Way to invisible || अदृष्य होने की विधि और उपाय

Way to invisible || अदृष्य होने की विधि और उपाय

Way to invisible || अदृष्य होने की विधि और उपाय




    ऐं मदने मदनविडम्बने आत्मनोऽङ्गं देहि मे देहि श्रीं स्वाहा ।यहाँ अंकित ऐं से लेकर स्वाहा पर्यन्त मन्त्र का राजद्वार में स्थित होकर


    पवित्र स्थिति में एक लाख जप करना चाहिए। तदनन्तर दुग्धमिश्रित मालती पुष्प द्वारा १०००० आहुति ( उक्त मन्त्र द्वारा ) देनी चाहिए। इससे यक्षिणी देवी सिद्ध होती हैं और साधक को ऐसी गुटिका प्रदान करती है, जिसे मुख में रखने मात्र से साधक को कोई देख नहीं सकता ॥ १ ॥


    ॐ ह्रीं श्मशानवासिनी स्वाहा ।पवित्र तथा संयत मनःस्थिति से युक्त साधक को श्मशान में नग्न होकर आसनासीन स्थिति में “ॐ ह्रीं श्मशानवासिनी स्वाहा" मन्त्र का चार लाख जप करना चाहिए। इससे सन्तुष्ट होकर यक्षिणी देवी एक प्रकार का वस्त्र साधक को प्रदान करती हैं। साधक इस वस्त्र को ओढ़कर सबके लिए अदृश्य

    हो जाता है। उसे अज्ञात ( छिपी ) निधियों का दर्शन प्राप्त होता है। इस ( निधिदर्शन ) क्षेत्र में उसे कोई भी विघ्न पराभूत नहीं कर सकते ॥ २-३ ॥



    मन्त्रः -ॐ नमो विश्वाचर महेश्वर मम पटतः । रात्रिकाल में निधि का ध्यान करके वाम हाथ से ऊपर लिखे मन्त्र का जप करना चाहिए। इससे देवी प्रसन्न होकर साधक को अदृश्यकारिणी विद्या का ज्ञान प्रदान करती हैं ॥


    अत्यधिक बलि एवं उपहार द्वारा यक्षिणी देवी का पूजन करना चाहिए पूजा- समापन के अवसर पर अंकोल के तेल का दीपक दिखलाये । मदार की रुई की बत्ती का इस दीपक में प्रयोग करे । उसे अंकोल के तैल से सिक्त करके मनुष्य की खोपड़ी के दीपक में रखकर प्रज्वलित करे । इस दीपक से
    काजल बनाकर उस काजल को नेत्रों में लगाना चाहिए । अब साधक को
    देवता भी नहीं देख सकते ॥ ५-६ ।।

    मदार की रुई, शाल्मली की रुई, कपास की रुई, पट्टसूत्र तथा पद्म का तन्तु -इन पाँच प्रकार के सूत्र से ५ बत्ती अलग-अलग बनाये । इन पाँचों बत्तियों
    को नारियल के तेल में भिगा कर ५ नरमुण्डों में जलाये। अब इन प्रज्वलित

    दीपकों की ज्वाला के तनिक ऊपर एक-एक कमल का पत्ता रखते हुए उसमें काजल जमने देना चाहिए। यह कार्य शिवालय के ५ पृथक्-पृथक् स्थान पर
     करे ( अर्थात् एक-एक दीपक को अलग-अलग स्थान पर जलाये ) । अब इन

    पाँचों स्थान के कज्जल को एक साथ मिलाये । उसे नीचे लिखे मन्त्र से
     अभिमंत्रित करते हुए नेत्रों में लगाने से साधक को देवता भी नहीं देख सकते 
    मन्त्र – इस प्रयोग का मन्त्र यह है- ॐ ह्रीं फट् कालि कालि मांसशोणितभोजने रक्तकृष्णमुखे देवि मा मे पश्यति मनुष्यति हुं फट् स्वाहा ।

