स्तंभन मंत्र और प्रयोग(sthambhan mantra or prayog bidhi)
स्तंभन होता हे जिस प्रयोग करके तत्क्षनित या उसी समय रुक दिया जाते हे तो उसे स्तंभन बोलते हे।
स्थम्भन कितने प्रकार हे(sthambhan kitna prakar ki he)
स्तंभन का प्रयोग अलग अलग समय अलग प्रकार की किया जाते हे
जैसे किसी भी शत्रु का मुख
को बांधना हो शत्रु का घर परिवार बांध देना,बारिश को रुक देना हो,पवन का गति को
रुक देना,जलती हुए आग को बुझा देना और भी बहुत काम में स्तंभन का प्रयोग करते
हे।
स्तंभन प्रयोग के पहले उस मंत्र को सिद्ध करना जरूरी है।
स्तंभन का अर्थ है रोकना । मूलतः: यह तमोगुण का करें है सांख्यदर्शन तमोगुण को
ही गुरू और आवरण मानता है किन्तु शुद्ध तमोगुण विखण्डन अतएव उत्क्रान्ति
उत्पन्न करता है उसकी आवरकता (वरणक गुण) अत्यन्त सघन होकर औरों से सम्बन्ध
जोड़ने वाली स्निध्नता को क्षीण कर देती है किन्तु तम और सत्व के साहचयें से
स्तंभन होता है। इसमें पीताम्बरा-बगला मुखी का प्रयोग बहुत उपयोगी रहता है।
साधारण स्तर पर यह वैरियों की बुद्धि का और वचन का स्तंभन करता है किन्तु अधिक
उम्र होने पर इससे सभी तरह के स्तंभने सम्भव हो जाते हैं ।
सभी प्रयोगों के सामान्य, उत्कृष्ट और दिव्य स्तर होते हैं। स्तंभन का भी
दिव्य स्तर प्राप्त कर लेने पर सभी कुछ किया जा सकता है। सभी कुछ से तात्पर्य
यह कि रजोगुण की वृत्ति का निरोघ किया जा सकता है। यहाँ अन्य प्रकार के स्तंभन
कर प्रयोगों की अपेक्षा गर्भ स्संभन के तंत्र शास्त्र में सिद्ध प्रयोग दे रहे
हैं।
गर्भ स्तंभन का अर्थ होता है जिन
स्त्रियों के
गर्भस्राव की स्थिति बन जाती है अथवा जिनको गर्भपात की शिकायत रहती है
।
1. रविवार पुष्य नक्षत्र के दिन काले धतूरे की जड़ लेकर कमर में बाँधने से
गर्भस्राव नहीं होता ।
2. चौलाई की (जिसके चावल जैसे फूल आते हैं) जड़ को चावल के पानी से पीने से
गर्भ स्तंभन होता है।
3. धतुरे की जड़ का चूर्ण योनि में रखने से गर्भ नहीं गिरता।
4. केशर, मिश्री, पाठां और कुन्द को शहद के साथ खाने से गर्भ नहीं
गिरता।
5. बर्तन बनाते समय कुम्हार के हाथ से झर रही मिट्टी को शहद और बकरी के दूध से
पीने से गर्भ नहीं गिरता। इन सारे प्रयोगों को करते समय “ओं नमो भगवते
महारौद्राय गर्भ स्तंभन कुरु कुरु स्वाहा” इस मन्त्र का दस हजार जप कर ले तोये
प्रयोग अवश्य फलदायी होते हैं--यह दत्तात्रेय का है। वेसे ऊपर लिखे मन्त्र का
एक लाख जप करने से वह सिद्ध होता है और इसके सिद्ध होने पर एक सौ आठ बार जप कर
अभिमन्त्रित
जल पिलाने मात्र से गर्भ- स्तंभन हो जाता है ।
