माँ बगला की ब्रह्मास्त्र साधना
लड़ाई-झगड़ा, शत्रुओं से परेशानी, मुकदमेबाजी और न्यायालय आदि में पूर्ण विजय पाने के लिये बगला महाविद्या की पूजा-अर्चना करने, उनके अनुष्ठान सम्पन्न कराने का प्रचलन अनंतकाल से चला आ रहा है। प्राचीनकाल से ही नहीं, आधुनिक समय में भ असंख्य लोगों ने माँ बगला की कृपा से शत्रु बाधाओं एवं न्यायालय में विचाराधीन मुकदमो आदि समस्याओं पर विजय पायी है तथा अन्य नाना प्रकार की आपदाओं से मुक्ति प्राप् की है। माँ बगला की कृपा से उनके भक्त साधारण स्थिति से उठकर असाधारण रूप से उच्च पद तक पाने में सफल हुये हैं माँ बगला की उपासना, अनुष्ठान आदि शत्रु बाधाओं के दौरान ही नहीं, अपितु अन्य अनेक कार्यों के निमित्त भी की जाती है। इनका सम्बन्ध एकाएक आर्थिक हानि से बचने, किसी अज्ञात भय से बचने, किसी के धोखे में फंस जाने, अकारण किसी के साथ लड़ाई-झगड़े में पड़ जाने, किसी अज्ञात शत्रु द्वारा परेशान किये जाने की भी समस्यायें हो सकती हैं। ऐसी समस्त प्रतिकूल स्थितियों से भी महामाई अपने साधकों को सहज ह निकाल लेती है। महामाई बगला की अनुकंपा से शीघ्र ही बिगड़े हुये काम बनने लगते हैं।
माँ बगला का दस महाविद्याओं में आठवां स्थान है। दरअसल आद्य शक्ति के दस रूप दसों दिशाओं में विद्यमान रहते हैं। उनमें दक्षिण दिशा की स्वामिनी महाविद्या बगला को माना गया है, इसलिये इनकी साधना का दक्षिण मार्ग ही अधिक प्रचलित है। शिवपुराण और देवी भागवत पुराण में शिव के दस रूपों की दस महाशक्तियां भी
बताई गई हैं। यह दस महशक्तियां ही संसार में दस महाविद्याओं के रूप में पहचानी एवं पूजी जाती हैं। तंत्रशास्त्र में जगह-जगह इस बात का उल्लेख आया है कि शक्तिविहीन शिव भी शव के समान हो जाते हैं। शिव की जो भी क्षमताएं एवं शक्तियां हैं, उनके मूल में एक मात्र आद्यशक्ति ही कार्य करती है ।शिव की दस आद्यशक्तियां हैं, जो इस प्रकार जानी जाती हैं- महाकाल शिव की शक्ति काली नामक महाविद्या है, शिव के काल भैरव रूप की शक्ति भैरवी नामक महाविद्या है, कबंध नामक शिव की शक्ति छिन्नमस्तका है, त्र्यंबकम् नामक शिव रूप की शक्ति हैं भुवनेश्वरी नामक महाविद्या, ठीक उसी प्रकार एकवक्त्र नामक महारुद्र शिव की महाशक्ति
बगलामुखी नामक महाविद्या है। शिव के इस रूप को वल्गामुख शिव के नाम से भी जाना जाता है। इसी आधार पर उनकी महाशक्ति को वल्गामुखी भी कह दिया जाता है। तंत्रशास्त्र और अन्य ग्रंथों में बगलामुखी देवी का क्रोधी स्वभाव वाली न्यायदेवी केरूप में वर्णन हुआ है। माँ का यही रूप उनके ध्यान में वर्णित किया जाता है तथा उनके चरित्र वर्णन एवं प्राचीन प्रतिमाओं में देखने को मिलता है। माँ का ध्यान एक राक्षस की जीभ को अपने हाथ से खींचते हुये रूप में किया जाता है। इस स्वरूप का भी यही
भावार्थ है कि माँ अनंत शक्ति की प्रतीक है और वह अपने भक्तों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की निंदा, झूठा आरोप, मिथ्या अफवाह, असत्य दोषारोपण आदि बिलकुल सहन नहीं करती। वह स्वतः ही अनर्गल निंदा करने वाले शत्रुओं की जीभ को कील देती है, जिससे उनके भक्त के शत्रु कमजोर पड़कर परास्त होने लगते हैं। माँ के इसी रूप की पूजा-अर्चना शत्रु बाधा से पीड़ित साधकों द्वारा की जाती है। माँ बगला अपनी शरण में पूर्ण श्रद्धाभाव से आये भक्तों एवं अपने साधकों पर अन्याय सहन नहीं करती। माँ की शरण में नतमस्तक होते ही वह अपने भक्तों की नाना प्रकार की परेशानियों को समाप्त कर देती है। माँ बगला की अनुकंपा से अनेक लोगों को
मुकदमों में विजयी होते हुये और जेल यात्रा से बचते हुये देखा गया है। नीचे ऐसी ही स्थितियों का मैं विशेष रूप से वर्णन करना चाहूंगा । इन मामलों में जेल यात्रा की निश्चित संभावना बन गयी थी, किन्तु महामाई ने अपनी विशेष अनुकंपा से अपने भक्तों को जेल जाने से बचा लिया। इन लोगों ने सही समय पर माँ का तांत्रिक अनुष्ठान सम्पन्न कराया और माँ ने भी उन पर शीघ्र अपनी अनुकंपा करके उन्हें और अधिक कष्ट उठाने से बचा