    यह मंत्र १०००० हजार बार जपने से सिद्ध होता है । ( सिद्ध करके पुन: अंजन लगाते समय इसे जपते हुए काजल लगाये । ) सभी अदृश्यकरण प्रयोगों में इस मन्त्र से अंजन को १०८ बार अभिमंत्रित करके लाये । इससे सिद्धि प्राप्त होती है ।। १० ।।



    एक टुकड़ा वचा नामक जड़ी को सात दिन पर्यन्त अंकोल के तेल में भिगाने के पश्चात् उसे त्रिलौह के बनाये गये यन्त्र में भरे। इससे एक सुन्दर धातु की गुटिका तैयार करे। इसे मुख में धारण करने से साधक सबके लिए अदृश्य हो जाता है। यह निःसंदिग्ध है ॥ ११ ।।




    अंकोल के तेल में श्वेत सरसों ( सात दिन ) भिंगा कर उसे उसी प्रकार त्रिलौह की गुटिका में भरे। इस गुटिका को मुख में रखने से साधक अदृश्य हो जाता है ॥ 



    कौआ एवं उलूक के पंख और अपने बालों को एक साथ अन्तर्धूम ( जिसका धुआँ बाहर न निकले, इस प्रकार ) जलाकर अत्यन्त सूक्ष्म चूर् तैयार करे । ( अर्थात् मिट्टी के पात्र में रखकर उसका मुख बन्द करके जलाये, अन्यथा राख नहीं बचेगी । ) अब इस चूर्ण को अंकोल के तेल में मिलाकर पूर्ववत् त्रिलौह की गुटिका में भरना चाहिए। इस गुटिका को मस्तक पर धारण करते ही साधक उसी क्षण अदृश्य हो जाता है। देवगण भी उसे देख सकने में समर्थ नहीं हो सकते ॥ 


    हरताल, काली भैंस का दूध तथा अंकोलतेल को मिलाकर जो व्यक्ति इसका शरीर में लेप करता है, वह सबके लिए अदृश्य हो जाता है, यह शंकर की उक्ति है ।। १५ ।।
    मन्त्र -- 'ॐ कक्षतो लालामूलं हुने सौरे जाने ह्रीं ह्रीं सिद्धे स्वाहा' ।


    कबूतर की बीट को अंकोलतैल में मिलाकर उसका ललाट पर तिलक करने से मनुष्य अदृश्य हो जाता है ।इन सभी प्रयोगों का मन्त्र 'ॐ कक्षतो' से 'स्वाहा' पर्यन्त है । ( ये गुटिका प्रयोग श्लोक ११ से १६ तक कहे गये हैं ) ।


    जब चन्द्रग्रहण लगा हो, उस समय सफेद अपराजिता की जड़ लाकर उसे बला ( सहदेयी ) और मधु के साथ पीसकर एक गुटिका बनाये । इसे मस्तक,मुख अथवा हाथ में धारण करने से साधक को देवगण भी नहीं देख सकते ॥




    पद्मतन्तु की बत्ती बनाकर उसे जीवितपुत्रिका के बीजों के तैल में भिंगाना चाहिए । इसके पश्चात् दो वीर पुरुषों की खोपड़ी लाये। एक में गोरोचन का
    तथा दूसरे में शहद का लेप करे ॥




    गोरोचन से लिप्त मुण्ड में उस बत्ती को जलाये और शहद से लिप्त मुण्ड
    को उस ज्वाला के ऊपर रखे, तानि उसमें काजल पड़े। इस काजल को नेत्रों
    में लगाने से साधक को इस विश्व में कोई भी नहीं देख सकता ॥ २० ॥



    सफेद अथवा काली बिल्ली के जरायु का चूर्ण लेकर उसे त्रिलौह की गुटिका में भरना चाहिए। इस गुटिका को मुख अथवा मस्तक पर रखने से साधक अदृश्य हो जाता है ।




