भैरवी तंत्र (bhairabi tantra sadhana)
भगवती भैरवी षष्ठ विद्या है।इनका उपासना द्वारा साधक समाज में सम्मानित स्थान तथा समान अधिकार प्राप्त करता हे ।ये भी भगवती आद्या काली का स्वरूप है।ये शत्रुओं का दलन करने बाली त्रिजगत तारिणी तथा षटकर्म में उपास्य है।
इन्हे त्रिपुर भैरवी भी कहाजता है।ये काल रात्रि सिद्ध विद्या है ।इनके शिव दक्षिणा मूर्ति(काल भैरब हे)।
पंचमी विद्या भगवती छीन्नामस्ता का सम्बंध महा प्रलय से है तथा इन षष्ठ विद्या त्रिपुरा भैरवी का सम्बन्ध नित्य प्रलय से हे।
प्रत्येक प्रदार्थ नष्ट होता रहता है। नष्ट करने का काम रुद्र का हे ये रुद्र ही बिनाशोन्मुख होकर यम कहलाने लगता हे।इस यामाग्नि की सत्या प्रधान रूप से दक्षिण दिशा मैं है,इसी कारण यमराज को दक्षिण दिशा का लोक पाल माना जाता है।
सोम स्नेह तत्व हे बह संकोचधर्मा हे ।अग्नि तेज तत्व हे ,बह बिशक्लन धर्मा है । बिशकलन क्रिया ही वस्तु का नाश करती हे यह धर्म दक्षिंग्नी का हे। अत इस शक्ति का नाम ही भैरवी अथवा त्रिपुरा भैरवी है।राज राजेश्वरी नाम से प्रसिद्ध भूबेनेश्बरी जिन तीनों भुबनो के पदार्थों की रक्षा करती हे ,त्रिपुरा भैरवी उन सब का नाश करती रहती है।त्रिभुवन के क्षणिक पदार्थों का क्षणिक विनाश इसी शक्ति पर निर्भर हे। छिन्नमस्ता परा डाकिनी थी,यह अबरा डाकिनी है।भैरवी तंत्र के अनुसार कल्याणेछुओ को इनका ध्यान नियमित रूप से निम्नानुसार करना चाहिए-----
"उद्दादभानु सहस्त्रकान्तिमरून क्षोमा शीरोमालिकां रक्ता लिप्तपयोधरं जपपटिं विद्यामभीति बरम। हस्ताब्जेदेधतिं त्रिनेत्र बिलसदुबक्त्रा रबिन्दश्रीयं ।
देवी बद्धहिमांशु रत्न मुकुटा बन्दे समन्दस्मिताम् ।।"
त्रिपुरा देवी के तीन प्रकार कहे गए हे (१)बाला(२)भैरवी(३) सुन्दरी 'ज्ञानार्णब ' के अनुसार त्रिपुरा देवी त्रिबिधा हे,उन्हें त्रिशक्ति कहते हे।बाराही तंत्र में लिखा गई हे ब्रह्मा ,बिष्णु और महेशर प्रभुति त्रिदेबो ने प्राचीन काल में आपकी पूजा की थी इसलिए आपका नाम त्रिपुरा प्रसिद्ध हे हुए हे।त्रिपुरा भैरवी मंत्र प्रयोग विनियोग हृष्यादि न्यास करन्यास: पूर्वादि दिशायो मे क्रम् से---
भगवती त्रिपुरा भैरवी का मंत्र न्यास तथा प्रयोग विधि निन्मानुसार् हे ----
मंत्र: 'हासें हसकरी हसें'
अस्य त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ऋषि: पंक्तिशछन्द: त्रिपुर भैरवी देवता ऐं बीजं ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं ममभिष्टसिद्धयै जपे विनियोग:।
ॐ दक्षिणा मूर्ति हृषये नम्: शिरसि पङ्क्तिश्छन्दसे नम्:मुखे।
श्रि त्रिपुरभैरव्यै देवतायै नम:हृदि।
ऐं बीजाय नम:गुह्मे
ह्रीं शक्तये नम:पादयो:।
क्लीं कीलकाय नम: सर्बाङ्गे।
हसरां अंगुष्टाभ्यां नम:।
हसरिं तर्जनिभ्यो नम:।
हसरू मध्यमाभ्यांग नम:।
हसरें अनमिकाभ्यां नम:।
हसरो कनिष्ठभ्यां नम:।
हसर:करतलकर पृष्ठाभ्यां नम:।।
हृदयादि षडङ्न्यासः
हस्रांग हृदयाय नम:।
