काली पूजा क्यों करती हैं
भगबती काली अदि शक्ति हैं सृस्टि के शुरू और अंत हैं महाकाली। माता काली अति दयालु हैं आपने संतान के हमेशा सब कुछ उजारा करके देइ हैं। बिशेसत माँ भगबती के पूजन करने से रोग ,भय ,शत्रु बाधा ,अकालमृत्यु योग ग्रहपीड़ा सब कुछ रक्षा होती हैं। ऐसे तो देवी की पूजा साल ३६५ दिन किया जाते हैं। लिकिन साल एक बार डिबली उतसाब मानता हैं। कहा जाते हैं इसी दिन भगबान रामचंद्र लंका से युद्ध जित कर आपने घर बफस अये थे इस खुसी की तोहार पर डिबली उत्सब मनाया जाते हैं।
काली पूजा के बिशेस लाभ
ज्यादातर तांत्रिक लोग माँ काली के आराधना करती हैं। माँ काली बहुत जल्दी भक्तो के ऊपर प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तो को बिभिन्न सिद्दिया प्रदान करती हैं। तंत्र में भगबती काली को छोड़के तंत्र अधूरा हैं। इस तंत्र के माद्यम से तांत्रिक लोग सबका दुःख और कस्ट को हर लेता हैं। ऐसे तो जो काली साधक हैं उसको जल्दी मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं।
माँ काली के बिभिन्न रूप
माँ काली के बहुत रूप हैं ज्यादा तर लोग माँ दक्षिणा काली का पूजन करते हैं और दक्षिणा काली कोलकाता में घर घर में पूजा जाते हैं। माँ दक्षिणा काली छोड़के और भी काली के रूप हैं जैसा शमा काली ,रक्षा काली ,शमशान काली ,राक्षसी काली ,डकैती काली ,कृष्ण काली और भी हे इसके एलबा माँ सति के जितना शक्ति पीठ हैं सब काली का ही प्रति रूप हैं। माँ सटी के ५२ शक्ति पीठ हैं सबका अलग अलग नाम हैं। इनमे से सबसे पूजा जाने बाले १० महाबिद्या देविया काली ,तारा भुबनेस्वरी ,भैरबी ,धूमबोती ,त्रिपुरा सुंदरी ,बगलामुखी ,छिन्नमस्ता,कमलाटिका, मातंगी
भगवती के विभिन्न मन्त्रों के साथ पूजा-विधि का उल्लेख यथास्थान किया गया है। वहाँ गंधाक्षत पुष्पादि का प्रयोग करते समय किस कार्य हेतु किस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए, इसे यहाँ लिखा जा रहा है। भगवती की
दैनिक पूजा में भी इन्हीं मन्त्रों का प्रयोग करना चाहिए । शौच स्नानदि से निवृत्त हो, धौतवस्त्र धारण कर, पवित्र आसन पर बैठें तथा देवी के पूजा-यन्त्र को चौकी आदि पर अपने सन्मुख रखकर, सर्वप्रथम ध्यान करें।के देवी के विशिष्ट ध्यान के मन्त्रों का उल्लेख प्रथक्-प्रथक् किया गया है। 'सामान्य-पूजा में निम्नलिखित मन्त्रों द्वारा भगवती का ध्यान करना चाहिए-
माता काली ध्यान मन्त्रः
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या वश्यैःसमस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा देवमाता मयि सौख्यदात्री ॥ १ ॥
या माया प्रकृतिः शक्ति श्चण्डमुण्ड विमदिनी । सा पूज्या सर्वदेवैश्च ह्यस्माकं वरदाभव ॥ २ ॥
विश्वेश्वरि त्वं परिपाल्य विश्वं विश्वात्मिका धारयतीति विश्वम् विश्वेशवन्द्याभवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ ३ ॥
देवी प्रपन्नातिहरे प्रसीद मातर्जगतोऽरिवलस्य ।प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वामीश्वरी देवि चराचरस्य ॥ ४ ॥
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतथियां हृदयेषु बुद्धि ।
श्रद्धां सतां कुलजन प्रभवश्य लज्जा तां त्वां नतास्म परिपालय देवि विश्वम् ॥ ५ ॥
ध्यानोपरान्त निम्नलिखित मन्त्र से 'आवाहन' करें--
माता काली आवाहन मन्त्र
आगच्छ वरदे देवि दैत्यदर्प निबूदिनि ।पूजां गृहाण सुमुखि: नमस्ते शंकर प्रिये ॥
'आवाहन' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'आसन' प्रदान करने हेतु पृथ्वी अथवा चौकीपर जल का निक्षेप करें-
माता काली के लिये आसन मन्त्र
अनेक रत्नसंयुक्त नानामणिगणान्वितम् ।मातवर्णमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
