Way to be invisible by Nagarjun || गायब होने का सिद्ध प्रयोग by Nagarjun

Way to be invisible by Nagarjun  ||   गायब होने का सिद्ध प्रयोग by Nagarjun

गायब होने का सिद्ध प्रयोग (gayab hone ka siddha prayog)



    ऐं मदने मदनविडम्बने आत्मनोऽङ्खं देहि मे देहि श्रीं स्वाहा ।
    यहाँ अंकित ऐं से लेकर स्वाहा पयेन्त मन्त्र का राजद्वार में स्थित होकर पवित्र स्थिति में एक लाख जप करना चाहिए । तदनन्तर दुग्धमिश्रीत मालती पूष्प द्वारा १०००० आहुति ( उक्त मन्त्र द्वारा ) देनी चाहिए । इससे यक्षिणी । देवी सिद्ध होती हैं और साधक को ऐसी गुटिका प्रदान करती है, जिसे मुख में रखने मात्र से साधक को कोई देख नहीं सकता ॥ १ ॥
    ॐ हीं श्मशानवासिनी स्वाहा ।


    पवित्र तथां संयत मन:स्थिति से युक्त साधक को शमशान  में नग्न होकर आसनासीन स्थिति मे “ॐ ह्रिं शमशान वासिनी स्वाहा" मन्त्र का चार लाख जप करना चाहिए । इससे सन्तुष्ट होकर यक्षिणी देवी एक प्रकार का वस्त्र साधक को प्रदान करती हैं । साधक इस वस्त्र को ओढ़कर सबके लिए अदृद्य हो जाता है । उसे अज्ञात ( छिपी ) निधियों का दर्शन प्रांत होता है । इस ( निधिदर्शन ) क्षेत्र में उसे कोई भी विघ्न पराभूत नहीं कर सकते ॥। २-३ ॥


    मन्त्र:--ॐ नमो विश्चाचर महेश्वर मम पय्येटतः ।


    रात्रिकाल में निधि का ध्यान करके वाम हाथ से ऊपर लिखे मन्त्र का जप करना चाहिए । इससे देवी प्रसन्न होकर साधक को अदृश्यकारिणी विद्या का ज्ञान प्रदान करती हैं ।। ४ ॥।

    अत्यधिक बलि एवं उपहार द्वारा यक्षिणी देवी का पुजन करना चाहिए । पुजा-समापन के अवसर पर अंकोल के तेल का दीपक दिखलाये । मदार की रुई की बत्ती का इस दीपक में प्रयोग करे । उसे अंकोल के तैल से सिकत करके मनुष्य की खोपड़ी के दीपक में रखकर प्रज्वलित करे । इस दीपक से काजल बनाकर उस काजल को नेत्रों में लगाना चाहिए । अब साधक को देवता भी नहीं देख सकते ॥। ५-६ ॥।

    मदार की रुई, शाल्म॑ली की रुई, कपास की रुई, पटुसूत्र तथा पद्म का तन्तु --इन पाँच प्रकार के सूत्र से ५ बत्ती अलग-अलग बनाये । इन पाँचों बत्तियों को नारियल के तेल में भिगा कर ५ नरमुण्डों में जलाये । अब इन प्रज्वलित दीपकों की ज्वाला के तनिक ऊपर एक-एक कमल का पत्ता रखते हुए उसमें काजल जमने देना चाहिए । यह कायं शिवाख्य के ५ पृथक्‌-पृथक्‌ स्थान पर करे ( अर्थात्‌ एक-एक दीपक को अलग-अलग स्थान पर जलाये )। अब इन पाँचों स्थान के कज्जल को एक साथ मिलाये । उसे नीचे लिखे मन्त्र से अभिमंत्रित करते हुए नेत्रों में लगाने से साधक को देवता भी नहीं देख सकते ॥ ७-९ ॥। मन्त्र--इंस प्रयोग का मन्त्र यह है-- ॐ हीं फट्‌ कालि कालि मांसशोणितभोजने रक्तकृष्णमूखे देवि मा मे पश्यति मनुष्यति हुं फट्‌ स्वाहा । अयं मन्त्रः अयुतजपेन सिद्धो भवति । यह मंत्र १००००. हजार बार जपने से सिद्ध होता है। ( सिद्ध करके पुनः अंजन लगाते समय इसे जपते हुए काजल लगाये । )


