गुप्त शत्रु बाधा से मुक्ति के उपाय(Gupta Shatru Badha Se Mukti Ke Upay)
गुप्त शत्रु बाधा ,तंत्र मंत्र बाधा ,भूत प्रेत ऊपरी हवा बाधा, चुड़ेल डायन डाकिनी बाधा,ग्रह बाधा,अकाल मृत्यु जोग ,कोर्ट में कही मुकद्दमा चल रहा हे विजय के लिए ईस कलियुग में सबसे उग्र प्रयोग काल भैरव महाराज के नित्य पूजा करना और उनके मंत्र और भैरव अष्टक ,भैरव १०८ नाम का पाठ करना।
भैरव कोन हे(bhairab kon hain):
जितना शक्ति पीठ हे देवी सती मा की उतनी भैरव का रूप हे ।
भैरव कितना हे(bhairab kitna he)
आमतौर पर 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं। तंत्र चूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है।शास्त्रो के अनुसार कितने शक्ति पीठ है1.देवी भागवत पुराण के अनुसार 108, 2 .कालिका पुराण के अनुसार 26 , 3 .शिवचरित्र मे 51, 4 .दुर्गा सप्तशती और तंत्र चूड़ामणि के अनुसार शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। कई विद्वान 51 शक्तिपीठ ही मानते हैं। किन्तु तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्ति पीठों का उल्लेख है जो दुर्गा सप्तशती से मिलान करता है । मैं स्वामी महेश इनके अनुसार ही 52 शक्ति पीठ के स्थान व भैरव के नाम का उल्लेख करता हूँ ... कहा जाता है कि इन शक्तिपीठों व इनके भैरव के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाती है।1 .हिंगलाज कराची से (पाकिस्तान ) इसकी शक्ति- कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व भैरव भीम लोचन हैं। 2.शर्कररे यह भी पाकिस्तान कराची । इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी व भैरव क्रोधिश हैं। 3.सुगंधा बांग्लादेश शिकारपुर के पास । इसकी शक्ति सुनंदा है व भैरव को त्र्यंबक हैं। 4.महामाया कश्मीर में पहलगांव के निकट । इसकी शक्ति है महामाया और भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं। 5.ज्वाला जी हिमाचल प्रदेश कांगड़ा । इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव उन्मत्त हैं। 6.त्रिपुरमालिनी पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव 🌸भीषण हैं। 7.वैद्यनाथ झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव वैद्यनाथ हैं। 8.महामाया नेपाल में गुजरेश्वरी मंदिर, इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव कपाली हैं। 9.दाक्षायणी तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास पाषाण शिला इसकी शक्ति हैदाक्षायणी और भैरव अमर। 10.विरजा ओडिशा के विराज में उत्कल इसकी शक्ति विमला है व भैरव जगन्नाथ कहते हैं। 11.गंडकी नेपाल में मुक्ति नाथ मंदिर, इसकी शक्ति है गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं। 12.बहुला पश्चिम बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल इसकी शक्ति है देवी बाहुला व भैरव भीरुक हैं। 13.उज्जयिनी पश्चिम बंगाल के उज्जयिनी । इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव कपिलांबर हैं। 14.त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर । इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी व भैरव त्रिपुरेश हैं। 15.भवानी बांग्लादेश चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) । भवानी इसकी शक्ति हैं व भैरव चंद्रशेखर हैं। 16.भ्रामरी पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत । इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव अंबर और भैरवेश्वर हैं। 17.कामाख्या असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत । कामाख्या इसकी शक्ति है व भैरव उमानंद हैं। 18.प्रयाग उत्तर प्रदेश के इलाहबाद (प्रयाग) के संगम तट । इसकी शक्ति है ललिता और भैरव भव हैं। 19.जयंती बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, । इसकी शक्ति है जयंती और भ क्रमदीश्वर हैं। 20.युगाद्या पश्चिम बंगाल के युगाद्या स्थान पर । इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव क्षीर खंडक हैं। 21.कालीपीठ कोलकाता के कालीघाट । इसकी शक्ति है कालिका और भैरव नकुशील हैं। 22.