लिया । एक मामला बेटा-बहू के तलाक से संबंधित मुकदमे में फंसे हुये परिवार का है। लड़के के पिता सेना में पुरोहित के पद पर कार्यरत थे । लड़का भी पूजा-पाठ आदि का
कार्य करता था । इस व्यक्ति ने अपने बड़े पुत्र का विवाह बड़ी ही धूमधाम से किया था । वधू भी अच्छे परिवार की थी। शुरू के डेढ़ वर्ष तक लड़के लड़की के मध्य सब कुछ ठीक- ठीक चलता रहा। इस दौरान वह एक बच्चे के माँ-बाप भी बन गये, किन्तु उसके पश्चात् परिस्थितियों ने नाटकीय रूप लेना शुरू कर दिया। घटनाक्रम कुछ इस रूप में बदला कि लड़की इस बार मायके गयी तो उसके माँ-बाप ने उसे सुसराल भेजने से मना कर दिया ।
वह एक ही शर्त पर अपनी लड़की को लड़के साथ रखने को तैयार थे कि लड़का उनके पास (ससुराल) में आकर रहे और वहां पर ही अपना काम-धन्धा जमावे । यह शर्त लड़के और उसके परिवार को स्वीकार नहीं थी । इस छोटी सी हठ और अहम ने आगे चलकर कलह और मुकदमेबाजी का रूप ले लिया। लड़की के परिवार ने ससुराल वालों पर दबाव बनाने के लिये मारने-पीटने एवं दहेज मांगने का झूठा मुकदमा दर्ज करवा दिया। शुरू में तो लड़के के पिता ने उनकी ऐसी कार्यवाहियों को हल्के रूप में लिया और सामाजिक स्तर पर आपस में ही सुलझा लेने का प्रयास किया, किन्तु लड़की के माँ-बाप खासकर उसके भाई को ऐसा कोई समझौता स्वीकार नहीं था। परिणामस्वरूप वह अपनी लड़ाई पर दृढ़ रहे । इससे लड़के के परिवार
की परेशानियां निरन्तर बढ़ती रही । महिला उत्पीड़न तथा दहेज आदि के केस ऐसे बनाये जाते हैं कि वे झूठे होते हुये भी सही लगते हैं। इन केसों में गम्भीर बात यह है कि पुलिस एवं न्यायालय में भी पुरुष पक्ष को कम विश्वसनीय माना जाता है और अक्सर अदालत का फैसला स्त्री के पक्ष में हो जाता है। लड़के एवं लड़के के पिता ने भरसक प्रयास किया कि उनकी बेगुनाही को अदालत गंभीरता से ले किन्तु लड़के की पत्नी और उसके परिवार वालों ने ऐसे सबूत बनाकर अदालत में पेश किये कि निचली अदालत ने उन्हें दोषी मान कर सजा सुना दी और आगे ऊंची अदालत में अपील करने के लिये एक माह का समय देते हुये उनकी जमानत स्वीकार कर ली । स्थिति को देखते हुये लड़के तथा उसके पिता को विश्वास हो चला था कि ऊपरी अदालत में भी वे केस हार जायेंगे। इससे ऊपरी अदालत में जाने की उनकी क्षमता नहीं थी, इसलिये मिलने वाली सजा को भुगतने के लिये उन सबको जेल जाना ही पड़ेगा । सब भीतर से डरे-सहमे से थे। तभी उन्हें किसी परिचित ने सलाह दी कि वे माँ बगलामुखी का अनुष्ठान करायें। इसके प्रभाव से उनके बचने का कोई न कोई रास्ता अवश्य ही निकल आयेगा। उन्होंने तुरन्त माँ बगला का अनुष्ठान करवाया और इसका
प्रभाव भी दिखाई दिया। ऊपरी कोर्ट ने तथ्यों की गंभीरता से विवेचना की और झूठे सबूतों को नकार कर उन्हें बरी कर दिया। माँ बगलामुखी के अनुष्ठान के बारे में आगे विस्तार से बताया जा रहा है ।
दूसरा मामला एक अन्य मुकदमे से सम्बन्धित है। इस मामले में एक परिवार के चार सदस्यों को एक साजिश रच कर गबन के झूठे मामले में फंसा दिया गया। कुछ लोगों ने एक झूठा ट्रस्ट बनाकर एक सम्पत्ति को हड़पने की योजना बनाई और इसी योजना के
अनुसार उन्होंने उस परिवार पर झूठा मुकदमा दर्ज किया था । वह लोग इतने चतुर थे कि वारंट निकलने तक उस परिवार को मुकदमे का पता ही नहीं चलने दिया । हरसंभव तरीके से वे न्यायालय की कार्यवाही को गुप्त रखने में सक्षम रहे । जब इस परिवार को इस सारे घटनाक्रम के बारे में पता चला, तब तक उनकी जमानत की तारीख में दस दिन ही शेष बचे थे।
सबसे बड़ी मुश्किल तो यह थी कि उन लोगों को मुकदमेबाजी, न्यायालय के कार्य की कोई जानकारी नहीं थी और न ही उनके पास जमानतदारों का इंतजाम था । वह परिवार पूर्ण आस्थावान और धार्मिक प्रवृत्ति का था। उन्होंने अपने जीवन में कभी किसी