हस्रिंग शिरसे स्वाहा।
हस्रुं शिखायै वषट्।
हस्रों नेत्रत्रयाय वौषट्।
हसर :अस्त्राय फट्।
इस् प्रकार न्यास करणे के बाद ' तारा मन्त्र प्रयोग मे बर्णित न्यास आदि भि करे ।
ध्यान :
" ऊद्यद्भानुसहस्त्रकान्ति मरून क्षोमां शिरोमालिकां । रक्तालिप्त पयोधरां जप बटी विद्यामभितिं बरम्।
हस्ताब्जे द्देधतिं त्रीनेत्र बिल सहस्कत्रार बिन्दश्रियं देवी बद्धहि मांशुरत्नमुकुटां बन्दे समन्दस्मिताम्।।"
भावार्थ---- " भगवति त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदियमान सहस्त्र सूर्यो की कान्ति के समान है।बे रक्त वर्णं के क्षोम् बस्त्र धारण किय हुई है।उनके गले मे मुण्ड माला है दोनो स्तन् रक्त से लिप्त है।बे अपने चारो हाथों में जप माला ,पुस्तक ,अभय ,मुद्रा,तथा बर मुद्रा धारण किए है।उनके ललाट पर चंद्रमा की कला शोभय मान हे।रक्त कमल जैसा शोभा वाले उनके तीन नेत्र हे।उनके मस्तक पर रत्न जटिल मुकुट तथा मुख पर मन्द मुस्कान है।
पीठ पूजा _इस प्रकार ध्यान करके मानसोपचारो द्वारा पूजा करके पीठ पूजा करे । पिठादी में सर्वतोभद्र मंडल में मांडूकादी पर तत्बंत पीठ देवताओं को पद्धति मार्ग से स्थापित करें।
ॐ मं मण्डुकादि पर तत्वान्त पीठ देवताभ्यो नम:।
इस मन्त्र द्वारा पुजकर निन्म लिखित मन्त्रो सै पीठ शक्तिया का पूजन करे।
ॐ इच्छाये नम्:।
ॐ ज्ञानाये नम:।
ॐ क्रियायै नम:।
ॐ काम दायीन्ये नम:।
ॐ रत्यै नम्:।
ॐ रति प्रिर्यये नम:।
ॐ नन्दायै नम:।
ऐं पराये नम:।
मध्ये में ----
ॐ अपरायै नम:।
इस प्रकार पीठ शक्तियों की पूजा करके स्वर्णदी से निर्मित यंत्र पत्र को ताम्र पात्र में रख कर ,घृत द्वारा उसका अभ्यंग करें तथा उस पर दूध धारा और जलधारा डालकर स्वच्छ वस्त्र से पोछने के बाद उसके ऊपर देवी के अष्ट गंध द्वारा ,नबयोनी बाला यंत्र ,उसपर अष्ट दल तथा उसके ऊपर भुपुर बनाएं (इस विधि से निर्मित होने वाले यंत्र का स्वरूप आगे दिया गई हे)
"हसों महा प्रेत पद्मासनाय नम:।"
इस मंत्र से पुस्पाद्यासन देकर पीठ के मध्य उसे स्थापित करे ।फिर पुन ध्यान करके
"ऐं ह्रिं स ह स ष ह क्र ह्यों "
इस मंत्र द्वारा बिंदु चक्र में मूर्ति की कल्पना करके ,त्रिखंड मुद्रा द्वारा देवी का ध्यान करके अबाहन से लेकर पुस्पंजलि दान पर्यंत पूजा करके देवी की आज्ञा लेकर अबरन पूजा करे ।त्रिपुर भैरवी के पूजन यंत्र का स्वरूप नीचे प्रद्शित है।
आावरण-पूजा केसरों, आग्नेयादि कोणों में तथा मध्य दिशा में पूर्वोक्ताज्ञमन्त्र सेखंड की पूजा करें । फिर पुष्पांजलि लेकर, मुलमन्त्र का उच्चारण करते हुए । “ॐ अभीष्ट सिद्धि मे देहि शरणागत वत्सले । भक्त्या समरप्ये तुभ्यं प्रथमावरणाचेनमु।'” यह पढ़ते हुए पुष्पांजलि देकर “पुजिता स्तर्पितास्सन्तु” कहें । (इति प्रथमाव रण) इसके बाद पुज्य तथा पुजक के अन्तराल में प्राची दिशामानकार, तदनुसार
अन्य दिशाओं की कल्पना करके, निम्न क्रमानुसार पूजा करें-ए उत्तरे--
द्रां द्राविण्ये नम: ।
