हनुमान जी की तंत्र साधना
रामभक्त हनुमान के पराक्रम से भला कौन परिचित नहीं है। अंजनी नंदन भगवान हनुमान जी सर्वमान्य देव हैं। उन्हें अतुलित बल के धाम, बल बुद्धि निधान, ज्ञानियों में अग्रमान्य, ध्यानियों में ध्यानी, योगियों में योगी और अनन्त नामों से विभूषित किया गया है। पवन पुत्र हनुमान को शिव का अवतार माना गया है। तंत्र में उन्हें एकादश रुद्र माना गया है। पवन पुत्र इतने बलशाली हैं कि बाल्यकाल में ही उन्होंने सूर्य को अपने मुंह में रख लिया था ।
हनुमानजी के विषय में सब जगह कई अन्य बातें प्रचलित हैं। एक बात यह है कि कलियुग में जहां भी रामकथा का गुणगान किया जाता है, वहां पूरे समय कथास्थल पर भगवान श्री हनुमानजी उपस्थित रहते हैं। यह विश्वास एक अन्य तथ्य से भी सिद्ध होता है। संसार में सात चिरंजीवी माने गये हैं। इन सात चिरंजीवियों में अश्वत्थामा, परशुराम और हनुमान त सर्वविख्यात हैं। चिरंजीवी का अर्थ है जो मृत्यु के रूप में शरीर का परित्याग नहीं करते, बल्कि स्वेच्छा से दृश्य-अदृश्य होने की शक्ति का उपयोग करते हैं।
हनुमान जी चिरंजीवी हैं, इसलिये समय की लम्बी धारा में हजारों लोगों ने हनुमानजी का साक्षात्कार किया है। हनुमानजी का अस्तित्व त्रेतायुग से लेकर द्वापर और कलियुग तक में सदैव बना रहा है। त्रेतायुग में हनुमानजी ने अपने भक्तिभाव से राम-रावण युद्ध में सबसे प्रमुख भूमिका निभाई, तो द्वापर युग में वे महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण-अर्जुन के रथ की ध्वजा ( पताका) पर उपस्थित रहे थे ।
हनुमानजी की प्रसिद्धि भारत में ही नहीं, अपितु दुनिया के अनेक देशों में भी उतनी ही रही है, जितनी कि भारत में हनुमानजी की पूजा-अर्चना श्रीलंका, सिंगापुर, इण्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा, मलेशिया जैसे अनेक देशों में बीते लम्बे समय से आज तक हो रही है ।
वास्तव में हनुमान जी की महिमा अपरम्पार है। इस कलियुग के समय में तो हनुमानजी ही भैरव, काली, दुर्गा, रुद्र आदि के बाद एक मात्र ऐसे देव हैं, जो अपने भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देकर उनके समस्त दुःखों को मिटा सकते हैं।
हनुमानजी बल, बुद्धि, विद्या के देव माने गये हैं। हनुमानजी को शास्त्र मर्मज्ञ और विद्या शिरोमणि भी कहा जाता है क्योंकि वह वेद, पुराण, उपनिषदों के समस्त रहस्यों के ज्ञाता हैं और साथ ही सर्वश्रेष्ठ संस्कृतज्ञ भी हैं। हनुमानजी का उच्चारण अत्यन्त शुद्ध था। वे व्याकरण में भी पारंगत थे । रामायण के किष्किंधा काण्ड में एक कथा का विशेष रूप से उल्लेख आया है, जिसमें हनुमान जी की बुद्धि की पुष्टि हो जाती है। सीताजी की खोज में
जब राम और लक्ष्मण वन-वन भटक रहे थे, तब सुग्रीव ने उनकी परीक्षा लेने के लिये हनुमानजी को ही ब्राह्मण वेश बनाकर उनके पास भेजा था । स्वयं भगवान राम हनुमानजी की विद्वता, चतुराई और नीतिशास्त्र सम्बन्धी वार्तालाप से अत्यधिक प्रभावित हुये थे ।
हनुमानजी को नीतिशास्त्र का भी सर्वश्रेष्ठ विद्वान माना गया है । वह उच्च कोटि के संगीतज्ञ भी थे । वह बल, बुद्धि और विद्या के देव हैं। इसलिये हनुमानजी अपने भक्तों को न तो विद्या के द्वारा, न बल के माध्यम से और न ही नीति द्वारा परास्त होने देते हैं। यही मुख्य कारण रहा है कि अनन्तकाल से ही हनुमान जी विद्यार्थियों, यौद्धाओं और मल्लयुद्ध के महारथियों के आराध्य देव के रूप में पूजनीय रहे हैं। कोई भी युद्ध कौशल की शाला अथवा पहलवानों का अखाड़ा ऐसा नहीं होगा, जहां पर हनुमानजी की प्रतिष्ठा न की गई हो । आधुनिक स्कूलों में तो हनुमानजी की पूजा-अर्चना का अधिक प्रचलन नहीं है,