का बुरा नहीं किया था और वे इस बात पर विश्वास करते थे कि ईश्वर कभी उनका अहित और बुरा नहीं होने देगा किन्तु फिर भी उनके ऊपर यह मुसीबत टूट पड़ी थी ।इतना सब घटित हो जाने के बाद भी उन्हें पूरा विश्वास था कि पहले की तरह ही उनकी इष्टदेवी माँ बगला उन्हें इस कष्ट से सम्मान के साथ निकाल देगी । और हुआ भी बिलकुल ऐसा ही । महामाई का अनुष्ठान शुरू करते ही सातवें दिन उनकी तारीख थी, उसी दिन उन्हें जमानत करानी थी अन्यथा उन्हें जेल जाना पड़ सकता था। माँ की कृपा
दृष्टि से उनके एक परिचित जमानत देने के लिये आगे आये । उनकी जमानत को स्वीकार कर लिया गया। माँ के प्रताप से न्यायालय से भी उन्हें बिना किसी परेशानी के जमानतें मिल गयी। आगे जब केस की नियमित सुनवाई प्रारम्भ हुई तो माँ की कृपा से झूठ की एक-एक परत उघड़ती चली गई । अन्त में उन्हें बेकसूर मान कर सम्मान सहित मुक्त कर दिया गया। यह महामाई का ही चमत्कार था । वास्तव में माँ की महिमा अपरम्पार है। उनके प्रताप से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। माँ के मंत्रजाप, स्तोत्र पाठ, रक्षाकवच के नियमित पठन-पाठन से अनेक बार आश्चर्यजनक कार्य होते हुये देखे गये हैं। शत्रु शमन के लिये तो उनकी शरण में जाना ही पर्याप्त रास्ता है। तंत्रशास्त्र में माँ बगला के इस तांत्रिक अनुष्ठान को ब्रह्मास्त्र तंत्र प्रयोग के नाम से जाना गया है। इस ब्रह्मास्त्र तंत्र प्रयोग की मदद से शत्रुदमन, मुकदमाबाजी, लड़ाई-झगड़े के साथ-साथ प्रतियोगिताओं में पूर्ण विजय पाने, असाध्य रोगों के जाल में पड़ जाने, दुर्घटना आदि से रक्षा के लिये, भूत-प्रेत आदि के प्रकोप से बचे रहने एवं अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को शान्त करने के उद्देश्य के लिये भी किया जाता है। पौराणिक उल्लेख है कि ब्रह्मास्त्र नामक इस तंत्र प्रयोग का सबसे पहले अनुष्ठान ब्रह्मा जी ने ही सम्पन्न किया था । ब्रह्माजी के उपरान्त इस तांत्रिक अनुष्ठान को परशुराम जी ने विधिवत् सम्पन्न किया था। परशुराम को ही शाक्त मत एवं बगला अनुष्ठान का प्रथम आचार्य माना गया है। परशुराम से यह विद्या पाण्डव-कौरवों के आचार्य द्रोण ने प्राप्त की थी और इस महाविद्या को पूर्णता के साथ सिद्ध किया था। माँ बगला के शुभ आशीर्वाद से ही आचार्य द्रोण को युद्ध में परास्त करने की सामर्थ्य किसी भी महारथी के पास नहीं थी। माँ बगला की तांत्रिक साधना करने का उल्लेख त्रेतायुग में भी मिलता है। लंकापति रावण इस विद्या के परम साधक थे, इस ब्रह्मास्त्र विद्या को उनके ज्येष्ठ पुत्र मेघनाथ ने भी सिद्ध किया था। माँ बगला की अनुकंपा से मेघनाथ लंका दहन के समय हनुमान जी के वेग को नियंत्रित करने में सक्षम हो पाये थे । बालि पुत्र अंगद भी बगला महाविद्या के परम साधक माने गये हैं। माँ बगला की स्तंभन शक्ति के बल पर ही रावण की सभा में अंगद के जमे हुये पैर को उठाने की बात तो दूर, रावण के सेनानायक पांव को हिला तक नहीं पाये थे। वास्तव में बगला का यह ब्रह्मास्त्र तंत्र प्रयोग बहुत ही अद्भुत है। बगला के ब्रह्मास्त्र प्रयोग की विधि : माँ बगला के इस प्रयोग को बताने से पहले मैं कुछ बातों को स्पष्ट करना उचित समझता हूं। आजकल कुछ व्यक्ति अपनी दुश्मनी निकालने के लिये अथवा अपना कोई
स्वार्थ सिद्ध करने के लिये, दबाव बनाने के लिये व्यक्ति को झूठे मुकदमों में उलझा देते हैं। आम व्यक्ति तो थाने तथा कोर्ट आदि का नाम सुनते ही कांप जाता है। उसने कभी इन स्थितियों के बारे में विचार तक नहीं किया था और अब वह स्थितियां अपने सामने देख कर कांप उठता है। ऐसे लोगों के लिये माँ बगला का यह प्रयोग अत्यन्त लाभदायक है। इसके लिये यह आवश्यक है कि कोर्ट में फंसा हुआ व्यक्ति वास्तव में ही निर्दोष हो । अगर अपराध करके कोई व्यक्ति इस विधि के द्वारा माँ का अनुष्ठान करके लाभ की