6. चमार और धोबी की नांद क्रा मेल लेकर चाण्डाली का ऋतु वस्त्र लेकर इसकी
पोटली में उपर्युक्त मैल बांधकर जिस किसी के सामने रखे उसका स्तंभन हो
जाएगा।
7. भंगरा, अपामार्ग, सरसों, सहदेई इन सबके बराबर वच और सफेद कटेली को लेकर
इन्हें लोहे के बर्तन में रखकर रस निकाल ले। इसका तिलक करने से सब भूतों की
बुद्धि स्तंभित हो जाती है-- ऐसा नित्यनाथ ने कहा है।
ओं नमो भगवते विश्वामित्राय नमः सर्वमुखीभ्यां विश्वामित्राय विश्वामित्र
आज्ञापयति शक्त्या आगच्छ आगच्छ स्वाहा ।।
इस मन्त्र का पहले दस हजार जप कर ले अथवा यथाशक्ति जप करके इन प्रयोगों को
करते समय भी जप करता रहे तो उनकी सफलता अधिक सम्भावित हो जाती है ।
बिर्जा स्तम्भन
वीर्य स्तंभन जिन लोगों के शीघ्रपतन का रोग है उनके लिए ये योग उपयोगी
हैं। वैसे समागम सुख के लिए भी इनका प्रयोग किया जाता हैं। आज- कल यौन
चिकित्सकों की चाँदी हो रही है। नशीले अथवा उत्तेजक ओषधियाँ देकर व्यक्ति को
क्षणिक चमत्कार से वशीभूत करके मनमाने' दाम वसुलने का एक फंशन चल पड़ा है। हमें
स्मरण रखना चाहिए कि शरीर में संचित पदार्थ ही स्खलित होगा । प्रकृति ने उसे
स्खलित करने में ढिलाई दिखाई है तो उसका भी कारण होगा--इस प्रकार की ऐलोपैथी
अथवा उत्तेजक दवाओं के मोह में पड़ने की अपेक्षा तन और मन को स्वस्थ बनाने पर
ध्यान देना चाहिए, इससे बाद यदि कोई कमी रहे तो उसे रोग समझकर चिकित्सा करनी
चाहिए ।
ये औषधियाँ हमारे कोश को खोने जैसा आपातत: सुख देती हैं । जिसका परिणाम होता
है कि व्यक्ति आगे चलकर तन से जजेर और आत्यन्तिक रूप से नपुंसक हो जाएगा ।
आयुर्वेद ने जीवनीय, वृष्य, वाजीकरण आदि औषधियाँ बताई हैं। वृष्य औषधियाँ वीर्य
को बढ़ाती हैं फिर स्तंभन करती है । ऐसी स्थिति में हमारे देह पर कोई प्रभाव
नहीं पड़ता क्योंकि पहले वीर्य वृद्धि होगी फिर उसका स्तंभन होगा। इन प्रयोगों
का संकलन करते समय यह ध्यान रंखा गया है कि इनसे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर कोई
घातक-गम्भी र प्रभाव न पड़े ।
बिर्जा स्तम्भन की प्रक्रिया
१. नाग केशर एक तोला घी में डालकर सेवन करने से वीर्य स्तंभन होता है
।
२. रविवार के दिन सप्तपर्ण वृक्ष के बीज लावे और रति के समय इनको मुख में रखे
तो शीघ्र स्खलित नहीं होता ।
३. श्वेत कोकिला नामक वृक्ष के फल लेकर उन्हें बड़ के दूध में पीसे उसमें करंज
के बीज का बीच का हिस्सा मिला ले । इसे सम्भोग के समय मुख में रखने से वीर्य
स्खलित नहीं होता ।
४. काला धतूरा और वच को जड़ शहद में पीसकर कामध्वज पर लेप करे। इसके पश्चात्
स्त्री समागम करने से बी्य॑ स्तंभित होता है। इसके अलावा स्त्री को भी अवाच्य
