दशेरा दुर्गा पूजा का नवरात्रि महत्व्य
दशेरा दुर्गा पूजा या नवरात्रि हिंदुओ के प्रचलित एक बहुत बड़ा उत्सव है।इस नवरात्रि में मां दुर्गा की न रूपो का न दिनो में पूजा की जाती है और दश्मा दिन में रावण के बध विधि मनाया जाते हे ।हिंदू शास्त्र में चैत्र मास में नव रात्रि मनाया जाते ।दिखा जाए इसी समय अजोद्या के भगवान राजा राम चंद्र ने रावण के बध करने हेतु मां भगवती दुर्गा की आराधना किया था और मां प्रसन्न होके वरदान भी दिया था जिससे दशमी के दिन लंका पति रावण का बध किया हे।इसी खुशी की तिहार में दुर्गा पूजा मनाया जाते हे।दुर्गा पूजा करने का अलग अलग लोगो का अलग अलग मत हे कही कहते हे देवी दुर्गा इस समय महीसाशुर नामक एक राक्षस को बध किया था इस लिए बुराई पर अच्छाई की प्रतीक के रूपमे मां दुर्गा की पूजा किया जाते हे।और कही कहते हे इस समय मां दुर्गा अपनी ससुराल को छोड़कर अपनी पितृलय में निवास करने की आती हे इसलिए साल के यह ९ दिन उत्सव मनाए जाते हे।इस दुर्गा पूजा सबसे अधिक पश्चिम बंगाल में मनाया जाते है।अभी भारत के सवि प्रांत में दुर्गा पूजा के प्रचलन हो गए ।भारत को चोडके नेपाल में भी दुर्गा पूजा प्रचलन है। मां दुर्गा की पूजा मंदिर को अलावा घर में भी किया जाते हे।
पूजा का नियम
मां दुर्गा की पूजा के लिए पवित्र स्थान जैसे गंगा की मिट्टी बेस्यालय की को द्वारा देवी की मूर्ति या बेदी तैयार होता हे।कलश में पानी भरकर देवी के स्थापना करे ।कलश या मूर्ति ऊपर स्वस्तिक चिन्ह बनादे देवी की प्राण प्रतिष्ठा करके सथमे गणेश लक्ष्मी स्वरस्वती कार्तिक बिष्णु शिव और ईस्ट देव का पूजन करे ।
माता की पूजा विधि
कहा जाता है की देवी का पूजन बहुत ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए, अगर देवी के पूजन मे कोई भी गलती हुई तो देवी तुरंत नाराज हो जाती है. इसीलिए जब भी किसी पंडाल मे देवी विराजमान की जाती है, तो पंडितो के समूह द्वारा देवी के पूजन का पूरा ध्यान रखा जाता है. ब्राह्मणो द्वारा 9 दिनो तक सारे विधिविधान तथा मंत्रोउच्चार बहुत ही सावधानी पूर्वक किए जाते है. जो लोग घरो मे देवी को विराजमान करते है, वह भी पूजा मे सारी सावधानी करते है.
नवरात्री का पहला दिन बहुत मुख्य होता है, इस दिन से नौ दिन तक देवी की विशेष पूजा की जाती है. नवरात्री के पहले दिन घट स्थापना होती है, ये दुर्गा के पंडाल या जो लोग चाहें उनके घर में भी स्थापित कर सकते है. घटस्थापना अमावस्या या रात के समय नहीं की जाती है. इसके सबसे अच्छा समय प्रतिप्रदा दिन का पहला पखवाड़ा होता है. लेकिन जब कुछ कारणों से ये समय घटस्थापना नहीं हो पाती है तब अभिजित मुहूर्त में उसे स्थापित किया जाता है. कहते है नक्षत्र चित्र एवं वैधृति योग में घटस्थापना नहीं करनी चाहिए, लेकिन ये पूरी तरह से मना भी नहीं है.घट स्थापन के लिए,एक चौड़ा, खुला हुआ मिट्टी का गमला या बर्तन,धान्य बोने के लिए साफ मिट्टी,कलश के लिए ताम्बे या पीतल का लौटा,गंगा जल या कोई भी साफ पानी,मोली,इत्र,सुपारी,सिक्के,5 केले या अशोक के पत्ते,कलश को ढकने के लिए एक ढक्कन,अक्षत (चावल),नारियल,लाल कपड़ा, नारियल में लपेटने के लिए,फूल या माला,दूर्वा,कलश पूजा विधि
कलश स्थापन विधि (Kalash sthapan vidhi):-