आशा करता है तो उसे कभी लाभ प्राप्त नहीं होता है। जो वास्तव में निर्दोष है, किन्तु फिर भी किसी ने षड्यंत्र करके उसे कोर्ट में फंसा दिया है तो उसे इस अनुष्ठान का अवश्य लाभ मिलेगा । बगला महाविद्या की यह तांत्रोक्त अनुष्ठान साधना यूं तो 90 दिन की है, लेकिन अगर इसे पूर्ण विधान के साथ 31 दिन तक भी सम्पन्न कर लिया जाये तो भी अनेक प्रकार की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। लड़ाई-झगड़े, मुकदमेबाजी और प्रतियोगिता आदि में पूर्ण विजय पाने के लिये 31 दिन का अनुष्ठान सम्पन्न करना ही पर्याप्त रहता है। माँ बगला के तांत्रिक अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये पीले या केसरिया रंग की
वस्तुओं का विशेष महत्त्व रहता है । पीला रंग को वैसे भी प्रसन्नता, मादकता, बुद्धिमत्ता, उत्साह, पौरुषता आदि का प्रतीक माना जाता है। तंत्रशास्त्र में माँ बगला का सम्बन्ध भी एक तरह से बुद्धिमत्ता, निर्णय लेने की सामर्थ्य, पौरुषता आदि के साथ ही जोड़ा गया है । इसीलिये इनके अनुष्ठान के दौरान पीले रंग की चीजों, जैसे कि गोरोचन, केसर, हल्दी,
चम्पक पुष्प, पीले कनेर के पुष्प, पीले रंग के यज्ञोपवीत, पीले वस्त्र, माँ पीताम्बरा को चढ़ाने के लिये भी पीले वस्त्र, पीला कम्बल आसन के रूप में, पीला कलावा, पीले मौसमी फल, बेसन के लड्डू, पान, सुपारी, धूप, दीप, कपूर, हरिद्रा गांठ माला आदि को प्रमुखता दी जाती है। अगर साधना कक्ष को भी पीले रंग से पोत लिया जाये तो और भी श्रेष्ठ रहता है।
इनके अलावा अनुष्ठान के लिये हल्दी से रंगी कच्ची मिट्टी की हांडी, मिट्टी के दीये, लघु धेनुका शंख, स्वर्ण या रजत पत्र पर निर्मित बगला श्रीयंत्र आदि की आवश्यकता रहती है ।
अनुष्ठान की शुरूआत में सबसे पहले स्वर्ण या रजत पत्र पर बगला श्रीयंत्र शुभ मुहूर्त में उत्कीर्ण करवा कर उसका विधिवत पूजन करवा लेना चाहिये । स्वर्ण या रजत पत्र के अभाव में ताम्र पर भी इस यंत्र को बनवाया जा सकता है। बगला यंत्र पूजा में गोरोचन,केसर एवं जवाकुसुम के पुष्पों का प्रयोग किया जाना लाभप्रद माना गया है। विधिवत् पूजा से सम्पन्न यंत्र पूर्ण शक्ति सम्पन्न वन जाते हैं। ऐसे यंत्र बहुत ही प्रभावपूर्ण होते हैं।
ऐसे सभी तांत्रोक्त अनुष्ठान अगर शक्ति स्थलों अथवा देवी मंदिरों में बैठकर सम्पन्न किये जायें तो तत्काल अपना प्रभाव दिखाते हैं । यद्यपि ऐसे तांत्रोक्त अनुष्ठान किसी प्राचीन शिवालय, वृक्ष के नीचे बैठकर भी सम्पन्न किये जा सकते हैं। इसके अलावा इन्हें घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इसके लिये किसी एकान्त कक्ष का चुनाव करना पड़ता है। अगर अनुष्ठान कक्ष को पीले रंग से पुतवा लिया जाये और उसके खिड़की-दरवाजों के ऊपर पीले रंग के पर्दे चढ़ा लिये जायें तो वह स्थान और भी प्रभावपूर्ण बन जाता है। बगला अनुष्ठान को सम्पन्न करने के लिये मध्य रात्रि का समय अधिक अनुकूल रहता है। इसे अपनी सुविधानुसार प्रातः काल आठ बजे के आस-पास बैठकर भी सम्पन्न किया जा सकता है। इस तांत्रिक अनुष्ठान को सम्पन्न करने के दौरान साधक को दक्षिणाभिमुख
होकर बैठना है। बैठने के लिये पीले कम्बल का आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करना होता है। बगला महाविद्या के इस तांत्रिक प्रयोग को अगर कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ किया जा सकता है अथवा इसे कृष्ण पक्ष के किसी भी मंगलवार के दिन से भी शुरू किया जा सकता है। अनुष्ठान स्थल को गाय के गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं पवित्र किया जाता है ।
गाय के गोबर के अभाव में अनुष्ठान स्थल को गंगाजल से भी पवित्र किया जा सकता है। अब अनुष्ठान प्रारम्भ करने के लिये पीले कम्बल के आसन पर दक्षिणाभिमुखी होकर बैठ जायें। गोबर से लिपे स्थान के ऊपर लकड़ी की चौकी रखें। चौकी के ऊपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर एक चांदी अथवा स्टील की स्वच्छ प्लेट रखकर उसमें पिसी हुई हल्दी, गोरोचन एवं श्वेत चंदन के मिश्रण से एक त्रिकोण निर्मित करके उसके मध्य में निम्न
