Jadibuti osudhi || जड़ी बूटी ओसुधी

Jadibuti osudhi || जड़ी बूटी ओसुधी


गिलोय(tinospora cardi folia)



    विशेष विवरण--गिलोय की बैल भारत के प्राय: सभी प्रान्तों में होती है।यह वृक्ष  पर स्वत: फैला करती है। प्रत्येक गाँठों से दो-दो भाग निकलते हैं । किन्तु धीरे-धीरे वे भी जड़ पकड़ लेते हैं । पत्ते, पान के पत्ते से मिलते-जुलते और कुछ नीले रंग के होते हैं । फूल गुच्छों में और छोटा-छोटा होता है । फल मटर के समान होते हैं; और पकने पर लाल रंग के मनोहर दीख पढ़ते हैं । बेल, पत्ते और जड़ सभी व्यवहार में लाए जाते हैं ।

    गिलोय ये बहुत तिक्त होता हे ये खाने से बहुत सारे बीमारी को ठीक कर देता हे

    इसका उपयोग

    1. ज्वर में हल्दी चूर्ण के और गूलंच का रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए

    2. गुलंच का रस के साथ एरंड का तेल मिलाकर पीने से आमबात से रक्षा होती हे।

    3.कफ रोग में एक चम्मच गुलंच के रस में एक चामच सहेद मिलाकर पीने से कफ रोग में बहुत आराम मिलता हे।

    4.आंखो का रोग में गुलंच,त्रिफला और पीपल के चूर्ण शहद एक साथ मिलाके पीने से सब प्रकार की आंखो रोग समाप्त हो जाते हे।

    5.मूत्र रोग में गुलंच का रस और शहद मिलाके पीने से मूत्र रोग समाप्त हो जाते हे।

    6.सर्प का विष का असर को कम कर देता हे।

    7.किसका अंग अगर जल गेया हे तो गुलंच का रस ,जीरा चूर्ण,मिश्री , सहद्द सबको मिलाके खाने से तथा ऊपर में लगाने से जल्दी आरोग्य हो जाते हे।

    8.बात रोग में गुलंच का रस सोठ एक साथ सहद में मिलाकर खाने से बात रोग में आराम मिलता हे।

    9. गुलंच का रस 2 चमाच और मिश्री एक साथ खाने से शरीर में शक्ति बढ़ता है।

    10.अनार के रस के साथ गुलंच रस एक साथ सेवन करने से खाने का अरुचि खत्म हो जाते हे।


    पान (piper betle)



    विशेष बिबारन पान सर्वत्र प्रसिद्ध हे।भारतबर्स के सवि जगा पर पान मिलता हे और इसका उपयोग होता हे।इसका उपयोग खाने के लिए ,पूजन में और ओसूधी के रूप में  अधिक उपयोग होता हे।

    पान रुचि कारक,तीक्ष्ण, उष्णा,कसेला हे ये शरीर से कफ ,मुख से दुर्गंध, मल ,बात और श्रम नाशक है।


    उपकारिता


    1.सर्पदंशपर पान की जड़ पान के बीड़ा में रख कर खाने से विष का असर कम हो जाते हे।

    2.शरीर पर किसी अंग फूलने से सफेद पान और सहिजन का रस एक साथ पीने से फूलना कम हो जाते हे।

    3.कुचला का विष पर काले पान के रस 250ग्राम पीने से विष नष्ट हो जाते हे।

    4.पारा का विष अगर शरीर में असर करती हे तो पान की लता , मागरा और तुलसी का रस बकरी के दूध में मिलाकर तीन दिन तक सुबह से ले कर दोपहर तक लेप करने से ठीक हो जाते हे।

    5.सर्दी खासी में पान का चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से सर्दी खासी ठीक हो जाते हे।

    6.सियार का विष पर पान की जड़ पानी में पीसकर पीने से विष का असर खत्म हो जाते हे।


    बासक(adhatoda vasika)



    बासक का पेड़ सवी जगा पर होती हे।प्राचीन काल से इसका उपयोग हो रहा हे आयुर्वेद में। इसका स्वाद बहुत तिक्त होता हे,ये शरीर दुषित कफ को निकल देता हे।

    इसका उपयोग

    1. प्रसव काल में कष्ठ से राहत के लिए इसके जड़ को गुप्त स्थान में लगाने से प्रसव में कष्ट नही होता हे।