'आसन' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'पाद्य' प्रदान हेतु यन्त्र पर जल का निक्षेप करें-
माता काली के पाद्य-मन्त्र
गंगादि सर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाऽऽहृतम् । तोय मेतत्सुखं स्पर्श पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ||
'पाद्य' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'अर्ध्य' प्रदान हेतु यन्त्र पर जल
का निक्षेप करें-
माता काली के अर्ध्य मन्त्र
गन्धपुष्पा क्षतैयुं क्तमयं॑ सम्पादितं मया । गृहाणत्वं महादेवि प्रसन्नाभव सर्वदा ॥
'अर्घ्यं' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'आचमनीय' प्रदान हेतु यन्त्र पर जल का निक्षेप करें-
माता काली के आचमनीय मन्त्र
आचम्यतां त्वयादेवि भक्तिमे ह्यचलां कुरु । ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परांगतिम् ॥
'आचमनीय' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से स्नानार्थ जल का निक्षेप
करें-
माता काली के स्नानीय-जल- मन्त्र
जाह्नवी तोयमानीतं शुभं कर्पूर संयुतम् । स्नापयानि सुरश्रेष्ठे त्वां पुत्रादि फलप्रदान् |
'स्नानीय-जल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'पंचामृत स्नान करायें-
माता काली के चामृत स्नान मन्त्र
पयोदधि घृतं क्षौद्रं सितया च समन्वितम् ।पञ्चामृतमनेनाद्य कुरु स्नानं दयानिधे ॥
'पञ्चामृत स्नान' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'वस्त्र' समर्पित करें-
माता काली के वस्त्र मन्त्र
वस्त्रं च सोमदेवत्यं लज्जायास्तु निवारणम् । मया निवेदितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरी ॥
'वस्त्र' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से उपवस्त्र समर्पित करें-
माता काली के उपवस्त्र-मन्त्र
यमाश्रित्य महामाया जगत्सम्मोहिनी सदा ।तस्यै ते परमेशानि कल्पयाभ्युत्तरीयकम् ॥
'उपवस्त्र' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'मधुपर्क' समर्पित करें-
माता काली के मधुपर्क मन्त्र
दधिमध्वाज्यसंयुक्ततं पात्रयुग्मसमन्वितम् ।मधुपर्क गृहाणत्वं वरदा भव शोभने ॥
‘मधुपर्क' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'गन्ध' समर्पित करें-
गन्ध्र-मन्त्र
परमानन्द सौभाग्य परिपूर्ण दिगन्तरे ।गृहाण परमं गन्धं कृपया परमेश्वरी ॥
'गन्ध' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'कु'कुम' समर्पित करें-
कुकुम-मन्त्र
कुंकुमंकान्तिदं दिव्यं कामिनी कामसम्भवम् ।कुकुमेनाचिते देवि प्रसीद परमेश्वरि ॥
'कुकुम' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'आभूषण' समर्पित करें-
आभूषण-मन्त्र
स्वभावं सुन्दरांगर्थे नानाशक्त्याश्रिते शिवे ।भूषणानि विचित्राणि कल्पयाम्यमराचिते ॥
'आभूषण' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'सिन्दूर' समर्पित करें-
सिन्दूर मन्त्र-
सिन्दूरमरुणाभासं जपाकुसुम सन्निभम् ।पूजितासि महादेवि प्रसीद परमेश्वरी ॥
'सिन्दूर' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'काजल' समर्पित करें-
कज्जल मन्त्र
चक्षुभ्यां कज्जलंरम्यं सुभगे शान्तिकारिके ।कर्पूर ज्योतिरुत्पन्न ग्रहाण परमेश्वरि ||
'काजल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'सौभाग्य सूत्र' समर्पित करें-
सौभाग्य सूत्र मन्त्र
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सौभाग्यसूत्रं वरदे सुवर्णमणि संयुते ।कण्ठे बध्नामि देवेशि सौभाग्यं देहि मे सदा ॥
'सौभाग्य-सूत्र' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'गन्धद्रव्य' समर्पित करें-
गन्ध-द्रव्य-मन्त्र
चन्दनागरु कर्पूरं कुंकुमं रोचनं तथा ।कस्तूर्यादि सुगन्धांश्च सर्वाङ्गेषु विलेपये ||
