जानिये वशीकरण करण करने का गुप्त विधि के बारेमे || Janiye Vashikaran karne ka gupt bidhi ke bareme

जानिये वशीकरण करण करने का गुप्त विधि के बारेमे || Janiye Vashikaran karne ka gupt bidhi ke bareme

जानिये वशीकरण करण करने का गुप्त विधि के बारेमे



    वट का मूल जल में घिसकर उसमें भस्म मिलाकर मस्तक पर तिलक करने से सभी वशीभूत होते हैं १ बिल्वपत्र को छाया में सुखाये । उसे कपिला गौ के दुग्ध में मिलाकर बटिका बनाये । इसका तिलक मोहन करता है


    स्वेतगुंजा के रस में ब्रह्मदण्डी की जड़ को पीसकर शरीर में लेपन करने से जगत मोहित हो जाता है ।

    केला के तने का रस, कपूर तथा मनःशिला को घोंटकर उसके तिलक द्वारा जगत्‌ को मोहित किया जा सकता ता

    तुलसी की पत्तियों को धूप में सुखाकर उसमें भाँग तथा अश्वगंधा पीसकर कपिला(देशी काला गाय) गौ के दुग्ध में पीसे और एक रत्ती की एक-एक वर्टिका बनाये । जो व्यक्ति प्रात: उठते ही इसका भक्षण करेगा, वह पृथ्वी पर सबको अनायास मोहित कर सकता है ॥ 

    गोरोचन, कुकुम तथा सिन्दूर को आमलकी के रस में मिलाके तिलक लगाने से जो उस तिलक को देखेगा, वह मोहित होगा ॥

    महादेव कहते हैं--हे प्रिये ! नागकेसर, प्रियंगु, तगर, पद्मकेदार एवं जटामांसी को समान मात्रा में चूर्ण करे । उसका अपने अंगों में घृँवा दे । इससे उस व्यक्ति को देखते ही सभी वश में हो जाते है।

    पुवफाल्गुनी नक्षत्र में ११ अंगुल नाप की शालकाष्ठ ( लकड़ी ) को ही स्त्री के घर में फेंका जायेगा, वह वशीभुत होगी ॥ ९




    सर्ब लोक बसीकरण बिधि







    जन-सामान्य को वशीभुत करने के लिए ब्रह्म डंडी, वच, कुठ को चूर्ण करके पान के साथ ( पान में रखकर ) खिलाये । ऐसा पान खाने वाला बशीभूत हो जाता है ।

    हरिताल, तुल्सीपत्र को कपिला गौ के दूध में पीसकर मस्तक पर तिलक लगाने से वशीकरण होता है ।।

    सी दुर्वा को कपिला गौ के द्ग्ध में पीस कर शरीर पर लेप करने से सवि लोग वशीभूत हो जाते हे।

    बिल्वपत्रं, मातुलुंग ( बिजौरा नीबू ) बकरी के दुग्ध में पीसकर तिलक करने से सर्व लोग वशीभूत हो जाते हे।

    स्वेतमदार की जड़ तथा गोरोचन को अपने मूत्र में मिलाकर पीसें और तिलक लगाये । जिसकी दृष्टि तिलक पर पड़ेगी, वह तत्काल बशिभूत होगा। 



    राज बसीकरण तिलक 




    राज वशीकरण इस वशीकरण प्रयोग विधि को अप लोग अपने कर्म स्थल में प्रयोग कर सकते हे जिससे आपका बस या मालिक सर्वदा आपका वशीभूत होके रह जायेगा।

    ॐ क्लीं सः अमुकं मे वशं कुरु कुरु स्वाहा" ।

    राजवशीकरण कहा जाता है । कुंकम, रक्तचन्दन, गोरोचन तथा कपूर को समान मात्रा में लेकर उसका गोदुग्ध से तिलक करने से राजा वश मे हो जाता है। इसे पहले ॐ क्लीं सः अमुकं मे वशं कुर कुरु स्वाहा । मन्त्र का एक हजार आठ बार जप करके इसी से सात बार अभिमन्वित कर उपरान्त तिलक लगाना चाहिए । अमुक' के स्थान पर जिसे वश करना हैः उसका नाम लेना चाहिए ॥१

    ॐ सुदर्शनाय हुं फट्‌ स्वाहा । पूर्वमेव सहस्रजपेन सिद्धिः । हस्त नक्षत्र मे चक्रमदं ( चकवड ) की जड़ को उखाड़ कर (ॐ सुदशनाय हुं फट्‌ स्वाहा" मन्त्र से उसे अभिमन्त्रित करे । इसे जो व्यक्ति बाहु में धारण करता है, उसे राजद्वार में सम्मान प्राप्त होता है। इस मन्त्र को पहले १०० बार जप लेना चाहिए, तब सिद्ध होती है।॥ २॥