किन्तु पुराने जमाने में सभी गुरुकुलों में अन्य आराध्य देवों के साथ-साथ हनुमानजी की प्रमुखता से प्रतिष्ठा की जाती थी। मगध नरेश चन्द्रगुप्त के गुरु और महान कूटनीतिज्ञ कौटिल्य भी हनुमानजी के परम भक्त थे ।
हनुमानजी सभी आयुधों से अवध्य हैं, क्योंकि उनमें प्रायः समस्त देवों की शक्तियां समाहित हैं। एक तरह से वे समस्त देवों की शक्ति को स्वयं संचित करके ही अवतरित हुये हैं। वरुणदेव ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया है, जिससे वे चिरंजीवी हो सके, तो यम ने उन्हें अपने दण्ड से अभयदान प्रदान किया है। इसी प्रकार कुबेर ने उन्हें गदाघात से अप्रभावित होने का आशीर्वाद प्रदान किया, तो देवाधिदेव भगवान शंकर ने शूल और पाशुपत आदि अस्त्रों से अभय होने का वर दिया है। एकादश रुद्र तो वह स्वयं ही हैं ।
अंजनी नंदन इतनी अधिक शक्तियों एवं इतने गुणों से सम्पन्न हैं कि वह अपने भक्तों की प्रत्येक समस्या का सहज ही निदान कर देते हैं। हनुमानजी के भक्तों की संख्या सर्वाधिक इस कारण से है कि उन्हें प्रसन्न करना बहुत ही सहज एवं सरल है। प्रत्येक व्यक्ति की यह प्रबल अभिलाषा होती है कि उसके पास सुख-समृद्धि के
अधिकाधिक साधन हों, आर्थिक रूप से सक्षम हो और जीवन में कभी किसी प्रकार की समस्या नहीं आये। इसके लिये वह प्रयास भी करता है। कुछ व्यक्तियों की यह कामना पूर्ण हो जाती है और कुछ की नहीं होती है। इसके साथ ही वे अनेक समस्याओं से घिर जाते हैं। दुःख एवं कष्ट जीवन में निराशा एवं अवसाद उत्पन्न करने लगते हैं। इसके अन्य अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु कई बार ऐसे व्यक्ति दूसरों की जलन एवं ईर्ष्या के शिकार हो जाते हैं। ऐसे लोग प्रत्यक्ष रूप में कुछ कर नहीं पाते हैं किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न तांत्रिक अभिचार अथवा टोटकों के द्वारा व्यक्ति को कष्ट में डाल देते हैं। ऐसी घटनाओं के शिकार लोगों को अनेक प्रकार की विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ता है। अनेक लोगों का अच्छा खासा चलता व्यापार अचानक घाटा देने लगता है। लाभ केस्थान पर विभिन्न रूपों में हानि होने लगती है जो उसे आर्थिक समस्याओं में धकेल देती है। अनचाहे ही व्यक्ति अदालतों के केसों में उलझा दिया जाता है। बिना बात के लोगों से
शत्रुता बनने लगती है। ऐसे लोग अपनी समस्या के समाधान के लिये ज्योतिषियों, तांत्रिकों तथा मांत्रिकों के चक्कर लगाने लगते हैं किन्तु अधिकांश अवसरों पर निराशा ही हाथ लगती है।
उपरोक्त प्रकार की समस्या से पीड़ित लोगों के लिये हनुमत साधना का प्रयोग अत्यन्त लाभदायक रहेगा। वैसे भी इस बात को सभी जानते हैं कि श्री हनुमान ऐसे किसी भी व्यक्ति के कष्टों को तुरन्त दूर करते हैं जो सरल एवं सच्चे मन से उनकी साधना करता है। जिस व्यक्ति का व्यापार घाटे में चल रहा है, अकारण रूप से हानि का सामना करना पड़ रहा है, शत्रुओं की संख्या बढ़ रही हो, बनते काम बिगड़ते हों, ऐसे सभी लोगों को श्री हनुमान साधना का यह उपाय अवश्य करना चाहिये ।
आगे मैं हनुमानजी से सम्बन्धित एक विशेष साधना का उल्लेख कर रहा हूं। इस साधना (उपाय) के द्वारा आपके कष्ट एवं समस्या दूर होने की स्थितियां बनने लगेंगी और कुछ समय पश्चात् ही समस्या दूर हो जायेगी। हनुमानजी की यह साधना बहुत ही सरल और सहज है, किन्तु इसके माध्यम से साधक अपनी इच्छित आकांक्षाओं की प्राप्ति सहज ही कर सकते हैं। हनुमानजी की यह साधना विद्यार्थियों के लिये भी बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है। इस साधना से विद्यार्थियों का बौद्धिक कौशल बढ़ता है तथा परीक्षाओं में अच्छे अंक लेकर पास होते हैं । हनुमत साधना से साधकों की एकाग्रता एवं शारीरिक सामर्थ्य में भी वृद्धि होती जाती है, जिससे वे प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं आदि में सर्वश्रेष्ठ क्षमता दिखा पाते हैं। साक्षात्कार आदि में सफल होने के लिये भी यह हनुमत साधना बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती है ।