द्राविणी श्रीपादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: । द्रीं क्षोभिण्यै नम: ।
क्षोभिणी श्रीपादुर्का पूजयामि तर्पयामि नम: ।
दक्षिणे-- क्लीं वशीकरिण्यै नमः| वशीकरिण श्रीपादुकां पृजयामि तपयामि नमः
प्लु लोपाकषिण्यै नमः । लोपाकषिणी श्रीपादुकां पूजयामि तपेयामि नमः ॥
आग्नेयां-- स्त्रीं सम्मोहिन्ये नमः सम्मोहिनी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
इसी प्रकार-- उत्तरे - ह्रिं कामाय नमः काम श्रौ पादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
क्लीं मंत्र थाय नमः ।
मन्त्रय श्रोपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
दक्षिण.... ऐं कन्दर्पाय नम: । कनद्रभ श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामी नम: । प्लु' मकरध्वजाय नमः । मकरध्वज श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः
अग्नेयां-- स्त्री मीन केतवे नमः । मीनकेतु श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः।
उक्त मन्त्रों द्वारा पूजा कर, पूर्ववत् पुष्पांजलि प्रदान करें । (इति द्वितीयावरणः). इसके पश्चात अष्ट योनियं मे प्राची आदि क्रम से निम्नलिखित मन्त्रो स पूजा करे -- ए क्लीं स्त्रीं सः सुभगायै नमः सुभगा श्रीपादुकां पूजयामि तर्प यामी नमः ।
ऐं क्लीं स्त्रीं सः भगायै नमः भगा श्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः एै क्लीं स्त्रीं सः भग सपिण्यं न॑मः भगसर्पिणी श्रोपादुकां पूजयामि तपयामि नमः ।
ऐं क्लीं स्त्रीं सः भगमालिन्यै नमः भगमालिनी श्रीपादुकां पृजयामि तर्पयामि नमः ।
ऐं क्लीं स्त्रीं सः अनङ्गायै नमः। अनङ्गा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ऐं क्लीं स्त्रीं सः अनङ्धकुसुमायै नमः । अनङ्ग कुसुमा श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः || ऐं क्लीं स्त्रीं सः अनङ्गमेखलायै नमः । अनङ्गमेखला श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नम: । ऐं क्लीं स्त्री सः अनङ्गमदनायै नमः ।अनङ्गमदना श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः उक्त प्रकार से पूजा करके पुव॑वतु पुष्पांजलि प्रदान करें । (इति तृतीयावरण:) इसके पश्चात् अष्टदलों में निम्नलिखित मन्त्रों से अष्ट भैरवों तथा भैर- वियों की पुजा करें-- प्राची क्रम से--
ॐ अ्षिताङ्ग ब्राह्मीभ्यां नमः । असिताङ्घ ब्राह्मी श्रोपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ रुरु मादेश्वरीभ्यां नमः । रूरू माहेश्वरीश्रीपादुका पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ चण्डकौमारीभ्यां नमः ।
„ चण्डकौमारी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ क्रोध वेष्णवोभ्यां नमः ।
क्रोध वैष्णवी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ उन्मत्त वाराही भ्यां नमः । उन्मत्त वाराही श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ कपालीन्द्राणीभ्यां नमः । कपालीन्द्राणी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