    ॐ हीं रक्तचामुण्डे रक्तं कुरु कुरु अमुक मे वशमानय स्वाहा । अन्य चण्डमन्त्रः सवैसिद्धो भवति । । पहले दस हजार बार ॐ हीं रक्तचामुण्डे रक्तं कुरु कुरु मे वश्य मानय स्वाहा" को जपे । “अमुकं की जगह जिसे वशीभूत करना हे उसका नाम युक्त करे । ओषध-संगरह, प्रस्तुति तथा पयोग के लिए इस मन्व ७ बार प्रयोग करे । इसके प्रभाव से समस्त कायं सिद्ध होते है ।। ३॥




    मजीठ, कुंकुम, अजमोदा ( यमानी ), घृतकुमारी, चिताभस्म तथा अपने देह के रक्त को एकत्र करके उसमे अपने वीर्य की भावना देकर पुष्य नक्षत्र म वटी बनाये । भोजन अथवा जल के साथ इसे किसीको भी खिलाने पर वह वशीभूत हो जाता है । ( इससे पूर्वं चण्डमन्व्र का १०००० जप आवदयक है ओर ओौषध-संग्रह, प्रस्तुति तथा प्रयोग के समय भी ७-७ बार इस चण्डमन्त्र का प्रयोग करे । यदि यह वटी राजाके देह से स्पर्श कराई जाये, तो वह भी चण्डमन्तर के प्रभाव से वशीभूत हो जाता है ।


    चन्दरग्रहण के समय ( चण्डमन्वर ७ बार पढ़ कर ) सफेद अपराजिता की जड़ लाये । उसे ७ बार चण्डमन्त्र॒ पड़ कर स्वामी को भोजन-पानी मे पीस- कर देने से वह वशीभूत हो जाताहै। प्रयोग से पहले दस हजार चण्डमन्त्र जपे । उत्तराषाढा-उत्तराभाद्रपद अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के समय सुबह पीपल की जड़ ७ वार चण्डमन्वर पढ़कर लाये । इसे ७ बार चण्डमन्त्र पठकर बाह मे बाधने से साधक राजद्वार मे अथवा अन्यत्र भी विजयी हो जाता है। पहले १०००० चण्डमन्त्र सिद्ध करे ।

    भरणी नक्षत्र मे ओंवले की जड, विशाखा मे आम्र की जड़, पूर्वाफाल्गुनी मे अनार कौ जड़ ७-७ बार चण्डमन्त्र पढ़कर लाये । इन्हें ७-७ बार चण्डमन्त्र पठ़कर बाह मे बाधने से यदि राजा इन्दरके भी समानहो, तवबभी वशीभूत हो जाता है । पहले १०००० चण्डमन्त्र सिद्ध करे ॥

    असलेसा नक्षत्र मे ७ वार चण्डमन्त्र जप कर नागकेशर की जड लाये । इसे ७ बार जप कर बाह में बाधने से पृथ्वीपति राजा भी वजीभूत हो जाता है ॥ प्रयोग के पूवं १०००० चण्डमन्त्र सिद्ध करे ।

    अंकोल फल के तेल के साथ रक्तमण्डल की जड़ काकर व को षः समय ७ बार चण्डमन्त्र पढे । मिलते समय भी ७ बार मंत्र पड़े अभिमन्त्रित करके तिलक करने से राजा वशीभूत हो जाता है । प्रयोग से पूवे दस हजार चण्डमन्त्र जपे ।

    कुद्दूई के तेल रक्तचन्दन तथा स्वेत सरसों मिलाकर एक हजार चण्डमन्त्र से हवन करने से राजा वश मे हो जाता है ।

    रात्रिके समय अपने गृह मे सरसों ओर बकरे के रक्त से चंद मंत्र हवन करने से राजा अवश्य वश मे हो जाता है, इसमें जप संख्या पहले की तरा ।

    पुष्य नक्षत्र मे गोजिह्वा तथा शिखि की जड़ चण्डमन्त्र जपते हुए लये । इसे मुख में अथवा सिर पर रखने से बिबाद में जय प्राप्त होता है ।



    पति वशीकरण करने का सिद्द प्रयोग 





    मालती पुष्प के साथ पकाये सरसों के तेल द्वारा योनि का लेपन करने पर नारी रात्रि ( रमणकाल ) में पतिको मुग्ध कर देती है।