नवरात्रि के पहले दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा का विधान किया जाता है.पूजन के शुरवात मे गणेश जी का आह्वान किया जाता है. माता के नाम से अखंड जोत जलायी जाती है.अब समय होता है कलश स्थापना का. कलश स्थापना के लिए एक बड़ा मिट्टी का बर्तन लें, जिसमें कलश भी आसानी से रखा जा सके.अब इस बर्तन में मिट्टी की एक परत रखें, फिर इसमें बीज डालें.अब फिर से मिट्टी की परत रखें, और फिर उपर से बीज डालें. अब इसके बाद आखिरी तीसरी परत रखें और उसके उपर बीज रखें. अगर जरूरत हो तो हल्का पानी डालने, ताकि मिट्टी सेट हो जाये.फिर एक तांबे के लोटे के उपरी हिस्से में मोली का धागा बांधे, इसमें पानी भरकर उसमे कुछ बुँदे पवित्र जल (गंगाजल, नर्मदाजल) डालते है, फिर उसमे सवा रुपया, दूर्वा, सुपारी, इत्र, अक्षत डालें.फिर इस कलश मे अशोक के 5 पत्ते या आम के 5 पत्ते लगाकर इस पर नारियल रखा जाता है. नारियल को लाल कपड़े से लपेट लें और उसे मौली से बाँध दें.अब इस कलश को मिट्टी के उस बर्तन के बीचों बीच रखें.कलश स्थापना के बाद बारी आती है घट स्थापना की. परंतु जो लोग घट स्थापना करते है उन्हे विशेष पूजन के साथ साथ विशेष सावधानी भी रखनी पड़ती है. इसलिए हर कोई अपने घर मे देवी के घट की स्थापना नहीं करता. घट स्थापना के लिए कुछ टोकरीयों मे मिट्टी भरकर माता के ज्वारे बोये जाते है तथा 9 दिन तक इनकी विशेष देखभाल की जाती है.
अब 9 दिन तक हर जगह अपने विधान के अनुसार देवी के 9 रूपो की पूजा की जाती है. कई लोग इन 9 दिनो तक व्रत रखते है, तो कुछ लोग निराहार रहते है. कहा जाता है कि जो लोग अपने घर देवी की ज्योत प्रज्वलित करते है, उन्हे अपना घर बंद करके बाहर नहीं जाना चाहिए या अगर बाहर जाए तो किसी को घर मे छोड़कर जाये.
अब इन नवरात्री के 9 दिनो तक हर कोई अपनी मान्यता अनुसार देवी की पूजा विधि विधान से करता है परंतु अष्टमी तथा नवमी के दिन पूजा का अलग ही महत्व होता है.
अष्टमि पूजा विधि
अलग अलग क्षेत्रों मे अष्टमी नवमी की पूजा के अलग अलग विधान है. कई जगह अष्टमी या नवमी पर कन्या पूजन का विधान है. तो कई जगह अष्टमी के दिन हवन पूजा या कुल देवी की पूजा की जाती है. दुर्गा पंडालों में अष्टमी के दिन हवन होता है, जो नवरात्री की समापन की भी पूजा होती है. इसे महाअष्टमी भी कहते है. यह व्रत का आखिरी दिन भी माना जाता है, कुछ लोग नवरात्री के पहले दिन और आखिरी दिन के रूप में अष्टमी का व्रत रखते है. बंगाल में इस दिन विशेष पूजा होती है.
अष्टमी या नवमी के दिन लोग अपने घरों में कन्या भोज का आयोजन करते है. घरो मे छोटी छोटी लड़कियो को बुलाकर उन्हे खाना खिलाया जाता है. कुछ लोग पूड़ी छोले तथा खीर खिलाते है, तो कुछ लोग हलवा पूड़ी खिलाते है, तो कुछ लोग दही चावल खिलाते है. कन्याओ को देवी का स्वरूप मानकर उनका पूजन किया जाता है. मुख्य रूप से 9 कन्याओं का खाना खिलाना बहुत जरुरी माना जाता है. इसके बाद उन कन्याओं को चावल, गेहूं और उपहार स्वरुप पैसे, फल मीठा या कोई अन्य वस्तु देते है.नवमी एवं दशहरा के दिन पंडालों में कन्या भोजन के साथ, बड़े बड़े भंडारे होते है. जिसमें सभी को भर पेट खिलाया जाता है.
नवमी के दिन दुर्गा मूर्ति के साथ साथ कलश का भी विसर्जन पवित्र नदी में किया जाता है.