    एक घोर कृष्ण वर्ण कौए को भैंस का मक्खन खिलाये । उस कौए की बीट को मदार की रुई में लपेट कर बत्ती बनाये । इस बत्ती को श्मशान में बैठ कर जीवत् पुत्रिका के बीजों के तेल में भिगाये। एक वीर पुरुष की खोपड़ी ( कपाल ) में गोरोचन लगाकर उसमें इस बत्ती को जलाये और अन्य वीर पुरुष की खोपड़ी में शहद का लेप करके उसे इस ज्वाला के ऊपर रखे, ताकि इसमें काजल जम जाये । इस काजल को नेत्रों में लगाने से साधक को कोई
    देख नहीं सकता | कबूतर के कोख के पंख तथा स्रोतांजन को बिल्ली के रक्त से भिगाकर उसके काजल से नेत्रों को अंजित करने से साधक अदृश्य हो जाता है |

    काली बिल्ली के रक्त से लाल डोरे को भिगाकर उसकी बत्ती बनाये । कपिला गौ के घृत में इसे भिगाकर श्लोक २२ में वर्णित विधि से दो नरमुण्डों का प्रयोग करके इसका काजल बनाये । यह कज्जल आँखों में लगाने से साधक सबके लिए अदृश्य हो जाता है ॥ २४ ॥


    हिंगुल, देवदारु, चिता पौधा, नरमांस तथा स्रोतांजन को एक साथ मिलाकर अंजन बनाकर लगाने से अदृश्यकारक योग तैयार हो जाता है ॥२५॥


    उलूक, शृगाल एवं शूकर के नेत्र एवं नासिका को नीलाञ्जन के साथ मिलाकर चूर्ण करके (आयुर्वेदोक्त ) स्रावपुट में रखकर दग्ध करे। इस प्रकार प्राप्त भस्म का नेत्रों में अंजन लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है । यह निःसंशय है २६|


    फाल्गुन मास में एक जीवित खंजन पक्षी लाकर पिंजरे में भादो मांस पर्यन्त रक्षित करे। भादो मास आते ही वह पक्षी पिंजरे में से अदृश्य हो जाता है, यह निःसंदिग्ध है ।। २७ ।।

    खंजन पक्षी की शिखा को हाथ में रखने से व्यक्ति अदृश्य हो जाता है। इसे त्रिलोह में वेष्टित करके रखने से भी व्यक्ति सबके लिए अदृश्य हो जाता है ।



    दस भाग सोना, बारह भाग ताँबा, सोलह भाग चाँदी को मिलाकर गलानेसे त्रिलौह बनता है। इसकी गुटिका में यत्नपूर्वक सामग्री को भरना चाहिए ।
    यही गुटिका बनाने की विधि है ॥ २९ ॥'ॐ नमो भगवते उड्डामरेश्वराय नमो रुद्राय बिलि बिलि व्याघ्र- चर्मपरिधान कमल कतुल चण्ड प्रचण्ड किलि किलि स्वाहा' ।

    ऊपर जितने भी प्रयोग हैं, उनके लिए 'ॐ नमो भगवते' से लेकर 'किलि स्वाहा' पर्यन्त यह मन्त्र है।


    घोड़ी का जरायु तथा यमानी की जड़ और हरिताल को एक साथ पीसकर इसका तिलक लगाने से अदृश्यकारक योग बन जाता है ॥ ३०

    कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में लांगली ( कलिहारी ) की जड़ निकाले । उसे
    श्वेत वर्ण की बकरी के जरायु तथा नारियल के तैल में पीसकर अंजन बनाये |इसे नेत्रों में लगाने से साधक अदृश्य होकर शून्यमार्ग में विचरण करने में समर्थ हो जाता है ॥  
    ॐ अः सखे अः सकर्णे अरिदुर्बल अर्द्धाकोश दाटा कराले चक्कारावे फेत्कारिणी हुं हुं चण्डालिनी स्वाहा' ।


    ॐ से लेकर स्वाहा पर्यन्त मन्त्र इन दोनों योगों के लिए कहा गया है ॥


    ॐ अमृतगणपरिवेष्टिते रुद्रगणाय ॐ नमः स्वाहा । अमावस्या, पूर्णिमा, पंचमी अथवा त्रयोदशी की रात्रि में 'ॐ नमो भगवते रुद्राय फट्' मन्त्र का जप करते हुए देवदाली ( देवदाली ) की जड़ निकाले । अब श्वेत पुष्प, चन्दन, धूप, दीप, बलि प्रभृति द्वारा 'ॐ अमृतगणपरिवेष्टिते रुद्रगणाय ॐ नमः स्वाहा' मन्त्र द्वारा उस जड़ का पूजन करे ॥ ३३-३४