किरीट पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम । इसकी शक्ति है विमला व भैरव संवत्र्त हैं। 23.विशालाक्षी यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट। शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव काल भैरव हैं। 24.कन्याश्रम कन्याश्रम में। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव निमिष हैं। 25.सावित्री हरियाणा के कुरुक्षेत्र में । इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव🌸 स्थाणु हैं। 26.गायत्री अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान के गायत्री पर्वत । इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव सर्वानंद हैं। 27.श्रीशैल बांग्लादेश के शैल नामक स्थान। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव शम्बरानंद हैं। 28.देवगर्भा पश्चिम बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर । इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव रुरु हैं। 29.कालमाधव मध्यप्रदेश के सोन नदी तट के पास , जहां एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव असितांग हैं। 30.शोणदेश मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान । इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव भद्रसेन हैं। 31.शिवानी यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर । इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव चंड हैं। 32.वृंदावन मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर। इसकी शक्ति है उमा और भैरव 🌸भूतेश हैं। 33.नारायणी कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है। शक्तिनारायणी और भैरव संहार हैं। 34.वाराही पंचसागर (अज्ञात स्थान) में। इसकी शक्ति है वराही और भैरव महारुद्र हैं। 35.अपर्णा बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर। इसकी शक्ति अर्पणा और भैरव वामन हैं। 36.श्रीसुंदरी लद्दाख के पर्वत पर । इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव सुंदरानंद हैं। 37.कपालिनी पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष । इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव शर्वानंद हैं। 38.चंद्रभागा गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव वक्रतुंड हैं। 39.अवंती ( हरसिद्धी ) उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास । इसकी शक्ति है अवंति और भैरव लम्बकर्ण महाकाल हैं। 40.भ्रामरी महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर। शक्ति है भ्रामरी और भैरव है 41.विकृताक्ष। सर्वशैल स्थान आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास। इसकी शक्ति है राकिनी और भैरव वत्सनाभम हैं। 42.गोदावरीतीर । इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव दंडपाणि हैं। 43.कुमारी बंगाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर । इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव शिव हैं।44.उमा महादेवी भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में। इसकी शक्ति है उमा और भैरव महोदर हैं। 45.कालिका पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट । इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव योगेश हैं। 46.कर्नाट (अज्ञात स्थान) । इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं। 47.महिषमर्दिनी पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर। शक्ति है महिषमर्दिनी व भैरव वक्रनाथ हैं। 48.यशोरेश्वरी बांग्लादेश के खुलना जिला में । इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं। 49.फुल्लरा पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं। 50.नंदिनी पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप । शक्ति नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर हैं। 51.इंद्राक्षी श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में । इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव राक्षेश्वर हैं। 52.अंबिका विराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अंगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है अंबिका और भैरव को अमृत कहते हैं। यद्यपि टंकण मे पूर्ण सावधानी रखी गई है किन्तु अगर कोई त्रुटी या संशोधन है तो स्वागत है .
