विवाह कारक शिव-पार्वती अनुष्ठान
वर्तमान में एक विशेष स्थिति देखने में आ रही है। जैसे-जैसे समाज का भौतिक आधार बढ़ता जा रहा है और लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरती जा रही है, वैसे-वैसे
सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य के साधन बढ़ते जा रहे हैं। इसके साथ यह स्थिति भी देखने में आ रही है कि जैसे-जैसे लोगों का बौद्धिक स्तर बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे ही अनेक प्रकार की सामाजिक समस्यायें सामने आती जा रही हैं। शिक्षा के प्रसार, आर्थिक स्थिति के सुधार और सुख - सम्पन्नता के साधन जुटाने के साथ-साथ परस्पर विश्वास एवं निर्भरता की कड़ी कमजोर पड़ती जा रही है। इसलिये विवाह के साथ-साथ गृहस्थ जीवन, पारिस्परिक सम्बन्धों, प्रेम, अपनत्व एवं विश्वास की भावना में भी निरन्तर गिरावट आने लगी है।
शिक्षा के प्रसार और आर्थिक स्थिति सुधरने का सबसे अधिक प्रभाव वैवाहिक संबंधों में देखा जाने लगा है। अधिकतर सम्पन्न और पढ़े-लिखे परिवारों को अब अपने बेटों या बेटियों के लिये सुयोग्य वर या वधू के लिये लम्बे समय तक प्रयास व इंतजार करना पड़ता है। उनके भावी संबंध स्थायी बने रह पायेंगे अथवा नहीं, इसका भी हमेशा
संशय बना रहता है। युवाओं में स्वतंत्रता एवं निर्णय लेने की भावना के बढ़ते जाने और समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन शुरू हो जाने के उपरांत बच्चों का विवाह कार्य सम्पन्न करना एक जटिल समस्या बनता जा रहा है। चाहे वैवाहिक कार्य के समय पर सम्पन्न न हो पाने, रिश्तों का बनते-बनते रह जाना अथवा अकारण ही बीच में रिश्ता टूट जाने के
पीछे अनेक कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, पर एक बात सर्वमान्य है कि वैवाहिक विलम्ब एक सामान्य समस्या बन गयी है। विवाह बाधा अथवा विवाह विलम्ब के पीछे कोई भी कारण क्यों न हो, तंत्र के पास उसका समाधान है । तंत्र आधारित ऐसे अनुष्ठानों को सम्पन्न करते ही अनेक बार वैवाहिक कार्य तत्काल सम्पन्न होने की स्थितियां बनने लगती हैं। इस अध्याय में शिव-पार्वती की तांत्रोक्त उपासना पर आधारित एक अनुभूत अनुष्ठान दिया जा रहा है। यह तांत्रिक अनुष्ठान अनेक लोगों द्वारा प्रयोग किया गया है। अधिकांश अवसरों पर इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से वांछित कामनाओं की पूर्ति अतिशीघ्र होने लगती है। जिस समस्या को दूर करने की कामना से यह अनुष्ठान किया जाता है, वह समस्या दूर होने लगती है। अगर इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को पूर्ण भक्तिभाव एवं श्रद्धायुक्त
होकर सम्पन्न किया जाये तो तीन महीनों के भीतर ही वैवाहिक कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाता है।। इस अनुष्ठान की सबस बड़ी विशेषता यह है कि इसे सम्पन्न करने के पश्चात् विवाह में आने वाली बाधायें तो दूर होती ही है, साथ ही मनवांछित जीवनसाथी भी मिलता है विवाह में यह बात बहुत महत्त्व रखती है कि विवाह में उत्पन्न होने वाली बाधायें दूर होने के बाद जीवनसाथी कैसा मिलता है। अगर किसी अनुष्ठान को करने से एक पच्चीस- छब्बीस वर्ष की आयु वाली युवती का विवाह किसी प्रौढ़ व्यक्ति अथवा किसी विदुर से होता है तो इसका क्या औचित्य है ? विवाह हमेशा ही सात जन्मों का सम्बन्ध माना गया है, अगर किसी व्यक्ति अथवा युवती के विवाह के बाद एक जन्म का साथ भी ठीक से न चल पाये, विवाह सुख की प्राप्ति के स्थान पर जीवन अनेक प्रकार की समस्याओं से भर जाये तो इसे किस प्रकार का विवाह माना जाये, इस पर विचार किया जाना आवश्यक
