सौभाग्यप्रद गणपति साधना(Soubhagyaprada ganapati Sadhana)
भगवान गणपति की जिस साधक पर कृपा हो जाती है उस पर कभी कोई अभाव अथवा समस्या नहीं आती है। सामान्य पूजा और सच्ची श्रद्धा से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। हमारे यहां विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, साधना अथवा अनुष्ठान आदि किसी विशेष प्रयोजन आदि के लिये किये जाते हैं जैसे कि किसी को आर्थिक समस्या है, किसी के विवाह में विलम्ब हो रहा है, किसी के विवाह आदि में बाधायें आ रही हैं अथवा अन्य किसी प्रकार की कामना पूर्ति हो । इसी अनुरूप यह प्रयोग भी उन लोगों के लिये विशेष लाभदायक है जो विभिन्न प्रकार की आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त हैं । यह प्रयोग करने के कुछ समय बाद ही समस्याओं में कमी आने लगती है। यह प्रयोग एक बहुत विख्यात बाबा के माध्यम से प्राप्त हुआ है। इन बाबा के अनेक भक्त हुआ करते थे। उन्हीं में से एक भक्त जब भी उनसे मिलता, तभी चेहरा उदास और परेशान सा लगता। बाबा ने उसे कभी मुस्कुराते हुये भी नहीं देखा था । एक दिन बाबा ने उससे उसकी समस्या के बारे में पूछा। तब उसने बताया कि उसकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। वह कपड़े की एक मिल में प्रबंधन कार्य देख रहा है। जितना पैसा वेतन के रूप में मिलता है, उससे उसका निर्वाह ठीक से नहीं होता है। उसने बाबा को एक बहुत गंभीर बात बताई कि वर्तमान की उसे चिंता नहीं है, जैसे भी कठिन दिन हैं,
वह उन्हें भोग लेगा, चिंता केवल भविष्य को लेकर है। बच्चे अभी छोटे हैं, आने वाले समय में उनकी शिक्षा आदि पर खर्च करना पड़ेगा, घर के अन्य खर्च भी बढ़ेंगे, उनकी व्यवस्था कैसे होगी ? यही चिंता की बात है। उसकी बात में इतनी करुणा थी कि बाबा का दिल पसीस गया। उन्होंने उसे शाम के समय बुलाया और सौभाग्यप्रद गणपति साधना के बारे में बताया और इस प्रयोग की विधि भी बताई । उस भक्त ने बाबा के निर्देशानुसार इस प्रयोग को किया । इसके दो महीने बाद ही परिस्थितियों में परिवर्तन आने लगा था । एक अन्य बड़ी मिल ने इसकी कार्य कुशलता से प्रभावित होकर पहले वाले वेतन से तीन गुना अधिक पर अपने यहां नौकरी पर रख लिया । इसके दो साल बाद एक व्यक्ति ने इस साधक के साथ साझीदारी से मिल खोल ली । चार साल के भीतर ही इस साधक की सभी प्रकार की समस्यायें समाप्त होकर धन की वर्षा होने लगी । वास्तव में यह सौभाग्य गणपति साधना का फल इसके नाम के अनुरूप ही प्राप्त हुआ था। बाद में इस साधक का मेरे साथ परिचय हुआ । इन्होंने मुझे इस साधना के बारे में बताया और आग्रह किया कि जो व्यक्ति आर्थिक समस्याओं से परेशान है और जो इस "उपाय को कर सकता है, उसे मैं अवश्य इसके बारे में बताऊं । फिर मैंने अनेक लोगों से यह उपाय सम्पन्न कराया। सभी ने इस उपाय को चमत्कारिक प्रभाव के बारे में मुझे
बताया। इस उपाय को मैं अपने असंख्य पाठकों के लिये यहां बता रहा हूं। जो व्यक्ति
गणपति साधना कैसे करे