सुख प्राप्त होता है। ऐसा सुख किसी और से प्राप्त हो नहीं सकता इसलिए यह स्त्री
वशीकरण माना जाता है।
४. मस्त हुए बकरे के मूत्र में जटामांसी पीसकर इसका लेप करने से भी बीये
स्खलित नही होता ।
६. नागार्जुन ने कहा है- कपूर, सुहागा और पारा समान भाग ले इनको लिंग पर लेप
कर एक पहर रखें फिर धोकर समागम करे ।
म्नत्र प्रयोग से स्थम्भन करना
अब स्तम्भन के सम्बन्ध में कहा जा रहा है । लोगों के चलने, उठने, बोलने तथा
बाण, खड़ग प्रभृति शस्त्र के और शत्रु एवं बज्र प्रभिति के स्तम्भना्थ महादेव
द्वारा कथित प्रयोग कहा जा रहा है
हरिद्रा अथवा हरिताल द्वारा भोजपत्र पर स्तम्भन-यन्त्र कौ अंकित करना चाहिए ।
उसे हरे रंग के धागे से लपेट कर एक पोटली बनाये । इसे इच्छित व्यक्ति के सामने
फेंकने से उसकी गति स्तम्भित हो जाती हैं । यह सिद्धयोग है ।
जहाँ गाय, भैंस, घोड़ा या हाथी बाँधे जाते हैं अथवा रहते हैं, वहाँ पर चारो ओर
जमीन में ऊट की हड्डी गाड़ देने से उसमे रहने वाले पशु यह तक की हाती भी
स्तंभित हो जाते हे।
'ॐ गुरुभ्यों नम: । ॐबज्र रूपाय नमः: । ॐ बज्र कीरणे शिवे रक्ष रक्ष
भवेद् गाधि अमृतं कुरु कुरु स्वाहा ।
कृष्णपक्ष की चतु्देशी की रात्रि में मनुष्य की खोपड़ी में पीली मिट्टी के साथ
सफेद घुमची का. फल बोना चाहिए । -वहाँ तीन दिन जागरण करते हुए उक्त मन्त्र से
जप करे । जब उस बीज से पौधा निकले, तब उसकी शाखा एवं लता को इसी मन्त्र से
अभिमन्त्रित करके जिसके आसन के नीचे रखा जायेगा, वह निश्चित रूप से आसन से उठ
नहीं सकेगा ।
ॐ सहचरवद शायि अमुकस्य मुखं स्तम्भय स्वाहा ।
ताल बृक्ष के पत्ते पर हरिद्रा की स्याही से ( हरिद्रा को पीसकर ) एक
अच्छा कमल बनाकर उसमें शत्रु का नाम लिखे । तदनन्तर उक्त मन्त्र से पूजा करके
उसे गाड़ देने पर शत्रु का मुख स्तम्भित हो. जाता है । मन्त्र में जहाँ
अमुकस्य' है वहाँ इसके स्थान पर शत्रु का नाम लेना हे।
ॐ मुकन्तु सुकर्णाय स्वाहा” ।
अपने शत्रु के कानों का ध्यान करके यह चिन्तन करे कि उसमें *अ' अक्षर
सर्पाकृति में विराजित है और मन्त्र का जप करे । इससे देवगुरु बृहस्पति तक की
भी वाणी स्तम्भित हो जाती है
ॐ स इति मुत्तिरुद्राय स्वाहा । खदिर ( खैर ) की लकड़ी द्वारा एक कीलक बनाकर
उक्त मन्त्र से १०० बार अभिमन्त्रित करे और साथ ही यह मन्त्र लिखकर उसमें बाँध
भी दे । इसे शत्रु के दुर्ग ( किला ) में गाड़ देने पर शत्रुओं में स्तम्भन का
संचार हो जाता है
ॐ सह धनेशाय स्वाहा” ।
भोजपत्र पर कुंकुम द्वारा शत्रु का नाम एक पद्म पर लिखकर उसे नीले धागे से
बाँघें । यह सम्यक् रूप से स्तम्भन करता है । उक्त मन्त्र से १०० बार