५२भैरव हे सबसे उग्र क्रोध भैरव ,संहार भैरव,बटुक भैरव, उन्मत्त भैरव।
आप हर दिन नित्य भैरव अष्टक पाठ के साथ किसीभी भैरव का मंत्र जप करने से जल्दी काम होते हे।भैरव महाराज को प्रसन्न करने के लिए भोग जैसे मीठा ,लड्डु,संदेश, हलुबा,खीरी,जेलिबी दे सकते हे आप चाहेंगे तो मांस ,मछली,देशी दारू भोग में दे सकते हे साथ एक लेम्बू और जाय फल को भी भोग में दे देंगे, साथ में एक सिगारेट को जालाके भैरव जीका सामने रखना हे।भैरव पूजा हर दिन रात ११ बजे के बाद करना चाहिए ।पूजा के बाद भोग प्रथम काले कुत्ते को खिलाना चाहिये ।भैरव महाराज को अधिक प्रसन्न करने के लिए स्त्रुति और भैरव तांडव और उनके १०८ नाम का पाठ कर सकते हे।
भैरव अष्टक(Bhairab Astak):
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥
भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम्।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥
शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥
भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥
धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥
रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥
भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥
॥ फल श्रुति॥
कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥
॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥
काल भैरव का १०८ नाम (Bhairab Shata Nam):
2. ॐ ह्रीं भूतनाथाय नम:
3. ॐ ह्रीं भूतात्मने नम:
4. ॐ ह्रीं भू-भावनाय नम:
5. ॐ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नम:
6. ॐ ह्रीं क्षेत्रपालाय नम:
7. ॐ ह्रीं क्षेत्रदाय नम:
8. ॐ ह्रीं क्षत्रियाय नम:
9. ॐ ह्रीं विराजे नम:
10. ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नम:
11. ॐ ह्रीं मांसाशिने नम:
12. ॐ ह्रीं खर्पराशिने नम:
13. ॐ ह्रीं स्मारान्तकृते नम:
14. ॐ ह्रीं रक्तपाय नम:
15. ॐ ह्रीं पानपाय नम:
16. ॐ ह्रीं सिद्धाय नम:
17. ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नम:
18. ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नम:
19. ॐ ह्रीं कंकालाय नम:
20. ॐ ह्रीं कालशमनाय नम:
21. ॐ ह्रीं कला-काष्ठा-तनवे नम:
22. ॐ ह्रीं कवये नम:
23. ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नम:
24. ॐ ह्रीं बहुनेत्राय नम:
25. ॐ ह्रीं पिंगललोचनाय नम:
26. ॐ ह्रीं शूलपाणाये नम:
27. ॐ ह्रीं खड्गपाणाये नम:
28. ॐ ह्रीं धूम्रलोचनाय नम:
29. ॐ ह्रीं अभीरवे नम:
30. ॐ ह्रीं भैरवीनाथाय नम:
31. ॐ ह्रीं भूतपाय नम:
32. ॐ ह्रीं योगिनीपतये नम:
33. ॐ ह्रीं धनदाय नम:
34. ॐ ह्रीं अधनहारिणे नम:
35. ॐ ह्रीं धनवते नम:
36. ॐ ह्रीं प्रतिभागवते नम:
37. ॐ ह्रीं नागहाराय नम:
38. ॐ ह्रीं नागकेशाय नम:
39. ॐ ह्रीं व्योमकेशाय नम:
40. ॐ ह्रीं कपालभृते नम:
41. ॐ ह्रीं कालाय नम:
42. ॐ ह्रीं कपालमालिने नम:
43. ॐ ह्रीं कमनीयाय नम:
44. ॐ ह्रीं कलानिधये नम:
45. ॐ ह्रीं त्रिलोचननाय नम:
46. ॐ ह्रीं ज्वलन्नेत्राय नम:
47. ॐ ह्रीं त्रिशिखिने नम:
48. ॐ ह्रीं त्रिलोकभृते नम:
49. ॐ ह्रीं त्रिवृत्त-तनयाय नम:
50. ॐ ह्रीं डिम्भाय नम:
51. ॐ ह्रीं शांताय नम:
52. ॐ ह्रीं शांत-जन-प्रियाय नम:
53. ॐ ह्रीं बटुकाय नम:
54. ॐ ह्रीं बटुवेषाय नम:
55. ॐ ह्रीं खट्वांग-वर-धारकाय नम:
56. ॐ ह्रीं भूताध्यक्ष नम:
57. ॐ ह्रीं पशुपतये नम:
58. ॐ ह्रीं भिक्षुकाय नम:
59. ॐ ह्रीं परिचारकाय नम:
60. ॐ ह्रीं धूर्ताय नम:
61. ॐ ह्रीं दिगंबराय नम:
62. ॐ ह्रीं शौरये नम:
63. ॐ ह्रीं हरिणाय नम:
64. ॐ ह्रीं पाण्डुलोचनाय नम:
65. ॐ ह्रीं प्रशांताय नम:
66. ॐ ह्रीं शांतिदाय नम:
67. ॐ ह्रीं शुद्धाय नम:
68. ॐ ह्रीं शंकरप्रिय बांधवाय नम:
69. ॐ ह्रीं अष्टमूर्तये नम:
70. ॐ ह्रीं निधिशाय नम:
71. ॐ ह्रीं ज्ञानचक्षुषे नम:
72. ॐ ह्रीं तपोमयाय नम:
73. ॐ ह्रीं अष्टाधाराय नम:
