध की हुई अप्सरा ' प्रिया '' रूप में ही साधक के साथ रहती है। जब हमने सुरति प्रिया अप्सरा साधना रहस्य के बारे में जिज्ञासा प्रगट की, तो वे एक क्षण के लिए चौंके, किंतु उन्हें यह ज्ञात था कि हम गुरुदेव के विधिवत दीक्षित शिष्य हैं, अत: उन्होंने ' मृगाक्षी अप्सरा साधना रहस्य स्पष्ट कर दिया, जो कि अभी तक सर्वथा गोपनीय रहा है। मृगाक्षी का तात्पर्य मृग के समान भोली और सुन्दर आंखों वाली अप्सरा से है। जो सुंदर, आकर्षक , मनोहर, चिरयौवनवती और प्रसन्न चित्त अप्सरा है, और निरंतर साधक का हित चिंतन करती रहतीं है, जिसके शरीर से निरंतर पद्म गंध प्रवहित होती रहती है, और जो एक बार सिद्ध होने पर जीवन भर साधक के वश में बनी रहती है । स्वामी जी ने हमें इससे संबंधित तांत्रिक प्रयोग स्पष्ट किया था, जो कि वास्तव में ही अचूक और महत्वपूर्ण है। 
    किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक अत्यन्त सुंदर सुसज्जित वस्त्र पहिन कर साधना स्थल पर बैठे। इसमें किसी भी प्रकार के वस्त्र पहने जा सकते हैं, जो सुंदर हों, आकर्षक हों, साथ ही साथ अपने कपड़ों पर गुलाब का इत्र लगावे और कान में भी गुलाब के इत्र का फोहा लगा लें। 
    फिर सामने गुलाब की दो मालाएं रखें और उसमें से एक माला साधना के समय स्वयं धारण कर लें । 

    इसके बाद एक थाली लें, जो कि लोहे की या स्टील की न हो, फिर उस थाली में निम्न मृगा क्षी अप्सरा यंत्र का निर्माण चांदी के तार से या चांदी की सलाका से या केसर से अंकित करें ।
    फिर इस पात्र में पहले से ही सिद्ध किया हुआ, दिव्य तेजस्वी मृगा क्षी अप्सरा महायंत्र' स्थापित करें, जो कि पूर्ण मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित, चैतन्य और सिद्ध हो। इस यंत्र के चार कोनों पर चार बिन्दियां लगाएं और पात्र के चारों ओर चार घी के दीपक लगाएं, दीपक में जो घी डाला जाए, उसमें थोड़ा गुलाब का इत्र भी मिला दें, फिर पात्र के सामने पांचवां बड़ा सा दीपक घी का लगावें और अगरबत्ती प्रज्जवलित करें तथा इस मंत्र सिद्ध तेजस्वी *' मृगा क्षी महायंत्र'' पर 2। गुलाब के पुष्प निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए चढ़ाएं । मंत्र 
    । ॐ मृगाक्षी अप्सरायै वश्यं कुरु कुरु फट । 
    जब 2। गुलाब के पुष्प चढ़ा चुकें तब प्रामाणिक और सही स्फटिक माला से निम्न मंत्र की 2। माला मंत्र जप करें, इस मंत्र जप में मुश्किल से दो घंटे लगते हैं। गोपनीय मृगाक्षी महामंत्र 
    ॐ श्रृं श्रें मृगाक्षी अप्सरायै सिद्ध वश्यं श्रें श्रूं फट ।। 
    जब 2 माला मंत्र जप हो जाए, तब वह स्फटिक माला भी अपने गले में धारण कर लें, ठीक इसी अवधि में जब मृगा क्षी अप्सरा कमरे में उपस्थित हो, (साधना करते समय कमरे में साधक के अलावा और कोई प्राणी न हो) तब सामने रखी हुई दूसरी गुलाब के पुष्प की माला उसके गले में पहना दें, और वचन लें कि वह जीवन भर अमुक गोत्र के, अमुक पिता के, अमुक पुत्र (साधक ) के वश में रहेगी, और जब भी वह इस मंत्र का ग्यारह बार उच्चारण करेगा तब वह उपस्थित होगी, तथा जो भी आज्ञा देगा उसका तत्क्षण पालन करेगी।

    यह एक दिन की साधना है, और कोई भी साधक इस साधना को सिद्ध कर सकता है। किसी भी शुक्रवार की रात्रि को यह साधना सिद्ध की जा सकती है। 

    इस साधना को सिद्ध करने के लिए थोड़े बहुत धैर्य की जरूरत है, क्योंकि कई बार पहली बार में सफलता नहीं भी मिल पाती, तो साधक को चाहिए, कि वह इसी साधना को दूसरी बार या तीसरी बार भी सम्पन्न करें, परंतु अगले किसी भी शुक्रवार की रात्रि को ही यह साधना करें । साधना समय दी 

    यह साधना रात्रि को ही सम्पन्न की जा सकती है, और साधक चाहे तो अपने घर में या किसी भी अन्य स्थान पर इस साधना को सम्पन्न कर सकता है। 