ॐ भीषण चामुण्डाभ्यां नमः भीषण चामुण्डा श्रीपादुकांपूजयामि तर्पयामि नमः । ॐ संहार महालक्ष्मीभ्यां नमः । संहार महालक्ष्मी श्रीपादुकां पूजयामि तर्पयामि नमः ।
उक्त मन्तो से पूजा कर, पूर्ववत् पुष्पांजलि प्रदान करे । (इतिचतुर्थावरणः) इसके पश्चात् पञ्चमावरण में इन्द्रादि दश दिक्पालो तथा वज्र आदि आयुधो का पजन कर, पुष्पांजलि प्रदान करें । (इति पञ्चमावरण) `
उक्त विधि से आवरण-पुजा करके धूप-दान से लेकर नमस्कार पर्यन्त पुजा करके श्रीविद्या” मे बर्नित चार बलियां देकर, हाथ-पाँव थोकर देवी का ध्यान कर, जप करें । पुरश्चरण इस मन्त्र का पुरश्चरण २४,००,००० जप है । १२,००० फूलों से होम करना चाहिए । होम का दशांश तर्पण, तपेण का दशांश मर्जन तथा माजन का दशां ब्राह्मण भोजन करना चाहिए । उक्त विधि से मन्त्र सिद्ध हो जाता है। मन्त्र के सिद्ध हो जाने पर प्रयोगों को सिद्ध करना चाहिए । प्रयोग सिद्धि दतु दीक्षा लेकर, जितेन्द्रिय होकर ५,००,००० मन्त्र. का.जप करना चाहिए । मतान्तर से--१०,००,००० मन्त्र-जप का भी निर्देश है । जप के बाद १२,००० बहेड़े के फूलों के साथ बहेड़े का होम करना चाहिए ।
त्रिपुरा भैरवी पंचकुटा मंत्र प्रयोग
नम् शारदा तिलक' के अनुसार--
हकार, सकार तथा रकार में ओंकार योगकरके उसमें विन्दु लगाने से प्रथम बौज (ह् स्त्रों); हकार, सकार, ककार, लकार तथा रकार में ईकार का योग कर उसमें विन्दुलगाने से द्वितीय बीज (ह स्कलरिं); हकार, सकार ओर रकार में ईकार का योग कर उसमे विन्दु तथा विसर्गं लगाने से तृतीय वीज (हस्रों) होता हैं। पांच-व्यज्जनों से रचित होने के कारण यह मन्त्र 'पब्चकूटा! कहा जाता है । इसके प्रथम बीज को वाग्भव-कुट, द्वितीय बीज को कामराज, कुट तथा तृतीय बीज को शक्ति-कुट कहते हैं । मन्त्र इस प्रकार बना- म्र
"हं स्रों ह् स्कलरिं हस्रों." पुजा-क्रम पहले सामान्य-पुजा-पद्धति के अनुसार प्रातः क्रित्यादि से प्राणायाम पर्यन्त समस्त कर्म करके पीठ न्यास" करे । पीठन्यास
पीठन्यास मे विशेष बात यह है कि “ॐ आ धार-शक्तये नमः से ह्रीं ज्ञनात्मने नम:' तक न्यास करके, हृदय-कमल के पूर्वादि केश्वरों में--
ॐ इच्छायै नमः ।
ॐ ज्ञानायै नमः ।
ॐ क्रियाय नमः ।
ॐ कामिन्यै नमः ।
ॐ काम दायिन्यै नमः ।
ॐ रत्यै नमः ।
ॐ रति-प्रियाये नमः ।
ॐ नन्दायै नमः ।
मध्य मे-- ॐ मनोन्मन्ये नमः । उसके उपर-- ऐं पराये अपराये परापरये हसौः सदाशिव महाप्रेत-पद्मा सनाय नम: । उक्त विधि से न्यास करके, निम्नानुसार ऋष्यादि न्यास' करना चादिए-- ऋष्यादि न्यास : शिरसि दक्षिणामूति ऋषये नमः । मुखे पंक्तिछन्दसे नमः । हृदि त्रिपुरभेरब्ये देवतायै नमः । गुह्य वाग्भ वाय बीजाय नमः| पादयोः तार्तौय शक्तये नमः । सरबंगे काम्य-बीजाय कौलकाय नमः ॥ इसके पश्चात् नामि से पाँव तक-- ह स्रें: नमः। हृदय से नाभि तक-- ह् स्कल्रिं नमः। मस्तक से हृदय तक-- ह् स्रों नमः। से न्यास करं । इसी प्रकार दयि हाथ मे-- हस्रे नम: । बाये हाथ