अभिमन्त्रित भी करे ।
ॐ सहश्वेताय अमुकस्य वाचं स्तम्भय स्तम्भय स्वाहा ।
मृत व्यक्ति ( शव ) के मुख में पहले यह मन्त्र लिखे । जहाँ “अमुकस्य लिखा है
वहाँ शत्रु का नाम अंकित करे । इसे नीले धागे से बाँधकर शमशान भूमि में गाड़े ।
महादेव का कथन है कि इस युक्ति द्वारा शत्रु का वाक्स्तम्भन हो जाता है ।
ॐ नमो हुण्डने अमुकस्य मुखं वाचं गति स्तम्भय ज्वालागद- 'भार्निमुत्काधिक॑
बन्ध बन्ध स्तम्भय कुरु च महेप्सितानि ठ: ठ: हुं फट स्वाहा |
साधक ध्यानमग्न होकर भोजपत्र पर हल्दी द्वारा स्तम्भन-यन्त्र अंकित करे ।
तदनन्तर उसे दो पत्थरों के बीच में रखे । अर्थात् पहले एक पत्थर उस पर यन्त्र,
उस पर पुन: पत्थर रखे । इस प्रकार शत्रु का वाक्स्तम्भन होता है ।
भृंगराज, चिड़चिड़ा, सफेद सरसों, सहदेई और सफेद वचा को समान मात्रा में लेकर
लोहे के पात्र में उनका रस निकाल कर दो दिन ढाँक कर सुरक्षित रखे । तीसरे दिन
उसका तिलक करने पर उसके सभी शत्रु जब उसे देखेंगे, तब उनकी बुद्धि का स्तम्भन
होगा ।
ॐ नमो भगवते विश्वामित्राय नमः सवेमुखीभ्यां विश्वामित्राय बिश्बामित्रोदापयति
शक्त्या आगच्छतु ।” अनेन मन्त्रेण नदीं प्रबिश्य
अष्टोत्तरशताम्बुभिस्तपंयेत् । शत्रुणो मुखस्तम्भो भवति ।
ॐ नमो ब्रह्मवेसरि रेक्ष रक्ष ठ: ठः।
नदीं के जल में खड़े होकर 'ॐ नमो भगवते' से “'आगच्छतु' पयेन्त के मन्त्र को
१०८ बारे जपते हुए इसी मन्त्र से १०८ बार तर्पण करे । इससे शत्रु
का मुखस्तम्भनें होता है ।
अन्य प्रयोग से चोरों की गति स्तम्भित होती है । ॐ नमो ब्रह्मवेसरि' से
ठः ठः पर्यन्त के मन्त्र को जपते हुए सात ढेले लेने चाहिए । इनमें से तीन को कमर में खोंसे तथा दो-दो ढेलों को दोनों मुट्ठी में बन्द करे ।
अंकोल-फल, लक्ष्मणा ( सफेद कंटकारी, पुत्रदा ), कण्टकारी, सर्पाक्षि अपाज़ू (
गाजर ) की जड़, काली अपराजिता, जटामांसी, नीली, पाठा, सफेद अपराजिता, पाटली और
सहदेई ( पीली तथा दवेत ) की जड़ ( इन संबकी जड़ ) को. ऐसे रविवार को लाये जब
पुष्य नक्षत्र हो। इन्हें मिलाकर मुख या. मस्तक पर धारण करने से, प्रत्येक में
शत्रु के शस्त्रस्तम्भन की शक्ति आ जाती है और अग्नि, मुषक, बाघ, राजा, चोर एवं
शत्रु जनित भय का निवारण हो जाता है ।
उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में उत्तर की ओर मख करके सफेद घुमची की जड़ लाकर
मुख में रखने पर विपक्ष के बाणों का स्तम्भन हो जाता है ।।
शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को अपांग की जड़, घीकुँआर की जड़ तथा बला की जड़ को
लाकर पीसे और उसकी गोली बनाये । इसे शिर अथवा बाहु में धारण करने से समस्त