    तदनन्तर इस जड़ के रस में पारद तथा मद्य को २४ घण्टा घोटकर रखे तत्पश्चात् इस मिले पदार्थ का आँखों में अंजन लगाये । लगाते समय 'ॐ नमो भगवते रुद्राय फट्' इस मन्त्र का उच्चारण करे। इससे साधक सबके लिए अदृश्य हो जाता है। ऐसा स्वयं महादेव ने कहा है ।। ३५ ।।



    उपरोक्त प्रकार से देवयानी ( देवदाली ) का रस तैयार करके ( उसमें पारद-मद्य न मिलाकर ) केतकी वृक्ष का रस मिलाकर २४ घंटा रखे । तत्पश्चात् उसे नेत्र में उसी मन्त्र को जपते हुए लगाये । यह भी श्रेष्ठ अदृश्य-कारक योग है ।। ३६ ।।




    दिन में एक काले मार्जार को भूखा रखे । तदनन्तर ४ महाबली खड्गधारी साधकों के साथ कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि की रात्रि में किसी जनशून्य स्थान अथवा श्मशान में इस मार्जार को ले जाकर उसकी गन्ध, पुष्प तथा अक्षत से अर्चना करे । ( उसी कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन में मार्जार को भूखा रखे ) ।।तत्पश्चात् एक काले बकरे की बलि देकर उसकी चर्बी को उस भूखे उपवासी मार्जार को खाने के लिए प्रस्तुत करे। इससे वह मार्जार परितृप्त हो जायेगा । तदनन्तर उस मार्जार के दोनों पिछले पैरों को पकड़कर उसे हवा में घुमाना चाहिए, ताकि वह एक विधिवत् अचित जलपूर्ण पात्र में उलटी करे। इस वमन पदार्थ को अग्नि में पकाकर उससे एक प्रदीप बनाये ।।


    इस हेतु सूत से निर्मित बत्ती को उक्त पकाये गये वमन पदार्थ में भिगाकर मृत मनुष्य की खोपड़ी में दीपक जलाये। एक दूसरे नरमुण्ड को प्रदीप के ऊपर रखकर काजल जमाये । रात्रि में देवी की पूजा-अर्चना करे । तदनन्तर चारों खड्गधारी साधक परस्पर एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए उस प्रदीप के चारों ओर घेरा बाँधकर उसकी रक्षा करें और पाँचवाँ व्यक्ति ( मुख्य साधक ) महाकाल के मन्त्र का जप करता रहे । तत्पश्चात् जब काजल पड़ जाये तब पाँचों साधक इस काजल को ग्रहण करें। यह अदृश्यकारक तथा राज्यप्रद योग है ।


    "ॐ नमः अकान्ति नृकटयतु कूटकटिमेन।"

    एक कृष्णवर्ण कुत्ते के गले में एक डोरा बाँधे । 'ॐ नमः अकान्ति नृकटयतु

    कूट कटिमेन' मन्त्र को पढ़ते हुए उस कुत्ते के निचले जबड़े के दाहिनी ओर के दाँत की जड़ का मांस निकाले । पंचोपचार अर्चना के पश्चात् इस मांस को