हनुमानजी की इस साधना के माध्यम से अनेक विद्यार्थियों ने परीक्षाओं में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है ।
हनुमत साधना की प्रक्रिया :
वैसे तो इस हनुमत साधना को अपनी सुविधानुसार कितने भी दिनों तक जारी रखा जा सकता है, लेकिन किसी परीक्षा अथवा स्पर्द्धा में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिये अगर इस साधना को सम्पन्न करना हो तो उसके लिये ग्यारह दिन तक ही इस साधना को जारी रखना पर्याप्त रहता है। ग्यारह दिनों की साधना से ही साधक को इच्छित फल की प्राप्ति होने के अवसर बनने लगते हैं।
इस हनुमत साधना को अगर मंगलवार या शनिवार के दिन से शुरू किया जाये तो हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसी प्रकार अगर इस साधना को किसी प्राचीन हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी की विशेष पूजा करके सम्पन्न किया जाये तो इसका फल तत्काल रूप से मिलता है अन्यथा इस साधना को घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है ।
इस हनुमत साधना को अगर मंगलवार या शनिवार के दिन से शुरू किया जाये तो हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसी प्रकार अगर इस साधना को किसी प्राचीन हनुमान जी के मंदिर में हनुमान जी की विशेष पूजा करके सम्पन्न किया जाये तो इसका फल तत्काल रूप से मिलता है अन्यथा इस साधना को घर पर भी सम्पन्न किया जा सकता है ।
हनुमत साधना का विधान :
मंगलवार अथवा शनिवार के दिन उपवास रखें। उपवास के दौरान एक-दो बार दूध, फलों का सेवन किया जा सकता है। संध्या के समय नहा-धोकर और स्वच्छ वस्त्र पहनकर हनुमानजी के मंदिर जायें। मंदिर में सबसे पहले हनुमानजी को घी- सिन्दूर से चोला चढ़ायें। उन्हें पुष्पमाला अर्पित करें। हनुमानजी को फल और नैवेद्य अर्पित करें।
नैवेद्य के रूप में चूरमे का भोग लगाया जाये तो अति उत्तम है अन्यथा मोतीचूर के लड्डू प्रसाद रूप में अर्पित किये जा सकते हैं।
सबसे पहले हनुमानजी के सामने लाल रंग का ऊनी आसन बिछा कर बैठ जायें । हनुमानजी के चरणों में शुद्ध रक्तचंदन की माला रखें। इसके अलावा हनुमानजी के सामने एक घी का दीपक जलाकर भी रख दें। शुद्ध गुग्गुल धूप अथवा लोबान धूप जला कर रखें।
अपनी आंखें बंद करके पूर्ण एकाग्रता के साथ प्रार्थना करें। जिस निमित्त इस हनुमत साधना को सम्पन्न किया जा रहा है, उस बात का विशेष रूप से उल्लेख करें।
हनुमान जी से तत्काल इच्छित अभिलाषा की पूर्ति का निवेदन करें। तत्पश्चात् हनुमानजी से मंत्रपाठ की आज्ञा प्राप्त करके अग्रांकित मंत्र का जाप प्रारम्भ करें। अगर हनुमानजी की साधना में लाल रंग के वस्त्र पहनकर अथवा लंगोट व जनेऊ पहनकर बैठा जाये तो और भी अच्छा रहता है।
मंत्रजाप शुरू करने से पूर्व हनुमानजी को समर्पित की गई रक्तचन्दन माला को अपने हाथों में ग्रहण कर लें तथा पूर्ण एकाग्रता के भाव के साथ अग्रांकित मंत्र का ग्यारह
नैवेद्य के रूप में चूरमे का भोग लगाया जाये तो अति उत्तम है अन्यथा मोतीचूर के लड्डू प्रसाद रूप में अर्पित किये जा सकते हैं।