दुर्गा पूजा हर जगा मनाया जाते साथमे मां की ९ रूपो का पूजन किया जाते है ९ दिनो में अलग अलग रूपों का अलग अलग महत्त्व है।माता शैलपुत्री से लेकर नवम सिद्धिदात्री तक नव दुर्गा की नव शक्तियों का स्वरूपों के विशेष पूजा होता हे।
न रूपो का पूजा स्वरूप
प्रथम माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है यह देवी दुर्गा मां को एक रूप है ।बताया जाते हे माता इस रूप में हिमालय के घर जन्म लिया था माता इस रूप में बृषम में बिराज मान हे उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल हे।मान्यता हे माता के इस रूप में पूजा करने से दुरारोग बेधी से मुक्ति मिलता है साथ ही दीर्घायु जीवन मिलता है।
माता ब्रह्मा चारिणी दूसरे दिन माता की पूजा किया जाते हे माता ने इस रूप में भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या किया था ।माता की इस रूप में एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में जप की माला धारण किए हुए हे ।माता की इस रूप की पूजा करने से माता प्रसन्न होके सिद्धीया प्रदान करती हे।
माता चंद्रघंटा तीसरे दिन माता की इस रूप की पूजा किया जाते है।कहा जाते हे यह मां की एक उग्र रूप हे ।फिर भी कही मां की इस रूप की पूजा करने से सभी कष्ट से मुक्ति मिलता है ।मां की इस रूप की वर्णन दश भुजा हे और सभी भुजायो में अस्त्र शस्त्र धारण किए हुए हे।इस रूप में मां शत्रुयो का संहार करने के लिए तैयार है।
माता कुसमांडा चोथा दिनो में मां की इसी रूप का पूजा किए जाते हे।माता की इस रूप में आठ हाथ हे, माता ने इन आठ हातो में कमंडल ,धनुष,कमल,अमृत कलश ,चक्र तथा गदा लिए हुई हे।माता इस रूप को पूजा करने से साधक को इच्छा अनुसार बर देते हे।
स्कंद माता नवरात्रि के पांचवा दिन माता की इस रूप का पूजन होता हे ,माता की इस रूप में चार भुजा हे माता की दो हाथ में कमल की पुष्प और एक हाथ में माला और एक हात में भक्तो को बर देने बाला हे।
माना जाते हे माता की इस रूप की पूजा करने से सारा पाप मुक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति हो जाते हे ।
माता कात्यायनी छटा दिन माता की इस रूप को पूजा किया जाते है इस रूप को ऋषि कात्यान ने घोर तपस्या करने के बाद माता की इस रूप में सिद्धी प्राप्त किए हुए थी तथा माता ने इसी रूप में महिसाशुर को बध किया था।कहा जाते हे भागवत पुराण में कृष्ण भगवान को गोपियों ने पति रूप में पाने के लिए मां की ईस रूप का पूजा किए थे।ऐसे मन्नता हे कही भी लड़की अगर किसी को पाने के लिए मां की इस रूप की सच्चे मन से पूजा करते हे तो उसकी मन कामना मां जरूर पूरी करती हे।
माता कालरात्रि सातवे दिन मां की इस रूपो का पूजा किया जाते हे।कही लोग सोचते हे मां की इस रूप मां काली से मिलती है,लिकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हे दोनो अलग अलग देवी हे।यह देवी का रूप बहुत भयानक हे। मां की इस रूप में एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में खरगा धारण किए हुई हे,गले में खरगो की माला पहने हुई ही मां इस रूप की पूजा करने सारा शत्रु बाधा दुष्ट शक्ति बाधा सब समाप्त हो जाते हे।
माता महागौरी अठबा दिन मैं की इस रूप को पूजा किया जाते हे,यह माता की शुंदर ,शांत स्वरूप हे,माता इस रूप में उनके वाहन बिषभ के ऊपर बिराज मान हे।माता हाथ में त्रिशूल और डमरू धारण किया हुए हे,और एक हाथ में बर प्रदान और एक हाथ में अभय प्रदान करने बाला हे।ऐसा कथन हे भगवान शंकर ने माता की इस रूप को गंगाजल से अभिषेक किया था,इसी लिए माता को रूप गौरवर्ण प्राप्त हुए हे।
माता सिद्धिदात्री नबामा दिन माता की इस रूप की पूजा किया जाते हे,इनकी पूजा से नवदुर्गा की पूजा सम्पूर्ण होता हे।तथा पूजा करने बाला साधक को सभी सिद्धियां प्राप्त होता हे।माता की इस रूप मां कमल की फूल में बिराज मान हे।माता ने इस रूप में चार हात में शंक चक्र गदा तथा कमल की फूल धारण किया हुए हे।
Thank you visit Mantralipi