    किसी भी शुक्रवार की रात्रि को साधक सुंदर, सुसज्जित वस्त्र पहने, इसमें यह जरूरी नहीं है कि साधक धोती ही पहिने, अपितु उसको जो वस्त्र प्रिय हो, जो वस्त्र उसके शरीर पर खिलते हों, या जिन वस्त्रों को पहिनने से वह सुन्दर लगता हो, वें वस्त्र धारण कर साधक उत्तर दिशा की ओर मुंह कर आसन पर बैठे। बैठने से पूर्व अपने वस्त्रों पर सुगन्धित इत्र का छिड़काव करें और पहले से ही दो सुंदर गुलाब की मालाएं ला कर अलग पात्र में रख दें। यदि गुलाब की माला उपलब्ध न हो तो किसी भी प्रकार के पु्पों की माला ला कर रख सकता है। फिर सामने एक रेशमी वस्त्र पर अद्वितीय 'नाभिदर्शना महायंत्र ' को स्थापित करें और केसर से उसे तिलक करें । यंत्र के पीछे नाभिदर्शना चित्र' को फ्रेम में मढ़वा कर रख दें, और सामने सुगन्धित अगरबत्ती एवं शुद्ध घृत का दीपक लगाएं। इसके बाद हाथ में जल लेकर संकल्प करें, कि मैं अमुक गोत्र, अमुक पिता का पुत्र, अमुक नाम का साधक, नाभिदर्शना अप्सरा को प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, जिससे कि वह जीवन भर मेरे वश में रहे, और मुझे प्रेमिका की तरह ही सुख, आनंद एवं ऐश्वर्य प्रदान करे । इसके बाद ' नाभिदर्शना अप्सरा माला ' से निम्न मंत्र जप संपन्न करें। इसमें 5। माला मंत्र जप उसी रात्रि को सम्पन्न हो जाना चाहिए, हो सकता है, इसमें तीन या चार घंटे लग सकते हैं । अगर बीच में घुंघुरुओं की आवाज आए या किसी का स्पर्श अनुभव हो,तो साधक विचलित न हो और अपना ध्यान न हटाएं, अपितु 5। माला मंत्र जप एकाग्र चित्त हो कर सम्पन्न करें। इस साधना में जितनी ही ज्यादा एकाग्रता होगी, उतनी ही ज्यादा सफलता मिलेगी। 5। माला पूरी होते होते जब यह अद्वितीय अप्सरा घुटने से घुटना सटाकर बैठ जाए, तब मंत्र जप पूरा होने के बाद साधक अप्सरा माला को स्वयं धारण कर लें, और सामने रखी हुई गुलाब की माला उसके गले में पहिना दें । ऐसा करने पर नाभिदर्शना अप्सरा भी सामने रखी हुई दूसरी माला उठा कर साधक के गले में डाल देती है। तब साधक नाभिदर्शना अप्सरा से वचन ले ले कि मैं जब भी अप्सरा माला से एक माला मंत्र जप करूं, तब तुम्हें मेरे सामने सशरीर उपस्थित होना है, और मैं जो चाहूं वह मुझे प्राप्त होना चाहिए तथा पूरे जीवन भर मेरी आज्ञा को उल्लंघन न हो। तब नाभि दर्शना अप्सरा साधक के हाथ पर अपना हाथ रखकर वचन देती है, कि मैं जीवन भर आपकी इच्छानुसार कार्य करती रहूंगी। इस प्रकार साधना को पूर्ण समझें, और साधक अप्सरा के जाने के बाद उठ खड़ा हो । साधक को चाहिए, कि वह इस घटना को केवल अपने गुरु के अलावा और किसी के सामने स्पष्ट न करे, क्योंकि साधना ग्रंथों में ऐसा ही उल्लेख मुझे पढ़ने को मिला है। 




    नाभिदर्शन अप्सरा साधना मंत्र 





    मैंने जिस मंत्र से इस साधना को सिद्ध किया है, वह मंत्र है - 

    मंत्र ॐ ऐं श्रीं नाभीदर्शना अप्सरा प्रत्यक्ष श्री ऐं फट ।

    उपरोक्त मंत्र गोपनीय है, साधना सम्पन्न होने पर नाभिदर्शना अप्सरा महायंत्र को अपने गोपनीय स्थान पर रख दें, और अप्सरा चित्र को भी अपने बाक्स में रख दें। गले में जो अप्सरा माला पहनी हुई है, वह भी अपने घर में गुप्त स्थान पर रख दें दे जिससे कि कोई दूसरा उसका उपयोग न कर सके। 



    बिशेस बाते अप्सरा साधना 



    जब साधक को भविष्य में नाभिदर्शना अप्सरा को बुलाने की इच्छा हो, तब उस महायंत्र के सामने अप्सरा माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला मंत्र जप कर लें । अभ्यास होने के बाद तो यंत्र या माला की आवश्यकता भी नहीं होती, केवल मात्र सौ बार मंत्र उच्चारण करने पर ही अप्सरा प्रत्यक्ष प्रकट हो जाती है।


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