मंत्र लिखकर यंत्र को स्थापित किया जाता है -
ॐ ह्रीं बगलामुख्यै नमः
बगला यंत्र को प्रतिष्ठित करने से पहले गंगाजल अथवा स्वच्छ जल से पवित्र कर लिया जाता है। यंत्र प्रतिष्ठा के पश्चात् उसकी विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। यंत्र को गोरोचन, हरिद्रा एवं श्वेत चंदन के मिश्रण का लेपन किया जाता है । तत्पश्चात् यंत्र को पीले रंग का वस्त्र दान, गंध दान, फल-फूल दान, ताम्बूल, घी का दीपक आदि अर्पित किया जाता है। चौकी के ऊपर यंत्र के दाहिनी तरफ धेनुका शंख को हल्दी से पोत कर पीले रंग का कर दें। यह शंख शत्रुस्तंभन के लिये होता है। इस शंख के ऊपर तीन हरिद्रा गांठ, सात काली मिर्च, सात लौंग, सात सुपारी, एक पीला रंगा हुआ यज्ञोपवीत भी अर्पित कर दें । इनके सामने सरसों के तेल का दीपक जला कर रख दें।
इसके अतिरिक्त चौकी के सामने जमीन के ऊपर मिट्टी का सकोरा (मिट्टी का एक बर्तन) रखकर उसमें धूनी जला दें। उसमें लौबान, पीली सरसों, श्वेत चन्दन, जवा कुसुम, लौंग, इलायची, समुद्रफेन और धूप लक्कड़ आदि की आहुति देते हुये अनुष्ठान प्रारम्भ करें। यंत्र आदि की स्थापना एवं अन्य तांत्रिक क्रियाओं को सम्पन्न करने के उपरान्त अपने दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें। संकल्प से इस अनुष्ठान को बल मिलता है । संकल्प में देश, काल और स्थान आदि का वर्णन करते हुये अभीष्ट कार्य का उल्लेख भी करें। संकल्प इस प्रकार है-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः । ॐ तत्सदद्यैतस्थ ब्रह्मोऽह्मि द्वितीयप्रहराद्धे
श्रीश्वेतवाराहकल्पे जम्बूद्वीपे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे
भारतवर्षे भरतखंडे आर्यावर्तेक देशान्तरगतदेशे अमुक क्षेत्रे विक्रम शके बौद्धावतारे अमुक.... . सम्वत्सरे अमुक... अयने अमुकऋतौ महामांगल्यप्रद मासोत्तमे मासे अमुक....... मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे अमुक नक्षत्रे अमुक योगे करणे वा अमुक राशि स्थिते सूर्ये अमुक राशि स्थिते चन्द्रे अमुक राशि स्थिते देवगुरौ शेषेषु ग्रहेषु यथा यथा राशि स्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रह गुण गण विशेषण- विशिष्टे काले अमुक गोत्रः शर्माऽहं सपत्नीकः अथवा सपत्यहम् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त पुण्य-फल-प्राप्त्यर्थ मम सकुटुम्बस्य ऐश्वर्यादि-अभिवृद्धयर्थं अप्राप्त-लक्ष्मी प्राप्त्यर्थं
प्राप्त - लक्ष्मी-चिरकाल संरक्षणार्थं सकलमन्-ईप्सित-कामना-संसिद्धयर्थं लोके वा राजसभायां तद्द्वारे वा सर्वत्र - यथोविजयलाभदि प्राप्त्यर्थं पुत्र पौत्राद्यभिवृद्धयर्थं च इह जन्मनि जन्मान्तरे वा सकल दुरितोपशमनार्थ तथा मम सभार्यस्य सपुत्रस्य सवान्धवस्य अखिल-कुटुम्बसहितस्य समस्त भय-व्याधि - जरा - पीड़ामृत्यु परिहार -
द्वारा आयुरारोग्यता प्राप्त्यर्थं ऐश्वर्यामि अभिव्यदर्थं चतुर्थाष्टम द्वादश स्थान-स्थित- क्रूरग्रहास्तैः संसूचितं संसूचियिषमाणं यत्सर्वारिष्टं तद्विनाशद्वारा एकादश स्थानस्थितवच्छुभप्राप्तयर्थं आदित्यादि-नवग्रहाः अनुकूलता सिद्धयर्थं तथा इन्द्रादि- दश दिक्पालदेव प्रसन्नता - सिद्धयर्थम् आदिदैविक आदिभौतिक आध्यात्मिक त्रिविध- तापोपशमनार्थ धर्मार्थकाममोक्ष चतुर्विथ- पुरुषार्थ सिद्धयर्थ मम जन्मांके तथा मम पतिजन्मांके सकल ( ग्रह का नाम ) दोषारिष्ट निर्मूलार्थे अखण्ड- दाम्पत्य सुखप्राप्ति कामनया (अमुक ) देवताप्रीतयर्थे जपं (अमुक) संख्याकम् अहम् करिष्ये । विशेष- यदि आप मंत्रजप का संकल्प संस्कृत में उच्चारित कर सकते हैं तो इसकी विधि ऊपर दी गई है । संकल्प लेते समय संवत्, मास, वार, तिथि तथा ग्रहों की राशि आदि, जो उस समय विद्यमान हों, उन्हें ही उच्चारित करना चाहिये । मंत्रजप का उद्देश्य यदि भिन्न हो, तो वह उद्देश्य स्पष्ट रूप से इस संकल्प के अन्त में जहां पर उद्देश्य अंकित