है। अगर जीवनसाथी मन अनुरूप मिलता है तो जीवन सुख से व्यतीत होने लगता है। जीवन में कभी किसी प्रकार की समस्या अथवा परेशानियां आती हैं तो उसका मिलजुल कर सामना करके उन पर विजय प्राप्त की जाती है । इस दृष्टि से शिव-पार्वती के इस अनुष्ठान का महत्त्व बढ़ जाता है । यह अनुष्ठान करते समय कन्या किस प्रकार का वर चाहती है, इसकी कल्पना मन ही मन करे । इसी प्रकार किसी युवक को यह अनुष्ठान करना है तो उसे भी मानसिक रूप में उस कन्या का स्मरण करना होगा जिसे वह पत्नी के
रूप में प्राप्त करना चाहता है। इसमें यह विशेष ध्यान रखना आवश्यक है कि अपनी स्थिति के अनुसार ही पति अथवा पत्नी की कल्पना करें। अगर एक युवक कल्पना में किसी अभिनेत्री से विवाह की कल्पना करता है तो ऐसी कामना पूर्ण नहीं होती है । यही स्थिति कन्या के साथ भी लागू होती है। ऐसी स्थिति में कामना पूर्ण न होने का दोष अनुष्ठान के परिणामों को न दें ।
शिव-पार्वती अनुष्ठान की प्रक्रिया :
इस अनुष्ठान को किसी भी सोमवार के दिन से प्रारम्भ किया जाता है। अगर वह सोमवार शुक्लपक्ष का हो तो और भी अच्छा रहता है। वैसे भी शिव और माँ पार्वती की पूजा-अर्चना का दिवस सोमवार ही है। अगर इस अनुष्ठान को किसी प्राचीन शिव मंदिर में जाकर और वहां शिव-पार्वती का पूर्ण विधि-विधानपूर्वक पूजन करके व वहीं शिवालय में बैठकर सम्पन्न किया जाये तो इसका तत्काल प्रभाव दिखाई देने लगता है। इस अनुष्ठान के दौरान अग्रांकित मंत्र का अभीष्ट संख्या में जाप करने से विवाह बाधा संबंधी समस्त समस्याओं से सहज ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
यह अनुष्ठान तीन महीने की अवधि का है। इस दौरान साधक ( कन्या अथवा युवक) को नियमित रूप से ग्यारह माला मंत्रजाप की पूरी करनी होती हैं । मंत्रजाप की इस संख्या को अपनी सामर्थ्यनुसार घटाकर पांच अथवा तीन मालाओं तक भी सीमित किया जा सकता है । इस अनुष्ठान को किसी भी शिव मंदिर में करने से फल की प्राप्ति शीघ्र होने के बारे में कहा गया है किन्तु वर्तमान में अपने आस-पास ऐसा कोई शिव मंदिर अथवा शिवालय मिल पाना कठिन लगता है जहां बैठकर यह अनुष्ठान सम्पन्न किया जा सके । जिन्हें यह सुविधा प्राप्त है वह अवश्य शिव मंदिर में इस अनुष्ठान को सम्पन्न कर सकते हैं अन्यथा इसे घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिये आपको नमर्देश्वर शिवलिंग की आवश्यकता होगी। नर्मदेश्वर शिवलिंग को प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं होती है। पूजा में इन्हें सीधे ही स्थान दिया जाता है। इसके लिये सामर्थ्य अनुसार पीतल, ताम्बे में अथवा चांदी का स्टेण्ड चाहिये, जिस पर शिवलिंग को स्थापित किया जा सके। घर में जिस स्थान पर आपको अनुष्ठान सम्पन्न करना है, उस स्थान को गोबर से लीप कर अथवा गोबर के अभाव में गंगाजल छिड़क कर स्थान शुद्धि करें। उस पर एक लकड़ी की चौकी रखें, उस पर शिवलिंग को स्थापित कर लें। इसके बाद की सम्पूर्ण प्रक्रिया वैसी ही रहेगी जैसी आगे बताई जा रही है।
इस अनुष्ठान की प्रक्रिया इस प्रकार है-
यह अनुष्ठान सोमवार के दिन से शुरू करना है और निरन्तर तीन महीने तक जारी रखना है। इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये शिव-पार्वती पूजनार्थ काले तिल, शतावरी की फली, कमल दाने (फूल डोडा), श्वेत आक के पुष्प, नागकेशर, तीन सप्तमुखी रुद्राक्ष, एक लघु पंचमुखी रुद्राक्ष माला, घी का दीपक, गुग्गुल युक्त धूप, जनेऊ, चुन्दरी एवं कुमकुम आदि की आवश्यकता होती है। अतः अनुष्ठान की शुरूआत करने से पहले उक्त समस्त सामग्रियों को एकत्रित करके रख लें। जिस सोमवार के दिन से इस अनुष्ठान को शुरू करना हो, उस दिन सबसे पहले प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व नहा-धोकर तैयार हो जायें। स्वच्छ, श्वेत रंग के वस्त्र पहन लें।