    2.पित्त जनित रोग के लिए बासक के रस के साथ शहद मिलाके पीने से पित्त जनित रोग से जल्दी छूट करा मिलता हे।

    3. स्वेतप्रदर में इसका जड़ को शहद में मिलाकर खाने से रोग निर्मूल हो जाते हे।

    4.बिच्छू का विष पर बासक को पीसकर लगाने से जल्दी राहत मिलती है।

    5.इसका रस शहद में मिलाकर पीने से ज्वर, खासी ठीक हो जाते हे।



    कटेरी(solnum xanthocarpum)



    इसका बहुत नाम हे जैसे कंटकारी,कटेरी, भटकेटेया, नेलगुल्लु।

    विशेष बिबारन यह भूमि पर फैलती हे इसका वृक्ष के प्रत्येक अंग में छोटे छोटे कटा रहते हे।इसका फल गोलाकार होता हे और फल भीतर बहुत सारे बीज होता हे।इसका फल कच्चा हरा और पक्का पीला होता हे।ये दो तरह की होता हे एक सफेद कलर बाला फूल होता हे और एक नीला रंग की फूल बाला होता हे।

    इसका स्वाद तोडा तिक्त होता हे ये बहुत रोगों की लाभ दायक है।



    इसका उपयोग



    1.सिरका बाल झड़ जाने पर कटेरी का रस में शहद मिलाकर लगाने से नैया बाल उगता हे।

    2. ज्वर में कटेरी का जड़ या फल फूल चूर्ण को जायफल से मिलाकर हाफ चामच शहद में मिलाकर खाने से जल्दी आरोग्य मिलता हे।

    3. कानो में अगर किसीका कृमि होता हे तब केटेरी का फल का बीज आग में जलाकर उसका धुया नल द्वारा कान में देने से कृमि मर जाते हे।

    4.मूत्र रोग में कटेरी का रस में शहद मिलाकर पीने से मूत्र रोग ठीक हो जाते हे।

    5. स्वास कष्ट में कटेरी जीरा और आमला का चूर्ण शहद के साथ खाने से स्वास कष्ट दूर हो जाते हे।

    6.कुत्ता का विष पर कटेरी का रस में घी मिलाकर पीने से कुत्ता का विष नष्ट हो जाते हे।

    7.किसी स्त्री का अगर गर्भ में बच्चा नही रहता हे बार बार नष्ट हो जाते हे तो सफेद कटोरी फूल को पीसकर दूध से मिलाके पिलाने से ठीक हो जाते हे।

    8.दांत में अगर कीरा लग जाते हे तो इसका फल को आग में जालाके भस्म से दात सफाई करने से कीरा और दर्द भी ठीक हो जाते हे।

    9.कफ रोग में नीले फूल वाले कटोरी का रस पीपल का चूर्ण और शहद मिलाके खाने से कफ रोग नष्ट हो जाते हे।

    10.खासी में दूध के साथ रस सेवन करने से खासी में आराम मिलता हे।



    एरंड (castor oill plant)Ricinus communis.



    यह सभी प्रांत में दिखाई देता हे

    रेड़ी, भेरंडा,एरंड,एरंडी, एरंडु आडलके, बेदंजीर, कास्टर ऑयल प्लांट--Ricinus Communis, 


    विशेष विवरण--यह सभी जगह सरलता से पहचाना जा सकता है । इसका पा हाथ के पंजा के समान पाँच अंग वाला होता है । इसीसे इसे पंचागुल भी कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है; लाल और सफेद । या बड़ा और छोटा । बढ़ा दस पन्द्रह हाथ ऊँचा होता है, और छोटा सात आठ हाथ उँचा होता है। बड़े का बीज छोटे की अपेक्षा बड़ा होता है । इसके पेड़ की लकड़ी पोली होती है । इसके बीज से तेल निकलता है ।तेल का सम्पूर्ण पदार्थ 'औषध के लिए उपयोगी है। इसकी लकड़ी औसोध फूँकने, जड़ क्वाथ आदि के काम आने, पत्ता अनेक कार के काम आने, बीज की गुद्दी और उसका तेल भी अनेकों उपयोगी कामों में आने का उल्लेख हैं ।

    दोनों प्रकार के एरंड--मघुर,उष्ण, भारी तथा शूल; 