है, उन्हीं में जोड़ लेना चाहिये । कोष्ठक में दिये गये अमुक के स्थान पर जितने मंत्रों का जाप आप करना चाहते हैं, उतने मंत्रों की संख्या का उच्चारण करें। अनेक पाठक ऐसे हैं जो संस्कृत में संकल्प का उच्चारण ठीक से नहीं कर सकते। ऐसे पाठकों के लिये यहां पर हिन्दी में संकल्प के बारे में जानकारी दी जा रही है। यदि आप हिन्दी में संकल्प लेते हैं तब भी आपको पूरा लाभ प्राप्त होगा । हिन्दी में संकल्प इस
प्रकार है:-
हिन्दी में मंत्रजप संकल्प
मैं (अमुक) पुत्र (अमुक) गोत्र (अमुक) आज (अमुक) वार को (अमुक) तारीख को (अमुक) स्थान पर रहकर, हे ( अमुक देवता ) आपको प्रसन्न करने के लिये धन-धान्य, ऐश्वर्य, कीर्ति, वैभव, सम्पत्ति, सम्पदा, प्रतिष्ठा तथा सम्मान शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त करने के लिये तथा मेरे जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्त बाधाओं के शमन हेतु तथा आपके प्रभाव से सम्बन्धित श्रेष्ठतम फल प्राप्त करने के लिये व आपसे सम्बन्धित समस्त अरिष्ट, दोष, कष्ट, पीड़ा, समस्यायें, अवरोध तथा असफलता को पूरी तरह निर्मूल करने के लिये ( अमुक) मंत्र का ( इतनी संख्या में ) जप करने का संकल्प करता हूँ । इतना कह कर जल अपने सामने जमीन पर छोड़ दें। इसके उपरान्त माँ बगला का विनियोग करें।
श्री बगलामुखी विनियोगः-
दाहिने हाथ में थोड़ा सा जल लेकर उसमें थोड़ी सी हरिद्रा डालें तथा उस पर एक पीत रंग का पुष्प लेकर विनियोग सम्पन्न करें-
अस्याः श्री ब्रह्मास्त्र विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नमः शिरसि ।
त्रिष्टुप, छन्दसे नमो मुखे । श्री बगलामुखी देवतायै नमो हृदये ।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये । स्वाहा शक्तये नमः पादयोः ।
ॐ नमः सर्वांगे श्री बगलामुखी देवता प्रसादसिद्धयर्थे न्यासे विनियोगः ॥
इसके उपरान्त पूर्ण एकाग्रता एवं गहन आस्था के साथ माँ का आह्वान करें।
श्री बगलामुखी आह्वान मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्व-दुष्टानां मुख स्तम्भिनि सकल मनोहारिणि
अम्बिके इहामच्छ, सन्निधिं कुरू सर्वार्थं साधय साधय स्वाहा ॥
आह्वान के साथ माँ को नैवेद्य के रूप में पीले रंग के बेसन के लड्डू रखें और उसके बाद माँ का निम्न ध्यान करें-माँ बगला का ध्यान मंत्र-
ॐ सौवर्णा सनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं ।
हेमा भांगरूचिं शशांक मुकुटां सच्चम्प कस्त्रग्युताम् ।
हस्तैर्मुद्गरपाश वज्र दशनां: संविभूतीं भूषणै ॥
व्यप्तिगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत् ॥
माँ का ध्यान करने के पश्चात् माँ के अग्रांकित मंत्र की प्रतिदिन ग्यारह मालाओं का जप करना होता है। जप अगर हरिद्रा माला के ऊपर अथवा लघु पंचमुखी रुद्राक्ष माला के ऊपर किया जाये तो शीघ्र प्रभावी होता है। माँ बगला का यह छत्तीस अक्षरों का मंत्र है। इस मंत्र में अद्भुत शक्ति सन्निहित है। मंत्र में ह्रीं बीज मंत्र माँ की असीम शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो समस्त ऐश्वर्य, सुख-सम्पदा, ऋद्धि-सिद्धि को प्रदान करने वाला है। यद्यपि बगला मंत्र का पूर्ण पुरश्चरण सवा लाख या पांच लाख मंत्रजप से पूर्ण होता है, किन्तु साधारण साधकों का कार्य छत्तीस हजार मंत्रजप से ही पूर्ण हो जाता है। मंत्र इस
प्रकार है-
ॐ ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं परं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ फट् ॥