    खंजन पक्षी का मांस मधु के साथ पीसकर योनि पर लगाये। वह स्त्री ( रमणकाल में ) पति को वशीभूत करलेती है।। २॥


    सैन्धव ( सेधानमक ) के साथ पुनः-पुनः सात बार तिल की भावना देकर उसका घर्षण करके योनिप्रदेश मे लेपन करने वाली स्त्री पति को रतिकाल मे वश में करलेतीहै।।

    सौवचैल (शोर), वच, सैन्धव, मछली का पित्त, चर्बी, घृत तथा कांजी समान भागम पीसकर योनिम लेपन करनेसे पति वशीभूत हो जाता है ।

    अनार का पंचांग तथा सफेद सरसों पीसकर योनि मे लेपन करके दुरभेगा नारी भी पति को वशमें करलेती है।

    इन योगों का द्रव्य-समूह्‌ प्रत्येक निम्नलिखित मन्त्र द्वारा सात बार अभिमन्त्रित करना चाहिए ।


    “ ॐ काममालिनी ठः ठः” उक्तयोगानां सप्ताभिमन्तिते सिद्धिः मतान्तरे ॐ महायक्षिणि पति मे वश्यं कुरु कुर स्वाहा ।
    अन्य मतानुसार ॐ महायक्षिणि" ` स्वाहा" पयैन्त का १०८ बार जप करे ।


    गोरोचन तथा मछली के पित्त को एकमे पीसकर बायें हाथ की कनिष्ठा अंगुली से तिलक करने से पति अवश्यमेव दास बन जाता है।


    ऋतुकाल मे स्त्री अपनी योनि में गोरोचन का केप करे । तत्पश्चात्‌ इस गोरोचन द्वारा धतूरे के पुष्पम भावना देकर उसका ( पीसकर ) तिलक लगाने से पति वशीभूत हो जाता है ।


    धतूरे के बीजचूर्ण से एक सप्ताह पर्यन्त कान, दोनों नेत्र, दोनों नासिका, मुख, जिह्वा, पायु तथा उपस्थ के मल द्वारा भावना देना चाहिए । इसे भोजन अथवा पेय के साथ पतिकोदेनेसे वह वशीभूत हो जाताहै।


    लाल पुत्रजीवी ( पितौजिया ), प्रियंगु, गिरिकणिका ( अपराजिता ) तथा सफेद अपराजिता की जड़का समान भागमें चूर्ण करे। उसे रात्रिको ताम्बूल में रखकर पति को खिलाने से पति का वशीकरण हो जाता है।॥ ९॥


    स्वेत कण्टकारी की जड़, अपराजिता की जड़ ( पीसकर ) ताम्बूलमें रखकर पति को खिलाने से वह॒ दासवत्‌ वशीभूत हो जाता है ।

    स्वेत कण्टकारी की जड़  के साथ आमलकी फल का चूर्ण करके उसे वस्त्र मे बधे इसके बाद पुरुष का शुक्र तथा कपास का बीज एक जीवित मेडक के मुख में रखे । तदनन्तर कुमारी के द्वारा काटे गये सूत द्वारा पुरुष को आपादमस्तक ( पैर की अंगुली से लेकर शिखा पर्यन्त ) नाप कर उससे खटिया के चारों पैरोंको लपेटे । पुनः इस सूत्र के द्वारा उस मेढक को बाँध कर एक हांडी रखे ओर उस हांडी को भूमिमे गाड़दें। इसप्रकार से पति अवश्य वशीभूत हो जाता है ।।

    जहाँ पर पति ने मूतर त्याग किया हो, वहां की मृत्तिकाको बाथ हाथ से यत्नपूर्वंक निकालना चाहिए । निकालते समय वह मन्त्र पड़े चण्ड मंत्र । तदनन्तर पाँचों आंगुलिया के पाचों नखों द्वारा कुम्हार के चक्रमे लगी मिट्टी को (चक्र के ) उल्टी ओर से निकाले

    अब मूत्र स्थान तथा कुलाल-चक्रकी मिट्टी द्वारा वृषभ की मूत्ति बनाना चाहिए ओर उसे सूत्र द्वारा लपेट कर दरवाजे पर स्थापित करे, किंगबा दरवाजे के नीचे भूमि में गाड़ दे। उसको लांधने पर पति तत्काल वरीभूत हो जाता है । इसके प्रभाव से पति अपने घरमे तो कामदेव के तुल्य ( रति- `

    क्रीडा मे) हो जाता दहै, परन्तु अन्यत्र ( रमणेच्छा होने पर ) उसे तत्काल नपुंसकता आ जाती है ।