हस्क्लरीं नम:
दोनों हाथों में-- ह्रीं स्त्रों नम:।
से न्यास करें । फिर मस्तक में "हस्रें नम: "।
मुलाधार में-- : हस्क्लरीं नम:
तथा हृदय में-- ह् स्त्रों नमः।
सेन्यास करके नवयोनि आदि न्यास करं । यथा--
नवयोनि-न्यास :
दक्ष कर्णे-हस्रै' नमः । वाम कर्णे-ह् स्क्लरीं नमः। चिवुके-ह् स्त्रों नमः दक्षगण्डे-ह स्रेगं नमः । वाम गण्डे-ह् स्क्लरीं नमः । मुखे-ह् स्त्रौं: नम: ।
दक्ष नेत्रे-ह् स्रें नम: ।
वाम नेत्रे-ह् स्क्लरीं नम: । नासिकायां-ह् स्रों नम: । दक्षस्कन्धे-ह् स्रें नमः ।
वाम स्कन्धे-ह् स्क्लरीं नमः। उदरे-ह् स्रों नमः । दक्ष कूरपरे-ह् स्रें नमः। वाम कुर्परे स्क्लरीं नमः । जठरे-ह् स्रों नमः ।
दक्ष जानौ-ह् स्रें नमः ।
वाम जानौ-ह् स्क्लरीं नमः ।
लिङ्गे-ह सौः नमः।
दक्षपादे-ह स्रें नमः ।
वामपादे-ह् स्क्लरीं नमः ।
गुह्म -ह् स्रें नमः
दक्षपाश्वं-ह् स्रें नमः
वामपाश्वं-ह स्क्लरीं नमः
हृदये-ह् स्रों नमः ।
दक्ष स्तने-ह् स्रें नमः।
वाम स्तने-ह् स्क्लरीं नमः।
कण्ठे-हसरौ नमः ।
रप्यादि-न्यास
मूलाधारे-ऐं रत्ये: नम: ।
हृदि-क्लीं प्रीत्ये नम: ।
भ्रू मध्ये-सौः मनोभवाये नमः ।
भ्रु मध्ये-सौः अमूतेश्ये नमः ।
हृदी क्लिं-योगेश्ये नमः ।
मूलाधारे विश्वयोन्यै नमः ।
मूर्ति-न्यास
मुध्णि-सह्रो ईशान-मनोभवाय नमः ।
ववत्रे-सह्रो तत्पुरुष-मकरध्वजाय नमः ।
हृदि सह्रण - अघोर-कुमार-कन्द पयी नमः ।
गुह्यो -सिह्र वामदेव मन्त्रथाय नमः ।
पादयोः-सह्र सद्योजात-करामदेवाय नमः।
बाण-न्यास
द्रां द्राविण्ये नमः अंगुष्ठयोः । द्रीं क्षोभिण्यै नमः तर्जन्योः । क्लीं वशीकरण्ये नमः मध्यमयोः । ब्लूं आकर्षिन्ये नमः अनामिकयोः । सः सम्मोहन्यै नमः कनिष्ठ्योः ।
ज्ञानाणेव' तन्त्र के अनुसार--(१) द्रावण, (२) क्षोमण, (3) वशीकरण, (४) आकषण एवं (५) उन्माद-ये पञ्चवाण हैँ । न्यास करते समय इन्हीं का स्त्री लिङ्गं में प्रयोग किया जाता है ।
काम-न्यास
ह्रीं कामाय नमः अंगुष्ट्योः क्लीं मन्मथाय नमः तजन्योः ।
ऐं कन्दर्यायः नमः मध्यमयोः ।
ब्लूं मकरध्वजाय नमः अनामिकयोः । स्त्रीं मीन केतवे नमः कनिष्ठ्योः ।
इसके पश्चात् मस्तक, पद, मुख, गुह्य, तथा हृदय--इन पाँच स्थानों में
क्रमश: द्राविण्ये नमः' आदि से पञ्चवाणका ओौर ह्रिं कामाय नमः' आदिसे पञ्च-काम का पुनः न्यास करके कराङ्गन्यास करे । यथा--
हस्रङ्ग अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
हसृङ्ग तर्जनीभ्यां स्वाहा ।
हस्र मध्यमाभ्थां वषट् । हस्रे अनामिकाभ्यां हुं । ह स्रें कनिष्ठाभ्यां वौषट् । ह स्रों करतल कर पृष्ठाभ्यां फट् । इसी प्रकार हृदययदि षडङ्गन्यास कर, सुभगादि-न्यास करे । यथा-- भले-ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं सः सुभगायै नमः। भ्र. मध्ये-एे क्लीं ब्लू स्त्रीं स: भगाये नमः