बगला का मंत्रजाप सम्पन्न हो जाने के पश्चात् मिट्टी की हांडी में निरन्तर लौबान, पीली सरसों, श्वेत चंदन, जवा कुसुम, हल्दी, धूप लक्कड़ आदि के मिश्रण से आहुति देते हुये इक्कीस बार बगलामुखी के आगे लिखे गये कवच का पाठ भी कर लेना चाहिये। अपनी सामर्थ्य अनुसार कवच पाठ की आवृत्ति ग्यारह या सात अथवा तीन बार रखी जा सकती है। माँ का यह कवच सभी तरह के अभिचार कर्मों, तांत्रोक्त क्रियाओं एवं अन्य तरह की आपदाओं से रक्षा प्रदान करने वाला है। अगर माँ के इस रक्षा कवच का नियमित रूप से पूर्ण भक्तिभाव से पाठ किया जाये तो उससे ही भक्त साधक अनेक परेशानियों से बचे रहते हैं। ऐसे साधकों पर किसी भी तरह के तांत्रोक्त प्रयोग सफल नहीं हो पाते । इनके सामने शत्रु भी अपने को अहसाय महसूस करते रहते हैं। अग्नि को आहुति अर्पित करते समय समिधा में थोड़ा सा गाय का घी भी मिला लेना चाहिये । माँ के अनुष्ठान का पाठ करते समय एक विशेष बात का ध्यान रखना चाहिये कि कवच पाठ से पूर्व एवं कवच पाठ पूर्ण होने के पश्चात् 21-21 बार माँ को उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में आहुतियां प्रदान करनी चाहिये । इस कार्य से माँ बगला शीघ्र प्रसन्न होती ही है, साथ ही भैरव जैसे अन्य देव भी कृपा प्रदान करने लगते हैं । माँ बगला के कवच पाठ का विधान निम्न प्रकार है- सबसे पहले निम्न मंत्र का पाठ करते हुये माँ को प्रणाम करें-श्रुत्वा च बगला पूजां स्तोत्रं चापि महश्वर ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाशुभ विनाशकम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दुःख नाशनम् ॥
यह कवच भैरव द्वारा पूरित किया गया है, अतः निम्न मंत्र का पाठ करते हुये एक बार पुन: माँ का विनियोग कर लेना चाहिये । विनियोग पहले दिया गया है।
मंत्र है- कवचं श्रुण्ड वक्ष्यामि भैरविः प्राणवल्लाभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥
श्री बगलामुखी का कवच पाठ निम्न प्रकार है:-
कवच
शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्रीं ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरि जिह्वाधरा पातु कण्ठं मे बगलामुखी ॥
उदरं नाभि देशं च पातु नित्यं परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्नं सुरेश्वरी ॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषये धोरे संग्रामे रिपुसंकटे ॥
पीतम्बिराधरा पातु सर्वांगं शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समयं पातु मातंगी पूरिता शिवा ॥
पातु पुत्रीं सुतन्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्यं भ्रातरं मे पितरं शूलिनी सदा ॥
रंध्रं हि बगलादेव्या कवचं सन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि प्रदायकम् ॥
पठनाद्वारणादस्य पूजनाद्वांछितं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जयेद् बगलामुखीम् ॥
पिबन्ति शोणितं तस्य योगिन्यः प्रादय सादराः ।
वश्ये चाकर्षणे चैव मारणे मोहने तथा ॥
महाभये विपत्तौ च षष्वा पठेद्वा पाठयेत्तु यः ।
तस्य सर्वार्थसिद्धिः स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥
यह बगला महाविद्या का तांत्रोक्त कवच है। बगला के उपरोक्त मंत्र के साथ इस रक्षा कवच के विधिवत् पाठ से साधक के चारों ओर एक ऐसा घेरा निर्मित हो जाता है, जो शत्रुओं द्वारा करवाई गई किसी भी क्रिया के लिये अभेध किले जैसा कार्य करता है । इसीलिये बगलामुखी के इस तांत्रोक्त अनुष्ठान को विधिवत् सम्पन्न कर लेने से बड़े से बड़े शत्रु से भी किसी तरह का भय नहीं रहता । इस प्रकार के तांत्रोक्त अनुष्ठानों को सम्पन्न करने की प्राचीन समय में एक आवश्यक परम्परा ही बन गयी थी । भीषण युद्ध में फंस जाने पर अधिकतर यौद्धा इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने का प्रयास करते थे। आज के समय भी यह तांत्रोक्त अनुष्ठान उतना ही प्रभावी सिद्ध होता है, जितना की पूर्व समय में होता था । जब अभीष्ट संख्या में मंत्रजाप और रक्षा कवच का पाठ सम्पन्न हो जाये तो आसन से उठने से पहले एक बार पुनः माँ के समक्ष पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ एकाग्रचित्त