    शोथ, कटी, वस्ति 'और सिर की पीड़ा तथा ज्वर; वद, श्वास, कफ खाँसी, कूष्ठ, आमवात नाशक हैं। गुण --पुरंडपत्र वातप्नं कफकृमि विनाशनमू ।एरंड पत्र-बात, कफ, कृमि और मूत्रकुच्छ नाशक एवं रक्तपित्त प्रकोपक है । इसके कोमल पत्ते-“गुल्म, वसतिशूल, कफ, बात, कृमि, और सातों प्रकार की वृद्धि विनाशक हैं । 

    गुण एरंड बीज की गुद्दी--मल-भेदक. तथा वात, कफ और उदर रोग नाशक है। एरंड की जड़--ष्वं शूल, वात और कफ नाशक है । गुण --पुष्य हन्त्यस्थ वर्ध्मानिठकफगुदजान्‌ गुल्मयूछो ध्वंवातान्‌--शा० नि० WE का फूल-बद, वात, कफ, गुद-रोग, शुरुम, झूल और उध्वंवात नाशक है ।

    एरंड तेल इसका गुण शरीर पर कफ वर्धक तथा बात रक्त, गुल्म ,हृदय रोग ज्वर नाशक हे।

    इसका उपयोग

    1.बिच्छू का विष जिस जगा पर बिच्छू ने काटा हो उसके दूसरे कानो में एरंड का मूल का रस देने विष का प्रभाव नष्ट हो जाते हे।

    2.सर्प विष पर एरंड मूल का रस पीने से यह उसी स्थान पर लगाने से विष का असर खत्म हो जाते हे।

    3. धुतरा का विष पर लाल एरंड का जड़ की छाल पान के साथ पीसकर पीने से नष्ट हो जाते हे।

    4.चोट लगने पर एरंड तेल को तोडा गरम करके लगाने से दर्द कम हो जाते।

    4.फोड़ा पर एरंड का पत्र का रस और तेल गरम करके लगाने से फोड़ा ठीक हो जाते हे।

    5.10ग्राम परिमाण एरंड मूल चूर्ण  1 लीटर पानी में गरम करके 100ग्राम पानी कर के पीने से हृद रोग में आराम मिलता हे।

    5.दस्त के लिए एरंड का तेल 5 ग्राम परिमाण दूध के साथ पीना चाहिए।

    दाह पर एरंड का पत्र को पीसकर रस लगाने से जलन कम हो जाते हे।



    सहदेवी (siderhomfifolia)



    यह भारत में प्राय सभी प्रांत में बरसा ऋतु में पाया जाते हे।इसके पोधा छोटे छोटे और बड़ा बाला 2 तरा की होता हे।इसके पत्ता 2 अंगुल परिमाण हरे कलर का होता हे।इसका फूल और फल छोटा छोटा पीला रंग का होता हे।इसका फल,फूल,पत्ता,जड़,पूरा पेड़ भी ऊसुधि के रूप में उपयोग होता हे।


    सहदेवी का उपयोग


    1.ज्वर के लिए सहदेवी को शनि बार के दिन  निमंत्रण देकर अाये और रविवार को शुभा सूर्य उदय का पहले जड़ को उठाकर लाय और विधि बत पूजा करके काले डोरा से हाथ में धारण करने से विषम ज्वर से रक्षा होता हे।

    2.किसी जगा पर काट जाने पर सहदेव का रस लगाने से ठीक हो जाते हे।

    3. मू में अगर कुछ बीमारी होता हे जैसा घा , छुल जाना इस तरा के बीमारी के लिए इसका रस पानी में मिलाकर कुल्ला करने से ठीक हो जाते हे।

    4.पसीना अधिक होने के लिए सहदेवी का रस को गरम पानी में पीने से अधिक पसीना होता हे।

    5.बहुमुत्र रोग पर सह देवी का रस में सम परिमाण मिश्री मिलाकर दूध से पीने से बहुमुत्र रोग ठीक हो जाते हे।

    6.किसीबी प्रकार के ज्वर में सहदेवी का रस को 10ग्राम परिमाण काले मिर्च 7 को एक साथ पीसकर पीने से ज्वर उतार जाते हे।

    7.अनिद्रा में सहदेबी का रस मिश्री से मिलाकर पीने अनिद्रा भाग जाते हे।

    8.किसिबी प्रकार कुष्ठ रोग में इसका पत्ते को पीसकर लेप करना चाहिए।



    सताबर(asparagus racemouse)