सबसे पहले हनुमानजी के सामने लाल रंग का ऊनी आसन बिछा कर बैठ जायें । हनुमानजी के चरणों में शुद्ध रक्तचंदन की माला रखें। इसके अलावा हनुमानजी के सामने एक घी का दीपक जलाकर भी रख दें। शुद्ध गुग्गुल धूप अथवा लोबान धूप जला कर रखें।
अपनी आंखें बंद करके पूर्ण एकाग्रता के साथ प्रार्थना करें। जिस निमित्त इस हनुमत साधना को सम्पन्न किया जा रहा है, उस बात का विशेष रूप से उल्लेख करें।
हनुमान जी से तत्काल इच्छित अभिलाषा की पूर्ति का निवेदन करें। तत्पश्चात् हनुमानजी से मंत्रपाठ की आज्ञा प्राप्त करके अग्रांकित मंत्र का जाप प्रारम्भ करें। अगर हनुमानजी की साधना में लाल रंग के वस्त्र पहनकर अथवा लंगोट व जनेऊ पहनकर बैठा जाये तो और भी अच्छा रहता है।
मंत्रजाप शुरू करने से पूर्व हनुमानजी को समर्पित की गई रक्तचन्दन माला को अपने हाथों में ग्रहण कर लें तथा पूर्ण एकाग्रता के भाव के साथ अग्रांकित मंत्र का ग्यारह
माला जाप कर लें। हनुमानजी का मंत्र इस प्रकार है-
मंत्र- ॐ नमो हनुमन्ताय आवेशय-आवेशय स्वाहा ।
मंत्रजाप पूर्ण हो जाने के पश्चात् एक बार पुनः हनुमानजी से अपनी प्रार्थना कर लें । अनुष्ठान में पूर्ण सफलता प्राप्त करने का उनसे अनुरोध करें। इसके पश्चात् हनुमानजी की आज्ञा प्राप्त करके आसन से उठ जायें। मंत्रजाप के पश्चात् प्रसाद को अन्य लोगों में बंटवा दें।
साधनाकाल में ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करना तथा भूमि पर शयन करना आवश्यक है। अनुष्ठान काल में सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिये तथा सभी तरह के व्यसनों से दूर रहना चाहिये।'
यह हनुमत अनुष्ठान कुल ग्यारह दिन का है। इन ग्यारह दिनों में हनुमानजी को प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन घी- सिन्दूर का चौला चढ़ाना होता है, जबकि अन्य दिनों में हनुमानजी को ताजा पुष्प माला, फल, ताजा नैवेद्य अर्पित करना तथा घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना पर्याप्त रहता है, लेकिन मंत्रजाप से पहले और बाद में हनुमानजी से प्रार्थना करना बिलकुल नहीं भूलना चाहिये और न ही बिना हनुमान जी की आज्ञा प्राप्त
किये आसन से उठना चाहिये। मंत्रजाप रक्तचंदन माला के ऊपर ही करना चाहिये । ग्यारहवें दिन तक या साधकों को अपने इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है अथवा फल प्राप्त होने के अवसर बनने लगते हैं। अगर समस्या जटिल प्रकार की है तो भी साधकों को अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में ग्यारह दिनों में
अनुकूल परिणाम न मिलने पर साधना क्रम को आगे भी बनाये रखना चाहिये । निश्चित ही अगले कुछ दिनों में हनुमानजी की कृपा से अभीष्ट फल की प्राप्ति हो जाती है।
अगर आपको हनुमान मंदिर में बैठकर यह उपाय करने की सुविधा नहीं है तो इसे घर पर भी किया जा सकता है। इसके लिये साधना करने के लिये स्थान का चयन करें ।
उस स्थान को गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं पवित्र कर लें। गोबर से लीपना सम्भव न हो तो गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को शुद्ध कर लें। फिर उस स्थान पर लकड़ी की चौकी रखें। चौकी पर सवा मीटर नये लाल वस्त्र को चार तह में करके चौकी पर बिछा दें । इस पर अब श्री हनुमान जी की कोई भी एक फ्रेम की गई फोटो रख दें। इसके बाद की समस्त प्रक्रिया उपरोक्त अनुसार ही करें। चौला चढ़ाने के लिये मंगलवार अथवा शनिवार को हनुमान मंदिर जाना है। वहां श्री हनुमानजी की मूर्ति को सिन्दूर का लेप करें ।