    त्रिलौह की गुटिका में भरकर मुख में धारण करे। यह योग अदृश्यकारक

    है ।

    मयूर की अस्थि तथा वानर की अस्थि को भैंस के घृत में पकाकर उसको

    पीसकर अंजन तैयार करके लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है ।




    तीन दिन उपवास करके पुष्य नक्षत्र की रात्रि में काली मिट्टी से भरे

    नरकपाल में काला जौ बोना चाहिए। प्रतिदिन रात्रि में उसे जल द्वारा सींचना

    चाहिए । इसका पौधा जम जाने पर जब उसमें बीज पक जाये तब उन बीजों

    से माला बनाये । इस माला को धारण करते ही साधक अदृश्य हो जाता है।

    ( उपवास ऐसे समय करना चाहिए जिससे वह पुष्य नक्षत्र की रात्रि में समाप्त हो । ) ।

    उसके जलाये जाने पर देह में धसें तदनन्तर पूर्ण काले कौए और उल्लू इस अंजन को उक्त लोहे के तीर से जो व्यक्ति लोहे के तीर से मरा हो, उस लोहे के तार को ले आना चाहिए। के दोनों नेत्रों को लाकर उन्हें पीसे । आँखों में लगाने साधक निश्चित रूप से अदृश्य हो जाता है ॥




    श्मशान में ऋतुमती कन्या के साथ संभोग करने से जो शुक्रशोणित निकले,

    उसे मैनसिल तथा हरताल के साथ पीसकर उसका तिलक लगाने से मनुष्य

    अदृश्य हो जाता है ।




    जब किसी गर्भिणी स्त्री को आठ मास का गर्भपात हो जाये, तब उस

    गर्भच्युत सन्तान का नेत्र, कान, जिह्वा, वक्षःस्थल का मांस, नासिका, गुह्य

    तथा लिंग को निकाल कर उसको सन्ध्याकाल में पीसना चाहिए ।। ४९ ॥




    ( उक्त पीसे पदार्थ को गुटिका में भरकर ) चन्द्रग्रहण अथवा सूर्यग्रहण के

    समय जब तक ग्रहण का मोक्ष न हो जाये तब तक उस गुटिका को महाकाली

    के मन्त्र से अभिमन्त्रित करता रहे। इस गुटिका को हाथ में धारण करते ही

    साधक अदृश्य हो जाता है ॥




    मनुष्य के मस्तक में जो पृथ्वी से उड़ती हुई मृत्तिका लगी है, उसे चाण्डाली

    दुग्ध में मिलाकर हाथ में रखने से साधक अदृश्य हो जाता है । ५१ ॥

    के

    किसी मृत कर्मकार (मजदूरी पर काम करने वाला) की खोपड़ी में मिट्टी

    भरकर कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को तुलसी के बीज बोकर सींचना चाहिए ॥५२॥

    जब इस बीज से तुलसी का पौधा उग आये, तब वट के पत्ते पर कुक्कुट

    एवं सात धान की बलि देकर तुलसी के पौधे को जड़ सहित निकाल ले ।

    इसका अंजन बनाकर लगाने से साधक अदृश्य हो जाता है । ५३ ।।

    आषाढ़ मास की कृष्णचतुर्दशी को मरे हुए मनुष्य की खोपड़ी तथा उस

    खोपड़ी के नासिका के छिद्र में काले धतूरे के बीज को समान मात्रा में बोना

    चाहिए । बोने के पहले खोपड़ी एवं नासिकाछिद्र में काली मिट्टी भरकर तब

    उसमें बीज बोये । जूठे मुँह से ( बिना मुँह धोये ) इसमें सिंचाई करना

    चाहिए। जब तक बीज से पौधा न हो जाये और उसमें फल न लगे, तब तक

    प्रत्येक संक्रान्ति, अमावस्या तथा पूर्णिमा को लाल सूत्र से बनायी बत्ती द्वारा घी का दीपक जलाये ।




    क्रमश: इसमें फल लग जाने पर कृष्ण पक्ष की अष्टमी को फल तोड़े और

    मुर्गे की बलि प्रदान करे। इस फल के बीजों की गुटिका बनाकर मुख में धारण करने से साधक अदृश्य हो जाता है ।




    काली मिट्टी वाले खेत में मनुष्य की खोपड़ी में कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को

    रात्रि में घुमची बोये । प्रतिदिन नाना प्रकार की बलि तथा उपहार द्वारा

    पूजन करे । जब तक घुमची का पौधा बढ़कर फलित नहीं हो जाता तब तक

    पूजन एवं रात्रि में जलसिंचन करता रहे ॥

    उसमें फल लग जाने पर काले बकरे की बलि देकर योगीश्वरों को भी

    उपहार तथा बलि-मांस देकर भोजन कराये ।तदनन्तर इस वृक्ष से क्रमशः १०८ घुमची के फल लेकर सूई-धागा द्वारा