    गायब होने के सिद्ध बिधि 





    एक टुकड़ा वचा नामक जड़ी को सात दिन पर्यन्त अंकोल के तेल में भिंगाने के पश्चात्‌ उसे त्रिलौह के बनाये गये यन्त्र में भरे । इससे एक सुन्दर धातु की गुटिका तैयार करे । इसे मुख में धारण करने से साधक सबके लिए अदृश्य हो जाता है । यह निःसंदिग्ध है ॥ ११ ॥।




    गायब होने के सिद्ध प्रयोग





    अंकोल के तेल में स्वेत सरसों ( सात दिन ) भीगा कर उसे उसी प्रकार त्रिलौह की गुटिका में भरे । इस गुटिका को मुखमें रखने से साधक अदृश्य हो जाता है ॥ १२ ॥




    काक और उल्लू का पंख से गायब होने का बिधि 






    कौआ एवं उलूक के पंख और अपने बालों को एक साथ अन्तर्धूम ( जिसका धुआँ बाहर न निकले, इस प्रकार ) जलाकर अत्यन्त सुक्ष्म चूर्ण तैयार करे । ( अर्थात्‌ मिट्टी के पात्र में रखकर उसका मुख बन्द करके जलाये, अन्यथा राख नहीं बचेगी। ) अब इस चूणेको अंकोल के तेल में मिलाकर पूववत्‌ त्रिलौह की गुटिकामें भरना चाहिए । इस गुटिका को मस्तक पर धारण करते ही साधक उसी क्षण अदृश्य हो जाताहै। देवगण भी उसे देख सकने में समथे नहीं हो सकते ॥ १३-१४ ॥।

    हरताल, काली भैंस का दूध तथा अंकोलतेल को मिलाकर जो व्यक्ति इसका शरीर में लेप करता है, वह सबके लिए अदृश्य हो जाता है, यह शंकर की उक्ति है । १५ ॥

    मन्त्र--ॐ कक्षतो लालामूलं हुने सौरे जाने ह्रिं ह्रिं ह्रिं सिद्धे स्वाहा । उक्तयोगानामयमेव मन्त्रः] १७॥

    कबूतर की बीटको अंकोलतैल में मिलाकर उसका ललाट पर तिलक करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है ।


    इन सभी प्रयोगों का मन्त्र ॐ कक्षतो' से “स्वाहा पयेन्त है । ( ये गुटिका प्रयोग इलोक ११ से १६ तक कहे गये हैँ ) । १७ ॥

    जब चन्द्रग्रहुण लगा हो, उस समय सफेद अपराजिता की जड लाकर उसे बला ( सहदेयी ) ओर मधु के साथ पीसकर एक गुटिका बनाये । इसे मस्तक, मुख अथवा हाथ में धारण करने से साधक को देवगण भी नहीं देख सकते ।।१८।।

    पद्मतन्तु की बत्ती बनाकर उसे जीवितपुत्रिका के बीजों के तैल में भिगाना चाहिए । इसके पश्चात्‌ दो वीर पुरुषों की खोपड़ी लाये । एक में गोरोचन का तथा दूसरे में शहद का लेप करे ॥ १९ ॥।

    गोरोचन से लिप्त मुण्ड मे उस बत्ती को जलाये ओर शहद से लित मुण्ड को उस ज्वाला के ऊपर रखे, तानि उसमे काजल पड़े। इस काजल को नेत्र मे लगाने से साधक को इस विश्च में कोई भी नहीं देख सकता ।। २० ॥

    सफेद अथवा काली बिल्ली के जरायु का चूर्ण लेकर उसे त्रिलौह की गुटिका मे भरना चाहिए । इस गुटिका को मुख अथवा मस्तक पर रखने से साधक अदृद्य हो जाता है ॥ २१ ॥।

    एक घोर कृष्ण वर्ण कौए को भैंस का मक्खन खिलाये । उस कौए की बीट को मदार की रुई में लपेट कर बत्ती बनाये । इस बत्ती को शमशान में बैठकर ज़ीवत्‌ पुत्रिका के बीजों के तेल में भिगाये । एक वीर पुरुष की खोपड़ी ( कपाल ) मेँ गोरोचन लगाकर उसमें इस बत्ती को जलाये ओर अन्य वीर पुरुष की खोपड़ी में शहद का लेप करके उसे इस ज्वाला के ऊपर रखे, ताकि