आर्थिक समस्याओं से परेशान है, अत्यधिक श्रम करने के पश्चात् भी पैसों की परेशानी रहती है, उन सभी के लिये यह प्रयोग अत्यन्त प्रभावी एवं लाभ देने वाला है। इस उपाय में सबसे पहले चांदी के पत्र पर अग्रांकित गणेश यंत्र उत्कीर्ण करवा कर उसे चेतना सम्पन्न कर लें। फिर उसे शुभ मुहूर्त में अपने उपासना कक्ष में स्थापित करके उसकी विधिवत उपासना करें। अगर चांदी के पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करना सम्भव नहीं हो तो इसी गणेश यंत्र को भोजपत्र के ऊपर पंचगंध की स्याही एवं चमेली की कलम से
लिखकर उसकी भी विधिवत् पूजा-अर्चना कर लें, ताकि यंत्र चेतना सम्पन्न बन जाये। इसके पश्चात् इस यंत्र को त्रिधातु निर्मित ताबीज में भर कर अपने कंठ अथवा बाहूमूल में लाल धागे से बांध लें। इस साधना में निर्मित किया जाने वाला गणेश यंत्र इस प्रकार है-
गणपति यंत्र निर्माण बिधि
यंत्र निर्माण के लिये पंचगंध की स्याही का प्रयोग किया जाता है। पंचगंध स्याही बनाने के लिये गोरोचन, श्वेत चंदन, केसर, ब्रह्म कमल पंखुड़ियां, अगर अथवा सुगन्धबाला की आवश्यकता होती है। सबसे पहले उपरोक्त गंधों को एकत्रित करके अच्छी तरह से घिस कर अथवा बारीक पीस कर परस्पर मिलाकर चंदन जैसा लेप बना लें। फिर किसी शुभ मुहूर्त, जैसे रवि पुष्प नक्षत्र या अमृत सिद्धि योग अथवा सर्वार्थ सिद्धि योग के अवसर
पर चमेली की कलम द्वारा इस पंचगंध स्याही द्वारा विधिवत भोजपत्र के ऊपर लिख कर यंत्र तैयार कर लें ।
जब गणपति यंत्र तैयार हो जाये तो इनकी उपासना के लिये अगले शुभ मुहूर्त का चुनाव करें।
गणपति साधना करने का नियम
इस गणपित अनुष्ठान को गणेश चतुर्थदशी के दिन से अथवा किसी भी शुक्ल पक्ष की चतुर्थ तिथि के दिन भी शुरू किया जा सकता है। अतः जिस दिन इस अनुष्ठान को शुरू करने का निश्चय करें, उस दिन प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर एवं नित्यकर्म से निवृत्त होकर तैयार हो जायें। एक स्वच्छ वस्त्र पहन कर अपने पूजाकक्ष में उत्तराभिमुख होकर
आराम से बैठ जायें। बैठने के लिये कम्बल आसन अथवा कुशा आसन का प्रयोग करें। आसन पर बैठकर अपने सामने लकड़ी की एक चौकी बिछाकर उसके ऊपर एक श्वेत रंग का वस्त्र बिछा लें। चौकी पर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करके चांदी पर उत्कीर्ण किये गये सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र को प्रतिष्ठित करें। इसके पश्चात् यंत्र पर पंचगंध युक्त स्याही से ग्यारह बार गंध अर्पित करते हुये ॐ गं गणपति नमः नामक मंत्र का उच्चारण करते रहें। चांदी के यंत्र के साथ ही भोजपत्र पर बनाये यंत्र को भी प्रतिष्ठित कर लें। रजत पत्र पर उत्कीर्ण गणपति यंत्र को गंध लेपन के पश्चात् धूप, दीप अर्पित करें। घी का एक दीपक जलाकर चौकी पर रख दें और स्वयं गणपति को यंत्र में प्रतिष्ठित होने के लिये उनका आह्वान करें।
धूप, दीप, पुष्प, गंध आदि चढ़ाने के पश्चात् चौकी के ऊपर गणपति के लिये
पंचमेवा और लड्डूओं का भोग लगाकर रखें। अंत में गणपति के सामने अपनी प्रार्थना करें। उनसे जो मांगना चाहे मांगें तथा उनकी आज्ञा प्राप्त करके अग्रांकित मंत्र की कम से कम तीन मालाओं का जाप करें। अगर अधिक संख्या में मंत्रजाप संभव हो तो वैसा कर लें ।
गणपति मंत्र इस प्रकार है-
ॐ श्रीं गं सौम्यास गणपतये वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा ।