इस उपाय को यदि और भी सशक्त बनाना है तो प्रतिदिन किसी भी हनुमान मंदिर में श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने बैठ कर हनुमान चालीसा अथवा बजरंग बाण का जाप करें। शनिवार एवं मंगलवार को यह संख्या पांच बार रहेगी । उपाय करते समय मन में यह विश्वास रखें कि श्री हनुमान जी आपकी समस्या को अवश्य एवं शीघ्र ही दूर करेंगे। उपाय के साथ यह अवश्य ध्यान रखें कि आपका जो भी कार्य है, उसे पूरी निष्ठा से करते रहें। श्री हनुमान जी शीघ्र ही आप पर प्रसन्न होंगे हो सकते हे आपको कभी न कभी किसी रूप से दर्शन भी मिल जाये।
मंत्र- ॐ नमो हनुमन्ताय आवेशय-आवेशय स्वाहा ।
मंत्रजाप पूर्ण हो जाने के पश्चात् एक बार पुनः हनुमानजी से अपनी प्रार्थना कर लें । अनुष्ठान में पूर्ण सफलता प्राप्त करने का उनसे अनुरोध करें। इसके पश्चात् हनुमानजी की आज्ञा प्राप्त करके आसन से उठ जायें। मंत्रजाप के पश्चात् प्रसाद को अन्य लोगों में बंटवा दें।
साधनाकाल में ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करना तथा भूमि पर शयन करना आवश्यक है। अनुष्ठान काल में सात्विक आहार ग्रहण करना चाहिये तथा सभी तरह के व्यसनों से दूर रहना चाहिये।'
यह हनुमत अनुष्ठान कुल ग्यारह दिन का है। इन ग्यारह दिनों में हनुमानजी को प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन घी- सिन्दूर का चौला चढ़ाना होता है, जबकि अन्य दिनों में हनुमानजी को ताजा पुष्प माला, फल, ताजा नैवेद्य अर्पित करना तथा घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना पर्याप्त रहता है, लेकिन मंत्रजाप से पहले और बाद में हनुमानजी से प्रार्थना करना बिलकुल नहीं भूलना चाहिये और न ही बिना हनुमान जी की आज्ञा प्राप्त
किये आसन से उठना चाहिये। मंत्रजाप रक्तचंदन माला के ऊपर ही करना चाहिये । ग्यारहवें दिन तक या साधकों को अपने इच्छित फल की प्राप्ति हो जाती है अथवा फल प्राप्त होने के अवसर बनने लगते हैं। अगर समस्या जटिल प्रकार की है तो भी साधकों को अधिक परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में ग्यारह दिनों में
अनुकूल परिणाम न मिलने पर साधना क्रम को आगे भी बनाये रखना चाहिये । निश्चित ही अगले कुछ दिनों में हनुमानजी की कृपा से अभीष्ट फल की प्राप्ति हो जाती है।
अगर आपको हनुमान मंदिर में बैठकर यह उपाय करने की सुविधा नहीं है तो इसे घर पर भी किया जा सकता है। इसके लिये साधना करने के लिये स्थान का चयन करें ।
उस स्थान को गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं पवित्र कर लें। गोबर से लीपना सम्भव न हो तो गंगाजल छिड़क कर उस स्थान को शुद्ध कर लें। फिर उस स्थान पर लकड़ी की चौकी रखें। चौकी पर सवा मीटर नये लाल वस्त्र को चार तह में करके चौकी पर बिछा दें । इस पर अब श्री हनुमान जी की कोई भी एक फ्रेम की गई फोटो रख दें। इसके बाद की समस्त प्रक्रिया उपरोक्त अनुसार ही करें। चौला चढ़ाने के लिये मंगलवार अथवा शनिवार को हनुमान मंदिर जाना है। वहां श्री हनुमानजी की मूर्ति को सिन्दूर का लेप करें ।
इस उपाय को यदि और भी सशक्त बनाना है तो प्रतिदिन किसी भी हनुमान मंदिर में श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने बैठ कर हनुमान चालीसा अथवा बजरंग बाण का जाप करें। शनिवार एवं मंगलवार को यह संख्या पांच बार रहेगी । उपाय करते समय मन में यह विश्वास रखें कि श्री हनुमान जी आपकी समस्या को अवश्य एवं शीघ्र ही दूर करेंगे। उपाय के साथ यह अवश्य ध्यान रखें कि आपका जो भी कार्य है, उसे पूरी निष्ठा से करते रहें। श्री हनुमान जी शीघ्र ही आप पर प्रसन्न होंगे हो सकते हे आपको कभी न कभी किसी रूप से दर्शन भी मिल जाये।
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