    इसमें काजल जम जाये । इस काजल को नेत्रों में लगाने से साधक को कोई देख नहीं सकता । २२ ॥
    कबूतर के कोख के पंख तथा स्रोतांजन को बिल्ली के रक्त से भिगाकर उसके काजल से नेत्रो को अंजित करने से साधक अदृश्य हो जाता है ॥ २३ ॥।

    काली तिल्ली के रक्तसे लाल डोरे को भिगाकर उसकी बत्ती बनाये । कपिला गौ के घूत में इसे भिगाकर इलोक २२ में वर्णित विधि से दो नरमुण्डों का प्रयोग करके इसका काजल बनाये । यह कज्जल आँखों में लगाने से साधक सबके किए अदुद्य हो जाता है ॥ २४ ॥

    हिंगुल, देवदारु, चिता पौधा, नरमांस तथा सोतांजन को एक साथ मिलाकर अंजन बनाकर लगाने से अदृश्यकारक योग तैयार हो जाता है ।॥२५॥

    उल्क, श्यृगाल एवं शूकर के नेत्र एवं नासिका को नीलाञ्जन के साथ मिलाकर चे करके ( आयुर्वेदोक्त ) स्रावपुट में रखकर दग्ध करे। इस प्रकार प्राप्त भस्म का नेत्रों में अंजन लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है । : यह निःसंशय है ॥ २६ ॥

    फाल्गुन मास मेँ एक जीवित खंजन पक्षी लाकर पिंजरे में भाद्र मास पर्यन्त रक्षित करे । भादो मास अते ही वह पक्षी पिजरे मे से अदृश्य हो जाता , है, यह निःसंदिग्ध है । २७ ॥

    खंजन पक्षी की शिखा को हाथ में रखने से व्यक्ति अदृच्य हो जाता है । इसे त्रिलोह में वेष्टित करक रखने से भी व्यक्ति सबके लिए अदृश्य हो जाता है।॥ २८ ॥

    दस भाग सोना, बारह भाग ताँबा, सोलह भाग चाँदी को मिलाकर गलाने से त्रिलौह बनता है । इसकी गुटिका में यत्नपूवंक सामग्री को भरना चाहिए । यही गुटिका बनाने की विधि है ॥ २९ ॥।


    ॐ नमो भगवते उडामरेश्चराय नमो रुद्राय विलि बिलि व्याघ्र चमंपरिधान कमल कतुल चण्ड प्रचण्ड कीली किलि स्वाहा" ।


    उक्तयोगानामयं मन्त्रः । ऊपर जितने भी प्रयोग है, उनके किए ॐ नमो भगवते" से लेकर "किलि स्वाहा' प्यन्त यह्‌ मन्त्र है । घोड़ी का जरायु तथा यमानी की जड़ ओौर हरिता को एक साथ पीसकर इसका तिलक लगाने से अदुश्यकारक योग बन जाता है ॥ ३० ॥



    गायब होने के  लिए इस सिद्धप्रयोग को जरूर करे 






    कृष्ण चतुदंशी की रात्रि में लांगली ( कलिहारी ) की जड निकाले । उसे दवेत वणं की बकरी के जरायु तथा नारियल के तैल में पीसकर अंजन बनाये । इसे नेत्रों में लगाने से साधक अदृद्य होकर शुन्यमाग मेँ विचरण करने में समर्थ हो जाता है ॥ ३१॥

    ॐ अः सखे अः सकर्णे अरिदूर्ब॑ल अरद्धाकोश दाटा कराले चक्कारावे फेत्कारिणी हुं हुं चण्डालिनी स्वाहा ।

    ॐ अमृतगणपरिवेष्टिते रुद्रगणाय ॐ नमः स्वाहा ।

    अयं मन्त्रः । ॐ नमो भगवते रुद्राय फट्‌ । अनेन ग्राह्या ॥ ३४ ॥


    अमावस्या, पुणिमा, पंचमी अथवा त्रयोदशी की रात्रि में ॐ नमो भगवते रुद्राय फट्‌" मन्त्र का जप करते हुए देवदाली ( देवदाली ) की जड़ निकाले । अब स्वेत पुष्प, चन्दन, धूप, दीप, बलि प्रभृति द्वारा “ॐ अमृतगणपरिवेष्टिते रुद्रगणाय ॐ नमः स्वाहा" मन्त्र द्वारा उस जड का पूजन करे ।। ३३-३४ ॥