इसके पश्चात् एक गिलास कच्चा दूध में थोड़े से काले तिल, कमल दाने, श्वेत आक पुष्प, शतावरी, नागकेशर आदि को डालकर व अन्य पूजा सामग्री लेकर शिव मंदिर चले जायें। जो साधक यह अनुष्ठान मंदिर की अपेक्षा अपने घर पर ही सम्पन्न करना चाहते हैं, तो पूर्व में बताये अनुसार अनुष्ठान की तैयारी कर लें। शेष विधि यही रहेगी। शिवलिंग के सामने
उत्तराभिमुख होकर बैठ जायें। अपने बैठने के लिये कम्बल का आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करें। सबसे पहले शिवलिंग को काले तिल युक्त व अन्य सामग्री युक्त दूध से स्नान करायें, फिर उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराकर जनेऊ समर्पित करें। कुंकुम का टीका लगायें तथा रुद्राक्ष को जल से धोकर अग्रांकित मंत्र का उच्चारण करते हुये शिवलिंग पर अर्पित कर दें। रुद्राक्ष को अर्पित करने का मंत्र अग्रांकित प्रकार से है-
मंत्र- ॐ सकल दोष निवारणाय शिव पार्वतीय नमः ।
रुद्राक्ष अर्पित करने के पश्चात् शिव को आक पुष्प चढ़ावें । उन्हें पुष्पमाला व मौसमी फल अर्पित करें और अन्त में घी का दीपक जलाकर उनके सामने रख दें। इसके पश्चात् माँ पार्वती को दूध व जल से विधिवत स्नान करायें। तत्पश्चात् उन्हें कुंकुम का टीका लगाकर चुन्दरी चढ़ावें । उन्हें भी पुष्पमाला अर्पित करें। यह शिव-पार्वती की संक्षिप्त पूजा का क्रम है । इस संक्षिप्त पूजा के पश्चात् कम्बल या कुशा आसन पर बैठकर शिव व माँ पार्वती से अपनी प्रार्थना करें। उनसे शीघ्रताशीघ्र विवाह बाधा का निवारण करके विवाह कार्य सम्पन्न कराने का अनुरोध करें । अन्त में उनकी आज्ञा को शिरोधार्य करके उनके अग्रांकित मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप पूर्ण कर लें। इस अनुष्ठान के लिये अग्रांकित मंत्र का ग्यारह माला मंत्रजाप करने का विधान है। इसकी संख्या को अपनी सुविधानुसार भी व्यवस्थित किया जा सकता है।
शिव-पार्वती मंत्र इस प्रकार है-
हे गौरि शंकराद्वांगि यथा त्वं शंकर प्रिय
तथा मां कुरू कल्याणि कांत कांता सुदुर्लभाम् ॥
यह मंत्रजाप पंचमुखी लघु रुद्राक्ष माला के ऊपर सम्पन्न किया जाता है। जब आपका अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप पूर्ण जो जाये तो घी के दीपक के द्वारा शिव-पार्वती की ग्यारह - ग्यारह बार आरती उतार लें। तत्पश्चात् एक बार पुनः पूर्ण भक्तिभाव एवं श्रद्धायुक्त होकर अपनी प्रार्थना को दोहरा लें। आसन से उठने से पहले शिव की आज्ञा प्राप्त कर लें। एकाएक बिना आराध्य देवी की आज्ञा लिये आसन से उठ जाना, समस्त किये गये कर्म
को व्यर्थ कर डालता है। आसन से उठते समय शिव को अर्पित किए गये तीनों रुद्राक्ष को भी प्रसाद स्वरूप उठा लें तथा अपने साथ अपने घर ले आयें । घर आकर इन तीनों रुद्राक्ष को शुद्धता के साथ अपने पूजास्थल में किसी तांबे अथवा स्टील की प्लेट में रख दें । रात्रि के समय घर पर इनके सामने एक घी का दीपक जलाकर रख दिया करें । प्रथम सोमवार के दिन अगर उपवास रखा जाये, तो अति उत्तम रहता है । यद्यपि व्रत के दौरान फल, दूध का सेवन किया जा सकता है किन्तु इस दौरान नमक का सेवन न करें। इसके अलावा अपने विचारों को शुद्धतम बनाये रखें। अनुष्ठान सम्पन्न होने तक भूमि शयन करें ।
शिव-पार्वती के इस पूजा-अर्चना एवं मंत्रजाप के क्रम को निरन्तर तीन महीने तक इसी प्रकार से बनाये रखें ।निरन्तर तीन महीने तक, प्रत्येक दिन प्रातः काल नहा-धोकर व स्वच्छ वस्त्र पहन कर, समस्त पूजा सामग्री के साथ शिव मंदिर जायें अथवा यदि अनुष्ठान घर पर कर रहे हैं तो पूजास्थल पर पूर्वानुसार स्थान ग्रहण करें, साथ में तीनों शिवांक्षी रुद्राक्षों को भी ले