शत्रुभय का निवारण होता है ॥
गोजिह्बा नामक शाक, जलकुम्भी, द्राक्षा, वच, स्वेत अपरांजिता, नीली अपराजिता,
पलाश एवं स्वेत कण्टकारी की जड़ ऐसे रविवार को लाये, जब कि पुष्य नक्षत्र हो ।
इसे केले के पेड़ की छाल के सुत से बाँधकर बाहू में कंगन की तरह बाँधने से
संग्राम में विजय मिलती है ।।
पांठा, रुद्रा, ( रुद्रजटा ), जटामांसी, कण्टकारी, शंखपुष्पिका तथा सफेद घुमची
की जड़ को ऐसे रविवार को निकाले जब पुष्य नक्षत्र पड़ा हो। इन्हें मुख में रखने
से रण में ( शत्रु के लिए ) साधक भयंकर-सा हो जाता है।।
पुष्य नक्षत्र में पड़े रविवार के दिन गम्भारी एवं कुम्भी की जड़ को लाकर चावल
की माड़ में मलकर तीन दिन पीने से वह साधक रण में शत्रु का स्तम्भन करने में
निश्चित रूप से सफल होता है ।
केतकी पौधे की जड़ को मस्तक एवं आँखों पर, तालमूली की जड़ मुख में तथा खजूर की
जड़ पैर तथा वक्ष:स्थल में धारण करने से शत्रु के खड़ग का स्तम्भन हो जाता है
॥
ऊपर वर्णित तीनों जड़ को एक साथ चूर्ण करके घृत में मिलाकर सुबह एवं रात्रि को पीने से आजीवन
शत्रु की बाधा एवं शत्रुविध्न का प्रकोप नहीं होता ।पुष्य नक्षत्र वाले रविवार को शीरीष वृक्ष की जड़ लाकर जल के साथ पीसे । आधा
भोजन करने के पश्चात् इस पीसे हुए द्रव्य का आधा हिस्सा पी लेना चाहिए ।
तदनन्तर बचा भोजन समाप्त करके पुन: द्रव्य का आधा पी लेना होगा ॥जब तक साधक इस प्रकार से उस जल का पान करेगा तब तक उसे कोई . शस्त्र पीड़ित
नहीं कर सकेगा । यहाँ तक कि लाई गई उक्त जड़ को यदि बकरे के गले में बाँध
दिया जाये तो उसे भी कोई खड्ग द्वारा छेदन नहीं कर पाएगा। ( पुष्य नक्षत्र युक्त रविवार को शिरीष की जड़ प्रचुर मात्रा में लाकर
रखे और उसमें से नित्य एक-एक टुकड़ा लेकर पीसे और उक्त रीति से उसका पान करे
) ।
पुष्य नक्षत्र जिस रविवार को पड़े, उस दिन मदार की जड़ उखाड़ कर एक छोटे तावीज
में भरे । तदनन्तर इसे एक फल के भीतर भरे । इस फल को मुख में रखने से शत्र का
मुखस्तम्भन हो जाता है ॥
सुयेग्रहण के समय जो व्यक्ति मौन धारण करके उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए सरसों के
पोधे की जड़ को उखाड़ कर मौन अवस्था में ही मुख में रखता है, उसे शत्रु की
तलवार या खड्ग से आहत होने का भय नहीं रह जाता ।
ॐ नुरु रुरु चेतालि स्वाहा! ।
काली ( नीली ) अपराजिता की जड़, पत्ते, शाखा तथा फूल आदि का चूर्ण करे । उसे
तेल में पकाकर सर्वाद्ध में मले । इससे वह युद्ध में खड़्ग आदि शस्त्र के भय से
रहित हो जाता है । मन्त्र पुवंवतु है ॥