    तदनन्तर इस जड के रसम पारद तथा मद्य को २४ घण्टा घोटकर रखे । तत्पश्चात इस मिले पदार्थं का आंखों में अंजन लगाये । लगाते समय ॐ नमो भगवते रुद्राय फट" इस मन्त्र का उच्चारण करे। इससे साधक सबके लिए अदृच्य हो जाता है । ऐसा स्वयं महादेव ने कहा है ।॥ ३५ ॥ उपरोक्त प्रकार से देवयानी ( देवदाली ) का रस तैयार करके ( उसमें पारद-मद्य न मिलाकर ) केतकी वृक्षका रस मिलाकर २४ घंटा रखे । तत्यश्चात्‌ उसे नेत्र मे उशी मन्त्र को जपते हुए लगाये । यह भी श्रेष्ठ अद्य कारक योग है ॥ ३६॥

    दिन में एक काले मार्जार को भूखा रखे । तदनन्तर ४ महाबली खड्गधारी साधकों के साथ कृष्णपक्ष की चतुदेशी तिथि की रात्रि में किसी जनशुन्य स्थान अथवा शमशान में इस मार्जार को ले जाकर उसकी गन्ध, पुष्प तथा अक्षत से अर्चना करे । ( उसी कृष्णपक्ष की चतुदंरी के दिनमें मार्जार को भूखा रखे ) ॥ ३७ ॥

    तत्पश्चात्‌ एक काले बकरे की बलि देकर उसकी चर्बी को उस भूखे उपवासी मार्जार को खाने के लिए प्रस्तुत करे । इससे वह मार्जार परितीप्त हो जायेगा । तदनन्तर उस मार्जार के दोनों पिछले पैरों को पकड़कर. उसे हवा में घुमाना चाहिए, ताकि वह एक विधिवत्‌ अचित जलपुर्ण पात्र में उलटी करे । इस वमन पदार्थ को अग्नि में पकाकर उससे एक प्रदीप बनाये ॥॥३८-३९॥।

    इस हेतु सुत से निमित वत्ती को उक्त पकाये गये वमन पदा्थे में भिगाकर मृत मनुष्य की खोपड़ी में दीपक जलाये । एक दूसरे नरमुण्ड को प्रदीप के ऊपर रखकर काजल जमाये । रात्रि में देवी की पूजा-अचेना कंरे ।

    तदनन्तर चारों खड्गधारी साधक परस्पर एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए उस प्रदीप के चारों ओर घेरा बाँधकर उसकी रक्षा करें और पाँचवाँ व्यक्ति ( मुख्य साधक ) महाकाल के मन्त्र का जप करता रहे । तत्पश्चात्‌ जब काजल पड़ जाये तब पाचों साधक इस काजल को ग्रहण करें । यह्‌ अदृद्यकारक तथा राज्यप्रद योग है ।। ४०-४२ ॥

    “ॐ नमः अकान्ति नृकटयतु कूटकटिमेन ।” अनेन मन्त्रेण कृष्ण- शुनकस्य दक्षिणाधोद॑ष्टामूलस्थं मासं ग्राह्यम्‌ । पंचोंपचारेः पूजयित्वा समाहरेत्‌ । त्रिलोहवेष्टितं कृत्वा वक्तरस्थोऽदश्यकारकः ।। ४२ ॥ एक कृष्णवर्ण कुत्ते के गले में एक डोरा बाधे । ॐ नमः अकान्ति ... कुटकटिमेन' मन्त्र को पढ़ते हुए उस कुंत्ते के निचले जबड़े के दाहिनी ओर के दाँत की जड़ का मांस निंकाले । पंचोपचार अचेना कै पश्चात्‌ इस मांस को त्रिलौह की गुटिका में भरकर मुख में धारण करे । यह योग अदृश्यकारक है॥४३॥ मयूर की अस्थि तथा वानर की अस्थिको भेस कै घृत म पकाकर उसको पीसकर अंजन तैयार करके लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है । ४४॥