वदने-षऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं सः भग-सर्पिण्ये नमः । कण्ठिकायां-ऐं क्लीं ब्लुं स्त्रिं सः भगमालिन्यै नमः।
कप्ठे-ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं स: नमः। हृदि-ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं स: अनङ्गये नम:
हृदि ऐं क्लीं बलुं स्त्रिं सः अनङ्गकुसुमाये नम: ।
नाभौ-ऐं क्लीं ब्लु स्त्रीं स: अनङ्ग मेखलाये नम: । लीङ्ग मूले ऐं क्लीं बलुंग स्त्रीं सः अनङ्ग मदलाये नमः । इसके बाद निम्नानुसार भुषण न्याप्त' करें-- भूषण-ग्यास : शिरसि अं नमः: । भाले आं नमः भ्रवोः इं ई नमः। कर्णयोः उं ऊ नमः । नेत्रयोः ऋ ऋ नमः। नसि लू नमः: । गण्डयोः लृ. एं नमः। ओष्ठयो ऐं ओं नमः । अद्योदन्ते औं नम: । ऊध्वंदन्त अं नम: । मुखे अ: नम: । चिबुके क॑ नम: । गले खं नमः ¦ कण्ठे गं नमः। पाश्वंयोः घं ड नमः| स्तनयोः चं छं नमः । बाहुमूलयोः जं झं नमः ।
कूर्परयोः जं टं नमः। पाण्योः ठं डं नमः कर पृष्ठ्योद्ंणं नमः। नाभौ तं नमः ।
गुह्यं थं नमः ।
ऊर्वोः दं धं नमः| जानुनोः नं पं नमः। जंघयो फं बं नमः । स्फिचोः भं मं नमः । चरण तलयोः यं नमः । चरणागुणष्ठयोः रं नमः। काञ्च्यां वं नमः। ग्रीवायां लं नमः। कटके लं नमः ।
हृदि शं नमः ।
गुह्यं क्षं नमः। कर्णयोः षं नमः । गण्डयोः सं नमः । मौलो हं नमः ।
इसके बाद त्रिखण्डा-मुद्रा' दिखाकर ध्यान करे । यथा--
“'उघदभानु सहस्त्रकान्तिमरुण क्षौमां शिरोमालिकां । रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं ` विद्यामभीर्ति परम् ॥ हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद्रक्तारविन्द श्रियं । देवीं बद्ध हिमां रत्न मुकुटा वन्दे समन्द-स्मितात् ॥”
पोठ-पूजा इस प्रकार मानसोपचार से पूजा कर, शंख-स्थापन करें । फिर सामान्य पुजा-पद्धति के अनुसार
ॐ आधार शक्तये नमः ।' से “हीं ज्ञानात्मने नमः" तक पीठपूजा कर, पूर्वादि केशरो में तथा मध्य में-- ॐ इच्छायं नमः ।
ॐ ज्ञानाये नमः ।
ॐक्रियायै नमः।
ॐकामिन्ये नमः ।
ॐकाम-दाचिन्ये नमः।
ॐरत्यं नमः।
ॐ रति-्प्रीयाय नमः ।
ॐनन्दाये नमः ।
ॐनन्दिन्यै नमः।
ॐमनोन्मन्यै नमः ।
ॐ ऐं पराये नम: ।
ॐ ऐं अपराये नमः।
ॐ ऐं पसपराय नमः
ॐ हसौः सदाशिव महाप्रेत पद्मासनाय नमः ।पूजन करें। फिर, पूर्व-योनि तथा मध्य-योनि. के बीच में षोडशी-विद्या-पुजा-पद्धति के अनुसार! गुरु-पंक्ति का पूजन करं । तत्पश्चात् पञ्च-प्रणव (ए हीं हस्स्फ हसौः) से मूर्ति कल्पना कर, उस मूर्ति में देवता का आवाहन करें । फिर तन्त्रोक्त विधानः से पूजन करे ।
यदि उक्त प्रकार से पूजा करने में असमर्थ हों तो गुरु-पंक्ति का पूजन निम्नानुसार करें ।
ॐ गुरुभ्यो नमः ।
ॐ गुरुपादुकाभ्यो नमः ।
ॐ परमगुरुभ्यो नमः ।
ॐ परम-गुर-पादुकाभ्यो नमः । ॐ परापरगुरुभ्यो नमः ।
ॐ ॐ परापर-गुरु-पादुकाभ्यो नमः ।
ॐ परमेष्ठि गुरुभ्यो नमः।
ॐ परमेष्ठि गुरुपादुकाभ्यो नमः ॐ आचार्येभ्यो नमः ॥