जायें। शिवालय में पूजा की सम्पूर्ण प्रक्रिया प्रथम दिन की भांति ही रखनी पड़ती है। सबसे पहले शिव को स्नान करायें (कन्याओं का शिव की जगह पार्वती की सर्वप्रथम
पूजा-
अर्चना करनी पड़ती है), उन्हें कुंकुम, चंदन अर्पित करें व पुष्प चढ़ायें। धूप, दीप प्रदान करें। तत्पश्चात् प्रथम दिन की भांति अपनी प्रार्थना को दोहराते हुये उनकी आज्ञा प्राप्त करके, पूर्ण एकाग्रचित्त होकर अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप पूर्ण कर लें । प्रथम सोमवार के अतिरिक्त जनेऊ और चुनरी चढ़ाना अनिवार्य नहीं है, लेकिन तीनों रुद्राक्षों की प्रत्येक दिन घर से लाकर एवं पानी अथवा गंगाजल से पवित्र करके उपरोक्त मंत्र के उच्चारण के साथ
शिवलिंग पर चढ़ाना अनिवार्य होता है। इसी प्रकार प्रत्येक सोमवार के दिन उपवास रखा जा सकता है।
इस अनुष्ठान की तीन माह की अवधि तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना तथा अपने में साविक भावना को बनाये रखना अनिवार्य होता है। इस अनुष्ठान अवधि में मांस, मछली, मदिरा आदि के सेवन से दूर रहना चाहिये । शिव-पार्वती का यह अनुष्ठान शुद्ध वैष्णव सिद्धान्त पर आधारित है।
अगर इस अनुष्ठान को शिव मंदिर में बैठकर सम्पन्न करना आपके लिये कठिन प्रतीत हो तो इस अनुष्ठान का घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है । घर पर इस अनुष्ठान को करने के लिये सबसे पहले घर के किसी कक्ष अथवा पूजा स्थल को धौ- पौंछ कर स्वच्छ करना होता है तथा अन्य पूजा सामग्री के साथ एक वट मूल निर्मित शिवलिंग अथवा नमर्देश्वर शिवलिंग की आवश्यकता होती है । इस वटमूल निर्मित शिवलिंग अथवा नमर्देश्वर शिवलिंग को सबसे पहले किसी रजतपत्र अथवा ताम्रपात्र के ऊपर स्थापित कर उसकी विधिवत पूजा-अर्चना करनी होती है । शिवलिंग के साथ सुपारी के रूप में पार्वती की स्थापना भी उनके वाम अंग में करनी चाहिये । इसके पश्चात् शिव-पार्वती, दोनों की विधिवत पूजा-उपासना करके अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप सम्पन्न करना चाहिये । 90वें दिन यह अनुष्ठान पूर्णता के साथ सम्पन्न हो जाता है। अतः इस अन्तिम दिन पूजा के क्रम में एक बार पुनः शिवलिंग पर जनेऊ के साथ शिवांक्षी रुद्राक्षों को मंत्रोच्चार के साथ चढ़ाना होता है, लेकिन अनुष्ठान की समाप्ति के बाद इन्हें वापिस घर नहीं लायें।
माँ पार्वती को भी अनुष्ठान के अन्तिम दिन एक बार पुनः चुनरी चढ़ानी होती है तथा श्रृंगार की अन्य वस्तुयें जैसे बिन्दी, सिन्दूर, चूड़ियां, लिपिस्टक आदि (अगर यह अनुष्ठान कन्या के द्वारा सम्पन्न किया जा रहा है) भी चढ़ानी होती है। इसके अतिरिक्त अनुष्ठान के अन्तिम दिन कम से कम तीन माला अतिरिक्त मंत्रजाप करने होते हैं। उस दिन स्वयं उपवास रखकर पांच कन्याओं को स्वादिष्ट भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिये । इस प्रकार यह अनुष्ठान सम्पूर्ण हो
जाता है ।
अगर इस अनुष्ठान को घर पर रहकर ही सम्पन्न किया गया है तो अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात्, अगले दिन समस्त पूजा-सामग्रियों को एकत्रित करके एक श्वेत व नये वस्त्र में बांधकर किसी पीपल के वृक्ष पर रख देना चाहिये अथवा बहते हुये पानी में प्रवाहित कर देना चाहिये।
इस शिव-पार्वती अनुष्ठान के दौरान अक्सर देखने में आया है कि इस अनुष्ठान को पूर्ण विधि-विधान से जारी रखने पर अधिकतर लड़के-लड़कियों के लिये दो से तीन महीनों के मध्य ही उनको मनोनुकल रिश्ता मिल जाता है।
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