    तीन दिन उपवास करके पुष्य नक्षत्र की रात्रि में काली मिट्टी से भरे नरकपाल में काला जौ बोना चाहिए । प्रतिदिन रात्रि में उसे जल द्वारा सींचना चाहिए । इसका पौधा जम जाने पर जब उसमें बीज पक जाये तब उन बीजों से माला बनाये । इस माला को धारण करते ही साधक अदृश्य हो जाता है । ( उपवास ऐसे समय करना चाहिए जिससे वह पुष्य नक्षत्र की रात्रि में समाप्त हो । ) ॥ ४६ ॥


    जो व्यक्ति लोहे के तीर से मरा हो, उसके जलाये जाने पर देह में धसे उस लोहे के तार को ले आना चाहिए । तदनन्तर पूर्ण काले कौए और उल्लू के दोनों नेत्रों को लाकर उन्हें पीसे । इस अंजन को उक्त लोहे के तीर से आँखों में लगाने साधक निश्चित रूप से, अदृश्य हो जाता है ॥ ४७ ॥


    शमशान मे ऋतुमती कन्या के साथ संभोग करनेसेजो शुक्रशोणित निकले, उसे मैनसिल तथा हरताल के साथ पीसकर उसका तिलक लगाने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है ॥।. ४८ ॥। जब किसी गरभिणी स्त्री को आठ मास का गर्भपात हो जाये, तब उस गभेच्युत सन्तान का नेत्र, कान, जिह्वा, वक्षःस्थल का मांस, नासिका, जीह्य तथा लिंग को निकाल कर उसको सन्ध्याकाल में पीसना चाहिए ।॥ ४९ ॥


    ( उक्त पीसे पदाथं को गुटिका में भरकर ) चंद्रग्रहण अथवा सूर्यग्रहण के समय जब तक ग्रहण का मोक्ष न हो जाये तब तक उस गुटिका को महाकाली के मन्त्र से अभिमन्त्रित करता रहे । इस गुटिका को हाथमे धारण करते ही साधक अदृश्य हो जाता है ।॥ ५० ॥


    मनुष्य के मस्तक में जो पृथ्वी से उड़ती हुई मृत्तिका लगी है, उसे चाण्डाली के दुग्ध म मिलाकर हाथ मे रखने से साधकं अद्रिस्य हो जाता है ।॥ ५१ ॥

    किसी मृत कर्मकार (मज दूरी पर काम करने वाला) की खोपड़ी में मिट्टी भरकर कृष्णपक्ष की चतुर्देशी को तुलसी के बीज बोकर सींचना चाहिए ॥५२॥।

    जब इस बीज से तुलसी का पौधा उग आये, तब वट के पत्ते पर कुक्कुट एवं सात धान की बलि देकर तुलसी के पौधे को जड़ सहित निकाल ले । इसका अंजन बनाकर लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है । ५३ ॥

    आषाढ़ मास की कृष्णचतुदेशी को मरे हुए मनुष्य की खोपड़ी तथा उस खोपडी के नासिकाके छिद्रमे काले धतूरे के बीज को समान मात्रा में बोना चाहिए । बोने के पहले खोपड़ी एवं नासिकाछिद्र में काली मिट्टी भरकर तब उसमें बीज बोये । जुठे मुँह से ( बिना मुँह धोये ) इसमें सिचाई करना चाहिए । जब तक बीज से पौधा न हो जाये और उसमें फल न लगे, तब तक प्रत्येक संक्रान्ति, अमावस्या तथा पूर्णिमा को लाल सूत्र से बनायी बत्ती द्वारा घी का दीपक जलाये ॥ ५५ ॥

    क्रमशः इसमे फल लग जाने पर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को फल तोड़े और मुर्गे की बलि प्रदान करे । इस फल के बीजों की गुटिका बनाकर मुख में धारण करने से साधक अदृद्य हो जाता है ॥। ५६ ॥।


    काली मिट्टी वाले खेत में मनुष्य की खोपड़ में कृष्णपक्ष की चतुदंशी को रात्रि में घुमची बोये । प्रतिदिन नाना प्रकार की बलि तथा उपहार द्वारा पुजन करे । जब तक घुमची का पौधा बढ़कर फलित नहीं हो जाता तब तक पुजन एवं रात्रि मे जलर्सिचन करता रहे ।॥ ५७ ॥