यह इस मंत्र का जाप स्फटिक माला अथवा मूंगा माला के ऊपर किया जाये,
सर्वश्रेष्ठ रहता है । यद्यपि मंत्रजाप के लिये हकीक की माला का भी उपयोग किया जा सकता है। जब आपका मंत्रजाप पूर्ण हो जाये तो उसके उपरांत गणपति से एक बार पुनः अपनी प्रार्थना कर लें तथा उनकी आज्ञा लेकर आसन से उठ जायें। गणपति को जो नैवेद्य अर्पित किया गया है, उसमें से थोड़ा सा प्रसाद स्वयं ग्रहण कर लें, शेष प्रसाद को घर के
अन्यं सदस्यों में बांट दें। इस तरह निरन्तर 21 दिन तक इस अनुष्ठान को जारी रखें। प्रत्येक दिन प्रातःकाल स्वच्छ होकर अपने पूजाकक्ष में बैठकर सौभाग्यप्रद गणपति यंत्र की पूर्जा-अर्चना करें ।
प्रतिदिन यंत्र को गंगाजल अथवा शुद्ध जल से धोकर पंचगंध लेपन करें। गंध लेपन के समय ग्यारह बार ॐ गं गणपति नमः मंत्र का जाप करते रहें। इसके पश्चात् यंत्र की धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजा-अर्चना करें। गणपति का आह्वान करें और उनसे प्रार्थना करके एवं उनकी आज्ञा प्राप्त करके गणपति के उपरोक्त मंत्र की कम से कम तीन माला मंत्रजाप करते रहें। जाप के पश्चात् गणपति से प्रार्थना करना एवं आसन से उठने
की आज्ञा लेना नहीं भूले । यह गणपति की नियमित पूजा का क्रम है । इस पूजा में एक बात का ध्यान रखा जा सकता है कि प्रतिदिन गणपति को पंचमेवा का नैवेद्य लगाना ही पर्याप्त रहता है । लड्डूओं का नैवेद्य प्रथम दिन और अनुष्ठान के आखिर दिन अर्थात् 21वें दिन ही लगाना
होता है। 21वें दिन, जिस दिन आपका अनुष्ठान सम्पन्न होता है, उस दिन एक माला अतिरिक्त मंत्रजाप करें तथा गणपति यंत्र के आगे रखे हुये नैवेद्य को घर-परिवार के अलावा आस- पड़ौस में भी बंटवा दें। विशेषकर बच्चों में प्रसाद बंटवाना अति शुभ रहता है। इस तरह 21वें दिन यह अनुष्ठान सम्पन्न हो जाता है। अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात् चांदी पर निर्मित गणेश यंत्र को पूजास्थल पर ही बने रहने दें तथा नियमित रूप से उसके सामने धूप, दीप आदि अर्पित करते रहें। इसके साथ ही अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ संख्या में मंत्रजाप भी नियमित रूप से जारी रखें, जबकि दूसरा गणपति यंत्र, जो भोजपत्र पर निर्मित किया गया है और जिसे त्रिधातु से बने ताबीज के अन्दर रखा जाता है, उसे लाल रेशमी धागे से अपने गले अथवा बायें हाथ की बाजू पर बांध लें।
21 दिन के दौरान जो पूजा सामग्री चौकी के ऊपर व इसके इर्द-गिर्द इकट्ठी हो
जाती है, उसको एक जगह एकत्र करके किसी जल स्रोत में अथवा किसी नदी आदि में प्रवाहित करवा दें। इस प्रकार 21 दिन का गणपति का यह अनुष्ठान पूर्णता के साथ सम्पन्न हो जाता है।
गणपति का यह 21 दिन का अनुष्ठान बहुत ही प्रभावशाली है। इसको सफलतापूर्वक सम्पन्न करने से सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। अनेक तरह की बाधायें एवं आपदायें स्वतः ही शांत हो जाती हैं। गणपति यंत्र को प्रतिष्ठित करने एवं इस अनुष्ठान को सम्पन्न करने से धन आगमन के स्रोत खुलते हैं, व्यापार वृद्धि होती है, मित्र एवं पारिवारिक सदस्यों से भरपूर सहयोग प्राप्त होता है तथा आर्थिक स्थिति दिनोंदिन सुदृढ़ होती जाती है।
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