गिरगिट के बायें पैर को लाकर उसे हरिताल द्वारा बाँधे । पुन: उसे ताँबे की
महीन चादर के टुकड़े से लपेटे. ( या ताँबें की तावीज में भरे )
इसे
मुख में रखने से समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। प्रयोग में उक्त
मन्त्र का १००८ जप करे ॥
ॐ चामुंडे भयहारीनि स्वाहा।।
ॐ ह्लीं बगला मुखी सर्व दुष्टनां बाचं मुखं पदं स्तम्भय जिभ्या किलय किलय
बुद्धि बिनाशय ह्लिं ॐ स्वाहा।
ईस मंत्र को १लाख बार जप करके १० अंश हवन करके सिद्ध कर लेने के बाद आप इस
मंत्र के प्रयोग से कुछ भी स्तंभन कर सकते हे।मंत्र के भीतर स्रीफ उसका नाम
होगा बाकी मंत्र में परिवर्तन करने का जरूरत नेही।
जैसे बारिश को बंध करने के लिए"ॐ
ह्लीं बगला मुखी
देवी सर्व मेघ स्थम्भय स्थम्भय ह्लिं ॐ स्वाहा।मंत्र पड़कर तोडा पानी हात में
लेकर नीचे फेकने से स्थम्भन कर्ज सफल होता हे।ऐसे आप लोग किसी दुष्ट शत्रु का
सब कुछ स्तंभन कर सकते है।
मंत्र: ॐ ह्रिं महामहिषमद्दिनी ठ:ठ: महिषशत्रुं भ्रामय भ्रामय स्थम्भय स्थम्भय
देवी हुं महिषनिसुदिनी फट।
ईस मंत्र को भी एक लक्ष बार जप करके सिद्ध कर लेना हे इसके बाद इसका उपयोग
करना हे।किसीभी दुष्ट शत्रु का मू को स्थम्भन कर सकते हे।
ॐ ह्रिं रक्ष चामुंडे कुरु कुरु अमुकस्य मुखं स्थमभय स्थम्भय स्वाहा।।
उक्त मंत्र को किसीभी ग्रहण काल में १०००० बार जप करने से सिद्ध हो जायेगा
।इसके बाद इसके उपयोग करने के लिए पलाश वृक्ष का मूल लेकर मू में रखकर मंत्र
पाठ करते हुए शत्रु के सामने जाने पर शत्रु स्थम्भन हो जायेगा।
किसीभी जगा पर अगर बहुत लोग रहते हे सबको मुख स्थम्भन करना हे तो पुष्य
नक्षत्र में जस्टि मधु का जड़ को को उठाके उसी जगा पड़ फेकने से सबका मू
स्थम्भन हो जाते हे।
ॐ ह्रिं महिष मद्दिनी लह लह हल हल कठ कठ स्थम्भय स्थम्भय अग्नि जड़ीभूतं कुरु
कुरु स्वाहा ह्रिं।।
१००००बार जप करने के बाद इस मंत्र सिद्ध हो जायेगा।इस मंत्र सिद्ध होने के बाद
किसीभी अग्नि में प्रवेश कर सकते हे अग्नि स्थम्भन हो जायेगा।मंत्र को साथ बार
अभी मंत्रित करके अग्नि में प्रवेश करना हे।
बुद्धि स्थम्भन मंत्र
ॐ नमो भगवती ह्रिं स्वेतबासे नम: अमुकस्य बुद्धि स्थम्भय स्थम्भय
स्वाहा।।
भृंग राज, अपमार्ग,पीला सरसो,बेडेला, ओल,बच और अपमार्ग जड़ को एकत्रित करके
घिस्के तिलक धारण करने से जिसके सामने जायेगा उसका
बुद्धि स्थम्भन हो जाते हे।
बिशेष सबधाणी
किसीभी मंत्र प्रयोग अदि में देबता अदि पूजा प्रकित मंत्र जप होम ,निर्दिस्ट आसान उपासना गुरु की मार्ग दर्शन जरुरी होता हे। बिना गुरु में किसीभी मंत्र तंत्र प्रयोग में ज्यादा फल नहीं मिलता हे।
Thank you visit Mantralipi