    उसमें फल लग जाने पर काले बकरे की बलि देकर योगीश्वरों को भी उपहार तथा बलि-मांस देकर भोजन कराये ।
    तदनन्तर इस वृक्ष से क्रमश: १०८ घुमची के फल लेकर सुई-धागा द्वारा माला बनाये । यह मालां अदृश्यकारिणी होती है । इसे मस्तक अथवा कर्ण में धारण करने से उसे को कोई नहीं देख सकता ।। ५९ ॥

    घोर काली भैंस के दूध में काला जीरा पकाये । इसे खाने पर जब तक पेट का जीरा पच नहीं जाता तब तक वह व्यक्ति सबके लिए अदृश्य रहता है, यह निःसंदिग्ध है ॥॥ ६० ॥ ॐ इलापिंगलाए स्वाहा । उक्त मन्त्र पढ़ते हुए गिरगिट के वक्षःस्थल का मांस निकाल कर उतना ही गोरोचन मिलाकर पीसे। अब तालवृक्ष के पत्ते में इसे लपेटे अथवा उसे गुटिका में भरे । इसे मन्त्र पढ़कर मुख में रखने से साधक अदृश्य हो जाता है ॥ ६१॥

    कटुलौकी, देवयानी, पटोली, इन्द्रवारुणी, तिक्ता ओौर कोषातकी के सूखे बीज का चूण करना चाहिए । काकतुण्डी, अपामार्गे, कषाय को लेकर उसे मिलाय ( पीसे ) । अब कांसा के पात्र पर इसका लेप लगाकर उसे सूर्यं की तिब्र धूप में रखे । तदनन्तर खुब गर्म हो जाने पर इस लेप को एक स्वच्छ कपड़े में रखकर खूब निचोड़ना चाहिए, जिससे तेल निकलने लगता है । इस तेल को चन्दन एवं देवदारु के साथ पीस कर तिलक लगाने से अदृश्यकारी योग बन जाता है ।॥ ६२-६४ ।।
    अपामागे के काढ के साथ पूवेकथित तेल मिलाये । उसमें बिच्छू नामक जड़ी के बीज का चुरण, आमडा की गुठली का चूर्ण तथा चितामूल को दशांश परिमाण में मिलाकर उसका मदेन नारियल के जल के साथ करे।। ६५ ॥

    इस प्रकार से करके इन सबको वस्त्र में रखकर उसे निचोडते हए पूर्ववत्‌ तेल निकाले । विषमुष्टि ( कुचिला ) के बीजों का प्रत्येक योग में प्रयोग करना चाहिए ॥ ६६ ॥

    तदनन्तर रात्रिकालमें अंकोलतैल द्वारा कुंकुम एवं दारुहल्दी को दग्ध करके उसके साथ गोरोचन तथा सहदेवी को समान मात्रा मे एक साथ पीसना चाहिए । तत्पश्चात्‌ इसके साथ विषमृष्टि ( कुचिला ) कै तेल को मिलाकर तिलक करे । यह्‌ अदुद्यकारक योग है ॥ ६७ ॥

    कपास के बीज के चूर्णे की भावना एक दिन पर्यन्त जड़ सहित उखाड़ी गयी वारुणी के काढ़े में प्रयत्नपुवक देनी चाहिए । इससे पहले कही विधि के अनुसार तेल निकाल कर प्रत्येक योग में इसका प्रयोग करे ॥ ६८ ॥।


    आमड़ा की गुठली का चूर्ण, उसका दशांश चित्रामुल ( चीता की जड़ ) को नारियल के जल में पीसकर उससे बत्ती बनाये । पुर्वंकथित तैल में उस बत्ती को भिगाकर जलाये और हाथ पर रखे। इससे मनुष्य अदृश्य हो जाता है ॥ ६९ ।।




    बिशेस जानकारी 




    उपोरक्त जितना बिधि हे सब सिद्ध नागार्जुन कृत बिद्या हे। ये सब बिधि को अपना कर आप लोग भी गायब हो सकते हे। इसमें बिज्ञान का कही राय नहीं लिकिन शास्त्र में उल्लेख हे पहले ज़माने में मुनि ऋषि लोग सिद्ध बाबा लोगो के पास यही बिद्या थी जिसका दम पर गायब हो जा रहा था। 


    Bhutni Sadhna || भूतनी साधना
    Sarba lok vashikaran | सर्व लोक बशीकरण



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