74. ॐ ह्रीं षडाधाराय नम:
75. ॐ ह्रीं सर्पयुक्ताय नम:
76. ॐ ह्रीं शिखिसखाय नम:
77. ॐ ह्रीं भूधराय नम:
78. ॐ ह्रीं भूधराधीशाय नम:
79. ॐ ह्रीं भूपतये नम:
80. ॐ ह्रीं भूधरात्मजाय नम:
81. ॐ ह्रीं कपालधारिणे नम:
82. ॐ ह्रीं मुण्डिने नम:
83. ॐ ह्रीं नाग-यज्ञोपवीत-वते नम:
84. ॐ ह्रीं जृम्भणाय नम:
85. ॐ ह्रीं मोहनाय नम:
86. ॐ ह्रीं स्तम्भिने नम:
87. ॐ ह्रीं मारणाय नम:
88. ॐ ह्रीं क्षोभणाय नम:
89. ॐ ह्रीं शुद्ध-नीलांजन-प्रख्य-देहाय नम:
90. ॐ ह्रीं मुंडविभूषणाय नम:
91. ॐ ह्रीं बलिभुजे नम:
92. ॐ ह्रीं बलिभुंगनाथाय नम:
93. ॐ ह्रीं बालाय नम:
94. ॐ ह्रीं बालपराक्रमाय नम:
95. ॐ ह्रीं सर्वापत्-तारणाय नम:
96. ॐ ह्रीं दुर्गाय नम:
97. ॐ ह्रीं दुष्ट-भूत-निषेविताय नम:
98. ॐ ह्रीं कामिने नम:
99. ॐ ह्रीं कला-निधये नम:
100. ॐ ह्रीं कांताय नम:
101. ॐ ह्रीं कामिनी-वश-कृद्-वशिने नम:
102. ॐ ह्रीं जगद्-रक्षा-कराय नम:
103. ॐ ह्रीं अनंताय नम:
104. ॐ ह्रीं माया-मन्त्रौषधी-मयाय नम:
105. ॐ ह्रीं सर्वसिद्धि प्रदाय नम:
106. ॐ ह्रीं वैद्याय नम:
107. ॐ ह्रीं प्रभविष्णवे नम:
108. ॐ ह्रीं विष्णवे नम :
महा घातक क्रोध भैरब मंत्र साधना :
क्रोध मंत्र भगबान भैरब का घातक एवं उग्र मंत्र है। जिसके समुचित प्रयोग करने पर तत्काल शत्रुकुल, महाभयंकर्
ब्याधि दुःख असाध्य रोग आदि भगबान क्रोध राज की ज्बाला से बिनस्ट हो जाते है।
क्रोध भैरब मंत्र जप अनुभबि गुरु की सं रक्षन में करना चाहिये। क्रोध भैरब साधना के आदि एवं अन्त में शांति तथा बलिदान कर्म करना निर्धारित है।
महा क्रोध भैरब का ध्यान इस प्रकार है-
षडंगन्यास के द्वारा भगवान् भ्रैरव को अंगों में भावित करें-
ॐ वब्रवोधि हृदयाय नमः
ॐ हन-हन वज्र हुं शिरसे स्वाहा।
ॐ दह-दह वज्र हुं शिखायै वषट्।
ॐ फट वज्र फट कवचाय हूं।
ॐ दीप्त बज्र हुं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ हन-हन दह-दह.. क्रोध. वज्र.. सर्वदुष्ठान मारय-मारय हुं फट स्वाहा अस्त्राय फट़।
क्रोधराज महामंत्र- 'ऊं हुं बज्र फट् कुं क्रौं क्रुं क्रुं हुं हुं फट!
क्रोध भैरव के मंत्र जप करने से मनुष्य का त्रिलोक पर अधिपत्य होता है। क्रोधमंत्र के उच्चारण मात्र से भूतप्रेत पिशाचवेताल ब्रह्मराक्षस लौकिक देवगण चारों दिशाओं से भाग जाते हैं। इस मंत्र के प्रभाव से साधक का शरीर बज्र के समान सुदृढ़ हो जाता है तथा साधक के महाबली शत्रु थर-थर कांपते हैं।
सिद्धिलाभ के लिये पूर्णिमा रात्रि को समस्त नियमों को ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण रात्रि जप करना चाहिये।
इस प्रकार जप करने से प्रभात के समय क्रोधराज की साधक पर अनुकम्पा होती है।
क्रोधयाज की सिद्धि होने पर मनुष्य क्रोधराज के समान अतुल बल प्राप्त करता है। विशेष संख्या में जप कर लेने के पश्चात् साधक समस्त प्रकार की दुर्लभ सिद्धियों को स्वतः प्राप्त कर लेता है। इस मंत्र की साधना के प्राख्भ में साधक में क्रोध एवं आवेश की अधिकता रहती है, जो कि देवता के स्वभाव से प्राप्त होती है। कार्य, परिस्थिति एवं साधक की योग्यतानुसार इनकी पूजा गृहमन्दिर, शिवालय अथवा श्मशान में सम्पन्न की जाती है। चतुर्दशी, शनिवार, रविवार, सोमवार, अमावस्या अथवा पूर्णिमा तिथि में इनका अनुष्ठान आख्भ किया जा सकता है। सामग्री पूजन, माला, दीपक, दिशा, नैवेद्य, पुष्प, आसन, हवन, तर्पण एवं यंत्र लेपनादि विधि का चुनाव कार्यानुसार किया जाता है। सर्व मंत्रों में यह मारक मंत्र है, जो महाप्रबल दुर्भाग्य का विनाश करने में सक्षम है। चूंकि क्रोध्रैख स्तोत्र, सहस्त्र नाम आदि तंत्रशास्त्र में उपलब्ध नहीं देखे गये हैं। अतः आवश्यकतानुसार आकाश भ्रैरव स्तोत्र, स्वर्णकर्षण भैरव स्तोत्र, शरभसहस्त्रनाम अथवा चण्डिका मालमंत्र द्वारा क्रोधभरैस मंत्र का सम्पुठित कर विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह साधना पूर्णरूप से गुरुगम्य है। निम्न कोटि साधक इसके प्रयोग से किसी प्रकार की हानि तक न पंहुवे। इसलिये सांकेतिक भाषा में इस महामंत्र की विधि को प्रस्तुत करना उचित समझा।
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