    माला बनाये। यह माला अदृश्यकारिणी होती है। इसे मस्तक अथवा कर्ण में

    धारण करने से उस वृक्ष को कोई नहीं देख सकता ।। ५९ ।।




    घोर काली भैंस के दूध में काला जीरा पकाये। इसे खाने पर जब तक पेट

    का जीरा पच नहीं जाता तब तक वह व्यक्ति सबके लिए अदृश्य रहता है,

    यह निःसंदिग्ध है ।। ६० ।।

    'ॐ इलापिङ्गलाय स्वाहा' ।

    उक्त मन्त्र पढ़ते हुए गिरगिट के वक्षःस्थल का मांस निकाल कर उतना

    ही गोरोचन मिलाकर पीसे। अब तालवृक्ष के पत्ते में इसे लपेटे अथवा उसे

    गुटिका में भरे। इसे मन्त्र पढ़कर मुख में रखने से साधक अदृश्य हो जाता

    है ।




    कटुलौकी, देवयानी, पटोली, इन्द्रवारुणी, तिक्ता और कोषातकी के सूखे

    बीज का चूर्ण करना चाहिए । काकतुण्डी, अपामार्ग, कषाय को लेकर उसे

    मिलाये ( पीसे ) । अब कांसे के पात्र पर इसका लेप लगाकर उसे सूर्य की तीव्र

    धूप में रखे। तदनन्तर खूब गर्म हो जाने पर इस लेप को एक स्वच्छ कपड़े में

    रखकर खूब निचोड़ना चाहिए, जिससे तेल निकलने लगता है। इस तेल को

    चन्दन एवं देवदारु के साथ पीस कर तिलक लगाने से अदृश्यकारी योग बन

    जाता है ।

    अपामार्ग के काढ़े के साथ पूर्वकथित तैल मिलाये। उसमें बिच्छू नामक

    जड़ी के बीज का चूर्ण, आमड़ा की गुठली का चूर्ण तथा चितामूल को दशांश

    परिमाण में मिलाकर उसका मर्दन नारियल के जल के साथ करे ।। ६५ ।




    इस प्रकार से करके इन सबको वस्त्र में रखकर उसे निचोड़ते हुए पूर्ववत्

    तैल निकाले । विषमुष्टि ( कुचिला ) के बीजों का प्रत्येक योग में प्रयोग करना चाहिए ।




    तदनन्तर रात्रिकाल में अंकोलतैल द्वारा कुंकुम एवं दारुहल्दी को दग्ध

    करके उसके साथ गोरोचन तथा सहदेवी को समान मात्रा में एक साथ पीसना

    चाहिए। तत्पश्चात् इसके साथ विषमुष्टि ( कुचिला) के तेल को मिलाकर

    तिलक करे। यह अदृश्यकारक योग है ।




    कपास के बीज के चूर्ण की भावना एक दिन पर्यन्त जड़ सहित उखाड़ी

    गयी वारुणी के काढ़े में प्रयत्नपूर्वक देनी चाहिए। इससे पहले कही विधि के

    अनुसार तेल निकाल कर प्रत्येक योग में

    का प्रयोग करे ।।




    आमड़ा की गुठली का चूर्ण, उसका दशांश चित्रामूल ( चीता की जड़ )

    को नारियल के जल में पीसकर उससे बत्ती बनाये । पूर्वकथित तैल में उस

    बत्ती को भिंगाकर जलाये और हाथ पर रखे। इससे मनुष्य अदृश्य हो

    जाता है ।

    इसी प्रकार पूर्वकथित विधि द्वारा जीवितपुत्रिका के बीज से तैल निकाल

    कर उसको जलाने से बने कज्जल को नेत्र में लगाकर अदृश्य हो सकते हैं ।

    पुनः गोमूत्र द्वारा नेत्रों को धो लेने पर साधक सबको दृष्टिगोचर होने

    लगते हैं ।। ७० ।।

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