    सौवचैल (शोर), वच, सैन्धव, मचछढी का पित्त, चर्बी, घृत तथा कांजी समान भागम पीसकर योनिम लेपन करनेसे पति वशीभूत हो जाता है । ४॥ अनार का पंचांग तथा सफेद सरसों पीसकर योनि मे केपन करके दुरभेगा नारी भी पति को वशमें करलेतीहै। ५॥ इन योगों का द्रव्य-समूह्‌ प्रत्येक निम्नलिखित मन्त्र द्वारा सात बार अभिमन्त्रित करना चाहिए ।




    “ ॐ काममाछिनि ठः ठः” उक्तयोगानां सप्ताभिमन्तिते सिद्धिः मतान्तरे ॐ महायक्षिणि पति मे वश्यं कुरु कुर स्वाहा ।


    अन्य मतानुसार ॐ महायक्षिणि" ` स्वाहा" पयैन्त का १०८ बार जप करे ।


    गो रोचन तथा मछली के पित्त को एकमे पीसकर बायें हाथ की कनिष्ठा अंगुली से तिलक करने से पति अवश्यमेव दास बन जाताहै। ६ ॥


    ऋतुकाल मे स्वरी अपनी योनि में गोरोचन का केप करे । तत्पश्चात्‌ इस गोरोचन द्वारा धतूरे के पुष्पम भावना देकर उसका ( पीसकर ) तिक्क` लगाने से पति वशीभूत हो जाता है ।॥ ७॥


    धतूरे के बीजचरणं से एक सप्ताह पर्यन्त कान, दोनों नेत्र, दोनों नासिका, मुख, जिह्वा, पायु तथा उपस्थ के मल द्वारा भावना देना चाहिए । इसे भोजन अथवा पेय के साथ पतिकोदेनेसे वह वशीभूत हो जाताहै।॥ ८ ॥


    लाल पुत्रजीवी ( पितौजिया ), प्रियंगु, गिरिकणिका ( अपराजिता ) तथा सफेद अपराजिता की जड़का समान भागमें चरणं करे। उसे रात्रिको ताम्बूल में रखकर पति को खिलाने से पति का वशीकरण हो जातादहै।॥ ९॥


    सवेत कण्टकारी की जड़, अपराजिता की जड़ ( पीसकर ) ताम्बूलमें रखकर पति को खिलाने से वह॒ दासवत्‌ वशीभूत हो जाता है ॥ १०॥ जड के साथ आमलकी फल का चरणं करके उसे वस्त्र मे बधि । पश्चात्‌ जड़ के साथ आमलकी फल का चरणं करके उसे वस्त्र मे बधि । पश्चात्‌

    पुरुष का शुक्र तथा कपास का बीज एक जीवित मेक के मुख में रखे । तदनन्तर कुमारी के द्वारा काते गये सूत द्वारा पुरुष को आपादमस्तक ( पैर की अंगुली से लेकर शिखा पर्यन्त ) नाप कर उससे खटिया के चारों पैरोंको लपेटे । पुनः इस सूत्र के द्वारा उस मेढक को बाँध कर एक हड़या ` मेरे ओर उस हड़या को भूमिमे गाड़दें। इसप्रकार से पति अवश्य वशीभूत हो जाता है ।। जहाँ पर पति ने मूतर त्याग किया हो, वहां की मृत्तिकाको बाथ हाथ से यत्नपूर्वंक निकालना चाहिए । निकालते समय वह मन्त्र पठे, जो १७बे' शलोक के पश्चात्‌ अंकित है । तदनन्तर पाँचों अंगुख्यों के पाचों नखों द्वारा कुम्हार के चक्रमे ल्गीमिदीको (चक्र के ) उल्टी ओर से निकाले ॥

    अब भूतरस्थान तथा कुलाल-चक्रकी मिरी द्वारा वृषभ की मूत्ति बनाना चाहिए ओर उसे सूत्र द्वारा लपेट कर दरवाजे पर स्थापित करे, किवा दरवाजे के नीचे भूमि में गाड़ दे। उसको लांधने पर पति तत्काल वरीभूत हो जाता है । इसके प्रभाव से पति अपने घरमे तो कामदेव के तुल्य ( रति- क्रीडा मे) हो जाता दहै, परन्तु अन्यत्र ( रमणेच्छा होने पर ) उसे तत्काल नपुंसकता आ जाती है ।
    ॐ हो नाथं तुच्छं मन्त्रयती होः पशचनखे उच्चण्डं पनी हौं सामोहि

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