ॐ आवचा्यै-पादृकाभ्यो नम. । पुजा-यन्त्र “शारदा तिलक में इसका पूजा-यन्त्र इस प्रकार बताया है-- सवं प्रथम नवयोनिमय कर्णिका अंकित करें । फिर उसेके वाहर अष्टदल पद्म तथा पद्म के बाहर चतुर्दार युक्त भूपुर की रचना करने से इस देवता का यन्त्र ) तैयार होता है ।
अब “ऐं ह्रिं श्रृं हसफ्रें हसौः"' इस मन्त्र से देवी की मूर्ति की कल्पना कर, त्रिखण्डा-मुद्रा द्वारा पुनः पूर्वबत देवो का ध्यान करें ।. तत्पश्चातु निम्नलिखित मन्त्र से देवी का आवाहन करें-- “ॐ देवेशि भक्ति सुलभे परिवार समन्विते । पावत्वां पूजपिष्यामि तावत्त्वं सिस्थिराभव ।।'' इस प्रकार पञ्चपुष्पांजलि दान तक के कम करके आवरण-पुजा प्रारंभ करे। आवरण-पुजा देवी के वाम-कोण में-- | ऐं रत्यैनम: । दक्षिण-कोण में-- क्लीं प्रीत्यै नमः। अग्नि-कोण मे-- सौः मनोभवागौ नमः ॥ उक्त मन्त्रों से पुजा कर, केशर मे आग्नेयादि कोणो मे, मध्य मे तथा चारों दिशाओं में “हां हृदयाय नमः" इत्यादि पूर्वोक्त अङ्ग-मन्त्रो द्वारा षडङ्गः पूजा करे । फिर उत्तर मे-- द्रां द्राविण्ये नमः। द्रीं क्षोभिण्ये नमः। दक्षिण में- क्लीं वशोकरण्ये नमः । ब्लूं आकरषेण्यै नमः| अग्रभाग में -- सः सम्मोहिन्यै नमः से पंचबाणों की पूजा कर, पुनः उत्तर में-- ब्लूं आकषेण्ये नमः अग्रभाग में--
सः सम्मोहन्यौ नमः । से पञ्च वाणों की पूजा कर, पुनः उत्तर मे- ह्रिं कामाय नमः। क्लीं मन्मथाय नमः। दक्षिण में-- ऐं कन्दर्पाय नम: । ब्लू मकरध्वजाय नम: । तथा अग्रभाग में स्त्रीं मीन केतवे नम: । इन मन्त्रों से पञ्चकामों का पूजन करें ।
इसके बाद अष्ट-योनियों में पुर्वादि-क्रम से सिम्नलिखित मन्त्रों द्वारा पूजन यथा--
ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं स: सुभगायौनम:।
ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं सः भगायै नमः।
ऐं क्लीं व्लु स्त्रीं सः भग-सामिन्यो नमः।
ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं सः भगमालिन्यै नमः।
ऐं क्लीं ब्लूं स्त्रीं सः अनङ्गये नमः। ऐं क्लीं ब्लू स्त्रीं सः अनङ्गकुसुमायै नमः।
ऐं क्लीं ब्लूं स्त्रीं सः अनङ्गमेखलाये नमः|
ऐं क्लीं ब्लूं स्त्रीं सः अनङ्ग मदनायै नमः।
इसके वाद अष्टदलों मे पूर्वादि क्रम से निम्नलिवित मन्वों द्वारा पूजन करें
ॐ असितङ्ग-ब्राह्यीभ्यां नमः| ॐरुरु-माहेश्वरीभ्यां नमः । ॐचण्ड-कौमारीभ्यां नमः ।
ॐ क्रोध-वेष्णवीभ्यां नमः । ॐउन्मत्त-वाराहीभ्यां नमः ।
ॐ कपालीन्द्राणीभ्यां नमः ।
ॐ भीषण-चामुण्डाभ्यां नमः ।
ॐ संहार-महालक्ष्मीभ्यां नमः । इसके पञ्चात् अष्टदलों के बाहर इन्द्रादि तथा वज्रादि की पुजा कर ध्रूपादि से विसर्जन तक के कर्म पूर्ण करें ।
इस पूजन में विशेष बात यह है कि नैवेद्यदान के पश्चातु श्रीविद्या-पद्धति में लिखित चारों बलियां इसी समय अर्पित करनी चाहिए ।
पुरश्चरण
इस मन्त्र के पुरष्वरण मे १०,००,००० जप करके, पलाणपृष्पों द्वारा १२,००० की संख्या मेँ होम करना चाहिए ।३
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