होकर अपनी प्रार्थना को दोहरायें तथा माँ से बार-बार अनुरोध करते रहें कि वह शीघ्रताशीघ्र प्रसन्न होकर उसके समस्त दुःखों की पीड़ा को दूर कर दें । प्रार्थना करने के पश्चात् माँ से आसन से उठने की आज्ञा लें। आसन छोड़कर उठ जायें। माँ को अर्पित किये नैवेद्य में से थोड़ा सा प्रसाद स्वयं ग्रहण कर लें, शेष प्रसाद को छोटे बच्चों, विशेषकर कन्याओं के बीच बांट दें। माँ को चढ़ाये फल भी बच्चों में बंटवा दें। इस अनुष्ठान के दौरान उपवास आदि रखना आवश्यक नहीं है, लेकिन पूरे अनुष्ठान के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण करना, भूमि पर शयन करना तथा ब्रह्मचर्य का पालन
करना अनिवार्य माना जाता है। अगर अनुष्ठान के दौरान स्वयं पर इतना नियंत्रण रख पाना संभव न हो पाये तो इस अनुष्ठान को किसी विद्वान आचार्य द्वारा सम्पन्न करवा लेना चाहिये। यद्यपि अन्य तांत्रोक्त अनुष्ठानों की तरह इसको प्रारम्भ करने से पहले गुरु का आशीर्वाद प्राप्त कर लेना अनुष्ठान का एक हिस्सा रहता है। बगला महाविद्या का यह तांत्रोक्त अनुष्ठान यूं तो तीन महीने का है, परन्तु इसे निरन्तर एक साथ सम्पन्न करने की अपेक्षा 31-31 दिन की तीन आवृत्तियों में भी सम्पन्न किया जा सकता है। आमतौर पर अधिकांश समस्यायें 31 दिन के अनुष्ठान से ही दूर हो जाती हैं। 31 दिन के इस तांत्रोक्त अनुष्ठान में पूजा-अर्चना, मंत्रजाप एवं रक्षा कवच पाठ का यही क्रम जारी रहता है। प्रत्येक दिन सबसे पहले बीते दिन की पूजा सामग्री को एकत्रित करके एक जगह रख लें, ताकि यह पांवों के नीचे नहीं आये। उस दिन का कार्यक्रम पूर्ण होने के पश्चात् किसी तालाब या बहते हुये पानी में यह सामग्री प्रवाहित कर दें अथवा
प्रत्येक दिन की पूजा सामग्री को एक जगह एकत्रित रखते हुये 32वें दिन, अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् एक साथ जल में विसर्जित कर दें।इस प्रकार इक्कतीसवें दिन अनुष्ठान का समापन हो जाता है। 31वें दिन तीन माला
अतिरिक्त मंत्रजाप और एक माला (108 बार) मंत्र से प्रज्ज्वलित अग्नि में आहुतियां दी जाती हैं। मंत्रजाप एवं रक्षा कवच पाठ के पश्चात् पांच कन्याओं को भोजन करवा कर दान-दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस तरह अनुष्ठान पूर्ण हो जाता है । अनुष्ठान समाप्ति के अगले दिन मिट्टी के सकोरे में धेनुका शंख को रखकर जमीन में दबा दिया जाता है, जबकि बगला यंत्र को छोड़कर शेष सामग्री को एक पीले रंग के वस्त्र में बांधकर नदी या तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता है। माँ बगला का यह तांत्रोक्त अनुष्ठान बहुत ही अद्भुत एवं प्रभावशाली है। इसके प्रभाव से अधिकांश मामलों में 31 दिन के भीतर ही अनुकूल लाभ मिलने लगता है। जिन मामलों में इस अवधि में अनुकूलता नहीं आ पाती या फिर मामला अत्यधिक जटिल होता है, उन मामलों में भी तीन महीने के भीतर ही आशानुकूल परिणाम मिल जाते हैं। इस अनुष्ठान का सबसे चमत्कारिक प्रभाव उन साधकों को दिखाई देता है, जो किसी अभीष्ट इच्छा की जगह माँ की अनुकंपा पाने के उद्देश्य से इस अनुष्ठान को सम्पन्न करते हैं। ऐसे साधकों को अनुष्ठान काल के दौरान अनेक प्रकार की अलौकिक अनुभूतियां होने लगती हैं। अनेक साधकों ने इस बात को निसंकोच स्वीकार किया है कि साधनाकाल के ग्यारहवें दिन से उन्हें साधना कक्ष में किसी अन्य की उपस्थिति का आभास होने लगता है। कई बार तो ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे कि साधनाकक्ष में कोई दूसरा व्यक्ति बैठकर साधक का ध्यान रख रहा हो । स्वयं मैं भी ऐसे अनुभव से गुजर चुका हूं। जब मैंने प्रथम बार बगलामहाविद्या का तांत्रिक अनुष्ठान सम्पन्न किया तो अनुष्ठान के 17वें दिन से मुझे साधनाकक्ष में माँ का तीव्र अट्टाहास सुनाई देने लगा था । अन्य गुप्त बातों को मैं यहां प्रकट नहीं करना चाहूंगा।
Thank you visit Mantralipi