    विशेष बिबारन सराबर लता दो तीन फुट ऊंचाई होता हे।इसका उपयोग शक्ति वर्धक लिए होता हे।इसका पत्ता छोटा छोटा सोया की पत्ता जिसे होता हे।इसके पत्ते से समुद्र की रेत जैसी बास आती हे।इसके फूल छोटा और सुगंधित होता हे फल हरा रंग का और पकने से लाल रंग का दिखाई देता हे।ओशुधि में इसका जड़ का प्रयोग होता हे एक वृक्ष में सौ सौ जड़ होता हे।इसी लिए इसका नाम शतबर हे शतमुली भी कहते हे।

    शताबर भारी शीतल होता हे,स्वादिष्ट भी होता हे।

    ये अग्नि वर्धक नेत्र रोग में शरीर के शुक्र क्षमता बड़ाने के लिए


    शताबर की उपयोग


    1.दुर्बल शरीर को सबल बनाने के लिए शताबरी को एक चामच पाउडर एक ग्लास दूध में मिलाके पीना चाहिए।

    2. गाय भेष का दूध बड़ाने के लिए शताबर को खिलाने से दूध बढ़ता है।

    3.दाह और पित्त रोग में शताबर के कड़े में शहद मिला कर पीने से पित्त रोग नष्ट हो जाते हे।

    4.कुत्ता विष में शताबर की रस के साथ दूध मै मिलाकर पीने से विष का प्रभाव नष्ट हो जाते हे।

    5. ज्वर और पथरी में एक चामच शताबर के साथ एक ग्लास दूध का सेवन करने से रोग ठीक हो जाते हे।

    6.बात रोग में शताबरी के गुलंच का रस मिलाके पीने से बात रोग से मुक्ति मिलता हे।

    7.बात और रक्त पित्त में शताबर चूर्ण दूध और घी मिलाकर खाने चाहिए।

    8.उन्माद में शताबर को घी में पकाकर खाने से उन्माद ठीक हो जाते हे।

    9.हिस्टीरिया में शताबरी को दूध और घी एक साथ खाने से हिस्टीरिया ठीक हो जाते हे।

    10.संतान  प्राप्ति के लिए शताबर के सेवन करने से संतान प्राप्ति होता हे।


    दुर्बा (cynodon dactylon)



    विशेष बिबारन ये एक तरा की घास होता हे हरे रंग की होती हे हर जगा में पाया जाते हे ये गाय की आहार होती हे। गणपति पूजन में दुर्ब की विशेष उपयोग होती हे आयुर्वेद शास्त्र में इसका बहुत उपयोग है।

    1.नकसीर में दुर्बा की रस को नास में लेने से आराम मिलता हे।

    2.हिचकी रोग में 10 ग्राम दुर्बा की रस के साथ 5 ग्राम शहद मिलाके खाने से हिचकी ठीक हो जाते हे।

    3.अनियमित मासिक के लिए दुर्बा की रस के साथ अनार की पत्ता का रस को एक साथ मिलाके 1 चामच करके साथ दिन खाने से ठीक हो जाते हे।

    4.शिर रोग में दुर्बा की रस के साथ चावल पीसकर लेप करना हे।

    5.फोड़े पर दुर्बा की रस के साथ हल्दी मिलाके लेप करने से ठीक हो जाते है।

    6.रक्त प्रदर में सफेद दुर्बा ,अनार की कली मिश्री दूध के साथ खाने से ठीक हो जाते हे।

    7.हात पैर और सिर की दाह पर सफेद दुर्बा रस लगाने से आराम मिलता हे।



    कंचन (banheria vasiagate)



    इसका पेड़ भारत में प्राय सब प्रांत में होता हे।यह लता के रूप में भी होता हे।इसका कली से तरकारी तथा आचार बनाया जाते हे।इसका फूलो में मीठा गंध होता हे।फूल गिर जाने पर लंबी लंबी फलिया लगती है।ये लाला सफेद तथा पीला रंग का होता हे।इसका लकड़ी का रंग लाल होता हे,ये रंग बनाने के लिए काम में आते हे।

    विशेष उपयोग 


    1.गन्डमाला पर इसके छाल चावल के पानी के साथ मिलाकर 40ग्राम तक पीना चाहिए।

    2.शरीर जल जाने पर कांचनार की छाल की रस में जीरा चूर्ण और कर्पूर मिलाकर पीना चाहिए।

    3.अरुचि में कंचन की कली घी में मिलाकर खाने से अरुचि खत्म हो जाते हे।

    4.अतिसार पर कंचनार की कली और केला का शाक एक साथ बनाके खाने से ठीक हो जाते हे।

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