'गन्ध-द्रव्य' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'अक्षत' समर्पित करें-अक्षत-मन्त्र
पुष्प- मन्त्र
रञ्जिता कुंकुमौघेन अक्षताश्चापि शोभनाः ।ममैषां देवि दानेन प्रसन्नाभवमीश्वरी ॥
'अक्षत' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'पुष्प' समर्पित करें--मन्दारपारिजातादिपाटली केतकानि च ।
जाती चम्पक पुष्पाणि गृहाण परमेश्वरी ॥
'पुष्प' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'पुष्पमाला' समर्पित करें-
पुष्पमाला-मन्त्र
सुरभि पुष्पनिचयैग्रंथितः शुभमालिकाम् ।ददामि तव शोभार्थ गृहाण परमेश्वरि ॥
'पुष्पमाला' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'बिल्वपत्र' समर्पित करें-
बिल्वपत्र-मन्त्र
“अमृतोद्भव श्रीवृक्षो महादेवि प्रियः सदा ।
बिल्वपत्रं प्रयच्छामि पवित्रं ते सुरेश्वरी ॥
बिल्वपत्र' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'धूप' दें-
धूप- मन्त्र
दशांग गुग्गुलं धूपं चन्दनागरु संयुतम् । समर्पितं मयाभक्त्या महादेवि प्रगृह्यताम् ॥
'धूप' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'दीप' प्रदर्शित करें-
दिप - मन्त्र
घृतवतिसमायुक्त महातेजो महोज्ज्वलम् ।दीपं दास्यामि देवेशि सुप्रीता भव सर्वदा ॥
'दीप' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से "नैवेद्य' समर्पित करें-
नैवेद्य-मन्त्र
अन्नं चतुर्विधिं स्वादु रसैः षड्भि समन्वितम् ।नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ति मेह्यचलां कुरु ॥
'नैवेद्य' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'ऋतुफल' समर्पित करें-
ऋतुफल-मन्त्र
द्राक्षारवर्जू रकदली पनसाम्रकपित्यकम् ।नारिकेलेक्षुजम्ब्वादि फलानि प्रतिगृह्यताम् ||
'ऋतु फल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'आचमनीय जल' समर्पित करें-
माता काली के आचमनीय-जल-मन्त्र
कामारिवल्लभे देवि कुर्वाचमनर्भाम्बके । निरन्तरमहं वन्दे चरणौ तव चण्डिके ॥
'आचमनीय-जल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'अखण्ड ऋतु फल' समर्पित करें-
अखण्ड ऋतुफल-मन्त्र
नारिकेलं च नारंग कलिंगमचिरं तथा ।ऊर्वारुकं च देवेशि फलान्येतानि गृह्यताम् ॥
'अखण्ड ऋतु फल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'ताम्बूल' समर्पित
करें-
ताम्बूल का मन्त्र
एलालवंग, कस्तूरी कर्पू रै: सुष्ठुवासिताम् ।वीटिकां मुखवासार्थमर्पयामि सुरेश्वरि ॥
'ताम्बूल' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'दक्षिणा' समर्पित करें---
दक्षिणा मन्त्र
पूजाफलसमृद्ध्यर्थं तवाग्र स्वर्गमीश्वरि । स्थापितं तेन मे प्रीता पूर्णान् कुरु मनोरथान् ॥
'दक्षिणा' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र से 'नीराजन' (आरती) करें-
नीराजन-मन्त्र
नीराजनं सुमंगल्यं कपूरेण चन्द्रार्क वह्नि सदृशं महादेवि समन्वितम् ।
नमोऽस्तुते ॥'नीराजन' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए 'प्रद-क्षिणा' करें-
प्रदक्षिणा मन्त्र
नमस्ते देबि देवेशि नमस्ते ईप्सितप्रदे ।नमस्ते जगतांधात्रि नमस्ते भक्तवत्सले ||
'प्रदक्षिणा' के पश्चात् निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करते हुए नमस्कार निवेदित करें-
नमस्कार-मन्त्र
नमः सर्वहितार्थायै जगदाधार हेतवे ।साष्टांगो ऽयं प्रणामस्तु प्रयत्नेन मयाकृतः ॥
'नमस्कार' के पश्चात् स्तोत्र आदि का पाठ करें। अन्त में निम्नलिखित
मन्त्र का उच्चारण करते हुए 'विसर्जन' करें-
माता काली के विसर्जन-मन्त्र
इमां पूजा मया देवि यथाशक्त्युपपादिताम् । रक्षार्थं त्वं समादाय ब्रजस्थानमनुत्तमम् ॥
।। इति सामान्य काली पूजन विधिः ।
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